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इंदौर जो कभी मुखर था आज वो लाशों के समान गूंगा हो गया

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बाकलम – नितेश पाल

20 साल पहले तक यूरोप महाद्वीप में आने वाले अधिकांश देश समृद्ध होने के साथ ही लगातार प्रगति कर रहे थे। लेकिन बीते सालों में कई देशों में गृहयुद्ध की स्थिति बन गई। यूरोपीय देशों ने इन देशों के प्रभावितों को शरणार्थियों के तौर पर अपने यहां जगह दी। इन शरणार्थियों के आने के बाद से यूरोप में काफी बदलाव हुआ। अमूमन शांत रहने वाले यूरोपीय देशों में कई नए बवाल शुरू हो गए। शरणार्थियों ने इन देशों की संस्कृति का सम्मान कर उसे अपनाने की जगह उसमें ही बदलाव करने की कोशिश की। इसके नतीजे में वहां बलात्कार, क्राइम रेट बढऩे से विवाद, मर्डर जैसी घटनाएं बढऩे लगी।

यूरोप की जमीनों उसके रिसोर्स का इन शरणार्थियों ने इस्तेमाल किया, लेकिन उनकी संस्कृति उनके तौर-तरीकों को गलत बताते रहे। इसने यूरोप की शांति भंग कर दी और आज यूरोप इन्हीं शरणार्थियों को बाहर निकालने पर कई यूरोपीय देश जिनमें फ्रांस, इटली, ब्रिटेन जैसे आर्थिक तौर पर संपन्न देश विचार कर रहे हैं। वहां के चुनावों में ये मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है। कुछ ऐसी ही हालत इंदौर की भी है। इंदौर में भी बीते कुछ सालों रोजगार, काम-धंधे के चक्कर में देश ही नई विदेशों से भी कई लोग आकर बसें हैं। लेकिन इन लोगों में इंदौर जिसकी अपनी तासीर है, अपना कल्चर है, अपनी खुद का नजरिया है उसके प्रति कोई सम्मान नहीं है। इंदौर जो खुशमिजाज शहर था, इंदौर क्रिकेट की जीत, अनंत चर्तुदशी का जुलूस, डोल ग्यारस, भुजरिया का त्यौहार, रंगपंचमी की गेर हो या देश या प्रदेश का मान बढ़ाने वाली कोई भी घटना इंदौर घर से निकलकर सडक़ों पर उसे अपने ही अंदाज में सेलिब्रेट करता रहा है। लेकिन इस सेलिब्रेशन में कभी फूहड़ता या अश्लीलता की जगह नहीं रही है। हालांकि इसमें इंदौरीपन जरूर रहा।

बड़ों के प्रति आदर की भावना, धार्मिक रीति-रिवाजों को मानते हुए अपनेपन को लेकर इंदौर अपनी गति से चलता था। यही नहीं ऐसी कोई भी घटना जो अप्रिय हो उस पर पूरा शहर एक साथ हुंकार के साथ उठ खड़ा होता था। लेकिन बीते कुछ सालों में इंदौर में आकर रहने वालों की नजर में इन सबकी कोई वेल्यू नहीं रही। इंदौर की जमीन, पानी सहित सभी तत्वों का तो ये इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इंदौरीपन से इन लोगों का कोई लगाव नहीं है। इनमें से कई को तो इंदौर को नई पहचान देने वाली देवी अहिल्याबाई होलकर और होलकर राजाओं के बारे में की भी जानकारी नहीं है। इंदौर में अवैध बसाहट, जल्दी पैसा कमाने की होड़ में इन बाहर से आने वालों की बड़ी भागीदारी रही है। जिसने इंदौर में क्राइम को बढ़ावा दिया है। इंदौर में अवैध कॉलोनी की बसाहट हो या फिर सडक़ों पर कब्जे कर दुकानें लगाने का काम इसमें सबसे ज्यादा बाहरी ही मिलते हैं।

इंदौर में बाहरी आते हैं कहीं भी कुछ भी करते हैं, बदनामी का कलंक इंदौर पर लगाकर मजे लेते हैं। इंदौरियों के गलत को गलत बोलने की ताकत इनमें नहीं दिखती, क्योंकि पहले इंदौर में कोई घटना या मांग होती तो पूरा शहर आवाज बनकर खड़ा हो जाता, जिसके कारण नेताओं को भी दबाव में आना पड़ता और शहर की मांग मानना पड़ती। इसीका नतीजा इंदौर में नर्मदा लाइन भी है। लेकिन इंदौर में शरणार्थी बने इन लोगों को इंदौर की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है, इन्हें तो केवल वो लोग पसंद हैं जो इनको फायदा देने की बात करें। इसके चलते नेता इन्हें क्षणिक फायदा जिसमें भोजन-भण्डारे, साड़ी, गगरे, शराब देकर अपना मतलब जिसमे उनकी ताकत और वोट की राजनीति को साध लेते हैं और अपनी कुर्सी पर जमे रहते हैं।

वहीं अफसर इन पर रौब जमाकर जमकर जेब गरम करते हैं। उनके अवैध मकान, दुकान, काम-धंधों पर पैसों की पट्टी बांधकर अफसर चुप बैठ जाते हैं। इस फितरत का नतीजा ये हो रहा है कि इंदौर में इंदौरी की बात सुनने को नेता तवज्जो ही नहीं देते और इंदौर जो कभी मुखर था आज वो लाशों के समान गूंगा हो गया है। यहां छोटी मासूम से बलात्कार होने पर किसी का खून नहीं ख़ौलता, हर पांचवे दिन मर्डर होने को सामान्य मान लिया गया है, लगभग रोजाना दस से ज्यादा जगह चोरी हो रही है। इंदौर में कभी ड्रेनेज तो कभी पानी के नाम पर इंदौर खुदा पड़ा रहता है। शहरवासियों को साफ पानी तक नहीं मिल पाता है।

आम इंदौरी की जिंदगी मुहाल हो चुकी है, लेकिन उसके बावजूद उसकी सुनवाई नहीं होती..। मुंबई भी 1950 और 60 के दशक में इस दौर से गुजरा था, लेकिन मुंबईकर ने अपनी संस्कृति, अपने सम्मान की लड़ाई लड़ी, जिसके कारण वहां आज भी पूरे देश से लोग पहुंचते हैं, लेकिन शहर की संस्कृति का सम्मान करते हुए वहां रहते हैं। मेरा मानना है कि इंदौर में आकर जब इन शरणार्थियों को मान-सम्मान, पैसा, जीवन की नई शैली मिल रही है तो ये इंदौर की शैली को अपनाएं, पहले इंदौर को समझें, इंदौरी होने को समझें। यदि ये इंदौर की आत्मा को समझ गए तो इंदौर अपनी संस्कृति के साथ और तेजी से बढ़ पाएगा।

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