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राम-कृष्ण दर्शन के नाशक है कथावाचक और डपोरशंख पोगापंडित 

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       पुष्पा गुप्ता 

     पारिजात को हरसिंगार भी कहा जाता है। शेफालिका, मल्लिका आदि इसके अन्य नाम हैं। तंत्र शास्त्र में इसका काफी वर्णन मिलता है. शास्त्रोक्त मिथक के अनुसार समुद्र मंथन में पारिजात निकला था, जिसे इन्द्र स्वर्ग ले गये थे। स्वर्ग से कृष्ण इसे धरती पर लाये थे, इसलिये इसका महात्म और भी बढ़ जाता है। हरिवंश पुराण में इसका विशेष उल्लेख मिलता है की पारिजात देवताओं को अति प्रिय है। इस वनस्पति से प्रेम प्रसंग की बहुत सी कहानियां जुड़ी है। बनारसी साडियां कभी इसी के फूलों से रंगी जाती थी। गंगा दशहरा के समय इसमें फूल आते है और लगभग ऐक माह तक रहते है। इसमें पुष्प सूर्यास्त के बाद आते हैं, और सूर्योदय से पहिले गिर जाते है। इससे इतिहास में पारिजात नाम की राजकुमारी की प्रेम प्रंसग की घटना भी जुड़ी है। इसके पुष्प लक्ष्मी जी को अति प्रिय हैं। तो रस विज्ञानियों को इसमें रुचि जरूर होनी चाहिये। जहां भी प्रेम और त्याग होगा वहां रस तो होगा ही। 

     इस रस से समझदारी और जुड़ जाये तो ये रस विज्ञान हो जायेगा। रस शास्त्र कहता है कि शिव पारद है, और पार्वती जी को गंधक से जोड़ा गया है। भगवत गीता में कृष्ण ने कहा है, कि रसों में पारद हूं, तो समझ लीजिये पारिजात स्वंय महा लक्ष्मी है। 

      रामायण, महाभारत, पुराण आदि सभी ग्रंथों के साथ जो सबसे ज्यादा गलत हुआ, वो ये था कि इन ग्रंथों को बिना जाने समझे, इसमें आस्था पैदा करने की कोशिश हुई। परिणाम ये निकला कि ये वे स्वाद हो गये। युवा पीढ़ी की इसमें कोई रुचि नहीं बची है, सब कुछ जबरजस्ती का सौदा है। ये सनातन ग्रंथ हैं, इससे ज्यादा हमें कोई ज्यादा मतलब नहीं.

     लेकिन यदि लोगों को बताया गया होता कि ब्रम्ह का एक नाम राम है, जिसका समूल विज्ञान रामायण में निहित है तो रामायण विज्ञान का महा ग्रंथ होता। लोग रामायण में उन विज्ञानों को खोज रहे होते जो परिवर्तन के महा विज्ञान है। 

   धरती पर जिसका भी जन्म हुआ है, वो सभी कर्म दोष से ही है। शरीर कर्म से बनता है। राम माता के गर्भ में भी आये और विधिवत जन्म भी लिया है। आयुर्वेद शरीर में रोग को मानता है। लेकिन कीमिया शरीर होने को ही रोग मानता है। शरीर होना आत्मा का रोगी होना है। राम विवाह करते हैं, वनवास जाते हैं, रावण का बध करते है, अयोध्या के चक्रवती भी रहे, अंत में शरीर भी त्याग किया। ये सब मनुष्य बनकर ही किया था। 

     राम का १२ बर्ष का वनवास, उसके बाद रावण बध,, पुन: सम्राट पद पर आसीन होना। ये सब रुपांतरण का महा विज्ञान है। राम रावण युद्ध में जो भी आयुध प्रयोग हुए वो सभी विज्ञान ही थे। रामायण में योग वशिष्ठ भी है, विश्वामित्र, शिव, माया, और दुर्गा सप्तसती भी। राम आगे चल रहे हैं, पीछे सीता जी उसके पीछे लक्ष्मण, इसे इस दृष्टि से भी देख सकते हैं, आगे परमेश्वर है, पीछे महा माया, उसके पीछे जीव(लक्ष्मण जी)। अब यदि लक्ष्मण  जी को राम से मिलना है तो कब सीता जी ने बाधा खड़ी की। 

       लेकिन डपोरशंख पंडितो और आधुनिक कथावाचकों ने रामायण को सीता हरण, रावण बध, राम विलाप जैसी वकबास में उलझा दिया। रामायण को किसी ने समझने की कोशिश नहीं की, विज्ञान खो गया। कीमिया का महाग्रंथ दपोरशंख पंडितो और कथावाचकों के हाथ चला गया, इनकी दाल रोटियां तो खूब सिक जाती है। लेकिन राम के प्रति लोगों की निष्ठा डगमगा गई। लोगों ने आज तक कितने परमात्मा बदले होंगे पता नहीं। 

        इसी प्रकार से महाभारत वेद व्यास जी ने महाविज्ञान के महा ग्रंथ की रचना की लेकिन सब बेकार कर दिया डपोरशंख पडितों और कथावाचकों ने। पुराणों में किसी की भी कोई रुचि नहीं है, लेकिन ये विज्ञान के ग्रंथ होते तो इसमें लोगों की रुचि जरूर होती। सिर्फ रुचि नहीं होती, गहरी श्रद्धा भी होती। 

       हमने हमेशा कहा है, कि यदि आपका TV  खराब हो जाये, तो उसके सामने भागवत पढ़ने से कुछ होने वाला नहीं है, रोग को समझना होगा। राम और रोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। अंधकार और प्रकाश भी ऐक साथ नहीं रह सकता है। कहीं हमसे ही चूक हो रही है। हिन्दुस्तान सोने की चिड़िया था, जबकि हिन्दुस्तान में सोने की कोई बड़ी खदानें कभी भी नहीं थीं। ये सोने की चिड़िया उड़ कर कही गई नहीं है। इसे ले जाया नहीं जा सकता है। सनातन की समृद्धी और शांति उसके धर्म ग्रंथों में नीहित है। इनका पूजन नहीं करना है, बल्कि दोहन करना है। जिस दिन भी सफलता मिलती है, उस दिन धर्म और धर्म ग्रंथ दोनों ही पूज्य हो जाते हैं।

      हरिवंश पुराण में भी पारिजात का वर्णन मिलता है। कृष्ण जिसे स्वर्ग से लेकर आये हों कुछ तो खास होगा। राधा है, कृष्ण है गोपियां है, महारास हो रहा है। इस महारास को पढ़कर लोग भांड हो गये हैं। 

      सखी संप्रदाय में पुरुष पुरुष के साथ सो रहा है, स्त्री स्त्री के साथ सो रही है, तू राधा मैं कृष्ण। और भी बहुत कुछ जो कहने जैसा नहीं। कम से कम ऐसे तो कृष्ण नहीं थे। 

     लेकिन मैंने जब इस महा रास को पढ़ा तो तत्काल ही दिमाग में आया जहां रास है, तो बीच में रस तो होगा ही। कृष्ण गीता में कह भी चुके है कि मैं रसों में पारद हूं। महा रास का अर्थ होता है महायोग, लेकिन इसे महाभोग बना दिया गया।

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