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भारत में सरकार जैसे-तैसे बच गयी लेकिन नेपाल और इंग्लैण्ड की सरकारों का पतन

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  • राकेश अचल

भारत में भाजपा गठबंधन की सरकार जैसे-तैसे बच गयी लेकिन पड़ौस में नेपाल और इंग्लैण्ड की सरकारें गिर गयी । नेपाल में सरकार बैशाखी हटने से गिरी जबकि इंग्लैंड में जनादेश से। दुनिया में सरकारों का बनना,बिगड़ना एक सनातन प्रक्रिया का अंग है ,लेकिन इनके बनने-बिगड़ने का असर आस=पड़ोस पर भी पड़ता ही है। भारत के साथ भी यही फार्मूला लागू होता है। इसलिए भारत और भारतवासियों को इन घटनाओं पर नजर रखना पड़ती है ।
सबसे पहले बात नेपाल की करें। यहां प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ की सरकार थी । बैशाखियों पर टिकी ये सरकार आखिर गिर गयी। सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगी सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड को हटाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी (नेपाली कांग्रेस) के साथ सत्ता-साझेदारी समझौते के बाद समर्थन वापस ले लिया है.अब यहां केपी शर्मा ओली के मुख्यमंत्री बनने की संभावना है। शर्मा जी भारत के नहीं चीन के समर्थक हैं । इसलिए भारत को शर्मा जी के आने से परेशानी होना स्वाभाविक है। नेपाल में पिछले 16 साल में 13 सरकारें गिरीं हैं ,नेपाल की सरकारों के गिरने की कहानी अलग है। अभी तो हम प्रचंड के जाने और ओली के आने की बात कर रहे है।
नेपाल में हमारे कुछ साहित्यिक मित्र हैं जो बताते रहते हैं की प्रचंड ने भारत की तर्ज पर नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में काफी काम किया । भारत में राम लाला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के मौके पर नेपाल में भी एक उन्माद पैदा करने की कोशिश की गयी । दीपावली मनाई गयी ,लेकिन राम जी नेपाल सरकार के काम नहीं आये । प्रचंड को आखिर जाना ही पड़ा ,दुनिया में धर्म की राजनीति ज्यादा नहीं चलती । वहां भी जहाँ धार्मिक आधार पर ही चुनाव होते है। बहरहाल हमें शर्मा जी के जाने और ओली जी के आने पर सतर्क रहने की जरूरत है ,क्योंकि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है । हमारी सरकार के सहयोगी दल भी कब अपनी बैशाकहियाँ हटाकर मोदी जी को प्रचंड जैसा असहाय कर दें कोई नहीं जानता।
अब चलिए इंग्लैंड। यहाँ भारत के कथित दामाद ऋषि सुनक की सरकार थी। ताजा चुनाव में इंग्लैंड की जनता ने सुनक की पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया । इस परिवर्तन में भारतवंशियों तक ने सुनक साहब का साथ नहीं दिया। सुनक को भारत की सरकार भारत का दमाद मानती थी। मानना ही चाहिए। हमारे यहां गांव-गोंड़े के रिश्ते बहुत चलते हैं। लेकिन सुनक साहब ने प्रधानमंत्री रहते हुए न भारत के लिए बहुत कुछ किया ,और न भारतवंशियों के लिये । नतीजा ये हुआ कि उन्हें अब सत्ता से बाहर जाना पड़ा। सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर उनके भारतवंशी होने को लेकर कभी कोई विवाद नहीं उठा ,अन्यथा वहां कोई गुजराती प्रतिद्वंदी होता तो उन्हें श्यामा गाय का बछड़ा कह सकता था। हमारे यहां तो इटली मूल की भारतीय बहू को जर्सी गाय और बारबाला कहने वाले अनेक विद्वान हैं।
बहरहाल ब्रिटेन में चार जुलाई को हुए आम चुनाव में लेबर पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया है. कंजर्वेटिव पार्टी को अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है. लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर महाराजा चार्ल्स तृतीय से मुलाकात के बाद आधिकारिक तौर पर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के आम चुनाव में जीत के लिए लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को बधाई दी तथा दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के साथ ही पारस्परिक विकास व समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक व रचनात्मक सहयोग की उम्मीद जताई. मोदी जी ने इसके साथ ही निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के नेतृत्व की सराहना की और अपने कार्यकाल के दौरान भारत और ब्रिटेन के संबंधों को प्रगाढ़ करने में उनके ‘सक्रिय योगदान’ के प्रति आभार जताया।
भारत के आसपड़ोस में श्रीलंका है ,पकिस्तान है ,चीन है इन सबसे हमारे रिश्ते कैसे हैं ,ये बताने की जरूरत नहीं। पाकिस्तान से हमारी कुट्टी हुए अरसा हो चुका है । चीन को हम साबरमती में झूला झूला चुके हैं ,लेकिन उसकी फितरत नहीं बदली। पकिस्तान की फितरत तो बदलने का सवाल ही नही। श्रीलंका भी चीन के प्रभाव में है । उसके ऊपर हमारा प्रभाव न जाने क्यों नहीं पड़ रहा। श्रीलंका वाले तो हमारे मोदी जी के शपथग्र्रहण समारोह में भी नजर नहीं आये। जो पड़ौसी आये थे उनमें से मालदीव वाले भी मन मारकर आये थे। ये सारे सन्दर्भ में इसलिए आपके सामने रख रहा हूँ क्योंकि आसपास की राजनीतिक गतिविधियां भारत के अनुकूल नहीं हैं।
भारत में नेपाल जैसी ही गठबंधन की सरकार है। हमारी कामना और प्रार्थना है कि ये सरकार पूरे पांच साल चले,क्योंकि भारत जैसा गरीब देश दो-ढाई साल में चुनाव की मार सहने की स्थिति में नहीं है। लेकिन हमारी कामना और प्रार्थना से बात बनने वाली नहीं है । ये सरकार तो नायडू,नीतीश बाबू , जलते-बुझते चिराग और जीतनराम माझी के भरोसे चलने वाली सरकार है । जिस दिन भी इन छुटभैयों का माथा सटका उस दिन सरकार को प्रचंड गति मिलने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसी सरकारें अक्सर हिकमत अमली से चलती हैं। पीव्ही नरसिम्हाराव ,अटल बिहारी बाजपेयी और डॉ मनमोहन सिंह ने ऐसी सरकारें बाखूबी चलकर दिखाई । किन्तु माननीय मोदी जी के लिए ऐसा करना शायद कठिन हो। क्योंकि वे न राव हैं ,न बाजपेयी हैं और न मनमोहन सिंह। वे मोदी जी हैं,नरेंद्र दामोदर मोदी। उनकी चाल,चरित्र और चेहरा बदलना आसान काम नहीं है।उनका एजेंडा हिडन नहीं है,खुल्ल्म-खुल्ला है। वे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं क्योंकि आरएसएस ऐसा चाहता है। वे मजबूर हैं। वे भारत की विविधता ,धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानते। वे मुसलमानों को भारत का नागरिक नहीं मानते । उनके लिए मणिपुर भारत का कोई राज्य नहीं है।
कुल जमा हमारे लोग ब्रिटेन में भी हैं और नेपाल में भी। इसलिए हमें यहां हुए सत्ता परिवर्तन के बाद अपनी विदेश नीति की भी समीक्षा करना पड़ेगी । आने वाले दिनों में अमेरिका में भी चुनाव होना है हमें सबको साथ लेकर इस मसले पर संसद में संसद के बाहर चाय पीते हुए भी बात करना पड़ेगी ,अन्यथा हमारे लिए यानि भारत के लिए, नयी समस्याएं खड़ी हो सकतीं हैं। हमें उम्मीद है कि हमारी बैशखियों पर टिकी सरकार इस मामले में गाम्भीर्य का प्रदर्शन करेगी। नहीं करेगी तो सरकार के साथ-साथ पूरे देश को इसका खमियाजा भुगतना पडेगा।सरकार कि मुखिया का या है ,वे तो फकीर हैं ,लेकर अपना झोला झंडा चल पड़ेंगे।

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