अखिलेश अखिल
यह संयोग नहीं, दुर्योग ही तो है। इसे आप एक प्रयोग भी कह सकते हैं। एक ऐसा प्रयोग जिसमें देश, समाज और जनता भले ही पिस जाए लेकिन सत्ता, सरकार और पीएम मोदी पर कोई धब्बा नहीं लगे। संचार माध्यम का ऐसा तानाबाना और संघ और बीजेपी की धाकड़ तैयारी के सामने विपक्ष को पहले ध्वस्त करने की कोशिश की गई। सच तो यही है कि विपक्ष ही नहीं जनता को भी कमजोर मानकर उसे धूल धूसरित किया जाता रहा। लेकिन अब बाजी पलट गई है।
जनता तो निरीह गाय की तरह है तभी तो देश के कई बड़े इलाके को काऊ बेल्ट कहा जाता है। ऐसा बेल्ट या इलाका जहां की जनता सरकार को अपना देवता मानती है और जो नहीं मानती है उसे मानने पर मजबूर कर दिया जाता है। और यह सब इसलिए किया जाता है क्योंकि सरकार के पांच सेर अनाज पर जो उनकी जिंदगी टिकी हुई है। पांच सेर अनाज खाकर कोई कैसे अपने आका के खिलाफ जा सकता है ?
सत्ता सरकार के इस अमृतकाल में कुछ भी संभव है। पहले भी संभव था। शायद आगे भी यह संभव होता रहे। अगर पांच साल और यह सरकार ऐसे ही चलती रही तो देश के भीतर और भी क्या होगा यह कौन जाने ?आज ओलम्पिक खिलाड़ी विनेश फोगाट को पता चल गया होगा कि इस देश की राजनीति उनसे क्या चाहती है और उन्हें यह भी पता चल गया होगा कि सत्ता सरकार से पंगा लेने का हश्र क्या होता है।
ताज्जुब तो इस बात का है कि जो प्रधानमंत्री आज विनेश की अयोग्यता की घोषणा पर उसे फिर से तमाम तरह की शाबाशी देने से नहीं चूक रहे हैं वही पीएम मोदी जब सड़कों पर विनेश और उनकी जैसी और बेटियां और बेटे घसीटे जा रहे थे तब मौन हो गए थे। पीएम मोदी और बीजेपी के साथ ही समूची बीजेपी सरकार की नजर में विनेश, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया किसी विलेन से कम नहीं थे।
इन पहलवानों का कसूर इतना भर था कि उन्होंने बीजेपी के ताकतवर तत्कालीन सांसद बृज भूषण के खिलाफ यौन शोषण का आरोप और न्याय की गुहार लगायी थी। लेकिन न्याय नहीं मिला। तब पीएम मोदी ने इन खिलाडियों से मिलाना भी गवांरा नहीं समझा। ऐसे में आज प्रधानमंत्री अगर विनेश की अयोग्यता पर और पदक न पाने को लेकर ढांढस बढ़ाने का खेल कर रहे हैं तो उसे घड़ियाली आंसू से ज्यादा कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
सच तो यही है कि आज भले ही ओलम्पिक में भारत गोल्ड मेडल से दूर हो गया हो। विनेश फोगाट सिल्वर मेडल से भी चूक गईं हों और सबसे बड़ी बात विनेश ने अब खेल से ही तौबा कर लिया हो लेकिन पीएम मोदी, बीजेपी और मौजूदा सरकार को अब शायद शांति मिल गई हो कि चलो कोई बला तो टल गयी।
देश को भले ही कुश्ती में कोई मेडल नहीं मिला। लेकिन पीएम मोदी, बृजभूषण और बीजेपी के ऊपर जो काले धब्बे खिलाड़ियों ने लगाए थे अगर वह विनेश जीतकर आज आ जाती तो देश का मान भले ही बढ़ता लेकिन पीएम मोदी और बीजेपी सरकर के मुंह पर कितना बड़ा तमाचा लगता यह कौन नहीं जानता है?
आगे बढ़ें इससे पहले विनेश ने आज जो घोषणा की है उसे पढ़ने की ज्यादा ज़रूरत है। विनेश ने गुरुवार सुबह सोशल मीडिया एक्स पर एक भावनात्मक पोस्ट के माध्यम से कुश्ती से संन्यास लेने के अपने फैसले की घोषणा की। विनेश ने लिखा, “मां, कुश्ती जीत गई, मैं हार गई। कृपया मुझे, आपके सपनों और मेरी हिम्मत को माफ कर दें, सब कुछ टूट गया है। इसमें आगे लिखा था अब मुझमें और ताकत नहीं है। अलविदा कुश्ती 2001-2024। मैं आप सभी की ऋणी रहूंगी। मुझे माफ कर दें।
याद रहे हरियाणा की इस पहलवान के नाम तीन राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण, दो विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक और एक एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक है। उन्हें 2021 में एशियाई चैंपियन का ताज भी पहनाया गया था। लेकिन आज विनेश हार गई या हरा दी गई इसे देश ने भी देखा और समझा भी। विनेश के साथ जो कुछ भी हुआ या फिर होते दिखाया गया वह भी खेलों की दुनिया में इतिहास के रूप में हमेशा के लिए दर्ज होगा और इस सरकार के कारनामे भी दर्ज किये जाएंगे।
वह जंतर-मंतर भी आज विनेश के शौर्य पर आंसू बहा रहा होगा और वही जंतर-मंतर सरकार की कारगुजारियों को भी अपने सीने में पैबस्त कर लिया होगा। आने वाली पीढ़ी जब जंतर मंतर के इतिहास को खंगालेगी तब जाकर विनेश की आवाज और सरकार की करतूत सामने आएगी। बड़ी बात तो यही होगी तब हम सब वह देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।
मोदी के राज में अमृत काल की खूब चर्चा हुई। देश भी अमृतकाल को खूब भोगा और विदेश की धरती को भी यह भान हो गया कि भारत सचमुच अमृतकाल के दौर से ही गुजर रहा है। जिस तरह पीएम मोदी देश की महिला खिलाड़ियों की रुदाली पर नहीं पसीजे थे ठीक उसी तरह देश के राज्य मणिपुर में जो हुआ, पीएम मोदी पलट कर भी देखने नहीं पहुंचे। वहां की दुर्दशा पर वे नहीं पसीजे।
मणिपुर जलता रहा। देश की बेटियां सड़कों पर नंगी घुमाई जाती रहीं। हजारों लोग बेघर हो गए। सैकड़ों लोग मारे गए। न जाने कितनी माँ बहनें बेइज्जती की शिकार हुईं लेकिन देश के पीएम उनके आंसू पोछने नहीं गए। अब तक नहीं गए। जिस तरह मणिपुर में लोकसभा की दोनों सीटें हारकर भी बीजेपी और बीजेपी के लोगों को शांति और सुकून मिली थी आज वही शांति विनेश की हार से मिल रही होगी। बृजभूषण तो आज खिलखिला रहे होंगे।
दुनिया भर में अपनी ताकत और इकबाल का दम्भ भरने वाले पीएम मोदी क्या यह बता सकते हैं कि जब दुनिया भर में उनकी इतनी पैठ है तो फिर ओलम्पिक खेल में अचानक विनेश का वजन कैसे बढ़ गया। जिस रेसलर ने कुछ घंटा पहले ही सामने वाले को धूल चटाकर भारत के गौरव को ऊँचा किया था और सिल्वर मेडल की हकदार हो गई थी, कुछ घंटे बाद वह अयोग्य हो गई और मोदी का कोई इकबाल नहीं चल सका।
उनके इकबाल की कहानी इतनी भर थोड़े ही है। दाग तो कई और भी लगे हैं इस सरकार पर। चुनावी बांड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया है। इसे एक लूट भी बताया गया। जब सुप्रीम कोर्ट से कोई बरी होता है तो राजनीति में बड़ी हलचल होती है और उसके सारे दाग धुल जाते हैं। लेकिन जब वही सुप्रीम कोर्ट किसी योजना को असंवैधानिक करार देता है और चुनावी बांड की तुलना आजाद भारत के सबसे बड़े लूट से की जाती है तब सरकार के लोग कुछ बोलते तक नहीं। पीएम मौन में चले जाते हैं। क्या पीएम मोदी को कभी यह अहसास हुआ कि उन्होंने जो खेल किया वह गलत पाया गया और जब गलत निर्णय था तो उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए और पद से हट जाना चाहिए। लेकिन ऐसा भला वे करेंगे क्यों? अमृत काल का यह दौर भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है।
लगे हाथ नोटबंदी पर भी चर्चा कर ली जाये। क्या हुआ उस नोटबंदी का? कोई जवाब है इस सरकार के पास ?
अब उस नोटबंदी पर पीएम कुछ बोलते क्यों नहीं? उन्होंने ही तो कहा था कि उनकी नीति और इरादे गलत होंगे तो देश की जनता जो चाहेगी कर सकती है। जनता ने तो कुछ भी नहीं किया लेकिन सच है कि उनका कहा सब झूठा ही साबित हुआ। केवल अपनी झूठी मान और झूठा इकबाल कायम करने के लिए वे सब कुछ करते रहे लेकिन उन्हें कोई शर्म नहीं आई।
अब संसद के भीतर का नजारा बदल गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में अब कोई ज्यादा अंतर नहीं रहा। संसद में 53 फीसदी सत्तापक्ष के सांसद हैं तो 47 फीसदी विपक्ष के सांसद हैं। अब जोर आजमाइश तगड़ी है। बीजेपी की परेशानी बढ़ी हुई है। पीएम मोदी और शाह की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं लेकिन संसद के इस सत्र के समापन के वक्त विनेश के साथ जो कुछ भी हुआ उससे मोदी काल का अमृतकाल कलंकित हो गया।