अग्नि आलोक
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कहानी : लाखों मे

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     नगमा कुमारी अंसारी 

‘’नैना,  तेरा चुनाव ही ग़लत था. अबकी बार नील को बोल आना कि अब उसकी ज़िंदगी में वापस नहीं आऊंगी…”

“वापस नहीं आऊंगी का क्या मतलब है मम्मी? घर है मेरा, जब मर्ज़ी है आऊंगी-जाऊंगी और आप तो पार्क में ही इंतज़ार करना, घर मत आना.”

“सुन, फोन करूंगी, अपने पास ही रखना.” रागिनी की आवाज़ पर बिना प्रतिक्रिया दिए वह तेज़ी से अपने अपार्टमेंट की ओर बढ़ गई. बैठक का दरवाज़ा अभी भी अधखुला था. जिस तरह से वह छोड़ गई थी, बिल्कुल वैसे यानी कि नील ने सर उठाकर देखने की ज़हमत भी नहीं उठाई कि उसकी बीवी उसे छोड़कर मायके चली गई थी. नील आंखें मूंदे गिटार के तारों को छेड़ रहा था और वह सामने खड़ी उसे घूर रही थी. हैरानी हुई कि कोई इस दर्जे तक असंवेदनशील कैसे हो सकता है. वह दो किलोमीटर दूर स्थित अपने मायके भी हो आई और वह अभी भी उसी मुद्रा में बैठा गिटार के तारों को टुनटुना रहा था. गिटार की धुन में ये भी नहीं जान सका कि वह चार घंटे से घर पर नहीं है. डायनिंग टेबल के पास ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं’ की पर्ची उसे मुंह चिढ़ा रही थी यानी कि इस पर्ची को अभी तक नील ने देखा भी नहीं. नैना ने पर्ची निकालकर उसके टुकड़े कर दिए, फिर ग्लास से पानी भरकर पीया और ग्लास ज़ोर से टेबल पर पटक दिया. आवाज़ सुनकर गिटार पर फिरती उंगलियां रुक गईं. आंखें खोलकर उसने नैना को देखा और बड़े इत्मीनान से बोला, “चाय लाओ, थक गया हूं… बदन अकड़-सा गया है.” उसने अंगड़ाई ली. अपना मोबाइल डायनिंग टेबल पर छोड़कर नैना दनदनाती हुई बेडरूम में चली आई. बाहर से आकर अपना मोबाइल डायनिंग टेबल पर छोड़ना उसकी आदत में शुमार था. नैना ने झटके से अपना वॉर्डरोब खोला. एक सरसरी नज़र डालकर पट बंद करके वहीं बैठ गई. दिल धड़का. वह तो नील को छोड़कर मम्मी के घर जाने के लिए कपड़े लेने आई है. इन सबसे बेख़बर वह गिटार की धुन में खोया हुआ है. सोच के तो आई थी कि अपना सामान पैक करके उसके मुंह पर सीधा बोलूंगी, ‘लो, जा रही हूं मायके, अब तुम गिटार के साथ फुर्सत में दिल बहलाओ,’ पर यहां आकर महसूस हुआ कि परले दर्जे के लापरवाह के ऊपर पूरा घर कैसे छोड़ जाए. वह तो गिटार में डूब जाएगा और चोर घर साफ़ कर जाएंगे. “नैना, मम्मीजी का फोन आ रहा है.” नील की आवाज़ से वह चौंकी, वह उसका मोबाइल लिए खड़ा था.

नैना ने जैसे ही फोन पर ‘हेलो’ कहा,  रागिनी की उत्तेजना भरी आवाज़ आई, “सुन, इस बार उसकी भोली शक्ल पर तरस मत खाना. ग़लती सुधारने का मौक़ा मिला है, तो उसे गंवाना ठीक नहीं.”

“मम्मी, मैं आपको बाद में फोन करती हूं.” अचरज हुआ कि उसकी मम्मी उसका घर तुड़वाने में इतनी हड़बड़ी क्यों कर रही हैं.  और ये ग़लती सुधारने की क्या बात कर रही हैं, कहीं उसकी शादी तुड़वाकर अपनी सहेली के देवर के बेटे से करने की तो नहीं सोच रही हैं? हे ईश्‍वर! उसकी मम्मी नील की फिल्मी खड़ूस सास निकली. उसने अपना सर पकड़ लिया. नील उसे यूं परेशान देखकर उसके क़रीब बैठ गया. फिर उसका हाथ सहलाते हुए कहने लगा, “क्या हुआ, मम्मी का फोन क्यों आया था? वहां सब ठीक तो है न?” “हां, सब ठीक है. तुम जाओ और गिटार बजाओ.” यह सुनकर वह उसके क़रीब बैठ गया और उसके हाथों को सहलाते हुए बोला,  “मैं जानता हूं कि इन दिनों मैं तुम्हें ज़रा भी समय नहीं दे पाया, पर यकीन मानो, इस बार कुछ ऐसा बजाना चाहता हूं, जो लोगों के मन को छू जाए. कल का दिन बहुत ख़ास है. कल मेरे गिटार ने मिस्टर थॉमस को इम्प्रेस कर दिया, तो वो यूरोप जानेवाले वेव्ज़ ग्रुप के लिए मुझे सिलेक्ट कर सकते हैं. यूरोप ट्रिप मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए जन्मदिन का तोहफ़ा होगा.” उसकी बात पर नैना ने कोई प्रतिक्रिया  नहीं दी, तो वह बोला, “तुम बहुत थकी लग रही हो. चाय बनाकर लाता हूं.”

“नहीं, मैं बनाती हूं.” कहते हुए वह उठ गई.  नील की बातों और भावनाओं से वाकिफ़ होकर सहसा उसे ग्लानि हुई. चाय के खदबदाते पानी के साथ एक चलचित्र-सा घूम गया. आज रविवार का दिन- सुबह छह बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक नील  गिटार में खोया रहा. ऊबी हुई-सी पहलू बदलते उसने नील को आवाज़ लगाई, पर नील के कानों तक उसकी आवाज़ मानो पहुंची ही नहीं. पिछले दो हफ़्तों से नील गिटार पर किसी ख़ास धुन को निकालने की कोशिश कर रहा है, पर आज तो हद ही हो गई. नैना की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के पीछे पिछले कई  दिनों से नील का अपने गिटार के प्रति अति समर्पण भाव और उसके प्रति उदासीनता थी. वह चिल्लाई, “नीलाक्ष, सुन भी रहे हो, मैं दीवारों से बात नहीं कर रही हूं.” नैना की तेज़ आवाज़ पर वह निस्पृह भाव से उस पर सरसरी दृष्टि डालकर गिटार के तारों में उलझ गया. चिढ़कर नैना ने उसके हाथों से गिटार लगभग छीना, तो नील बौखलाकर अपने गिटार को उसकी गिरफ़्त से बचाता हुआ झल्लाया, “नैना प्लीज़, बिहेव. ये कोई तरीक़ा है. अभी इसे कुछ हो जाता तो.”   

उसने गिटार को अपने सीने से यूं लगाया मानो उसमें उसकी जान बसती हो. यह देखकर नैना क्रोध से जल उठी. आंखों में आंसू डबडबा आए. नील की जिस कला पर मोहित होकर उसने कई रिश्ते ठुकराकर उसका हाथ थामा था, आज वही कला उन दोनों के बीच दीवार बन गई थी. नैना के आंसुओं को देखने की नील को फुर्सत कहां थी. वह तो अपने गिटार के तारों को छेड़कर देख रहा था कि कहीं वो ढीले तो नहीं हो गए. गिटार के प्रति नैना का शत्रुभाव देखकर वह हैरानी और तनावग्रस्त भाव लिए बैठक में चला आया और कानों में ईयरप्लग लगाकर आंखें मूंदे गिटार की धुन में फिर खो गया. ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं.’ वह अपने कमरे से चिल्लाई पर कोई जवाब नहीं मिला.  नील के लिए उसका होना, न होना एक बराबर था, यह जान उसका सर्वांग जल उठा. एक पर्ची पर ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं’ लिखकर डायनिंग एरिया में छोड़कर वह उसके सामने से घर से निकली. बंद आंखों और कानों में लगे ईयरप्लग के कारण वह जान ही नहीं पाया कि नैना घर से बाहर निकल गई है. मायके में उसके सहसा यूं तनावग्रस्त  दाख़िल होते देखकर हरीश-रागिनी समझ गए कि नील से कोई अनबन हुई है. ऐसा पहली बार नहीं था, पहले भी तीन-चार बार वह रूठकर मायके आ चुकी है. अमूमन  मनमुटाव की वजह गिटार ही होता. ऐसे में  रागिनी-हरीश नैना को समझाते-बुझाते कि नील के गिटार पर फ़िदा होकर उसने शादी का निर्णय लिया. वह एक कलाकार है. ऐसे में उसकी कला और रियाज़ का मान-ध्यान रखना उसका कर्त्तव्य है. नैना का कहना था कि कलाकार के अलावा अब वो उसका पति भी है. उसके गिटार ने सौतन बनकर सारे सुख-चैन हर लिए हैं.

आज नाराज़ नैना से जब हरीश ने पूछा, “तुम घर छोड़कर आई हो, ये बात नील को पता है क्या?” यह सुनकर कंधे उचकाती हुई वह बोली, “क्या जानूं… उस व़क्त तो कान में ईयरप्लग लगाए, आंखें मूंदे पता नहीं कौन-सा सुर साध रहा था.”

“फोन किया उसने…?

“पता नहीं, मैंने स्विच ऑफ कर दिया.” उसके मुंह से यह सुनकर हरीश नाराज़गी भरे स्वर में बोले, “बचपना छोड़ो, सबसे पहले मोबाइल ऑन करो. गिटार उसकी ज़िंदगी है, उसकी रोज़ी-रोटी है. तुम क्या चाहती हो, शादी के बाद वो उसे छोड़ दे.” यह सुनकर नैना चिढ़कर बोली, “पापा, आप समझ नहीं रहे हैं. गिटार के प्रति उसकी दीवानगी इस कदर है कि मैं सामने बैठी हूं, नहीं हूं, उसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है.”

“सही कह रही है नैना, मैंने भी देखा है. वह घंटों बैठा तार टुनटुनाता रहता है.” अचानक रागिनी नैना के पाले में खड़ी हो गई, तो हरीश और नैना दोनों ही चौंके.

“क्या करूं? बोलो तो कुछ दिनों के लिए उसे अकेला छोड़कर अपने कपड़े लेकर यहां आ जाऊं.” नैना के मुंह से निकला, तो रागिनी कठोर वाणी में बोली, “कुछ दिन के लिए क्यों? अब तू यहीं रहेगी. पहले ही कहा था इस नील के चक्कर में मत पड़. अरे! शादी ही करनी थी, तो मेरी सहेली के देवर के बेटे से कर लेती. कम से कम यूरोप तो घुमाता.” अपनी शादी के एक साल बाद आज अचानक सहेली के देवर के बेटे की याद मम्मी को आना विस्मयजनक था यानी आज भी मम्मी को नैना का सहेली के देवर के बेटे से शादी न करने की बात सालती है. इस बात से चिढ़ी नैना बोली, “मम्मी प्लीज़, ओवर रिएक्ट मत करो.”

“अरे! अभी भी ओवर रिएक्ट न करूं? तुम परेशान हो नीलाक्ष से.”

“मम्मी प्लीज़, मैं नीलाक्ष से नहीं, उसके गिटार से परेशान हूं.” “हां-हां, एक ही बात है. मुआ गिटार हो या नीलाक्ष, परेशान तो है न तू.”

“मम्मी, गिटार मुआ नहीं है, वो नीलाक्ष का काम है, उसकी कला है.” भुनभुनाती हुई नैना को हैरानी से देखते हुए रागिनी बोली, “बड़ी अजीब है रे तू, न इस करवट चैन है, न उस करवट. ख़ुद शिकायत करती है और ख़ुद ही तरफ़दारी. हम क्या बेवकूफ़ लगते हैं तुझे. एक डिसीज़न लो. ये क्या कि ज़रा-सी बात हुई और दौड़ी आई मायके.”

“आप इस तरह की फ़ालतू बात करोगी, तो मैं यहां नहीं आऊंगी. मायका है, अपना हक़ समझती हूं, इसलिए चली आती हूं. मुझे लगता था आप लोग मुझे समझोगे.”

“अरे! तो समझ ही रही हूं, तभी तो उस कमबख़्त को गालियां दे रही हूं.”

“थोड़ा तो लिहाज़ करो, दामाद हैं नीलाक्ष तुम्हारे. मैं घर जाकर अपने कपड़े ले तो आऊं, पर उससे पहले घर का कुछ इंतज़ाम भी करना होगा. वो तो इतना लापरवाह है कि उसे ख़ुद का होश नहीं रहता, घर क्या खाक संभालेगा.”

“सब संभालेगा, क्यों नहीं संभालेगा? अब उसकी चिंता छोड़कर आगे की सोच. हम  भी चलते हैं साथ.” रागिनी के कहने पर नैना एकदम बिदककर बोली, “नहीं, आप बिल्कुल नहीं चलेंगी और नील से तो कुछ भी नहीं कहेंगी.”

“ठीक है, नहीं कहूंगी, पर साथ चलूंगी. मैं नीचे पार्क में इंतज़ार करूंगी. तुम अपने कपड़े ले आना.” रागिनी की ज़िदभरी योजना और व्यवहार से हरीश नाख़ुश थे. बेटी को समझा-बुझाकर घर भेजने की जगह आग में घी डालने की चेष्टा उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई. लेकिन रागिनी पर तो आज जैसे कोई भूत सवार था. नील से उसे अलग करने का भूत..

मोबाइल की घंटी से फिर विचार बाधित हुए, रागिनी का नंबर देखकर उसने संभलते हुए कहा, “हेलो मम्मी, मैं घर से बाहर थी, यह बात नील को पता ही नहीं चली. वो बेचारा सुबह से रियाज़ कर रहा है. कल एक कॉन्सर्ट है, इसलिए आज मैं उसे कोई झटका नहीं देना चाहती हूं, उसकी परफॉर्मेंस बिगड़ जाएगी.” इस पर रागिनी तेज़ स्वर में बोली, “बिगड़ती है तो बिगड़ने दे और हां, उसका दिमाग़ कहां रहता है. बीवी तीन घंटे से घर में नहीं थी और उसे पता नहीं चला, किस दुनिया में रहता है नील?”

“ओफ़्फ़ो मम्मी! आप क्या जानो आर्टिस्ट क्या होता है? सुर साधना किसे कहते हैं? पिछले एक हफ़्ते से उसने ढंग से कुछ खाया-पीया भी नहीं है. सब मेरी ग़लती है. मुझे ही घर छोड़ने की जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए.” उसने भुनभुनाते हुए फोन काट दिया. रागिनी को अकेले ही घर आया देख हरीश अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पाए, “अरे! नैना नहीं आई, वहां सब ठीक तो है न?” यह सुनकर रागिनी शांत भाव से बोली, “उम्मीद तो है सब ठीक हो जाएगा और तुम्हारी अधैर्य बेटी को कुछ सद्बुद्धि आएगी. वैसे भी उसे कब यहां आना था. वो तो बस ये चाहती है कि वो नील को बुरा-भला कहे और हम नील को भला कहकर उसके चुनाव पर सही की मोहर लगाकर उसे आत्मतुष्टि पहुंचाएं.” हरीश रागिनी के खुलासे पर हैरान थे, “जानते हो हरीश, नैना के जाने के बाद नील ने उसकी लिखी पर्ची पढ़ ली थी. नैना का  फोन स्विच ऑफ आने पर उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई. वह बेचारा सॉरी बोलते हुए उसे मनाने आ रहा था, पर मैंने ही मना कर दिया. अभी जब नैना घर गई, तो मैंने नील को कॉल करके सतर्क कर दिया. हमारी योजना के आधार पर ही उसने ऐसे दर्शाया कि नैना के जाने का उसे पता ही नहीं चला. हर बार वह तिल का ताड़ बनाती है, मैंने सोचा इस बार मैं ही तिल का ताड़ बना दूं.”

“अब समझा, तुम यहां पर ओवर रिएक्ट करके नैना के मन में नील की उपस्थिति को टटोल रही थी.”

“क्या करती, समझाकर तो देख लिया. नैना हमेशा से ही ऐसी रही है कन्फ्यूज़-सी. याद करो, बचपन में जब वह अपनी पसंद का कोई खिलौना लेकर घर आती थी, तब उसमें बुराई निकालती थी. हम उसका  आत्मविश्‍वास बढ़ाने के लिए उसके चुने खिलौने की जितनी ख़ूबियां गिनाते थे, वो उतनी बुराई खोजती थी. उसकी इस आदत से परेशान होकर जब मैं भी उसकी हां में हां मिलाकर खिलौने की बुराई करती, तब वह अपने खिलौने में ख़ूबियां ढूंढ़कर उसकी प्रशंसा करती. उसकी यह आदत अभी भी नहीं बदली. मानती हूं कि नील मुझे शुरू में नहीं पसंद था, पर उसका सादापन, उसकी कला और नैना के प्रति उसके समर्पण को मैंने भांपकर ही हामी भरी. ऐसे में नैना जब-तब उसकी आलोचना करती, तो मुझे उसके व्यवहार में उसका वही बचपना दिखता.” हरीश ने पत्नी के इस पक्ष को समझकर प्रशंसाभरी नज़रों से देखा, तो वह भावुक होकर बोली, “हर मां चाहती है कि उसकी बेटी मायके हंसी-ख़ुशी आए… नील सीधा-सादा लड़का है. उसे गिटार का पैशन है, यह कितनी अच्छी बात है…  वरना तो लोगों को लड़कियां, शराब और न जाने कैसे-कैसे व्यसन होते हैं. अपना नील तो गिटार में व्यस्त रहता है. कलाकार है,  उसमें भी इस बेवकूफ़ लड़की को आपत्ति है.” बातों-बातों में हरीश-रागिनी घर आए.

दो दिन तक न उन्होंने नैना को फोन किया और न ही नैना ने उन्हें. तीन दिन बाद नैना का रागिनी के मोबाइल पर फोन आया. “मम्मी आज का अख़बार देखा आपने? आप जिसे कोस रही थीं, वो यूरोप जा रहा है. उसकी परफॉर्मेंस को देखते हुए उसे ‘वेव्स ग्रुप’ में गिटार बजाने का मौक़ा मिला है. इस दिन का नील को कब से इंतज़ार था, और हां… नील कह रहे थे यूरोप ट्रिप उनकी तरफ़ से मेरे जन्मदिन का उपहार है. सोचो, मैं अपना जन्मदिन यूरोप में सेलिब्रेट करूंगी. क्या हुआ, अब आप चुप क्यों हैं? आपकी सहेली के देवर का बेटा ही अपनी बीवी को यूरोप नहीं घुमा सकता, नील जैसा एक आम इंसान भी अपनी बीवी को यूरोप घुमाने के लिए दिन-रात एक कर सकता है.” नील ‘आम’ कहां है, वो तो कलाकार है. रागिनी कहना चाहती थी, पर चुप रही फिर ठंडी सांस लेकर बोली, “मेरी सहेली के देवर के बेचारे बेटे की शादी तो खटाई में पड़ गई है, उसके शराब पीने की लत को देखकर एक लड़की ने उसे रिजेक्ट कर दिया.”

“हे भगवान! और आप उससे मेरी शादी करवा रही थीं. थैंक गॉड कि नील को गिटार का नशा है. कम से कम उसका नशा हमें प्राउड मोमेंट तो देगा. कम से कम अब तो मान लो कि नील से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता.”

“हां भई, मान लिया तेरा नील हज़ारों में एक है.” कहे बिना रागिनी रह नहीं पाई, तो नैना बोली, “देखा, इसमें भी कंजूसी, ‘लाखों में एक’ नहीं कह सकती थीं.” रागिनी फोन रखकर एक बार फिर अपने प्यारे दामाद का मैसेज़ पढ़कर मुस्कुराने लगी, जिसमें उसने अपने दांपत्य के ‘तारनहार’ अर्थात् मां समान सास के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कोटिश: धन्यवाद लिखा था.

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