अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पितृपक्ष : आत्मगत अमरत्व, पुनर्जन्म और पुत्रधर्म

Share

              डॉ. विकास मानव 

पुत्र पिता के शुक्र से उत्पन्न है, अतएव वह पिता का प्रतिनिधित्व करने का वाहक भी है। ब्रह्मा ने बालक को पुत्र कहा है। मनुस्मृति में ‘पुं’ नामक नरक से ‘त्र’ त्राण दिलाने वाले प्राणी को ‘पुत्र’ कहा है। इसी नाते यह पिंडदान एवं श्राद्धदि कर्म का दायित्व पुत्र पर है। हालांकि पुत्र नहीं होने पर पुत्री से भी ये संस्कार कराए जा सकते हैं। 

    मृत्यु के साथ मनुष्य का पूर्णतः अंत नहीं होता है। मृत्यु द्वारा आत्मा शरीर से पृथक हो जाती है और वायुमंडल में विचरण करती है। आत्मा मनुष्य के जीवित रहते हुए भी स्वप्न-अवस्था में शरीर से अलग होकर भ्रमण करती है, लेकिन शरीर से उसका अंतर्सबंध बना रहता है। रुग्णावस्था में भी आत्मा और शरीर का अलगाव बना रहता है। लेकिन मृत्यु के बाद आत्मा पूर्णतः पृथक हो जाती है। 

ऋग्वेद में कहा गया है कि ‘जीवात्मा अमर है और प्रत्यक्षतः नाशवान है। इसे ही और विस्तार से श्रीमद्भगवद् गीता में उल्लेखित करते हुए कहा है, आत्मा किसी भी काल में न तो जन्मती है और न ही मरती है। जिस तरह से मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण कर लेता है, उसी अनुरूप जीवात्मा मृत शरीर त्यागकर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है।

     आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म की धारणा को अब आधुनिक काल के वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है। पितृपक्ष का विधान और ऐसी तमाम नौटंकी की बातें न्यस्थ स्वार्थवश ब्रिटिश कालीन ब्रह्मणों ने पुराणों में की. पुराण वैदिक ग्रंथ नहीं हैं. होते तो इनमें रानी विक्टोरिया जैसों का जिक्र नहीं मिलता.

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के गणित व भौतिकी के प्राध्यापक सर रोगर पेनरोज और एरीजोना विवि के भौतिक विज्ञानी डॉ स्टूअर्ट हामरॉफ ने दो दशक तक अध्ययनरत रहने के बाद स्वीकारा है कि ‘मानव-मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर की भांति है। इस जैविक संगणक की पृष्ठभूमि में अभिकलन (प्रोग्रामिंग) आत्मा या चेतना है, जो दिमाग के भीतर उपलब्ध एक कणीय (क्वांटम) कंप्यूटर के माध्यम में संचालित होती है। 

      इससे तात्पर्य मस्तिष्क कोशिकाओं में स्थित उन सूक्ष्म नलिकाओं से है, जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के सूक्ष्म अणु मिलकर एक क्वांटम क्षेत्र तैयार करते हैं, जिसका वास्तविक रूप चेतना या आत्मा है। जब व्यक्ति दिमागी रूप से मृत्यु को प्राप्त होने लगता है, तब ये सूक्ष्म नलिकाएं क्वांटम क्षेत्र खोने लगती हैं।

     परिणामतः सूक्ष्म ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकलकर ब्रह्मांड में चले जाते हैं। यानी आत्मा या चेतना की अमरता बनी रहती है।

    इसी क्रम में प्रसिद्ध परा मनोवैज्ञानिक डॉ. रैना रूथ ने पदार्थगत रूपांतरण को ही पुनर्जन्म माना है। उनका कहना है कि पदार्थ और ऊर्जा दोनों ही परस्पर परिवर्तनशील हैं। ऊर्जा नष्ट नहीं होती, परंतु रूपांतरति व अदृश्य हो जाती है। इसीलिए डीएनए यानी महारसायन मृत्यु के बाद भी संस्कारों के रूप में अदृश्य अवस्था में उपस्थित रहता है और नए जन्म के रूप में पुनः अस्तित्व में आ जाता है। 

     हमें जो विलक्षण प्रतिभाएं देखने में आती हैं, वे पुर्वजन्म के संचित ज्ञान का ही प्रतिफल होती हैं। 

       जीवात्मा वर्तमान जन्म के संचित संस्कारों को साथ लेकर ही अगला जन्म लेती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जींस (डीएनए) में पूर्वजन्म या पैतृक संस्कार मौजूद रहते हैं, इसी अबशेष से निर्मित नूतन सरंचना के चैतन्य अर्थात प्रकाशकीय भाग को प्राण कहते हैं। 

      आधुनिक विज्ञान तो जीवन-मृत्यु के रहस्य को अब कुछ हद तक समझ पाया है. हमारे ऋषि पूर्वजों ने हजारों साल पहले ही शरीर और आत्मा के इस विज्ञान को समझकर विभिन्न संस्कारों से जोड़ दिया था, जिससे रक्त संबंधों की अक्षुण्ण्ता जन्म-जन्मांतर स्मृति पटल पर अंकित रहे.

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें