अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

छह अगस्त 1945 का मनहूस दिन को कभी भूल नहीं सकते जापान के लोग

Share

के उस मनहूस दिन को कभी भूल नहीं सकते, जब परमाणु बम गिराया गया था। अब भी अस्पताल में प्रतिदिन उस हादसे से जीवित बचे औसतन 180 लोगों का उपचार किया जा रहा है, जिन्हें ‘हिबाकुशा’ के नाम से जाना जाता है। इन बम धमाकों ने लगभग दो लाख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला और अनगिनत लोगों को अपंग बना दिया। हिरोशिमा की 76,000 इमारतों में से 50,000 पूरी तरह से नष्ट हो गईं। नागासाकी में धमाके के डेढ़ मील के दायरे के लगभग सभी घर नष्ट हो गए।

हिरोशिमा शहर के मध्य में स्थित रेडक्रॉस अस्पताल का प्रतीक्षालय हमेशा भरा रहता है। लगभग हर खाली सीट पर बुजुर्ग लोग बैठे अपना नाम पुकारे जाने का इंतजार करते हैं। इनमें से कई महिला एवं पुरुष मरीजों का कोई सामान्य चिकित्सकीय इतिहास नहीं है। वे 79 साल पहले हुए अमेरिकी परमाणु बम हमले के जीवित बचे हुए पीड़ित हैं। जापान के लोग छह अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कभी भूल नहीं सकते। अब भी अस्पताल में प्रतिदिन उस हादसे से जीवित बचे औसतन 180 लोगों का उपचार किया जा रहा है, जिन्हें ‘हिबाकुशा’ के नाम से जाना जाता है। ज्यादातर अमेरिकियों के लिए वह बम करीब चार वर्षों की अथक लड़ाई के बाद जीत की राह का प्रतिनिधित्व करता था, जो देश को पीढ़ियों तक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने वाला था। हिरोशिमा में बम गिराने के तीन दिन बाद ही नागासाकी में भी बम गिराया गया था। धमाकों ने लगभग दो लाख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला और अनगिनत लोगों को अपंग बना दिया। 

हिरोशिमा की 76,000 इमारतों में से 50,000 पूरी तरह से नष्ट हो गईं। नागासाकी में धमाके के डेढ़ मील के दायरे के लगभग सभी घर नष्ट हो गए। दोनों शहरों में बुनियादी ढांचा पूरी तरह ध्वस्त हो गया। अमेरिकियों ने इस विनाश को जरूरी और साहसिक कार्य बताया, जिसने युद्ध को खत्म कर दिया। हालांकि जापान में हिबाकुशा और उनकी संततियों ने परमाणु हमले की स्मृति को बचाए रखा है। कई लोग अपने काम से दुनिया को यह बताते हैं कि बमों के कारण होने वाले आघात, कलंक और बचे होने का अपराधबोध कैसा होता है, ताकि परमाणु हथियारों का फिर कभी इस्तेमाल न हो। औसतन 85 की आयु के हिबाकुशा हर महीने सैकड़ों की संख्या में मर रहे हैं, और दुनिया एक नए परमाणु युग में प्रवेश कर रही है। अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश अपने परमाणु हथियार के भंडारों को आधुनिक बनाने के लिए खरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं। ऐसे में दुनिया के लिए परमाणु हादसे से बचे पीड़ितों की कहानियां सुनना जरूरी है, जो परमाणु हथियारों की भयावहता के बारे में बता सकते हैं। 

हिरोए कावाशिमो की मां हिरोशिमा में घर पर थी… हिरोए का जन्म हादसे के आठ महीने बाद हुआ। उसकी मां हिरोशिमा में बम के विकिरण के संपर्क में आने के समय घटना स्थल से एक किमी दूर थी। कावाशिमो का वजन जन्म के समय मात्र 500 ग्राम था। वह उन कई बच्चों में से एक थी, जो गर्भ में रहते हुए बम के संपर्क में आए थे और उनका माइक्रोसेफेली, यानी छोटे सिर का निदान किया गया था।

कुनिहिको साकुमा अपनी मां के साथ घर पर थे…तब वह मात्र नौ महीने के थे। वह कहते हैं, ‘आज भी ऐसे लोग हैं, जिन्हें उन भयावह अनुभवों के बारे में बात करने में मुश्किल होती है। बमबारी के 79 साल बाद आज भी उसके प्रभाव के लक्षण उभर रहे हैं।’ 
मुझे लगा कि यह सब अतीत की बातें हैं। लेकिन जब मैंने पीड़ितों से बात करना शुरू किया, तो मुझे एहसास हुआ कि उनका दुख अब भी ताजा है।

अब डॉक्टर बन चुके मासाओ तोमांगा बमबारी के समय नागासाकी में अपने घर की दूसरी मंजिल पर सो रहे थे…तब वह मात्र दो साल के थे। वह बताते हैं, बमबारी के समय एक महिला 17 साल की थी। उसने अपना पूरा जीवन व्हीलचेयर पर बिताया। जब वह 76 साल की थी, तो किन्हीं जांच के लिए मुझसे मिली। उसने मुझसे कहा, ‘परमाणु बम मेरे अंदर जीवित है।’ शायद उसे लग रहा था कि परमाणु बम उसके शरीर में प्रवेश कर गया है।
शिगेकी मोरी हिरोशिमा में स्कूल जाते समय पुल पार कर रहे थे…उनकी पत्नी कायोको भी बम से बचे हुए लोगों में से हैं। तब वह आठ साल के थे और उनकी पत्नी तीन साल की थीं। वह कहते हैं, ‘लोग अब भी इसे नहीं समझते हैं। परमाणु बम कोई सामान्य हथियार नहीं है। मैं एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बोल रहा हूं, जो आज तक पीड़ित है: दुनिया को परमाणु युद्ध को फिर से होने से रोकने की जरूरत है। लेकिन समाचारों में मैं देखता हूं कि राजनेता ज्यादा हथियार, ज्यादा टैंक तैनात करने की बात करते हैं। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं उस दिन की कामना करता हूं, जब वे इसे रोक दें।’

अब बचे हुए लोगों को बस यही चिंता है कि वे मरें और स्वर्ग में अपने परिवार से मिलें। मैंने कई बचे हुए लोगों को कहते सुना, ‘मैं क्या करूं? इस धरती पर अब भी बहुत सारे परमाणु हथियार हैं, और फिर मैं अपनी बेटी से मिलूंगी, जिसे मैं बचा नहीं सकी। मुझसे पूछा जाएगा : मां, आपने परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए क्या किया? इसका कोई जवाब नहीं है, जो मैं उन्हें बता सकूं।’

शिगेकी मोरी के सीने की जेब में एक छोटी-सी गुलाबी पुस्तिका है-एक ऐसी कीमती चीज, जो पिछले कुछ वर्षों में उनकी आत्म-पहचान से और भी ज्यादा जुड़ गई है। परमाणु हमले से बचे लोगों की स्वास्थ्य पुस्तिका, जो उन्हें मुफ्त चिकित्सा जांच और उपचार की सुविधा देती है, जो 87 साल की उम्र में बहुत जरूरी है। बराक ओबामा 2016 में हिरोशिमा का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। मोरी उन दो बचे लोगों में से एक थे, जिन्होंने ओबामा से संक्षिप्त बातचीत की, जिसके बाद दोनों भावुक होकर गले मिले। मोरी अपने लिविंग रूम की दीवार पर गर्व से उस पल की तस्वीर को लगाए हुए हैं। कई जापानियों को उम्मीद थी कि ओबामा आधिकारिक रूप से बमबारी के लिए माफी मांगेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, ओबामा उस दिन के विनाश को स्वीकार करने से नहीं कतराए। तब ओबामा ने कहा था, ‘केवल शब्दों से ऐसी पीड़ा को व्यक्त नहीं किया जा सकता है, हम सभी की साझा जिम्मेदारी है कि हम सीधे इतिहास की आंखों में देखकर पूछें कि हमें ऐसी पीड़ा को फिर से रोकने के लिए क्या अलग करना चाहिए। किसी दिन हिबाकुशा की आवाजें गवाही देने के लिए हमारे साथ नहीं रहेंगी। लेकिन छह अगस्त, 1945 की सुबह की याद कभी फीकी नहीं पड़नी चाहिए। वह याद हमें आत्मसंतुष्टि से लड़ने के लिए प्रेरित करती है। यह हमारी नैतिक कल्पना को बढ़ावा देती है। यह हमें बदलाव की अनुमति देती है।’

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें