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लाइन लास के नाम पर बिजली चोरी का गोरख धंधा

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सनत जैन

देश में बिजली चोरी के लिए झुग्गी- झोपड़ी, किसानों और निम्न-मध्यम वर्ग को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। बिजली चोरी बड़े पैमाने पर विभिन्न राज्यों के विद्युत मंडल और विद्युत उत्पादन संयंत्रों से होती है। पिछले चार दशक में लाइन लास को कम करने के लिए हजारों करोड़ों रुपए प्रत्येक राज्य विद्युत मंडल द्वारा खर्च किए जाते है। लाइन लास कम होने के स्थान पर, बढ़ता ही जा रहा है।

2023 के जो नए आंकड़े सामने आए हैं, उसके अनुसार अरुणाचल राज्य में 58 फ़ीसदी, नागालैंड में 46 फ़ीसदी, सिक्किम में 37 फ़ीसदी, झारखंड में 30 फ़ीसदी, त्रिपुरा में 28 फ़ीसदी, उड़ीसा में 27 फ़ीसदी, मिजोरम में 26 फ़ीसदी, मेघालय में 24 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी और मध्य प्रदेश में 21 फीसदी लाइन लास बताया गया है। विद्युत मंडलों का सबसे बड़ा नुकसान लाइन लास के रूप में होता है। थर्मल पावर संयंत्रों में कोयला चोरी से विद्युत उत्पादन की कीमत 25 से 30 फ़ीसदी तक बढ़ी है। जिसके कारण उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिल रही है। पिछले कई दशकों से विद्युत संयंत्रों से कोयले की चोरी रोकने और लाइन लास कम करने के नाम पर हर साल, हर राज्य का विद्युत मंडल, हजारों करोड़ों रुपए खर्च करता है। लेकिन चोरी रुकने के स्थान पर साल दर साल बढ़ती ही चली जा रही हैं।

बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों की मिली भगत से विद्युत चोरी, बिजली विभाग के अधिकारियों और राजनेताओं की मिली भगत से बड़े पैमाने पर होती है। इस बिजली चोरी को लाइन लास और विद्युत उत्पादन में हुए नुकसान से जोड़कर एक सुनियोजित साजिश के तहत, पिछले दो दशक से लगातार बिजली की कीमतें लगातार बढ़ाई जा रही हैं। इसका खामियाजा निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों को भुगतना पड़ता है। हर राज्य के करोड़ों उपभोक्ताओं को जो ईमानदारी से अपना बिजली का बिल चुकाते हैं, उन्हें महंगी बिजली खरीदना पड़ रही है। हर राज्य की विद्युत कंपनियों ने चोरी पकड़ने के लिए हजारों कर्मचारी नियुक्त किए हैं। पिछले कई दशकों से विद्युत वितरण क्षेत्र में कोटेड वायर बिछाए गए हैं। पोल पर ट्रांसफार्मर लगाकर चोरी रोकने के लिए मीटर भी लगाए गए। उसके बाद भी विद्युत चोरी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। उल्टे हर साल विद्युत चोरी बढ़ती ही जा रही है। राजनीतिक दबाव भी इसका एक सबसे बड़ा कारण है।

उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश की बात करें, तो यहां पर विद्युत वितरण की तीन कंपनियां हैं। पश्चिम क्षेत्र की विद्युत वितरण कंपनी में 13 फीसदी लाइन लॉस है। मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में 23 फ़ीसदी तथा पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में 27 फ़ीसदी का लाइन लॉस है। ऊर्जा मंत्रालय की 12वीं रेटिंग रिपोर्ट में मध्य प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों में आंशिक सुधार होने की बात जरूर कही गई है। लेकिन किसी भी विद्युत कंपनी को ए क्लास वाली रेटिंग नहीं मिली। विद्युत नियामक आयोग की भूमिका इसमें सबसे ज्यादा खराब है। विद्युत वितरण और उत्पादन कंपनियों द्वारा जो हिसाब किताब नियामक आयोग में पेश किया जाता है।

उसी के अनुसार बिजली की दरें तय कर दी जाती हैं। विद्युत नियामक आयोग में कंपनियों के साथ-साथ आम विद्युत उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखने के लिए विद्युत नियामक आयोग को उनकी शिकायतों पर सुनवाई करनी चाहिए। सुनवाई के नाम पर केवल फॉर्मेलिटी पूरी कर ली जाती है। विद्युत उपभोक्ता असंगठित होते हैं। विद्युत नियामक आयोग में वह अपना पक्ष अच्छे तरीके से नहीं रख पाते हैं। विद्युत नियामक आयोग को जिस तरह से कंपनियों के उत्पादन, वितरण और अन्य खर्चो के बारे में जांच करनी चाहिए, उसकी ओर आयोग ध्यान नहीं देता है। इस कारण देश भर के करोड़ों बिजली उपभोक्ता जो ईमानदारी के साथ अपना बिल भरते हैं, उनके ऊपर साल दर साल बोझ बढ़ता चला जा रहा है।

विद्युत वितरण कंपनियों ने बिजली के रेट बढ़ाकर अपना घाटा पूरा करने का आसान रास्ता खोज लिया है। ईमानदार बिजली उपभोक्ता संगठित रूप से इसका विरोध नहीं कर पाते हैं। इसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है। वहीं बड़े-बड़े उद्योग संस्थान, राजनेताओं और अधिकारियों की मिली भगत से कम कीमत पर ज्यादा बिजली का उपयोग करते हैं। बिजली चोरी का यह धंधा संगठित रूप से राजनेताओं और अधिकारियों की मिली भगत से चलाया जा रहा है। ना तो इसे विद्युत नियामक आयोग रोक पाया, ना केंद्र अथवा राज्य सरकारें रोक पाईं। इसे लेकर बिजली उपभोक्ताओं की नाराजी स्पष्ट रूप से दिखने लगी है।

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