सनत जैन
2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद, भारतीय जनता पार्टी के सभी राज्यों से असंतोष और बगावत के स्वर सुनने को मिलने लगे हैं, लोकसभा के चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। 2024 में भाजपा ने 370 पार का नारा लगाया था। लेकिन जब परिणाम आया, तो भारतीय जनता पार्टी 240 में सिमट कर रह गई। उसके बाद से ही देश के विभिन्न राज्यों से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के विरोध में असंतोष और बगावत के स्वर उभरने लगे।
किसी तरह से एनडीए गठबंधन की सरकार केंद्र में बन गई है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने अपने सभी विश्वस्त सहयोगियों को वही पद दिए जो उनके पास पूर्व में थे। इसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कामकाज को लेकर सभी राज्यों में भाजपा नेताओं के असंतोष और बगावती स्वर दिनों दिन मुखर होते जा रहे हैं। रही-सही कसर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानो से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती मिलने लगी है। भाजपा नेताओं के हौसले इतने बढ़ गए हैं, वह प्रधानमंत्री की नीति के खिलाफ ही खुलकर बोलने लगे है। हाल ही में पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता शुभेन्दु अधिकारी ने सबका-साथ सबका-विकास, नारे के स्थान पर खुद का नया नारा बुलंद कर दिया। जिसमें कहा गया जो हमारे-साथ, हम उसके-साथ, यह कहकर उन्होंने एक तरह से नरेंद्र मोदी का कद कम करने की कोशिश की है। पश्चिम बंगाल में पसमांदा मुसलमानों को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने जो हाथ बढ़ाया था। उसकी कोई सफलता प. बंगाल में नहीं मिलने से, मुसलमानों को लेकर जो रणनीति भाजपा ने बनाई थी। उसका भी बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेताओं के बीच असंतोष का स्वर बड़ा मुखर हो गया है। राज्य कार्य समिति की बैठक में योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि अति आत्मविश्वास के कारण भाजपा का पतन हुआ है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक ने खुलेआम योगी के खिलाफ कार्य समिति और उसके बाद मोर्चा खोले हुए हैं। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल ने भी केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ खुलकर अपनी आवाज मुखर की है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार के बीच खटपट की खबरें लगातार बाहर आ रही हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा को भी पार्टी के अंदर से असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा विधायकों द्वारा उन्हें सीधी चुनौती दी जा रही है। भाजपा शासित राज्यों से भी संगठन में बैठे नेताओं द्वारा जिस तरह से असंतोष व्यक्त किया जा रहा है। उससे ऐसा लगता है, 2012-13 में जो कांग्रेस की स्थिति थी। वही स्थिति अब भारतीय जनता पार्टी में भी 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बनने लगी हैं। केंद्रीय बजट ने आग में घी डालने का काम किया है। केंद्र की सरकार को बचाए रखने के लिए बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज दिए गए हैं। इसमें भाजपा शासित राज्यों की उपेक्षा किए जाने से डबल इंजिन की राज्यों में भाजपा के खिलाफ नाराजी का माहौल बन गया है। जिस तरह से सभी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच में आपसी खटपट बढती चली जा रही है। उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है, 2013 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का भाजपा संगठन और सरकार में जो प्रभाव था। दोनों ही नेताओं को सभी राज्यों से चुनौती मिलना शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी का अनुशासन भी कहीं देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसी स्थिति में भाजपा हर दिन कमजोर होती नजर आ रही है। इस स्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी संगठन की चिंताएं स्वाभाविक रूप से बढ़ गई हैं। पिछले एक हफ्ते से उत्तर प्रदेश का मामला जिस तरह से राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। उससे भारतीय जनता पार्टी की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा नुकसान हो रहा है।