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चौरासी लाख योनियों के चक्कर की अर्थवत्ता

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      अनामिका, प्रयागराज 

8400000 योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। 

      एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन 8400000 योनियों में भटकती रहती है। अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है.

     ये तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है।

*योनि का अर्थ क्या है?*

     अगर आसान भाषा में समझा जाये तो योनि का अर्थ है प्रजाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम Species कहते हैं। अर्थात इस विश्व में जितने भी प्रकार की प्रजातियाँ है उसे ही ‘योनि’ कहा जाता है। इन प्रजातियाँ में ना केवल मनुष्य और पशु आते हैं,

बल्कि पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, जीवाणु-विषाणु इत्यादि की गणना भी उन्ही 8400000 योनियों में की जाती है। 

       आज का विज्ञान बहुत विकसित हो गया है और दुनिया भर के जीव वैज्ञानिक वर्षों की शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस पृथ्वी पर आज लगभग ‘87 लाख’ प्रकार के जीव-जंतु एवं वनस्पतियाँ पाई जाती है

अब आप सिर्फ ये अनुमान लगाइये कि हमारे हिन्दू धर्म में ज्ञान-विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों वर्षों पहले अपने ज्ञान के बल पर ये बता दिया था कि 8400000 योनियाँ है जो कि आज की उन्नत तकनीक द्वारा कीगयी गणना के बहुत निकट है।

    जो भी जीव इस जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है, उसे आगे किसी अन्य योनि में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है, उसे ही हम “मोक्ष” ( जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति करना कहते है। 

*8400000 योनियों का गणनाक्रम :*

 पद्मपुराण के 78/5 वें सर्ग में कहा गया है:

    जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।

पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।

अर्थात,

जलचर जीव:  9 लाख

वृक्ष-पौधे : 20 लाख

कीट (क्षुद्रजीव): 11 लाख

पक्षी: 10 दस लाख 

पशु: 30 लाख.

    देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि : ४००००० (चार लाख).

इस प्रकार 9००००० + 2०००००० + 11 ००००० + 1०००००० + 3०००००० + 4००००० = कुल योनियां 84००००० योनियाँ होती है।

84 लाख योनियों को 2 भागों में बांटा गया है। इसमें से पहला (१) योनिज तथा दूसरा (२) आयोनिज है.

     मतलब 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी को ‘योनिज’ कहा जाता है।

और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं। उन्हें ‘आयोनिज’ कहा जाता है। 

      इसके अलावा मूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा जाता है, जो नीचे दिए गए हैं :

• जलचर:–जल में रहने वाले सारे प्राणी।

• थलचर :-पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी।

• नभचर :- आकाश में विहार करने वाले सारे प्राणी।

84 लाख योनियों को नीचे दिए गए 4 वर्गों में बांटा जाता है :

१- जरायुज :- माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु को जरायुज कहा जाता है ।

२- अंडज :- अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी  को अंडज कहा जाता है

३- स्वदेज :- मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु को स्वेदज  कहा जाता है।

४- उदि्भज :- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी को उदि्भज कहा।

‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प‘ ग्रंथ में शरीर की रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया जाता है, जो कि नीचे दिए गए अनुसार है :

• एक शफ (एक खुर वाले पशु):- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण को शामिल किया जाता है।

• विशफ (दो खुर वाले पशु):- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि शामिल है।

• पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु:-सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि को शामिल किया जाता है।

*मोक्ष का एकमात्र हकदार मनुष्य नहीं :*

      मनुष्य योनि को मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि माना गया है क्यूंकि मोक्ष के लिए जीव में जिस ‘चेतना’ की आवश्यकता होती है वो हम मनुष्यों में सबसे अधिक पायी जाती है।

चेतना मिशन की दृष्टि में ये अनिवार्य नहीं है कि केवल मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, अन्य जंतुओं अथवा वनस्पतियों को नहीं। 

   महाभारत में पांडवों के महाप्रयाण के समय एक कुत्ते का वर्णन आता है, जिसे उनके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जो वास्तव में ‘धर्मराज’ थे.

    विष्णु एवं गरुड़ पुराण में एक गज-ग्राह का वर्णन आता है जिन्हे भगवान विष्णु के कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई।वो ग्राह पूर्व जन्म में गन्धर्व और गज भक्त राजा थे किन्तु कर्मफल के कारण अगले जन्म में पशुयोनि में जन्मे ऐसे ही एक गज का वर्णन गजानन की कथा में है जिसके सर को श्रीगणेश के सर के स्थान पर लगाया गया था और भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

     महाभारत की कृष्ण लीला में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में खेल-खेल में “यमल” एवं “अर्जुन” नमक दो वृक्षों को उखाड़ दिया था। वो यमलार्जुन वास्तव में पिछले जन्म में यक्ष थे जिन्हे वृक्ष योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था। 

     अर्थात, जीव चाहे किसी भी योनि में हो, अपने पुण्य कर्मों और सच्ची भक्ति से वो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। यह सच है की सदकर्म की साधना मनुष्य योनि में सहज है, अन्य योनियों में दुर्लभ.

हमें इस बात का गौरवान्वित होना चाहिये कि जिस को सिद्ध करने में आधुनिक/पाश्चात्य विज्ञान को हजारों वर्षों का समय लग गया, उसे हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही सिद्ध कर दिखाया था।

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