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युवावर्ग के लिए जुमलों से भरे आम बजट 2024-25 का सच समझिए 

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      कुमार चैतन्य 

 यह बजट इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बनी गठबन्धन की सरकार का यह पहला बजट था। इस बजट ने नौजवानों और मेहनतकश आबादी की ज़िन्दगी को और मुश्किल बना दिया है। आज नौजवानों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है उन्हें रोज़गार मिलना। पर इस मुद्दे पर मोदी सरकार का यह बजट जुमलेबाज़ी से भरा हुआ है।

      रोज़गार पैदा करने और नौजवानों में स्किल पैदा करने के लिए निर्मला सीतारमण द्वारा तीन योजनाओं की घोषणा की गयी है। कोई भी व्यक्ति जो तार्किक हो, फ़ासिस्टों और गोदी मीडिया के प्रभाव में न हो, वो आसानी से इन योजनाओं के खोखलेपन को समझ सकता है। पेश की गयी योजनाओं में से एक योजना है प्रधानमंत्री इण्टर्नशिप योजना। इस योजना के मुताबिक़ अगले 5 सालों में देश की 500 सर्वोच्च कम्पनियाँ 1 करोड़ नौजवानों को इण्टर्नशिप देंगी।

       यानी ये 500 कम्पनियाँ हर साल 20 लाख नौजवानों को इण्टर्नशिप देगी। यानी हर कम्पनी हर साल 4000 नौजवानों को इण्टर्नशिप देगी। आज जब देश का जॉब मार्केट तेजी से सिकुड़ रहा है और अर्थव्यवस्था मन्दी की शिकार है, उपभोग में गिरावट की बात ख़ुद सरकार मान रही है तब ऐसे दिवा स्वपन दिखाकर मोदी सरकार देश की जनता को गुमराह करने में लगी हुयी है। 

      दूसरी बात यह है कि मोदी सरकार इण्टर्नशिप की बात कर रही है पक्के रोज़गार की नहीं। सेण्टर फॉर मोनेटरिंग इण्डियन इकॉनोमी के मुताबिक़ 2019-24 के बीच बेरोज़गारों की संख्या में 1.2 करोड़ की वृद्धि हुयी है। मतलब मोदी सरकार के इण्टर्नशिप के जुमले को रोज़गार मान भी लिया जाय तो पिछले 5 सालों में बेरोज़गारों की संख्या में हुयी वृद्धि के बराबर भी रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है।

       एक और पहलू पर ध्यान देना ज़रूरी है कि इन इण्टर्नशिप प्रोग्राम में जाने वाले छात्रों को 5,000 मासिक मानदेय दिया जायेगा जो देश में लागू न्यूनतम वेतन से भी बहुत कम है। यानी इण्टर्नशिप के नाम पर मोदी सरकार देश के बड़े पूँजीपतियों को कौड़ियों की क़ीमत पर नौजवानों के श्रम को लूटने की छूट प्रदान कर रही है। 

     इसी प्रकार रोज़गार से सम्बन्धित दो अन्य योजनाएंँ भी केवल जुमलेबाज़ी है। इन योजनाओं से बेरोज़गारी में कमी आने की जगह, आने वाले दिनों में यह संकट और गहराने वाला है।

2017 में वित्तीय क्षेत्र में 70 लाख से अधिक नौकरियांँ पैदा करने के दावों के बावजूद, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की एक रिपोर्ट में बेरोज़गारी में भारी वृद्धि का खुलासा हुआ है, जो 2012 में 2.1% से तीन गुना बढ़कर 2018 में 6.1% हो गई और 2019 में और बढ़कर 7.4% हो गई।

    कुल मिलाकर रोज़गार वृद्धि, जो 1993 और 2004 के बीच शुरू में 1.7% प्रति वर्ष कम थी, 2004 के बाद तेज़ी से धीमी हो गई और 2011 के बाद नकारात्मक हो गई। यह गिरावट मुख्य रूप से ‘अकुशल’ और ‘कम कुशल’ श्रमिकों को नौकरी के बाजार से बाहर किए जाने के कारण हुई। 

      अकुशल श्रमिकों के लिए रोज़गार 1993 से 2017 तक लगातार गिरा और 2011 से 2017 के बीच कम कुशल रोज़गार में वृद्धि नकारात्मक हो गई। यहांँ तक कि कुशल श्रमिकों के बीच रोज़गार वृद्धि में भी 2011 के बाद महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई, जो दर्शाता है कि इस समूह के लिए भी रोज़गार सृजन पर्याप्त था ही नहीं। जुमलों से भरे इस बजट से रोज़गार भी अधिक नहीं पैदा होगा और पूँजीपतियों को जनता के धन के आधार पर मुनाफ़ा पीटने का पूरा अवसर भी मिलेगा।

      इस बजट के ज़रिये मोदी सरकार ने एक बार फिर नौजवानों के भविष्य पर हमला बोला है। मीडिया में उछाले जा रहे आंँकड़ों के मुताबिक़ इस बार स्कूली शिक्षा के बजट में पिछले साल की तुलना में 561 करोड़ की वृद्धि कर 73008 करोड़ आवंटित किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर इस बजट को कुल बजट की तुलना में देखें तो 2023 की अपेक्षा इसमें 0.17 फ़ीसदी की कमी आयी है और इसी तरह इस बजट को महंँगाई से प्रतिसंतुलित करने पर आंँकड़ों की सारी बाज़ीगरी खुल कर सामने आ जाती है। 

       इसी प्रकार उच्च शिक्षा में पिछले साल के संशोधित बजट की तुलना में 17 फ़ीसदी और यूजीसी के बजट में 60 फ़ीसदी की भारी भरकम कटौती की गयी है। इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप योजना, कॉलेजों-विश्वविद्यालय के छात्रों को मिलने वाली तमाम स्कॉलरशिप योजनाओं को प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा प्रोत्साहन योजना के साथ मिला दिया गया है। 

      मतलब साफ़ है एक तरफ़ उच्च शिक्षा बजट में कटौती से विश्वविद्यालयों में फ़ीस वृद्धि होगी, इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह होगा और परिणामस्वरूप ग़रीब परिवार से आने वाले छात्र परिसर से दूर हो जायेंगे तथा निजी विश्वविद्यालयों को फलने-फूलने का मौका मिलेगा। दूसरी तरफ़ स्कॉलरशिप योजनाओं के मर्जर और यूजीसी के बजट में कटौती से छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप पर भी तलवार लटकेगी।

सच्चाई यह है कि पिछले कुछ सालों से स्किल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, प्रधानमन्त्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, रोज़गार प्रोत्साहन योजना, प्रधानमन्त्री कौशल विकास योजना जैसी तरह-तरह की योजनायें बनायी गयी है और इन योजनाओं के प्रचार में अरबों रूपये खर्च किये गये है लेकिन इन योजनाओं के दफ़्तर और प्रचार सम्भालने वाले लोगों को रोज़गार देने के अलावा देश में बेरोज़गारी कम करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।

      कई लोग इस बजट को गठबंधन या नीतीश-नायडू बजट भी कह रहे हैं। वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि इस बजट में ग़रीब, महिला, युवा और किसानों पर जोर दिया गया है और इसके बाद मनरेगा के बजट में पिछले साल के वास्तविक खर्च में 19,297 करोड़ की कटौती कर पिछले 10 सालों में सबसे कम बजट आवंटित किया गया। 

      महिला और बाल विकास मंत्रालय के बजट में ऊपरी तौर पर देखने से लग सकता है कि इसमें 644 करोड़ की वृद्धि हुयी है लेकिन जैसे ही इस आंँकड़ें को महंँगाई दर से प्रतिसंतुलित किया जाता है वैसे ही इस दावे की भी हवा निकल जाती है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के लिए पिछले साल बजट का 0.56 फ़ीसदी आवंटित किया गया था जिसे इस बार घटाकर 0.54 फ़ीसदी कर दिया गया है। 

      इसीतरह कृषि क्षेत्र के बजट में 0.5 फ़ीसदी की कटौती की गयी है। उपरोक्त आंँकड़ों से साफ़ जाहिर हैं कि आने वाले दिन ग़रीबों, महिलाओं और ग़रीब किसानों के कंगाली और तबाही वाले होंगे।

      पूँजीपति वर्ग के हितों के रखवाले के तौर पर पूँजीवादी राज्यसत्ता और फ़िलहाल सत्ता में क़ाबिज़ फ़ासीवादी मोदी सरकार वही कर रही है जिसकी उससे उम्मीद की जा सकती हैं । पूँजीपतियों के दूरगामी सामूहिक हितों की सेवा और मज़दूर वर्ग के हितों पर हमला।

वास्तव में मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा पेश किया गया यह पहला बजट भी मोदी की फ़ासीवादी नीतियों को आगे बढ़ायेगा। जैसा की हम सभी जानते हैं कि फ़ासीवाद पूँजी के सबसे प्रतिक्रियावादी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है और यह हम इस बजट में भी साफ़-साफ़ देख सकते हैं।

      मतलब साफ़ है कि आने वाला साल देश की आम जनता के लिए किसी भयानक दुःस्वप्न से कम नहीं होने वाला है। ऐसे में नौजवानों के पास एक ही विकल्प बचता है कि सबके लिए समान व निःशुल्क शिक्षा और हरेक काम करने योग्य नौजवान को पक्का रोज़गार के नारे तले संगठित हो और मोदी सरकार की फ़ासीवादी नीतियों के ख़िलाफ़ जुझारू एकता कायम करें।

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