लाल बहादुर सिंह
बांग्लादेश इस समय छात्र-युवा आक्रोश की आग में जल रहा है। 33नौजवान मारे जा चुके हैं और अनगिनत घायल हैं। युवा आक्रोश के इस विस्फोट के मूल में भीषण बेरोजगारी से पैदा हुई गहरी बेचैनी और पीड़ा है।
भारत में भी रोजगार का सवाल लोकसभा चुनाव में सतह के नीचे सक्रिय सर्वप्रमुख मुद्दा था जिसने मोदी को बहुमत के नीचे धकेल दिया। रोजगार और संविधान ही अंततः मोदी के गले की सबसे बड़ी फांस बने, जिनकी under-current को पढ़ पाने में धुरंधर राजनीतिक विश्लेषक भी चूक गए थे। दोनों आपस में अंतरसंबंधित भी हैं और उनका संबंध सीधे जनता के जीवन से है। तमाम वायवीय जुमलों पर अंततः लोगों की जिंदगी के ये दोनों सवाल भारी पड़े और देखते ही देखते भाजपा धड़ाम हो गई।
स्वाभाविक रूप से मोदी जी अब इन दोनों की काट करने में लगे हैं। संविधान पर तो वे आपातकाल की लगातार लानत मलामत कर रहे हैं। 25 जून जिस दिन आज के 49 साल पहले आपातकाल की घोषणा हुई थी, उसे उन्होंने अपनी सरकार की ओर से संविधान हत्या दिवस घोषित कर दिया है।
उसकी आड़ में वे अपने को सबसे बड़ा संविधानवादी साबित करने में लगे हैं, शायद डॉ अंबेडकर से भी बड़ा। चुनाव के दौरान उन्होंने एक जगह कहा कि डॉ अंबेडकर आ जाएं तब भी संविधान नहीं बदल सकते। इसमें यह भाव निहित लगता है कि मोदी जैसे संविधान- रक्षक के रहते संविधान बदलना संभव नहीं है अगर अंबेडकर भी चाह लें तब भी ! इससे बड़ा पाखंड हो नहीं सकता। शायद उससे बड़ी बात यह है कि letter में संविधान बदले बिना ही स्पिरिट में संविधान विरोध के रास्ते पर मोदी सरकार सरपट दौड़ रही है। मोदी जी ने डॉ अंबेडकर की चेतावनी को सही साबित कर दिया है कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, उसे लागू करने वाले अच्छे नहीं हैं तो उसका नतीजा बुरा ही निकलेगा।
लेकिन रोजगार का मामला जरा अलग है। हालांकि रणनीति उस पर भी वही है कांग्रेस के जमाने की लानत मलामत। बहरहाल वे इस बात को समझ गए हैं कि केवल कांग्रेस को गाली देने से काम चलने वाला नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने कार्यकाल के गढ़े हुए आंकड़े पेश किए हैं, जिनका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। मुंबई में महाराष्ट्र के चुनावों के संदर्भ में तमाम परियोजनाओं का उद्घाटन आदि करते हुए उन्होंने दावा किया कि पिछले तीन चार साल में उनकी सरकार ने आठ करोड़ रोजगार सृजन किया है।
इसके पूर्व वे चुनाव के दौरान अपने चुनिंदा मीडियाकर्मियों को इंटरव्यू देते हुए कह चुके हैं कि रोजगार देना केवल उनकी जिम्मेदारी नहीं है। “यह तो राज्यों की भी जिम्मेदारी है। मेरे हिस्से तो बहुत कम ज़िम्मेदारी है और अपनी जिम्मेदारी से बहुत अधिक मैं कर चुका हूं। “निश्चय ही यह बयान गैरजिम्मेदाराना है। अर्थनीति जिसके ऊपर रोजगार सृजन का पूरा दारोमदार है, उसे तय करने में केन्द्रीय सरकार की मुख्य भूमिका को नकारने और बेरोजगारी के पीछे अपनी केंद्रीय जिम्मेदारी से बच निकलने की यह कोशिश है। क्या नोटबंदी किसी राज्य सरकार ने किया था? क्या flawed GST किसी राज्य ने लागू किया ? क्या अविचारित लॉक डाउन किसी राज्य सरकार ने किया। दरअसल यह अपनी जिम्मेदारियों से भागने की बात है।
मोदी जी ने कहा है की रोजगार पर बहस बेसिर पैर की है और इस पर फर्जी बयानबाजी करने वाले विकास, निवेश और रोजगार के दुश्मन हैं। उन्होंने माइक्रो फाइनेंस, स्टार्ट अप से लेकर आवास बनाने सड़क तक सब गिना दिया।
जहां तक उनके आंकड़ों की बात है, मार्क ट्वैन ने जिस मुहावरे को लोकप्रिय बनाया उस को याद रखना चाहिए, जिसमें कहा गया था की आंकड़े भी झूठ का एक प्रकार हैं। ( There are three types of lies- lie, damned lie and statistics )
मोदी ने रोजगार का बड़बोला दावा आरबीआई की एक रिसर्च के आधार पर किया है।
बहरहाल अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा, जो स्वयं NSSO की सलाहकार समिति के सदस्य रहे हैं, का कहना है कि जो आठ करोड़ रोजगार पैदा करने की बात मोदी कर रहे हैं उसमे छह करोड़ तो कृषि क्षेत्र के वे लोग हैं जो शहर में बेरोजगार होने के बाद अपने गांव लौटने को मजबूर हो गए। ये शहर से गांव लौटे कृषि में लगे under-emloyed लोग हैं। उन्हें भी मोदी जी ने नए रोजगार सृजन में गिन लिया है!
संतोष मेहरोत्रा के अनुसार पहले हर दो घंटे 3 युवा आत्महत्या कर रहे थे, अब हर घंटे दो। इस तरह आत्महत्या की दर 33% बढ़ गई है। 2019 में चुनाव पूर्व सीएसडीएस सर्वे में 37% लोगों ने माना था कि रोजगार पाना मुश्किल होता जा रहा है जबकि 2024 में ऐसा मानने वालों की संख्या 62% हो गई।
यह जो दावा किया जा रहा है और अभूतपूर्व उपलब्धि बताकर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है कि हम सबसे तेजी से विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था हैं उसकी सच्चाई ये है कि आज नहीं बीस साल से हम चीन के बाद दूसरी सबसे तेज विकसित होती अर्थव्यवस्था रहे हैं। इस बीच चीन की विकास दर किन्हीं कारणों से घट गई तो हम पहले नंबर पर पहुंच गए। वर्ना सच तो यह है कि 2004 से 14 के बीच जो विकास दर 7.8% थी, वह 2014 से 2024 के बीच 5.8% रह गई है।
जहां 2004 से 2014 के बीच हर साल पचास लाख लोग कृषि से गैर कृषि क्षेत्र की ओर बेहतर मजदूरी दर के साथ shift हो रहे थे और कुल 75 लाख रोजगार हर साल गैर कृषि क्षेत्र में पैदा होता रहा, वहीं अब ठीक उल्टा हो गया है। आज लोग शहर से गांव की ओर वापस लौट रहे हैं। उन्हें भी नए रोजगार सृजन में गिन लिया जा रहा है!
NSSO के अनुसार 2015-16 से 2022-23 के बीच असंगठित क्षेत्र में रोजगार दो करोड़ कम हुआ है।
यह स्वागत योग्य है की छात्र-युवा संगठनों और नागरिक समाज ने मोदी की इस सबसे कमजोर नस को ठीक से पकड़ लिया है।
मोदी जी अब इसकी काट करने के लिए तमाम गढ़े गए ( मैन्युफैक्चर्ड ) आंकड़ों का सहारा ले रहे हैं। युवा मंच ने रोजगार के सवाल पर पहल लेते हुए कुछ मांगों को सूत्रबद्ध किया है और इस प्रस्ताव पर वे नागरिक समाज तथा युवाओं के बीच उन्हें लेकर सुझाव मांग रहे हैं और उन्हें लोकप्रिय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि युवा मंच प्रतियोगी परीक्षाओं के उत्तर भारत के सबसे बड़े केंद्र इलाहाबाद में देश-प्रदेश के छात्रों-युवाओं के रोजगार के अधिकार के लिए लड़ने वाले लोकप्रिय और जुझारू मंच के रूप में उभरा है। उनके पत्रक में कहा गया है-
” युवा मंच ने रोजगार के सवाल पर पहल लेने, राजनीतिक अर्थनीति से इसके सम्बंध को स्पष्ट करने और बड़ी छात्र युवा गोलबंदी के लिए वृहत स्तर पर विचार विमर्श शुरू किया है और निम्न मांगों को सूत्र बद्ध किया है-
कारपोरेट्स के वेल्थ/धन/संपत्ति पर टैक्स लगाओ,
शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार/नौकरी की गारंटी करो,
सरकारी विभागों में रिक्त पदों को तत्काल भरो,
हर व्यक्ति के सम्मानजनक जिंदगी की गारंटी करो “
बांग्लादेश में आज जिस तरह रोजगार के सवाल पर युवा आक्रोश का विस्फोट हुआ है, भारत भी वैसे ही ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है। आशा की जानी चाहिए कि देश आने वाले दिनों में रोजगार के अधिकार के लिए बड़े छात्र-युवा आंदोलन तथा जनांदोलन का साक्षी बनेगा।(