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अदालती चक्रव्यूह से जनता को राहत जरूरी

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सनत जैन

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को 17 महीने के बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली है। 100 करोड रुपए के शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अभी जेल में है। उन्हें ट्रायल कोर्ट से ईड़ी मामले में जमानत मिल चुकी है। ईड़ी के अधिकारी बिना आदेश के हाईकोर्ट पहुंच गए। वहां से ट्रायल कोर्ट के आदेश पर स्थगन प्राप्त कर लिया। इसके बाद से वह जेल में बंद है। जैसे ही सरकार को लगा, सुप्रीमकोर्ट के आदेश से अरविंद केजरीवाल जेल से रिहा हो सकते हैं, उनकी रिहाई के पहले सीबीआई ने जेल से उनकी गिरफ्तारी कर ली।

हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने गलत मानते हुए निरस्त कर अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी। उसके बाद भी अरविंद केजरीवाल जेल में बंद है। न्याय के नाम पर अन्याय का जो खेल खेला जा रहा है। लोकतांत्रिक देशों में सरकारों द्वारा अपने विपक्षियों को दबाने के लिए कानूनी व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से विपक्षियों को राजनीति से दूर करने के लिए कानून के मकड़जाल में उलझाकर, अदालती चक्रव्यूह में फंसा दिया जाता है। कई महीनों और वर्षों तक गिरफ्तारी करके सत्ता से दूर रखा जाता है। सत्ता को चुनौती देने पर विपक्षियों पर न्याय के नाम पर अन्याय किया जा रहा है। अब इसके भीषण परिणाम देखने को मिलने लगे हैं। भारत के संविधान में जमानत को अधिकार माना गया है। अंग्रेजों के कानून में भी जमानत को अधिकार माना गया था।

90 दिन के अंदर यदि जांच एजेंसी ट्रायल शुरू नहीं करती थी, तो जमानत देने का अधिकार ट्रायल कोर्ट के पास था। जमानत लेने का अधिकार आरोपी का है। पिछले वर्षों में जो कानून बनाए गए हैं, उसमें आपातकाल से भी ज्यादा खराब प्रावधान कर दिए गए हैं। जिसके कारण नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। घोषित आपातकाल 18 महीने में खत्म हो गया था। कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए इसे कुछ समय के लिए लागू किया गया था। जैसे ही आपातकाल समाप्त हुआ, सभी को जेल से रिहा कर दिया गया था। विपक्षी दलों ने भी चुनाव में भाग लिया था। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थी। पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। अघोषित आपातकाल में अब राजनीतिक दलों के नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में कई महीनो और वर्षों तक जेलों में रखा जा रहा है।

जांच एजेंसियां वर्षों तक जांच करती रहती हैं। 90 दिन के बाद ट्रायल भी शुरू नहीं होता है। जब बड़े-बड़े नेताओं को इस तरह से जेल भेजा जा रहा है। इसका असर अब देखने को मिल रहा है। जांच एजेंसियां जिनमे ईड़ी, सीबीआई और पुलिस, निरपराध लोगों के ऊपर गलत मामले बनाकर जेल भेज देती है। जेल भेजने की धमकी देकर कारोबारियों और आम जनता से वसूली का नया ट्रेंड भारत में शुरू हो गया है। ईड़ी, नारकोटिक्स, पुलिस और सीबीआई के कई अधिकारी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जा चुके हैं। सरकार स्वयं जब जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है, तब जांच एजेंसी भी निजी स्वार्थ के लिये अधिकारों का दुरूपयोग कर रही हैं। अब तो अदालतों के ऊपर भी रिश्वत के आरोप लगने लगे हैं। न्यायपालिका में भी यह बीमारी तेजी के साथ फैल गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब हाईकोर्ट के जज चुनौती देते हुए नजर आते हैं।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले के बाद ट्रायल कोर्ट और जांच एजेंसियों की मिली भगत से जमानत होने के बाद भी आरोपियों को अन्य मामलों में जेल में रखने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। न्यायपालिका में अनुशासनहीनता फैल चुकी है। जिस संविधान के नाम से सभी शपथ लेते हैं। उस संविधान की हत्या का दिवस सरकार 25 जून को घोषित करती है। ऐसी स्थिति में संविधान का चीर-हरण होना तय है। यह होता हुआ दिख भी रहा है। जिस न्यायपालिका को संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। वह आंख बंद करके सरकार के पक्ष में काम करती हुई नजर आ रही है। ऐसी स्थिति में आम नागरिकों की सुनवाई कहां और कैसे होगी। यह चिंता का विषय बन गया है। हाल ही में बांग्लादेश में तख्ता पलट हुआ है।

बांग्लादेश में भी लगभग वही स्थिति बन गई थी, जो आज भारत में है। सभी विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था। बिना विपक्ष के चुनाव कराया गया था। विपक्ष को लंबे समय से जेल में बंद रखा गया। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। उन्हें बांग्लादेश छोड़कर जाना पड़ा था। अब वह बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के प्रधानमंत्री बने हैं। विपक्षी दलों के नेताओं को जेल से रिहा किया गया है। बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना के प्रयास शुरू हो गए हैं। पाकिस्तान की हालत भी इससे इतर नहीं है। श्रीलंका में भी यही सब हुआ था।

जब जब सरकारों में भ्रष्टाचार बढ़ता है। सत्ता में बैठे हुए लोग जब अहंकारी हो जाते हैं, तब यही स्थिति बनती है। कोई भी निरंकुश, अहंकारी, भ्रष्टाचारी शासन व्यवस्था लंबे समय तक चलने का कोई इतिहास नहीं है। जो भी तानाशाह बनता है, उसे जनता लोकप्रियता और अच्छे कामों के लिए सत्ता सौंपती है। सत्ता में लंबे समय तक रहने के कारण उसके आचरण में अहंकार और भ्रष्टाचार दोनों बढ़ने लगते हैं। तानाशाहों के अंत का कारण भी उनका अहंकार होता हैं। बांग्लादेश, श्रीलंका में यही हुआ है। भारत की जनता को यदि भ्रष्टाचार, अदालती चक्रव्यूह, गिरफ्तारियों, जमानत के कानून में राहत नहीं मिली, तो संविधान एवं लोकतंत्र को सुरक्षित रख पाना संभव नहीं होगा। सत्ता पक्ष ने 25 जून को संविधान का हत्या दिवस घोषित कर दिया है। इसका एक ही मतलब निकलता है, अब भारत में संविधान नामक कोई चीज नहीं है। इसका असर अब दिखने लगा है। जिनके पास अधिकार हैं, वह उसका दुरुपयोग अपने निजी हितों के लिए कर रहे हैं। जनता विरोध करने सड़कों पर उतरने लगी है।

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