2 जुलाई को ऑर्गेनाइजर मैगज़ीन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) से जुड़े पेपर लीक और परीक्षा रद्द होने की घटनाएं “संगठित अपराध के एक नए रूप” की शुरुआत का संकेत हैं, जो देश में “फल-फूल रहा है”.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंग्रेजी मुखपत्र में देवेंद्र सिंह के लेख में आगे कहा गया है कि “पेपर लीक को लेकर मचे बवाल में, इस बुनियादी तथ्य पर मीडिया का ध्यान नहीं गया कि इन परीक्षाओं में कुछ गंभीर और बुनियादी संरचनात्मक खामियां हैं”.
इसमें लिखा है, “दूसरी ओर, परीक्षा संस्थानों की ‘विश्वसनीयता के संकट’ ने देश के करोड़ों युवाओं के दिमाग को झकझोर दिया है, जो बेहद चिंता का विषय है.”
इसमें कहा गया है कि यह सवाल केवल एनटीए के बारे में ही नहीं है, बल्कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) और विभिन्न राज्य लोक सेवा आयोगों जैसे संस्थानों के बारे में भी है.
एनटीए के लिए, इसने ‘पुनर्गठन’, कार्यकारी शक्तियों के पुनर्वितरण और ‘विकेन्द्रीकृत’ दृष्टिकोण की सिफारिश की, साथ ही एनटीए बोर्ड के सदस्यों के कार्यों और जिम्मेदारियों को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
इसमें कहा गया है, “प्रश्नपत्रों की छपाई, परिवहन आदि जैसे मुख्य कार्यों को निजी फर्मों को आउटसोर्स नहीं किया जाना चाहिए. यूपीएससी या राज्य पीएससी या बेदाग प्रतिष्ठा वाले संस्थानों में परीक्षा नियंत्रक रहे विशेषज्ञों को इसके कामकाज में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए.”
ओवैसी की ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा
आरएसएस के हिंदी मुखपत्र पाञ्चजन्य में 30 जून को संपादक हितेश शंकर द्वारा प्रकाशित संपादकीय में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा गया, जिन्होंने 18वीं लोकसभा में सांसद के रूप में शपथ ग्रहण के दौरान ‘जय फिलिस्तीन’ बोला था.
ओवैसी ने अपनी शपथ का समापन इस नारे के साथ किया था: “जय भीम, जय मीम (एआईएमआईएम), जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन.”
इस टिप्पणी की आलोचना करते हुए, शंकर ने हैदराबाद के सांसद द्वारा 2016 में दिए गए एक बयान का हवाला देते हुए लिखते हैं कि उन्होंने कहा था कि “वह कभी भी ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे, भले ही कोई उनके गले पर चाकू रख दे.”
लेख में आगे लिखा गया है, “ओवैसी उसी पार्टी का नेतृत्व करते हैं जिसने रजाकारों को हिंदुओं का नरसंहार करने के लिए उकसाया और सांप्रदायिक हिंसा फैलाने का अभियान चलाया. आज तक उन्होंने अपनी पार्टी के कलंकित इतिहास और हिंदुओं की बर्बर हत्याओं पर कभी पश्चाताप व्यक्त नहीं किया है,”
उन्होंने आगे कहा, “प्रश्न है कि जिस दल और उसके नेताओं का दिल भारत के लोगों के लिए नहीं पिघलता, वह फिलिस्तीन के लोगों के लिए क्यों और कैसे पिघल रहा है?”
शंकर ने एक अखिल-राष्ट्रीय मुस्लिम पहचान के विचार पर अपने विचार व्यक्त किए.
“अगर इस देश के बाहर किसी अन्य देश में मुसलमान हैं, तो हम एक हैं, उम्मत या भाईचारे का यह विचार मानवता नहीं बल्कि जाति और धर्म पर आधारित है. सरकार और विदेश मंत्रालय से इतर किसी सांसद द्वारा राष्ट्र से बाहर निष्ठा प्रकट करना, यह विचार अत्यंत खतरनाक है, क्योंकि यह परोक्ष रूप से भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है.”
नालंदा को किसने तोड़ा
1 जुलाई को ऑर्गनाइजर के लिए प्रकाशित एक लेख में, संपादक प्रफुल्ल केतकर ने लिखा कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन संरचनात्मक सुधार से परे है और यह नालंदा की भावना का उत्सव है.
“परिसर का जीर्णोद्धार और पुनरुद्धार भी भारत के लचीले विचार का प्रतिनिधित्व करता है. जहां भी अरब, तुर्क या मंगोल आक्रमणकारियों ने धार्मिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए हमला किया और लूटपाट की, वहां समाज, संस्कृति और सभ्यताएं पूरी तरह से नष्ट हो गईं. भारत ने विभाजन के परिणामस्वरूप संरक्षित ज्ञान और क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा खो दिया और धर्मांतरण के परिणामस्वरूप जनसंख्या कम हो गई; सबसे पुरानी सभ्यता जीवित रहने और पुरानी भावना को पुनर्जीवित करने में कामयाब रही.”
डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उद्धृत करते हुए, केतकर ने लिखा कि कैसे “मुस्लिम आक्रमणकारियों” ने स्वतंत्रता-पूर्व भारत में बौद्ध विश्वविद्यालयों को लूटा – नालंदा, विक्रमशिला, जगदल और ओदंतपुरी, इनमें से कुछ नाम हैं.
वह कहते हैं, “उन्होंने देश भर में बौद्ध मठों को खाक में मिला दिया. हजारों की संख्या में भिक्षु नेपाल, तिब्बत और भारत के बाहर अन्य स्थानों पर भाग गए. बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उन्हें मार डाला. मुस्लिम इतिहासकारों में खुद लिखा है कि किस तरह से मुस्लिम आक्रमणकारियों की तलवार से बौद्ध भिक्षुओं का खात्मा हुआ.”
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस के कार्यकारी अध्यक्ष दुर्गा नंद झा ने 2 जुलाई को ऑर्गेनाइज़र में प्रकाशित एक लेख में बताया कि कैसे 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के नेतृत्व वाली सेना ने नालंदा को नष्ट कर दिया था.
झा ने 13वीं सदी में इस्लामिक दुनिया की जानकारी देने वाले मिन्हाज-ए-सिराज जुज़दानी द्वारा लिखे तबकात-ए-नासिरी का हवाला देते हुए लिखा, “200 घुड़सवारों की मदद से बख्तियार खिलजी ने (नालंदा विश्वविद्यालय के) बड़े किलेबंद परिसर पर आक्रमण किया था.”
झा ने लिखा, “जब मुख्य द्वार पर लड़ाई चल रही थी, बख्तियार किलेबंद परिसर के पिछले द्वार तक पहुंचने में कामयाब रहा और किले पर कब्ज़ा कर लिया. किले पर कब्ज़ा करने के बाद, उसने अपार धन-संपत्ति को लूट लिया. उस जगह रहने वाले सारे ब्राह्मण थे, उनके सिर मुंडे हुए थे, उन सभी की निर्ममता से हत्या कर दी गई.”
शी की तिब्बत नीति को झटका
पांचजन्य के लिए लिखे गए एक लेख में, तिब्बत विशेषज्ञ विजय क्रांति ने अमेरिकी कांग्रेस में पारित ‘रिज़ॉल्व तिब्बत एक्ट’ पर लिखा. यह कानून अमेरिकी विदेश विभाग को “चीनी सरकार द्वारा तिब्बत के बारे में गलत सूचना का मुकाबला करने” और “इस झूठे दावे को खारिज करने की अनुमति देता है कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा रहा है”.
क्रांति ने लिखा कि, हालांकि बीजिंग ने कानून की आलोचना की है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह घटनाक्रम चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिब्बत नीति के लिए एक बड़ा झटका है.
“इस महीने अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों में पारित नए विधेयक में कहा गया है कि चीनी सरकार को निर्वासित दलाई लामा और उनके प्रतिनिधियों के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत के माध्यम से तिब्बत मुद्दे को हल करना चाहिए.
वह लिखते हैं, “अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के दोनों सदनों में इस महीने पारित नए विधेयक में कहा गया है कि चीनी सरकार तिब्बत मुद्दे को निर्वासित दलाई लामा और उनके प्रतिनिधियों के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत से सुलझाए. इस विधेयक से राष्ट्रपति शी जिनपिंग आगबबूला हैं क्योंकि वैसे तो इसे ‘रिज़ॉल्व तिब्बत एक्ट’ का नाम दिया गया है. लेकिन इसमें लिखी शर्तें इसी तरह के पिछले दो विधेयकों की तरह तिब्बत को अपना उपनिवेश मानने वाली चीनी सरकार के हर दावे को चुनौती दे रही हैं.”
विजय क्रांति कहते हैं कि, “यह एक सुनहरा अवसर है, क्योंकि नया अमेरिकी कानून औपचारिक और स्पष्ट तरीके से वह सब कुछ कह रहा है जो भारत चीन को कहना चाहता रहा, लेकिन कभी भी स्पष्ट शब्दों में कहने का साहस नहीं कर पाया.”
वह कहते हैं कि, “अब समय आ गया है कि नई दिल्ली इसे ईश्वर प्रेरित अवसर के रूप में ग्रहण करे और प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक गठबंधन में शामिल हो.”
आगे वह लिखते हैं कि, “भारत ऐसे गठबंधन को दक्षिण एशिया और दक्षिण -पूर्व एशिया के उन दर्जन भर देशों तक विस्तारित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जो चीन की धौंस झेलने के लिए विवश है, क्योंकि तिब्बत की नदियों पर उसका नियंत्रण है.”