सनत जैन
चीन और भारत में पूंजीपतियों को लेकर एक जैसे हालात चीन और भारत में देखने को मिलने लगे हैं। इस कारण भारत के उद्योगपति भी इन दिनों भयभीत हैं। भारतीय उद्योगपतियों में सरकार का डर भय बना हुआ है। ईडी, सीबीआई और आयकर जैसी संस्थाएं तथा सरकार द्वारा बार-बार कानून में बदलाव किए जाने से उद्योगपति भयभीत हैं। उद्योगपतियों को सुनयोजित रूप से सरकार द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। जनता के बीच में भी उद्योगपतियों की छवि खराब बनाई जा रही है।
इस स्थिति को देखते हुए चीन और भारत से हजारों रिच मैन हर साल बड़ी संख्या में चीन और भारत छोड़कर विदेश की नागरिकता लेकर अपने देश से पलायन कर रहे हैं। हाल ही में चीन में एक बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। जैसे ही कोई सबसे बड़ा सुपर रिच मैन बनता है। उसके बाद वह अपनी कंपनी के शेयरों के दाम गिराकर सुपर रिच मैन की सूची से तुरंत नीचे आने का प्रयास करने लगता है। पिछले दिनों चीन की ई-कॉमर्स कंपनी के दिग्गज डीडीडी के संस्थापक कोलिन हुआंग जो चीन में हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। हाल ही में चीन के सबसे बड़े अमीर व्यक्ति बनने के बाद, उन्होंने खुद ही अपनी कंपनी के बारे में निवेशकों से कहा, भविष्य में उनकी कंपनी के लाभ में कमी होगी। जिसके बाद उनके शेयरों की बिकवाली शुरू हो गई।
एक झटके में उनकी कंपनी के शेयर के दाम गिरे। वह सबसे बड़े कारोबारी की सूची में नीचे आ गए। इसको सारी दुनिया में आश्चर्य के रूप में देखा जा रहा है। हुआंग ने अपने ही एक बयान से अपनी कंपनी का 14 अरब डॉलर का नुकसान किया। सरकार और जनता की निगाह में आने से बचने के लिए उन्होंने यह काम जानबूझकर किया। ऐसा चीन में कहा जा रहा है। उनके इस कृत्य ने दुनिया के सभी सुपर रिचमैनो को आश्चर्यचकित कर दिया है। 1970 के दशक तक चीन में कम्युनिस्ट राज था। 1970 में चीन के नए राष्ट्रपति जियाओपिंग सर्वोच्च नेता बने। उन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था को भी स्वीकार किया। जिसके कारण चीन में पूंजीवादी व्यवस्था भी बनना शुरू हुई। आज चीन सबसे बड़ा पूंजीवादी देश के रूप में विकसित हुआ है। कई विकासशील देशों की तुलना में चीन ने सबसे ज्यादा पूंजी का निर्माण किया है।
चीन के उद्योगपति सारी दुनिया के देशों में पिछले तीन दशकों में बड़ी तेजी के साथ पहुंचे। 2000 आते-आते तक चीन ने अपनी धाक पूरी दुनिया के देशों में बना ली। चीन के दो बड़े उद्योगपतियों की कुल संपत्ति 2010 तक 10 अरब डॉलर के ऊपर पहुंच गई थी। चीन की शासन व्यवस्था में बदलाव आया। बड़े उद्योगपतियों के ऊपर चीन की सरकार की निगाहें खराब हुई। भ्रष्टाचार के आरोप में चीन के कई उद्योगपतियों को जेल भेजा गया। सत्ता में बैठे हुए चीनी नेताओं ने पूंजी पतियों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। उसके बाद बड़े-बड़े पूंजीपति चीन छोड़कर दूसरे देशों में जाकर शरण लेने लगे। वर्तमान में चीन के जो उद्योगपति हैं। वह सरकार और जनता की निगाह में सबसे बड़े सुपर रिच मैन की भूमिका में नहीं आना चाहते हैं।
जिसके कारण वहां अब कोई रिच मैन बनने के लिए तैयार नहीं होता है। जिसका असर अब चीन में देखने को मिल रहा है। पिछले 10 वर्षों में यही स्थिति भारत में देखने को मिल रही है। भारत से पिछले 10 सालों से हर साल हजारों पूंजीपति देश छोड़कर विदेशों में शरण ले रहे हैं। वहां की नागरिकता ले रहे हैं। वहां पर भारी निवेश कर रहे हैं। भारत सरकार की निगाहें दो बड़े पूंजीपतियों को छोड़कर, अन्य पूंजीपतियों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने वाली नहीं हैं। जिसके कारण भारत छोड़कर जाने वाली पूंजीपतियों की संख्या हर साल हजारों में हो गई है। लाखों पूंजीपति उद्योगपति भारत छोड़कर विदेश की नागरिकता ले चुके हैं। जिस तरह से क्रोनि पूंजीबाद का असर भारत में देखने को मिल रहा है। महंगाई बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था को लेकर जो असंतुलन बना है, उसके बाद भारत से पूंजीपतियों का पलायन बड़ी तेजी के साथ होने लगा है।
इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। शारजाह के प्रॉपर्टी मार्केट में भारतीयों की हिस्सेदारी 29 फ़ीसदी पर पहुंच गई है। भारत के बड़े-बड़े पूंजीपति यूएई, शारजाह, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी में भारी निवेश कर रहे हैं। भारत में भारतीय पूंजीपति निवेश नहीं कर रहे हैं। दुनिया भर के देशों में आर्थिक मंदी की जो लहर देखने को मिल रही है। महंगाई बेरोजगारी और कर्ज की समस्या चीन और भारत जैसे देशों की सबसे बड़ी समस्या है। जनता और सरकार दोनों ही पूंजीपतियों को निशाना बना रही हैं। जिसके कारण अब कोई सुपर रिचमैन बनकर निगाहों में नहीं आना चाहता है।
यह स्थिति पहली बार चीन में देखने को मिल रही है। भारत में जिस तरह से आम जनता के बीच में अडानी और अंबानी को लेकर माहौल बन रहा है। चीन जैसी स्थिति यदि भारत में भी भविष्य में देखने को मिलती है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। महंगाई, बेरोजगारी और कर्ज की समस्या से पूंजीबाद के खिलाफ एक बार फिर जनता का आक्रोश खुलकर सामने आने लगा है। विश्व के कई देशों में इसका असर भी खुलकर देखने को मिला है। जिसके कारण दुनिया भर के बड़े-बड़े लोगों में अब सुपर रिचमैन बनने की प्रतिस्पर्धा में कमी देखने को मिलने लगी है।