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पृथ्वी शेष के फन पे, उनके हिलने से भूकंप : जाने कथन की वैज्ञानिकता 

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     नीलम ज्योति 

   अधॊ महीं गच्छ भुजंगमॊत्तम; सवयं तवैषा विवरं परदास्यति।

इमां धरां धारयता तवया हि मे; महत परियं शेषकृतं भविष्यति।।

  ~महाभारत आदिपर्व, आस्तिक उपपर्व, अध्याय 36

    इसमे लिखा है कि शेषनाग को हमारी पृथ्वी को धरती के “भीतर से” धारण करना है, न कि, खुद को बाहर वायुमंडल में स्थित करके पृथ्वी को अपने ऊपर धारण करना है.

*शेषनाग की परिभाषा :*

विराम प्रत्ययाभ्यास पूर्वः संस्कार शेषोअन्यः 

   अर्थात रुक-रुक कर. विशेष अभ्यास. पूर्व के संस्कार/चरित्र. शेष माइक्रो/सूक्ष्म लहर.

    परिभाषा के अनुसार कुल नाग (दीर्घ तरंग) और सर्प (सूक्ष्म तरंग) की संख्या 1000 हैं. इसमें से शेषनाग {सूक्ष्म /दीर्घ तरंग} या शेषनाग की कुण्डलिनी उर्जा की संख्या 976 हैं तथा, 24 अन्य नाग या तरंग हैं.

आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार :

    यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी को स्थलमण्डल, एस्थेनोस्फीयर , मध्यवर्ती मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बांटा गया है.

      एवं, रासायनिक संरचना के आधार पर भूपर्पटी , ऊपरी मैंटल , निचला मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बाँटा जाता है.

*समझने वाली बात :*

    पृथ्वी के ऊपर का भाग भूपर्पटी प्लेटों से बना है और, इसके नीचे मैन्टल होता है. इसमें मैंटल के इस निचली सीमा पर दाब ~140 GPa पाया जाता है.

   मैंटल में संवहनीय धाराएँ चलती हैं जिनके कारण स्थलमण्डल की प्लेटों में गति होती है. इन गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता है, जिसे, भूचुम्बकत्व कहते है.

      इसी भूचुम्बकत्व की वजह से टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है, स्थिर रहती है. उसमें कहीं भी कोई गति नही होती.

हमारे शास्त्रों के अनुसार शेषनाग के हजारो फन हैं. अर्थात, भूचुम्बकत्व में हजारों मैग्नेटिक वेब्स है.

 शेषनाग के शरीर अंत में एक हो जाते हैं. मतलब एक पूंछ है. यानी भूचुम्बकत्व की उत्पत्ति का केंद्र एक ही है.

     शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पे टिका रखा है : इसका मतलब हुआ कि भूचुम्बकत्व की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है.

शेषनाग के हिलने से भूकंप आता है. इसका तात्पर्य है कि भूचुम्बकत्व के बिगड़ने (हिलने) से भूकंप आता है।

   हमारे वैदिक ग्रंथो में इसी भूचुम्बकत्व को शेषनाग कहा गया है.

क्रोड का विस्तार मैंटल के नीचे है अर्थात 2890 किमी से लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक. किन्तु यह भी दो परतों में विभक्त है – बाह्य कोर और आतंरिक कोर.  बाह्य कोर तरल अवस्था में पाया जाता है, क्योंकि यह द्वितीयक भूकंपीय तरंगों (एस-तरंगों) को सोख लेता है.

     इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों का यह कहना कि पृथ्वी शेषनाग के फन पे स्थित है : मात्र कल्पना नहीं बल्कि एक तथ्य है. पृथ्वी शेषनाग (भू-चुम्बकत्व) की वजह से ही टिकी हुई है या शेषनाग के फन पे स्थित है और उनके हिलने से ही भूकंप आते हैं.

   संसाधनों के आभाव मे इतने गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्य सबको एक-एक करके समझाना बेहद दुष्कर कार्य था. इसीलिए, हमारे पूर्वजों ने इसे प्रतीकात्मक कहानी के रूप में पिरोकर धर्मग्रंथों में संरक्षित किया. (चेतना विकास मिशन).

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