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नेहरू को सरदार पटेल ने वफादारी का आश्वासन दिया था

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एल.एस. हरदेनिया

सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा 28 मार्च 1950 को जवाहरलाल नेहरू को लिखे गए पत्र के कुछ अंश, जिनमें वे नेहरूजी को अपनी पूरी वफादारी और मैत्री का आश्वासन देते हैं

जो आपने बापू की मृत्यु के पहले लिखा वह मेरे मस्तिष्क में भी प्रभावशाली रूप में दिख रहा है। परंतु मेरी बापू के साथ जो बातचीत हुई थी और उस बातचीत में उन्होंने अपनी राय प्रकट की थी वह बहुत महत्वपूर्ण है। बापू ने कहा था कि मैं और तुम मिलकर काम करें। क्योंकि यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो वह कदापि देश के हित में नहीं होगा। मैंने पूरी कोशिश की है कि मैं बापू के इन अंतिम शब्दों के अनुसार चलने की कोशिश करूं। बापू के इन शब्दों को याद करते हुए मैंने पूरी कोशिश की है कि मैं आपके हाथों को मजबूत करूं। ऐसा मैंने जितना संभव हो सकता है वह किया। ऐसा करते हुए मैंने अपने विचारों को हर संभव ढंग से बताने की कोशिश की। मैंने तुम्हें पूरी वफादारी के साथ समर्थन किया। ऐसा करते समय मैंने अपने पर पूरा नियंत्रण रखा। इन पिछले दो वर्षों में मैंने ऐसा कोई भी रास्ता नहीं अपनाया जो तुम्हारे द्वारा अपनाई गई नीति के विरूद्ध हो। इस दरम्यान मेरे और तुम्हारे बीच में कुछ मतभेद भी हुए। इस तरह के मतभेद स्वभाविक हैं। परंतु इन मतभेदों के बावजूद हमने मिलाजुला रास्ता अपनाया।
इस दरम्यान अपने विचारों को स्पष्ट रूप से बताते हुए मैंने कोई भी ऐसा काम नहीं किया जो तुम्हारे द्वारा निर्धारित नीतियों के विरूद्ध हो। जहां तक हमारे बीच कुछ मतभेदों का सवाल है मुझे ऐसा याद नहीं पड़ रहा है जो सेक्युलर उद्देश्यों के विरूद्ध हो। मैं यह कहने की स्थिति में हूँ कि हम दोनों के बीच इस मुद्दे पर कभी मतभेद हुआ हो। मैं भी पूरी तरह इस राय का हूँ कि अल्पसंख्यकों को पूरा संरक्षण दिया जाये और उनके विरूद्ध की जाने वाली हिंसा जो हमारे देश के भीतर हो या बाहर हो, हम पूरी तरह से उसकी भर्त्सना करें और उसे रोकें।
जहां तक विदेश नीति का सवाल है मुझे याद नहीं पड़ता कि इस मामले में मैंने कभी भिन्न मत जारी किया हो, सिवाए उस समय जब कैबिनेट में ऐसे किसी विषय पर चर्चा हुई हो। मैंने ऐसी राय से तुमको अवगत कराया है। वह भी कुछ विशेष नीति के संदर्भ में। शायद मैं यह कहने की स्थिति में हूँ कि विदेशी मामलों में मैंने तुम्हारी नीति में किसी किस्म की बाधा पहुंचाई हो। यह संभव है कि हमने प्रायवेट तौर पर किसी विशेष मामले में तुमसे असहमति प्रगट की हो, पर वह असहमति एक विशेष मुद्दे तक ही सीमित रही। परंतु मैं सोचता हूं कि तुम भी इस राय के हो कि प्रायवेट में भी असहमति जाहिर न करें।
मैं भी इस राय का हूं कि हमारे मिलेजुले कदम देश की प्रगति के लिये आवश्यक हैं। सच पूछा जाये तो बापू ने जो 1948 के जनवरी माह में कहा था वो आज भी पूरी तरह से उचित है। इसलिये मैंने उस संदर्भ में तुमसे अपील की थी कि तुम कोई भी ऐसा कदम न उठाओ जिसमें पद को छोड़ने की संभावना हो। क्योंकि ऐसा कोई भी कदम कदापि राष्ट्र के हित में नहीं होगा। इस तरह का कोई भी कदम देश के लिए पूरी तरह हानिप्रद होगा और इसलिए मैं सदा सोचता रहा हूं कि मुझे तुम्हारा पूरा विश्वास प्राप्त है। मेरी कदापि यह इच्छा नहीं है कि मैं किसी पद पर रहूं, यदि मैं बापू द्वारा दिये गये मिशन को पूरा करने की स्थिति में नहीं हूं। बापू ने मुझे स्पष्ट कहा था कि मैं तुम्हारे हाथों को मजबूत करूं और मैं गलती से भी यह बात महसूस करने कि स्थिति में नहीं हूँ कि तुम्हारे प्रति मेरी वफादारी नहीं है, या तुम यह सोचो कि तुम्हारे द्वारा बनाई गई नीतियों के पालन में मैं किसी किस्म का रोड़ा बन रहा हूं। देश पर जो बीच में विपत्तियां आई हैं उन्हें दूर करने में जो भी समय ईश्वर ने मुझे दिया है उन्हें हल करने में बिताऊं। सच पूछा जाये तो सत्ता से बाहर रहकर भी मैं तुम्हारे हाथ मजबूत कर सकता हूं। मैं कदापि यह नहीं चाहूंगा कि मेरे कारण संगठन और देश किसी प्रकार की बाधा में पड़ जाये। क्योंकि इस समय राष्ट्र को ऐसी आवाज़ और ऐसी ताकत की आवश्यकता है जो एकता से ही संभव है।
—आपका वल्लभभाई पटेल

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