नवीन निश्चल, नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच टीम ने इंटरनेशनल किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट का पर्दाफाश किया है। इस मामले में एक महिला डॉक्टर सहित सात आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस टीम ने इनके पास से किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों की जाली फाइलें, भारतीय नागरिकता के जाली आधार कार्ड, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, 2 लैपटॉप और 08 मोबाइल जब्त किए हैं। डीसीपी क्राइम अमित गोयल ने मंगलवार बताया कि 16 जून को फर्जी किडनी ट्रांसप्लांट रैकट के बारे में इनपुट मिला था। जिसके बाद पुलिस टीम ने जसोला गांव में रेड कर रसेल, रोकोन, सुमोन ( सभी बांग्लादेशी निवासी ) और रतेश पाल को पकड़ लिया। उनसे पूछताछ के आधार पर तीन किडनी चाहने वाले लोगों और तीन डोनेट करने वालों की पहचान की गई। इसके बाद आरोपियों के खिलाफ सम्बंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
इन मरीजों पर था निशाना, ऐसे लाया गया भारत
आरोपियों ने पूछताछ में बताया वे बांग्लादेश में डायलिसिस केंद्रों पर जाकर किडनी रोग से पीड़ित मरीजों को निशाना बनाते थे। इसके बाद बांग्लादेश में जो लोग आर्थिक तौर पर कमजोर होते, उन्हें नौकरी दिलाने के बहाने भारत में ले आते। यहां पहुंचने के बाद उनके पासपोर्ट जब्त कर लेते थे। इसके बाद आरोपी रसेल और इफ्ति अपने सहयोगियों मोहम्मद के माध्यम से किडनी मरीज और किडनी डोनर के जाली दस्तावेज तैयार कर लेते। जिसमें यह दिखाया जाता कि मरीज और किडनी देने वाला दोनों ही नजदीकी रिश्तेदार हैं। क्योंकि यह अनिवार्य है, सिर्फ रोगी के करीबी रिश्तेदार ही उसे अपनी किडनी दे सकता है। इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मरीज और डोनर की अस्पतालों से प्रारंभिक चिकित्सीय जांच कराने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन करवाया।
मरीजों की फाइल ऐसे हो रही थी तैयार
पुलिस जांच में पता चला एक नामी हॉस्पिटल से जुड़ी डॉ. डी. विजया राजकुमारी का पर्सनल असिस्टेंट विक्रम सिंह, मरीज की फाइलें तैयार करने में सहायता करता था। वह मरीज और डोनर का शपथ पत्र तैयार करने में भी मदद करता था। इस काम के बदले विक्रम सिंह आरोपियों से प्रति मरीज 20,000 रुपए लेता था। रसेल ने अपने सहयोगियों में से एक मोहम्मद शारिक के नाम का भी खुलासा किया। मो. शारिक डॉ. डी. विजया राजकुमारी से मरीजों का अपॉइंटमेंट लेता और पैथोलॉजिकल टेस्ट करवाता था। इसके साथ ही वह डॉक्टर की टीम से संपर्क रखता था। इस काम के बदले वह प्रति मरीज 50000 से 60000 रुपए लेता था। इस खुलासे के बाद 23 जून को आरोपी व्यक्ति विक्रम सिंह और मोहम्मद शारिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
महिला डॉक्टर का कारनामा आया सामने
आरोपी रसेल अहमद, विक्रम सिंह और शारिक ने खुलासा किया कि डॉ. डी. विजया राजकुमारी को जाली कागजात के आधार पर इन लोगों द्वारा किए जा रहे प्रत्येक अवैध कार्य के बारे में पूरी जानकारी थी। मामले में डॉक्टर की भूमिका सामने आने पर एक जुलाई को डॉ. राजकुमारी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अभी तक इस रैकेट द्वारा कितने ट्रांसप्लांट किये जा चुके हैं, इसे लेकर मामले में जांच चल रही है। वहीं पुलिस सूत्रों का कहना है यह गैंग कुछ साल के भीतर नोएडा के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में 15-16 किडनी ट्रांसप्लांट कर चुका है। आरोपी महिला डॉक्टर करीब पंद्रह साल से दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल से जुड़ी हुई थी। हालांकि वह पेरोल पर नहीं थी, उसे सर्विस के आधार पर फीस दी जाती थी। इसे अब सस्पेंड किया जा चुका है।
आरोपियों का प्रोफाइल….
रसेल बांग्लादेश का मूल निवासी है। उसने 12वीं तक पढ़ाई की है। वह साल 2019 में भारत आया और एक बांग्लादेशी मरीज को अपनी किडनी दान कर दी। किडनी की सर्जरी के बाद उसने यह रैकेट शुरू किया। वह इस रैकेट का सरगना भी है। उसे इफ्ती के जरिए डोनर मिलता था। एक प्रत्यारोपण चक्र पूरा होने पर उन्हें आमतौर पर 20-25% कमीशन मिलता है। एक प्रत्यारोपण पर 25-30 लाख रुपये का खर्च आता है। मोहम्मद सुमोन आरोपी रसेल का बहनोई है। वह वर्ष 2024 में भारत आया था और तब से वह रसेल के साथ उसके अवैध काम में शामिल था।
मोहम्मद रोकोन उर्फ राहुल सरकार रसेल के निर्देश पर किडनी डॉनर और मरीजों के जाली दस्तावेज तैयार करता था। रसेल ने उसे प्रत्येक मरीज या डॉनर के लिए 30,000 का भुगतान किया। रतेश पाल त्रिपुरा का रहने वाला है। उसने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। शारिक ने बीएससी कर रखी है। वह यूपी निवासी है। इसके साथ ही पेशे से मेडिकल लैब तकनीशियन है। विक्रम उत्तराखंड का मूल निवासी है। वह हरियाणा फरीदाबाद में रहता है और डॉ. डी विजया राजकुमारी का पर्सनल असिस्टेंट है। डॉ. विजया राजकुमारी दिल्ली और नोएडा के दो हॉस्पिटल में किडनी सर्जन और विजिटिंग कंसल्टेंट हैं।