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कहां है सरकार….हुकुमचंद मिल प्रोजेक्ट : लापरवाही है या फिर कमीशन का खेल… !

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इंदौर। सरकारी अधिकारी किसी प्रोजेक्ट को कैसे पलीता लगाते हैं, कमीशन के लिए क्या कुछ नहीं किया जाता? कैसे प्रोजेक्ट्स को उलझाया जाता है… इंदौर के हुकुमचंद मिल प्रोजेबट के इस गड़बड़झाले से आसानी समझा जा सकता है। मोटा जीशन पाने के फेर में मानो अफसरों ही प्रोजेक्ट के बंटाधार की तैयारी की है। बड़े अधिकारी भी आंख भगव कोई रुचि नहीं। सब मुद्दे पर। इस केस को समझने कालए आपको थोड़े पीछे चलना होगा। क्या है कि 25 दिसंबर 2023 को हुकुमचंद मिल के श्रमिकों को 224 करोड़ रुपए की राशि दी गई थी। ये श्रमिक 32 वर्षों से बकाया राशि के भुगतान का इंतजार कर रहे थे। इस कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी वर्चुअली जुड़े थे। सीएम मोहन यादव ने इंदौर पहुंचकर कार्यक्रम में शिरकत की थी। इससे पहले 2 दिसंबर 2023 को हाउसिंग बोर्ड ने एसबीआई को 426 करोड़ रुपए देकर हुकुमचंद मिल की प्रॉपर्टी फ्री कराई थी। यह कवायद हाईकोर्ट के आदेश पर हुई थी। यूं तो यह जमीन नगर निगम की है। एमओयू साइन होने के बाद जमीन हाउसिंग बोर्ड को मिलना है। हाउसिंग बोर्ड फिर रजिस्ट्री कराएगा और नगर निगम कब्जे हटाकर बोर्ड के सुपुर्द करेगा। खास यह है कि इस काम में ना तो नगर निगम की रुचि है और ना ही हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी किसी तरह की दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

हर महीने ब्याज का नुकसान

इसका नतीजा यह है कि हाउसिंग बोर्ड को हर महीने करीब ढाई करोड़ रुपए के ब्याज का नुकसान हो रहा है। दरअसल, हाउसिंग बोर्ड ने हुकुमचंद मिल की जमीन फ्री कराने के लिए एफडी तुड़वाकर स्टेट बैंक को 426 करोड़ रुपए दिए थे। अब प्रोजेक्ट में देरी हो रही है। लिहाजा, 7 महीने में हाउसिंग बोर्ड को 17 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है।

जमीन ट्रांसफर होगी कि नहीं?

बड़ा सवाल यह भी है कि नगर निगम कब हाउसिंग बोर्ड को यह जमीन ट्रांसफर करेगा? और करेगा भी अथवा नहीं? क्योंकि जब तक जमीन ट्रांसफर नहीं होती, तब तक हाउसिंग बोर्ड प्लानिंग की मंजूरी नहीं ले सकता है। वहीं, इस जमीन पर दशकों पुराने पेड़ हैं। इसलिए हाउसिंग बोर्ड को पर्यावरण मंजूरी भी लेनी होगी। फिर टीएंडसीपी और रेरा के नियम भी तो हैं ही। कुल मिलाकर हाउसिंग बोर्ड प्रोजेक्ट की बुकिंग तक नहीं कर सकेगा।

कड़ी से कड़ी जुड़ी, काम का पता नहीं

कारण क्या है कि यदि हाउसिंग बोर्ड बुकिंग कर लेता तो उसे अच्छी खासी रकम मिल जाती और इसी से प्रोजेक्ट को रफ्तार मिलती। कुल मिलाकर कड़ी से कड़ी जुड़ी हुई हैं। एमओयू ही न होने से बाकी सारे काम अटके पड़े हुए हैं। नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड दोनों की ओर से बेजा लापरवाही बरती जा रही है। सात महीने से पूरा काम कछुआ चाल से चल रहा है। मास्टर प्लानिंग में भी किया खेल

इधर, हाउसिंग बोर्ड हुकुमचंद मिल के प्रोजेक्ट की मास्टर प्लानिंग में भी खेल कर रहा है। चहेती कंपनी को टेंडर देने के लिए इतनी कठिन शर्तें रखी गई हैं कि सिर्फ दो ही कंपनियां शामिल हो पाई हैं। अंततः ये टेंडर सीबीआरई कंपनी को दे दिया गया। यहां भी रोचक तथ्य यह है कि टेंडर के अनुबंध के मुताबिक कंपनी को १० दिन के अंदर प्रोजेक्ट की आरएंडी करके फाइनल प्लान सबमिट करना था, लेकिन 100 दिन बाद भी कंपनी प्लान नहीं दे पाई।

२२०० करोड़ के फायदे का अनुमान

इस प्रोजेक्ट को लेकर हाउसिंग बोर्ड ने अनुमान लगाया था कि उसे 2 ३७ हजार 200 करोड़ रुपए का फायदा होगा, इसमें नगर निगम इंदौर को प्रोजेक्ट कॉस्ट काटने के बाद मुनाफे की आधी राशि दी जाएगी। यहां भी बोर्ड के अधिकारियों ने खेला कर दिया है। दरअसल, बोर्ड के मूल प्रोजेक्ट में कहा गया था कि आवासीय में फ्लैट 10 हजार रुपए वर्ग फीट और व्यावसायिक में दुकानें, दफ्तर 16 हजार रुपए वर्गफीट के हिसाब से बेचकर बोर्ड को तकरीबन 2200 करोड़ की आय होगी।

सीएस बैंस ने प्रोजेक्ट पर जताई थी आपत्ति

इस मामले में तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने बोर्ड के इस प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई थी। तब उन्होंने कहा था कि बोर्ड केवल आवासीय और व्यावसायिक प्लॉट बेचे, इनके निर्माण की झंझट में न पड़े, क्योंकि बैंस का मानना था कि 43 एकड़ के इतने बड़े प्रोजेक्ट को बनाने में हाउसिंग बोर्ड उलझ जाएगा। इतने बड़े प्रोजेक्ट को हँडल करने की बोर्ड की क्षमता ही नहीं है।

प्रोजेक्ट रिपोर्ट बदली पर रेट नहीं

तत्कालीन सीएस के सुझाव के बाद प्रोजेक्ट रिपोर्ट को बदलकर सिर्फ आवासीय और व्यावसायिक प्लॉट बेचने का प्रस्ताव तैयार किया, लेकिन मजे की बात यह है कि बोर्ड अधिकारियों ने इनके रेट नहीं बदले। यानी फ्लैट के रेट 10 हजार वर्गफीट थे तो आवासीय प्लॉट का रेट भी 10 हजार रखा, इसी तरह व्यावसायिक में दुकान और दफ्तर के रेट 16 हजार थे तो कमर्शियल प्लॉट का रेट भी 16 हजार रखा गया। अभी हुकुमचंद मिल के आसपास निर्माणाधीन आवासीय और व्यावसायिक प्रोजेक्ट का रेट इससे आधा है। ऐसे में बोर्ड दोगुने दाम पर कैसे प्लॉट बेच पाएगा, बड़ा सवाल है।

लापरवाही है या फिर कमीशन का खेल

क्या हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी सिर्फ प्रोजेक्ट डेवलपमेंट पर खर्च होने वाले 150 करोड़ के कमीशन के लिए सब्जबाग दिखाने वाला प्रोजेक्ट बना रहे हैं? यह बड़ा सवाल है। दूसरा भविष्य की बात करें तो प्लॉट के रेट बाजार रेट से दोगुने होने की स्थिति में ये प्रोजेक्ट अटक जाएगा, इससे बोर्ड को दोहरा नुकसान होगा। इसमें एक तो यह है कि बैंक को दिए गए 436 करोड़ रुपए के हिसाब से हर माह मिलने वाला ढाई करोड़ रुपए का ब्याज जाएगा। वहीं प्रोजेक्ट को डेवलप करने के लिए खर्च होने वाले 150 करोड़ भी फंस जाएंगे।

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