गत सप्ताह एक स्वागतयोग्य घटनाक्रम में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य संरक्षा एवं मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) नियमन 2020 को मंजूरी प्रदान कर दी। इसके तहत खाद्य पदार्थों में नमक, शक्कर और संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फैट) के बारे में मोटे अक्षरों में जानकारी देनी होगी।
ऐसा नहीं है कि पैकेटबंद खाद्य पदार्थों में यह सूचना उपलब्ध नहीं है लेकिन यह अक्सर छोटे अक्षरों में दी जाती है जिसकी अक्सर अनदेखी हो जाती है। यह कदम उपभोक्ताओं को सही निर्णय लेने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
इस संशोधन से जुड़ी मसौदा अधिसूचना अंशधारकों के सुझावों और टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक पटल पर रखी जाएगी। प्राधिकरण यह देखना चाहता है कि अन्य अंशधारक मसलन कंपनियां प्रस्तावित संशोधन के क्रियान्वयन के बारे में क्या कहना चाहती हैं।
यह कई वजहों से अहम है। भारत तेजी से विकसित हो रहा है और उसका शहरीकरण भी हो रहा है। ऐसे में कई वजहों से अधिक से अधिक संख्या में लोग पैकेटबंद भोजन को अपना रहे हैं। पैकेटबंद खाद्य पदार्थों की सहज उपलब्धता के कारण बड़ी तादाद में बच्चे पैकेटबंद चीजों को खाते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य को बड़ा खतरा उत्पन्न होता है।
उदाहरण के लिए यूनिसेफ के वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2022 के मुताबिक 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे मोटापे के शिकार होंगे। यह दुनिया के कुल मोटे बच्चों का करीब 10 फीसदी होगा। भारत में बड़ी तादाद में कुपोषित बच्चे हैं और इस बीच अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है। ऐसे में प्राधिकरण की यह अपेक्षा सही है कि जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए इन बदलावों को लागू किया जाए।
प्राधिकरण की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने इस दिशा में सक्रियता दिखाई है लेकिन केवल पोषण संबंधी सूचना को बड़े अक्षरों में लिखाना पर्याप्त उपयोगी नहीं होगा बल्कि उपभोक्ताओं को इसका अर्थ भी पता होना चाहिए। उन्हें यह जानकारी भी होनी चाहिए कि किस सीमा तक उपभोग करने से नुकसान शुरू हो जाता है।
साफ कहा जाए तो कुल संतृप्त वसा, नमक और शक्कर के बारे में मोटे अक्षरों में जानकारी दिए जाने के बावजूद बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्यों के स्तर पर जन स्वास्थ्य से जुड़े विभागों को यह सलाह दी जानी चाहिए कि वे जागरूकता फैलाने के लिए सार्वजनिक अभियान चलाएं। बेहतर खाद्य पदार्थों का चयन भी स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव कम करने का काम करेगा।
एक अन्य मुद्दा पैकेटबंद खाद्य पदार्थों में नियमन की सख्ती का भी है। यहां खाद्य नियामक को अधिक सक्रियता दिखाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए भारतीयों को कुछ लोकप्रिय ब्रांड के मसालों में हानिकारक तत्त्वों के होने का पता तब चला जब उनका विदेशों में परीक्षण किया गया। इसका खुलासा एक विदेशी गैर सरकारी संगठन ने किया था कि एक लोकप्रिय बेबी फूड ब्रांड भारत जैसे विकासशील देशों में अतिरिक्त चीनी का इस्तेमाल कर रहा है।
एक इंटरनेट इन्फ्लुएंसर के खुलासों के बाद ई-कॉमर्स वेबसाइटों को यह सलाह दी गई कि वे कुछ ब्रांडों को स्वास्थ्यवर्धक पेय की श्रेणी में रखकर न बेचें। ऐसे में यह अहम है कि खाद्य नियामक न केवल यह स्पष्ट करे कि विभिन्न तत्त्वों की मान्य सीमा क्या है बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि खाद्य क्षेत्र की सभी कंपनियां दिशानिर्देशों का पालन करें।
नियामक को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सभी कंपनियां नियमों का पालन करें। यह न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर है बल्कि प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों तथा अन्य उत्पादों के लिए निर्यात के अवसर भी तैयार होंगे। इससे रोजगार का सृजन होगा और सभी को फायदा होगा।
वर्ष 2014-15 से 2022-23 के बीच कुल कृषि खाद्य निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य की हिस्सेदारी दोगुनी होकर करीब 26 फीसदी हो गई। खाद्य नियमन में वैश्विक मानकों का पालन अवसर बढ़ाएगा।