(महाझूठ का पर्दाफ़ास)
~ कुमार चैतन्य
द्रौपदी का एक ही पति युधिष्ठिर ही थे. जर्मन के संस्कृत जानकार मैक्स मूलर को जब विलियम हंटर की कमेटी के कहने पर वैदिक धर्म के आर्य ग्रंथों को बिगाड़ने का जिम्मा सौंपा गया तो उसमे मनु स्मृति, रामायण, वेद के साथ साथ महाभारत के चरित्रों को बिगाड़ कर दिखाने का भी काम किया गया।
किसी भी प्रकार से प्रेरणादायी पात्र चरित्रों में विक्षेप करके उसमे झूठ का तड़का लगाकर महानायकों को चरित्र हीन, दुश्चरित्र, अधर्मी सिद्ध करना था, जिससे भारतीय जनमानस के हृदय में अपने ग्रंथो और महान पवित्र चरित्रों के प्रति घृणा और क्रोध का भाव जाग जाय और प्राचीन आर्य संस्कृति सभ्यता को निम्न दृष्टि से देखने लगें और फिर वैदिक धर्म से आस्था और विश्वास समाप्त हो जाय।
लेकिन आर्य नागरिको के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि मूल महाभारत के अध्ययन बाद सबके सामने द्रोपदी के पाँच पति के दुष्प्रचार का सप्रमाण खण्डन किया जा रहा है। द्रोपदी के पवित्र चरित्र को बिगाड़ने वाले वि धर्मी वो तथाकथित लोग हैं, जिन्होंने महाभारत ग्रंथ का अध्ययन किये बिना अंग्रेजो के हर दुष्प्रचार और षड्यंत्रकारी चाल, धोखे को स्वीकार कर लिया और धर्म को चोट पहुंचाई।
.
*विवाह का विवाद क्यों पैदा हुआ था?*
1. अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था। यदि उससे विवाह हो जाता तो कोई परेशानी न होती। वह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता।
2. परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी।
3. अर्जुन ने भी इस विवाह से इन्कार कर दिया था। “बड़े भाई से पहले छोटे का विवाह हो जाए यह तो पा प है। अधर्म है।” (भवान् निवेशय प्रथमं)
मा मा नरेन्द्र त्वमधर्मभाजंकृथा न धर्मोsयमशिष्टः (१९०-८)
4. कुन्ती मां थी। यदि अर्जुन का विवाह भी हो जाता, भीम का तो पहले ही हिडम्बा से (हिडम्बा की ही चाहना के कारण) हो गया था। तो सारे देश में यह बात स्वतः प्रसिद्ध हो जाती कि निश्चय ही युधिष्ठिर में ऐसा कोई दोष है जिसके कारण उसका विवाह नहीं हो सकता।
5. आप स्वयं निर्णय करें कुन्ती की इस सोच में क्या भूल है? वह माता है, अपने बच्चों का हित उससे अधिक कौन सोच सकता है? इसलिए माता कुन्ती चाहती थी और सारे पाण्डव भी यही चाहते थे कि विवाह युधिष्ठिर से हो जाए।
क्या कोई ऐसा प्रमाण है जिसमें द्रौपदी ने अपने को केवल एक की पत्नी कहा हो या अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बताया हो?
~द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई। उदास थी। भीम ने पूछा सब कुशल तो है? द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है?
आशोच्यत्वं कुतस्यस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि।।
(विराट १८/१)
द्रौपदी स्वयं को केवल युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है।
वह भीम से कहती है, जिसके बहुत से भाई, श्वसुर और पुत्र हों,जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो, ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी.
भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत्।।
(२०-१३)
द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई हैं, बहुत से श्वसुर हैं, बहुत से पुत्र भी हैं, फिर भी वह दुःखी है। यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं, वह मैं दुःखी हूँ, पर होते तब ना।
जब भीम ने द्रौपदी को, कीचक के किये का फल देने की प्रतिज्ञा कर ली और कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना दिया तब अन्तिम श्वास लेते कीचक को उसने कहा था, “जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी।”
अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम्।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम्।।
(विराट २२-७९)
इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें? मार ने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है, बोलने वाले की जी भ को कोई कैसे पकड़ सकता है?
द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार जाने पर जब दुर्योधन ने उसे सभा में लाने को दूत भेजा तो द्रौपदी ने आने से इंकार कर दिया। उसने कहा जब राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने को दांव पर लगाकर हार चुका था तो वह हारा हुआ मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है? महात्मा विदुर ने भी यह सवाल भरी सभा में उठाया। द्रौपदी ने भी सभा में ललकार कर यही प्रश्न पूछा था, क्या राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं को हारकर मुझे दांव पर लगा सकता था?
सभा में सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तब केवल भीष्म ने उत्तर देने या लीपा-पोती करने का प्रयत्न किया था और कहा था, “जो मालिक नहीं वह पराया धन दांव पर नहीं लगा सकता परन्तु स्त्री को सदा अपने स्वामी के ही अधीन देखा जा सकता है।”
अस्वाभ्यशक्तः पणितुं परस्व।
स्त्रियाश्च भर्तुरवशतां समीक्ष्य।
(२०७-४३)
“ठीक है युधिष्ठिर पहले हारा है पर है तो द्रौपदी का पति और पति सदा पति रहता है, पत्नी का स्वामी रहता है।”
यानि द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा हारे जाने का दबी जुबान में भीष्म समर्थन कर रहे हैं। यदि द्रौपदी पाँच की पत्नी होती तो वह, बजाय चुप हो जाने के पूछती, जब मैं पाँच की पत्नी थी तो किसी एक को मुझे हारने का क्या अधिकार था? द्रौपदी न पूछती तो विदुर प्रश्न उठाते कि “पाँच की पत्नि को एक पति दाँव पर कैसे लगा सकता है? यह न्यायविरुद्ध है।”
स्पष्ट है द्रौपदी ने या विदुर ने यह प्रश्न उठाया ही नहीं। यदि द्रौपदी पाँचों की पत्नी होती तो यह प्रश्न निश्चय ही उठाती।
इसीलिए भीष्म ने कहा कि द्रौपदी को युधिष्ठिर ने हारा है। युधिष्ठिर इसका पति है। चाहे पहले स्वयं अपने को ही हारा हो, पर है तो इसका स्वामी ही। और नियम बता दिया, जो जिसका स्वामी है वही उसे किसी को दे सकता है, जिसका स्वामी नहीं उसे नहीं दे सकता।
द्रौपदी कहती है, “कौरवो! मैं धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नि हूं। तथा उनके ही समान वर्ण वाली हू। आप बतावें मैं दासी हूँ या अदासी?आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा करुंगी।”
तमिमांधर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णनाम्।
ब्रूत दासीमदासीम् वा तत् करिष्यामि कौरवैः।।
(६९-११-९०७)
द्रौपदी अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बता रही है। पाण्डव वनवास में थे दुर्योधन की बहन का पति सिंधुराज जयद्रथ उस वन में आ गया। उसने द्रौपदी को देखकर पूछा, तुम कुशल तो हो?द्रौपदी बोली सकुशल हूं। मेरे पति कुरु कुल-रत्न कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर भी सकुशल हैं। मैं और उनके चारों भाई तथा अन्य जिन लोगों के विषय में आप पूछना चाह रहे हैं, वे सब भी कुशल से हैं। राजकुमार! यह पग धोने का जल है। इसे ग्रहण करो। यह आसन है, यहाँ विराजिए।
कौरव्यः कुशली राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः
अहं च भ्राताश्चास्य यांश्चा न्यान् परिपृच्छसि।
(१२-२६७-१६९४)
द्रौपदी भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को अपना पति नहीं बताती, उन्हें पति का भाई बताती है। और आगे चलकर तो यह एकदम स्पष्ट ही कर देती है। जब युधिष्ठिर की तरफ इशारा करके वह जयद्रथ को बताती है :
एतं कुरुश्रेष्ठतमम् वदन्ति युधिष्ठिरं धर्मसुतं पतिं मे।
(२७०-७-१७०१)
“कुरू कुल के इन श्रेष्ठतम पुरुष को ही, धर्मनन्दन युधिष्ठिर कहते हैं। ये मेरे पति हैं।” क्या अब भी सन्देह की गुंजाइश है कि द्रौपदी का पति कौन था?
कृष्ण संधि कराने गए थे। दुर्योधन को धिक्कारते हुए कहने लगे, “दुर्योधन! तेरे सिवाय और ऐसा अधम कौन है जो बड़े भाई की पत्नी को सभा में लाकर उसके साथ वैसा अनुचित बर्ताव करे जैसा तू ने किया।”
कश्चान्यो भ्रातृभार्यां वै विप्रकर्तुं तथार्हति।
आनीय च सभां व्यक्तं यथोक्ता द्रौपदीम् त्वया।।
(२८-८-२३८२)
कृष्ण भी द्रौपदी को दुर्योधन के बड़े भाई की पत्नी मानते हैं।