डॉ. विकास मानव
तंत्र की ऐसी कोई साधना नहीं, जो मैने नहीं की हो. ऐसी कोई सिद्धि नहीं जो मुझे नहीं मिली हो और जिसे मैं प्रत्यक्ष नहीं कर सकता हूँ. लेकिन मुझे इस रूप में विरले लोग ही जानते हैं. मैं इस से खुद को अलग रखता हूँ. क्यों?
बहुत से लोगों ने मुझसे कई बार प्रश्न पूछे थे कि पुराने जमाने में लोग हर बात पर यह समझाते थे कि इसके हाथ का या उसके हाथ दिया कुछ नहीं खाना, पीना नहीं तो ये कोई भूत प्रेत लगा देंगे। ऐसा क्यों कहा जाता था। उस जमाने में एक गांव के लोग दूसरे गांव के लोगों में भी वैसी दुश्मनी होती थी जैसे आज के जमाने से में भारत चीन की है।
छोटी छोटी रियासतें होती थी आपस में कई प्रकार की रंजिश बनी रहती थी।
तब तांत्रिक लोग कई प्रकार की खाने पीने की चीजों में कई प्रकार की चीजें मिला कर दुश्मनों को खिलाने के लिए दे देते थे। महिलाएं अपने MC का खून पुरुष में उतार देती थी, उसे वश में करने के लिए.
लोग खाने पीने की चीजों में उल्लू, चमगादड़ का खून मांस या किसी ऐसे जीव का खून मांस मिला देते थे जिनमें तरह तरह के ऐसे बैक्टीरिया और वायरस होते हैं जो मनुष्यों में तरह तरह की बीमारियां उत्पन कर देते हैं। और हमारे वेद पुराणों में वायरस बैक्टीरिया का मतलब ही भूत प्रेत होता है। जिनका कोई इलाज संभव नहीं होता था और धीरे धीरे वो बीमारियां बहुत से लोगों की मृत्यु का कारण बन जाती थी।
पुराने जमाने में बाकी आज कि तरह दूसरी और बीमारियां कम होती थी अधिकतर मृत्यु बैक्ट्रियल या वायरस वाली बीमारियों के कारण होती थी। उसी आधार पर जिस घर में मृत्यु होती थी वहां कई प्रकार की छुआछूत मानी जाती थी। इसका मतलब वहीं आइसोलेशन होता था जैसा आजकल कोरोना के कारण हो रहा है।
यही काम अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। इसमें देशद्रोही लोगों की भूमिका भी है और दवा उद्योग की भी।
इसलिए मैं लगातार लोगों को बता रहा हूं कि अपने खाने पीने को लेकर अपनी संस्कृति के अनुसार व्यवहार करें। बाहर की बनी कोई भी चीज ठंडी ना खाए। उसे घर में लाकर गरम करके खाएं। आइस क्रीम, कोल्ड ड्रिंक से दूर रहे।
जो काम पहले स्थानीय स्तर पर तांत्रिक लोग करते थे अब वही काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक स्तर पर किया जा रहा है। यही लोग वायरस देंगे फिर यही लोग आपको दवा बेचेंगे।
जैसे आज कल के विश्व के सबसे बड़े तांत्रिक में से एक बिल गेट्स जो वुहान लैब में पैसा भी लगाते हैं और दवा उद्योग फाइज़र में वैक्सीन भी बनाते हैं। साथ ही साथ ज्योतिषी का काम करते हुए 2015 में ही कोरोना वायरस आने की भविष्यवाणी भी कर देते हैं।
जब मैं बहुत छोटा था 8-9 साल का तब मैं अपने इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के साथ गली मुहल्ले में पीछे भागा रहता था। तब ये नेता लोग जब किसी के घर में अगर बैठना पड़ ही जाए और उस घर वाले पानी पीने को ले आएं या कोई ठंडा जूस लें आए तो मना तो कर नहीं सकते क्योंकि वोट लेना है। तब ये नेता लोग बहाना बना देते थे कि मुझे ठंडा खाने को डॉक्टर ने मना किया है आप इसकी जगह गरम गरम चाय या दूध दे दो।
मतलब दोनों काम बचाव भी और वोट भी।
हमारे शास्त्रों में हर वर्ण समुदाय जिसका मतलब आज के जमाने के अनुसार आप किन्हीं और रूप में समझ सकते है के बारे में लिखा है कि किस समुदाय और किस वर्ण को अपने खाने पीने की व्यवस्था कैसे करनी है। कहां खाना कहां नहीं। क्या क्या चीज बाहर की खा सकते हैं क्या क्या नहीं।
तांत्रिक लोगों द्वारा बुरे कर्मो का इस्तेमाल अब वैज्ञानिक स्तर पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है।
पुरष को वश में करने के लिए तांत्रिक लोग स्त्रियों को अपने मासिक धर्म के खून का इस्तेमाल करना अब भी सिखाते हैं ताकि उस खून में उपस्थित एस्ट्रोजेन हार्मोन की गंध से पुरष उस की ओर आकर्षित हो जाए। जिसमे इस खून को अपनी त्वचा कि क्लीनसिंग करे या पुरष को किसी ठंडी मीठी खाने की चीज में मिला कर खिला दे।
इसी प्रकार पुरषों को ये तांत्रिक लोग सिखाते हैं कि स्त्रियों को वश में करने के लिए अपने वीर्य का प्रयोग करें क्योंकि स्त्रियां वीर्य में उपस्थित टेस्टोस्टेरोन की गंध से बहुत प्रभावित होती है। अब सृष्टि में स्त्री पुरष के बीच आकर्षण इन्हीं हार्मोन की गंध के कारण होता है।
आप कुतों को उनके सीजन में देख सकते है कि वे मैटिंग से पहले एक दूसरे का सूंघ कर निरीक्षण करते है अगर सीजन ना हो तो कुते कुत्तिया आपस में लड़ाई करते रहते हैं।
अगर किसी को एक दूसरे की आदत डालनी हो उनमें गंध का बहुत रोल होता है। जैसे कोई स्मोकर हो तो शुरू में उसकी नई नई गर्लफ्रेंड जिसको सिगरेट की गंध से उल्टी आती हो धीरे धीरे उसकी आदि हो जाती है।
इसी प्रकार से अगर कोई किसी को अपने शरीर को कोई जूठन खिलाता पिलाता रहता है तो धीरे धीरे उनमें इतनी नजदीकियां बन जाती है कि वे एक दूसरे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। किसी गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड के रिश्ते में ऐसा ही होता है। लेकिन जब वे बहुत समय एक दूसरे से दूर हो जाए तो कुछ साल बाद उनकी एक दूसरे के लिए वह तलब समाप्त हो जाती है।
इन्हीं तांत्रिक बुरे कर्मो का प्रयोग पैगम्बरवादी व्यवस्था का भी अभिन्न अंग रहा है।पैगम्बर या धर्मगुरु या मुला या पादरी का पेशाब, वीर्य थूक आदि प्रयोगों का इस्तेमाल आज वे सभी लोग खुल कर कर रहे है जो अपने occult को झुंड वादी बना कर रखना चाहते हैं। आपने पीछे कई समाचारों में देखा पढ़ा कि कुछ धर्मगुरु दूध के स्विमिंग पूल में नहा कर फिर उस दूध को अपने भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट देते थे।
आजकल हर हाथ में मोबाइल कैमरा होने कि वजह से आप थूक, पेशाब मिलाने की घटनाएं देख पा रहे हैं।नहीं तो पहले ऐसी बाते छिपी रहती थी।
इससे आप इन प्रकार के लोगों से बहुत प्रेम भाव महसूस करते हैं और इन लोगों के हाथ की बनी चीजें खा पी कर यम्मी मम्मी कहते रहते है और घर की बनी चीजें स्वाद नहीं लगती।
मेरी प्रार्थना है कि सिर्फ घर में बनी चीजें खाएं या फिर यम्मी मम्मी करते रहे और आज के हालात को आगे बनाए रखें।
अगर मजबूरी में बाहर खाना पीना पड़े तो सिर्फ गरम गरम चीजे ही खाएं।क्योंकि अग्नि हर दोष को समाप्त कर देती है। शायद अब आपको समझ आए की हमारे पुराने हलवाई लोग सबके सामने दुकान के आगे कढ़ाई में गर्म गर्म चीजे बना कर बेचते है। जबकि आधुनिक पढ़े लिखे लोग उनकी आलोचना करते है।
उनको तो plastic packaging में सजावट पसंद है। पंचामृत दूध, दही, गंगाजल, गौमूत्र, शहद से बनता है जिससे हमें प्रकृति से प्रेम होता है। लेकिन यही काम पैगम्बरवादी व्यवस्था में पैगम्बर के पेशाब वीर्य थूक आदि से होता है जिससे हम एक झुंड के रूप में उसी पैगम्बर या धर्मगुरु या मुला या पादरी के भक्त बन कर उसके कहने से पशुओं कि भांति एक झुंड का हिस्सा बन जाते है।
ये लोग एकता के साथ रहते हैं और उसी एकता के साथ समाज में दूसरे लोगों पर हावी हो जाते हैं।लेकिन सनातन संस्कृति सिर्फ प्रकृति के साथ जोड़ती है हर व्यक्ति की अपनी अलग सोच और व्यक्तित्व होता है इसलिए सनातन संस्कृति के लोगों में वह एकता या झुंडवादी प्रकृति नहीं दिखती।
वास्तविक खोजी सिर्फ सत्य कि खोज में रहता है लेकिन ये झुंड वादी सिर्फ अपनी बायलॉजिकल संतुष्टि तक सीमित होते हैं। इन झुंडवादियों में सत्य वहीं होता है जो इनके धर्मगुरु या मुला या पादरी या पैगम्बर बता देते हैं। वास्तविक खोजी, सत्य की खोज हर व्यक्ति लगातर अपने स्तर पर करता है और हर चीज तथ्य और तर्क के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करता है।
अब दुनिया में समझ कार लोगों कि संख्या बल तो मूर्खों से कम ही होता है।
ये जो आप मंहगे परफ्यूम लेते हैं ना इनमे आर्टिफिशियल एस्ट्रोजेन स्त्रियों के परफ्यूम में और आर्टिफिशियल टेस्टोस्टेरोन पुरषों के परफ्यूम में मिला होता है। तभी तो परफ्यूम की ऐड में ऐसा बताया जाता है कि परफ्यूम लगाया नहीं लड़की या लड़का फसा नहीं।
बहुत ही ज्यादा महंगे परफ्यूम में असली एस्ट्रोजेन या टेस्टोस्टेरोन मिला होता है। ये बड़ी कंपनिया बड़े पैमाने पर वीर्य और मासिक धर्म का खून भी खरीदती है जिनसे ये असली हार्मोन निकाल कर इनको बहुत ही मंहगे परफ्यूम में मिलाती हैं। जबकि सबसे मंहगा परफ्यूम हमारे शरीर में ही होता है। तांत्रिक लोग इसी का इस्तेमाल करना सिखाते हैं।