राजनीति, सिनेमा, विदेशी संस्थान… चौतरफा हमलों के बीच हिंदू मूकर्दर्शक बनकर रह गया
तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद में मिलावटी घी का उपयोग होने की खबर से विवाद खड़ा हो गया है। गुजरात लैब रिपोर्ट ने पुष्टि की कि तिरुपति लड्डू में जानवरों की चर्बी मिली थी, जिससे धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची है। सवाल है कि इतना दुस्साहस कैसे हो गया कि प्रसाद में जानवारों की चर्बी का इस्तेमाल कर लिया जाए?
नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के प्रमुख प्रसाद में मिलावटी घी का उपयोग किए जाने की खबर से हंगामा मच गया। गुजरात की लैब से आई रिपोर्ट में पुष्टि हो गई कि जिस घी से तिरुपति लड्डू बनाया जा रहा था, उसमें जानवरों की चर्बी मिली हुई है। एक तो पवित्र प्रसाद, वो भी तिरुपति जैसे प्रसिद्ध मंदिर का जहां देश-दुनिया से आस्थावान हिंदू भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन करने आते हैं। सोचिए, उन हिंदुओं को प्रसाद के जरिए गाय की चर्बी खिलाई जा रही थी। कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने की खबर ने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ 1857 की पहली क्रांति करवा दी थी। गाय को माता मानने वाले हिंदुओं को अगर प्रसाद में चर्बी मिलाकर खिला दी जाए तो इससे बड़ा धार्मिक आक्रमण और क्या ही हो सकता है? लेकिन तिरुपति में ऐसा हुआ।
इसाई की सरकार में जानबूझकर हुई थी साजिश?
टीडीपी की चंद्रबाबू नायडू सरकार का कहना है कि वाईएसआर कांग्रेस की पिछली जगनमोहन रेड्डी सरकार में तिरुपति लड्डू के लिए अशुद्ध और मिलावटी घी का उपयोग शुरू हुआ था। तिरुपति के तत्कालीन पुजारी रमना दीक्षितुलु ने दावा किया है कि उन्होंने घी की अशुद्धता का मुद्दा उठाया था, लेकिन तत्कालीन मंदिर प्रबंधन ने कोई सुनवाई नहीं की। जगनमोहन रेड्डी और उनका परिवार इसाई है। सोचिए अगर हिंदू मुख्यमंत्री की सरकार में अगर किसी गैर-हिंदुओं के साथ ऐसा होता, वो भी उनके धर्मस्थल के जरिए तो आज देश-दुनिया में क्या नैरेटिव गढ़ जा रहे होते! लेकिन बहुसंख्यक हिंदुओं के इस देश में हिदुओं की आस्था पर इतना बड़ा आक्रमण हुआ, लेकिन बात आई-गई हो गई। आखिर ऐसा कैसे हुआ? इसकी जड़ में हिंदुओं की आस्था पर लगातार चोट करने की प्रवृत्ति है। लगता है छोटे-बड़े अपमानों से गुजर रहे हिंदुओं ने धीरे-धीरे मान लिया है कि भारत में हमारी यही गति होनी है। तभी तो देश की सरकार और इसके मुखिया पर हिंदूवादी होने का आरोप है, तब भी हिंदुओं ने प्रसाद की आड़ में गाय की चर्बी खाकर भी चुप्पी ठान रखी है?
हिंदुओं को गाय की चर्बी खिलाने का दुस्साहस, आखिर कैसे?
दरअसल, प्रसाद बनाने में गाय की चर्बी वाले घी के उपयोग का दुस्साहस इसलिए हो पाया क्योंकि हिंदुओं ने अपनी आस्था पर हो रहे हमलों का प्रतिकार करना छोड़ दिया। नीचे दी गई बातें याद कीजिए और अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए कि क्या ऐसी बात कभी गैर-हिंदुओं के लिए कही जा सकती है? क्या वही लोग गैर-हिंदुओं के लिए ऐसी हिम्मत कर सकते हैं जिन्होंने हिंदुओं के लिए ऐसी बातें कही हैं?
मठाधीस और माफिया एक जैसे: अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए कहा कि
मठाधीश और माफिया में ज्यादा अंतर नहीं है। उसके बाद उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘भाषा से पहचानिए असली सन्त महन्त, साधु वेष में घूमते जग में धूर्त अनन्त।’
➤ मंदिर जाने वाले ही लड़कियां छेड़ते हैं: राहुल गांधी
कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के मौजूदा नेता राहुल गांधी ने कहा कि जो लोग मंदिर जाते हैं वही लड़कियों को छेड़ते हैं। वो अपने पिता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 70वीं जयंती पर महिला कांग्रेस की ओर से आयोजित संकल्प सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
➤ मां दुर्गा का घृणित अपमान
देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पम्फ्लेट छपवाकर मां दुर्गा को वेश्या बताया गया जिन्होंने महिषासुर का धोखे से वध किया। फिर दिल्लू यूनिवर्सिटी के दयाल सिंह कॉलेज में एक असिस्टेंट प्रफेसर केदार कुमार मंडल ने फेसबुक पोस्ट में मां दुर्गा के लिए लिखा, ‘दुर्गा भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत ही सेक्सी वेश्या है।’
➤ नाटकों के जरिए हिंदू आस्था की खिल्ली
इन दिनों कॉलजों में कला प्रदर्शन के नाम पर हिंदू आस्था का मजाक बनाने का चलन हो चुका है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के छात्रों ने ‘राहोवन’ नाम के नाटक का मंचन किया। इस नाटक के जरिए छात्रों ने भगवान राम और माता सीता का मजाक उड़ाया। इसी तरह, पुणे के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में भी रामलीला पर आधारित नाटक के मंचन के जरिए भगवान राम और देवी सीता का मजाक उड़ाया गया। नाटक में माता सीता को सिगरेट पीते दिखाया गया।
➤रामचरितमानस पोटैशियम साइनाइड: चंद्रशेखर यादव
बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने रामचरितमानस को जहरीला बताया। उन्होंने तुलसी कृत रामचरितमानस की तुलना पोटैशियम साइनाइड से की। चंद्रशेखर ने कहा कि 55 तरह का व्यंजन परोस कर उसमें पोटेशियम साइनाइड मिला दीजिए तो क्या होगा, हिंदू धर्म ग्रंथ का हाल भी ऐसा ही है। हिंदुओं की सहिष्णुता ने जिस चंद्रशेखर से यह बयान दिलवाया, उन्होंने ही पैगंबर की तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘जब शैतानियत बढ़ गई, दुनिया में ईमान खत्म हो गया, बेईमान और शैतान जारी हो गए, तो मध्य एशिया के इलाके में प्रभु ने परमात्मा ने एक शानदार पुरखा, प्रोफेट, मर्यादा पुरुषोत्तम जो भी कहलें मोहम्मद साहब को पैदा किया। इस्लाम आया ईमान लाने के लिए, इस्लाम आया बेईमानी के खिलाफ, इस्लाम आया शैतानी के खिलाफ, मगर बेईमानी वाला भी खुद को मुसलमान कहता हो तो उसकी इजाजत कुरान नहीं देती।’ रामचरितमानस के खिलाफ चंद्रशेखर के बयानों का समजावादी पार्टी (सपा) नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी जमकर समर्थन किया था।
➤ हिंदुत्व बीमारी है, जड़ से उखाड़ना होगा: उदयनिधी स्टालिन
तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके के नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने हिंदू धर्म की तुलना भयंकर बीमारियों से की। तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि ने ‘सनातन धर्म को मिटाने’ को लेकर आयोजित सम्मेलन में न केवल भाग लिया बल्कि यहां तक कहा कि ‘सनातन धर्म मलेरिया डेंगू की तरह है जिसे मिटाना जरूरी है।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसी कुछ चीजें होती हैं जिनका विरोध करना काफी नहीं होता, हमें उन्हें समूल मिटाना होगा। मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना ये ऐसी चीजें हैं जिनका हम केवल विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें मिटाना होगा। सनातन भी ऐसा ही है।’
➤ कथित दलित-पिछड़े कार्यकर्ताओं के जहरीले बोल
सोशल मीडिया पर अनेक हैंडल हैं जो आए दिन हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुंचाते रहते हैं। वो बेहिचक हिंदू देवी-देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं। इन सोशल हैंडल्स की प्रोफाइलों में अक्सर यही रहता है कि वो आंबेडकरवादी हैं, जातिवाद के खिलाफ हैं और भीम-मीम के नारे के साथ हैं। इनकी टिप्पणियां देखकर कोई भी समझ सकता है कि उन्हें कानून की जरा भी पर परवाह नहीं है। ऐसा लगता है कि खास जाति में पैदा होने और खास विचारधारा में विश्वास करने की वजह से उन्हें हिंदुओं की आस्था पर बेधड़क चोट करने का उनका अधिकार है।
➤ शिवलिंग पर कंडोम लगाने का मिला पुरस्कार
सायोनी घोष ने शिवलिंग पर कंडोम लगाती तस्वीर अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इन्हीं सयोनी घोष को लोकसभा का टिकट दिया और वो जादवपुर सीट से जीतकर संसद भी पहुंच गईं। कल्पना कीजिए, किसी गैर-हिंदुओं के लिए ऐसा करने वाले को यह सम्मान देने की हिम्मत कौन सी पार्टी जुटा लेती? नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट में एक मुस्लिम पैनलिस्ट के उकसावे भरी टिप्पणियों के जवाब में हदीस की एक बात कोट कर दी, उसके लिए बीजेपी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। देशभर में मुसलमानों ने आठ हिंदुओं की बर्बरता से हत्याएं कीं। अरब देशों में यह मुद्दा उठा और ऐसा लगा कि वहां रोजगार की तलाश में गए हिंदू खतरे में आ गए हैं। लेकिन सयोनी को हिंदू आस्था का इतना बड़ा अपमान करने के एवज में सांसदी का सम्मान मिला। ये है भारत में हिंदू बहुसंख्यकों का हाल।
➤ सड़क किनारे लगे पत्थरों से शिवलिंग पर तंज
मथुरा ईदगाह मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग होने का दावा किया गया तो मुसलमानों ने टीवी चैनलों पर धड़ल्ले से माइलस्टोन्स की तुलना शिवलिंग से करना शुरू कर दिया। मुसलमान और हिंदू विरोधी विचराधारा के लोगों ने सोशल मीडिया पोस्टों में पत्थरों को शिवलिंग बताकर मजाक उड़ाया। हिंदू समाज चुपचाप सहता रहा।
➤ बॉलिवुड का हिंदू विरोधी अभियान
सनातन धर्म को बैड लाइट में दिखाने के अभियान में सबसे बड़ा योगदान देनेवालों बॉलिवुड भी एक है। बॉलिवुडिया फिल्मों में हमेशा हिंदू प्रतीकों का मजाक उड़ाया जाता रहा है और यह काम आज भी धड़ल्ले से चल रहा है। हिंदू देवी-देवता हों या फिर पुजारी, सभी का माखौल उड़ाती फिल्मों की फेहरिश्त बहुत लंबी है।
➤ डिस्मैंटलिंग हिंदुत्व का वैश्विक अभियान
अभी अमेरिका-यूरोप के उच्च शैक्षणिक संस्थानों में ‘डिस्मैंटलिंग हिंदुत्व (हिंदुत्व के समूल विनाश)’ का अभियान चलाया जा रहा है। इन अभियानों की जड़ों में ज्यादातर भारतीय मूल के ही लोग हैं। ये अलग-अलग कैंपसों में ऑनलाइन या ऑफलाइन प्रोग्राम करते हैं और बताते हैं कि सनातन का नामोंनिशान मिटाना कितना जरूरी है। वो हिंदू देवी-देवताओं के लिए अपमानजनक बातें कहते हैं, हिदुओं के रीति-नीति पर कटाक्ष करते हैं और हिंदुत्व को जहर बताते हैं। ये सब हो रहा है और हिंदू चुप है।
विरोध करना ही भूल गया हिंदू समाज!
हिंदुओं पर ऐसे हमले होते हैं तो कहा जाता है कि सनातन धर्म इतना कमजोर नहीं कि इन बातों का कुछ नकारात्मक असर हो जाए। फिर हिंदू आज इतने बड़े विश्वासघात के बाद जोरदार प्रतिक्रिया तक क्यों नहीं दे पाया? क्या यह नेताओं और धर्मविरोधियों के ऐसे ही लगातार हमलों का असर नहीं है कि हिंदू अपनी आस्था पर बड़े से बड़े चोट को भी सामान्य मान चुका है? आक्रमण के खिलाफ एकजुट होना तो दूर, चूं तक करने की भी ताकत खो चुके हिंदू समाज से आखिर सनातन की रक्षा की उम्मीद लगाई जाए तो कैसे? फिर जो लोग हिंदू आस्था के अपमान पर प्रतिक्रिया देने वालों को ही सनातन की सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने लगते हैं, उनसे यह पूछने का वक्त नहीं आ गया कि क्या सनातन कमजोर हुआ या नहीं? क्या उनसे यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि मुलायम रस्सी के बार-बार घर्षण से बेहद कठोर पत्थर भी घिस सकता है तो लगातार हमलों से सनातन कमजोर नहीं होगा, यह ज्ञान उन्हें कहां से मिला क्योंकि इतिहास से लेकर आजतक प्रमाण तो बिल्कुल उलट हैं।सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले जवाब तो दें
सनातन मानने वालों का दायरा इतिहास में क्या था, आज क्या है? फिर 1857 में जिन हिंदुओं ने ताकतवर अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ बगावत कर दी थी, वही आज ठीक उसी विषय पर विरोध का दमदार आवाज क्यों नहीं उठा पा रहा है? क्या प्रमाण नहीं है कि आस्था पर किए जा रहे चोटों ने हिंदुओं और सनातन को कमजोर किया है? गौर कीजिएगा, हिंदुओं के साथ यह सब हो रहा है, लेकिन कभी सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेना तो दूर, यह मानने को भी तैयार है कि ऐसा कुछ हो भी रहा है? याद रखिए, इसी सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा मामले में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं की हत्या और देश-विदेश में मचे बवाल का जिम्मेदार नूपुर को ही ठहराया था। आंतकियों, जिहादियों, अतिक्रमणकारियों के लिए तुरंत चिंतित होना वाले सुप्रीम कोर्ट को हिंदू आस्था पर लगातार हो रहे हमलों की थोड़ी सी भी चिंता है क्या? ये सारे सवाल उनसे नहीं पूछे जाने चाहिए जो हिंदू आस्था पर हमले की प्रतिक्रिया में हमें सनातनी होने का मतलब समझाते रहते हैं। कहीं हिंदुओं की रीढ़हीन बनाने के अभियान में सहिष्णुता का पाठ पढ़ानेवाले तो शामिल नहीं? सवाल इसलिए क्योंकि उन्होंने कभी भी अपने स्तर से सरकार या राजनीतिक दलों को यह समझाने या उन पर दबाव बनाने की कोशिश तो नहीं की कि हिंदुओं के खिलाफ ऐसे अभियान रुकने चाहिए।