अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

तुलसी के राम शोषण मुक्त समाज के प्रतीक

Share

तुलसीदास जयंती 11अगस्त

सुसंस्कृति परिहार

तुलसीदास एक क्रांतिकारी कवि हैं उन्होंने मुस्लिमकाल में अन्याय का सक्रिय विरोध तथा चरमराती सामाजिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित तौर पर संचालित करने की उमंग लिए,राम के आदर्श चरित्र को रामचरितमानस में निर्मित किया ताकि देश में जनजागरण हो। उनके राम में आज्ञाकारी पुत्र,स्नेही भाई और मित्र का जो स्वरूप लोगों ने देखा वह प्रभावकारी था किंतु अन्याय के ख़िलाफ़ उनके धनुर्धर रूप ने जनमानस में आशा का संचार किया। यह तुलसी की सबसे बड़ी उपलब्धि है अगर राम का यह योद्धारूप ना होता तो शायद यह कवि भी टिमटिमा के बुझ गया होता किंतु तुलसी आज अपने राम के साथ अमर हैं ।

    एक किवदंती है कि बांसुरी वाले कृष्ण से तुलसी ने कहा था कि-- उनका माथा तब झुकेगा जब वे हाथ में धनुष बाण लेंगे --

कहां कहूं छवि आपकी ,भले बिराजे नाथ।

तुलसी मस्तक तब नवे, धनुष बाण ल्यों हाथ।

       आज जब शासन व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं अनैतिकताओं का सर्वत्र बोलबाला है  ऊंच-नीच जातिवाद, धर्मांधता और अपसंस्कृति से मानवता को खतरे बढ़ रहे हों  पूंजीवाद अपने पैर अंगद की तरह जमा चुका हो। भाई-भाई यहां तक कि पति-पत्नी के बीच विभेद की दीवार खड़ी हो। धन लोलुपता सत्ता प्राप्ति का एकमेव लक्ष्य हो तब तुलसी के राम आज और अधिक  प्रासंगिक हो जाते हैं ।रमा विलास राम अनुरागी ,

  तजत वमन इव  नर-नारी । 

यानी लक्ष्मी के ऐश्वर्य को राम के अनुयायी उल्टी की तरह त्याग देते हैं। यह पंक्तियां स्पष्ट तौर पर आज के तथाकथित राम भक्तों पर सीधे वार करती हैं। राम अनुरागी की पहली शर्त तो यही है कि वह ऐश्वर्य से दूर रहे। आज दुनिया माया के पीछे दौड़ रही है। आमजन भी इस दौड़ में शामिल होने बेचैन हो रहे हैं ,तब राम भक्तों से भरे हिंदुस्तान में यदि उपर्युक्त पंक्तियों को ज़ेहन में उतार लिया जाए, तो भारत की तस्वीर बदल सकती है ।

  राम को तुलसी ने दारिद्र्य नाशक के रूप में भी रेखांकित किया है-

 दीनता दारिद्रय दलै को कृपा वारिधि बाज 

                         या 

        तुलसी भजु दारिद दोष ,

      दावानल संकट कोटि कृपानहिं रे ।

कहने का आशय यह कि तुलसी के राम नए शोषण मुक्त समाज के प्रतीक हैं । यही वजह है कामायनी के लेखक जयशंकर प्रसाद ने  तुलसी और राम के संबंध में एक बड़ी मार्मिक पंक्ति लिखी थी -"मानवता को सदय राम का रूप दिखाया  ।" तुलसी परस्पर सौहार्द्र के मजबूत धागे से सब को जोड़ते हुए लिखते हैं-

       सब नर करहिं परस्पर प्रीति,

      चलहिं स्वधर्म निरत श्रुत नीति ।

   वे सबसे बड़ा धर्म दीनों की सेवा और सबसे बड़ा पाप उनका उत्पीड़न मानते हुए कहते हैं -

    परहित सरस धर्म नहिं भाई, 

     पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।

 कहना न होगा कि तुलसी के राम सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय भावना वाले हैं। सर्वहारा वर्ग के प्रति उनका झुकाव है क्योंकि तुलसीदास स्वत: जातिवादियों के शिकार हुए उन्होंने तरह-तरह के अपमान सहे और सामाजिक प्रवंचनाओं को झेला इसीलिए उनके राम इन व्यवस्थाओं के सख्त खिलाफ है  -

धूत कहौ अवधूत कहौ रजपूत कहौ जुल्हा कहौ कोऊ—-

तुलसी सरनाम गुलाम राम कौ जाकौ रचे सौ कहे कछु ओऊ

दूसरी ओर वे कोल ,किरातों को जिन्हें मुगल बादशाहों के वक्त आखेट के काम में लाया जाता था, तथा पकड़े जाने पर काबुल के बाजार में उन्हें बेचा जाता था, राम से मिलवाते हैं। शबरी के बेर खिलाते हैं। केवट और निषाद को भ्राता सम कहलवाते हैं। इसके पीछे लेखक के मन की जनवादी विचारधारा होती है। जनवाद का उनके राम पोषण करते हैं हालांकि राम के वक्त वर्ण हीन समाज नहीं था किंतु सरयू के राजघाट पर चारों वर्ण एक साथ स्नान जरूर करते हैं –

       राजघाट सब विधि सुंदर वर ,

       मज्जहिं यहां बरन चारिऊ नर।

 उनके राम न्याय अन्याय के संघर्ष में तटस्थ नहीं हैं वे न्याय का सक्रिय पक्ष लेते हैं। लक्ष्मण के मुकाबले वे ज्यादा धैर्य दिखाते हैं लेकिन उनके धैर्य की एक सीमा है वह शस्त्र उठाने में जरा भी देर नहीं करते ।जब समुद्र राम को रास्ता नहीं देता। समझाने, विनती करने पर भी नहीं पसीजता तब तुलसी कहते हैं- 

विनय न मानत जलधि जड़ ,गए तीन दिन बीत ।

बोले राम सकोप तब , भय बिन होय न प्रीत ।।

 इसी भांति रावण का अन्याय देख  पहले दूत द्वारा राम उसे समझाने की चेष्टा करते हैं लेकिन वह जब नहीं मानता तो उसका हृदय परिवर्तन करने अनशन या सत्याग्रह नहीं करते, सीधे युद्ध छोड़ देते हैं। राम का तमाम चरित आत्मपीड़ा द्वारा निष्क्रिय  प्रतिरोध का खंडन करता है यह महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य है जिनकी आज समाज को जरूरत है ।

    तुलसी जनता के दुख दर्द ,क्लेश बड़े यथार्थवादी ढंग से लिख जाते हैं --

  खेती न किसान को भिखारी को न भीख ,बली बनिक को बनिज ना चाकर को नौकरी ।

 वे कुशासन पर मौन नहीं रहते प्रजा के संघर्ष में शामिल हो जाते हैं---

     जासु राज  प्रिय  प्रजा   दुखारी ,

      ते नृप अवसि नरक अधिकारी ।

उन्होंने दुष्ट राजाओं पर भी प्रहार किए तथा भारतीय जनमानस की आशाओं को मूर्त रूप देते हुए समता के आधार पर एक सुखी समाज की परिकल्पना भी की –

अल्प मृत्यु नहीं कविनिऊ पीरा,

    सब सुंदर सब  निरुज सरीरा  ।

    नहीं दरिद्र कोऊ दुखी दीना, 

     नहीं कोऊ अबुध ना लच्छन  हीना ।।

               यही रामराज्य की आधारशिला है ।वे पोंगा पंथियों को यह भी बताने की चेष्टा करते हैं कि सुखी समाज स्वर्ग में नहीं वरन इसी जीवन में इसी धरती पर बना है ।उनका स्वर्ग अवध में है । राम से वे कहलाते हैं ---

     जद्यपि सब वैकुंठ बखाना, 

     वेद पुराण विदित जग जाना ।

      अवध सरिस मोहि ना सोऊ,

     यह प्रसंग जाने कोऊ-कोऊ ।। 

            तुलसी ने जिस सुखी समाज की कल्पना की थी  ।वह मनुष्य के प्रयत्न से ही संभव है । सुखी समाज का तुलसी का सपना श्रमिक जनता के लिए धरोहर है जिससे प्रेरित होकर वह समाजवाद की ओर अग्रसर हो सकती है। श्रेष्ठ समाज हेतु यह विचार महत्वपूर्ण है । 

     अतएव कहा जा सकता है कि तुलसी ने जिस राम की कल्पना की वह दैवीय नहीं ,मानवी है और धरती के दुख सुख से संपृक्त है  इसीलिए वे इन मूल्यवान बातों को सामने रखते हैं जिससे समाज स्वस्थ हो सकता है। मानवता की रक्षा हो सकती है। यही वजह है कि तुलसी के राम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं ।यह बात और है कि तुलसी के राम आकृष्ट तो करते रहे हैं लेकिन उन्होंने जन मानस को आंदोलित नहीं किया उनके दैवीय रूप में लोगों को उलझाए रखा उनके जुझारू स्वरूप का दमन कर दिया गया । काश ! रामचरितमानस की सही टीकायें और  व्याख्याएं होतीं तो तुलसी के राम के चरित ने जन-जन को जागृत कर दिया होता और  देश ना केवल सुव्यवस्थित होता बल्कि राम के नाम का सदुपयोग कर उसे तुलसी के रामराज्य की ओर ले जाता ।

               बहरहाल यह तय है कि तुलसी के राम जनमानस में अभी बरकरार हैं  ।उनकी छवि कायम है उसकी सही पहचान करानी होगी तब आप पाएंगे कि जिस राम ने तुलसी को बल और सम्मान दिलाया  वे निर्बल , दलित, आदिवासी और आमजन के भी बल है।  उन्हें इसे विवेक पूर्ण तरीके से अपनाना होगा।तभी वे निर्बल के बल राम हो पायेंगे तथा शोषण मुक्त समाज की स्थापना  संभव  हो सकेगी ।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें