{रुसी साहित्यकार सर्गेई टेरेंटयेविच सेमियोनोव की कृति का भाषिक रूपांतर}
~ रिया यादव
जेराशिम ऐसे समय मास्को शहर में लौटकर आया जब कोई नौकरी मिलना बहुत कठिन था। क्रिसमस-त्योहार का केवल एक महीना रह गया था इस समय कुछ इनाम पाने की उम्मीद से सब अपनी-अपनी नौकरी पर लगे रहते हैं, चाहे वह नौकरी कितनी ही ख़राब हो। इसीलिए यह किसान का लड़का जेराशिम तीन सप्ताह तक मारा-मारा फिरा, मगर कहीं काम न मिला।
वह अपने गाँव के आदमियों और मित्रों के पास ठहरा था। यद्यपि अभी तक उसे पैसे की बहुत तंगी नहीं सहनी पड़ी थी, फिर भी एक हट्टा-कट्टा जवान आदमी होकर, बिना काम धन्धे के बैठे रहने से वह सारे दिन बहुत उदास रहता था।
जेराशिम लड़कपन से मास्को शहर में रहा था। जब वह बहुत छोटा था, उस समय शराब की भट्ठी पर बोतलें धोने का काम करता था, और बाद में एक मकान में चौका बर्तन का काम करता। इन पिछले दो सालों से वह एक सौदागर के पास था, और अगर सरकार ने उसे फ़ौजी कर्तव्य करने के लिए गाँव में न बुला लिया होता, तो वह अभी तक उसी काम में लगा रहता। खैर, फ़ौज में उसका नाम नहीं लिखा गया और गाँव में उसका मन नहीं लगा; क्योंकि ग्रामीण जीवन का वह आदी नहीं था, इसलिए उसने निश्चय किया कि भले ही उसे मास्को में दुख उठाना पड़े, वह गाँव में नहीं रहेगा।
बेकारी की हालत में गली-गली भटकना उसे बहुत ही बुरा लगता था। किसी तरह का भी काम पाने के लिए उसने जी-जान से कोशिश की। अपने सब जाने-पहचाने लोगों के पास जा जाकर तलाश की। सड़क चलते लोगों को रोक कर पूछा कि वे किसी जगह के खाली होने के बारे में जानते हैं या नहीं, मगर सब व्यर्थ!
अन्त में अपने लोगों पर एक बोझ होकर रहना जेराशिम को बुरा लगा। उसके आने पर कुछ लोग खीज प्रकट करने लगे थे; कुछ को मालिकों से डाँट-फटकार सुननी पड़ी थी। पर वह सोच नहीं पाता था कि उसे क्या करना चाहिए। कभी-कभी वह दिन भर बिना खाए-पीए रह जाता था।
2.
एक दिन जेराशिम अपने गाँव के एक मित्र के पास गया, जो शहर के बिलकुल बाहर रहता था। वह शरोव नामक एक सौदागर के यहाँ बहुत दिनों से कोचवानी कर रहा था। उस पर मालिक बहुत खुश रहते थे, उसका विश्वास करते थे और उस पर उनकी कृपा भी थी। खासकर अपनी मीठी बोली के कारण यह आदमी मालिक का कृपा-पात्र था। वह नौकरों से ठीक-ठीक काम भी करवा लेता था, इसलिए शरोव महाशय उसकी बहुत क़दर करते थे।
जेराशिम ने पास पहुँच कर उसे नमस्ते की। कोचवान ने अतिथि का स्वागत किया, उसे कुछ खाने को दिया और चाय पिलाई। फिर उससे पूछा कि उसके दिन कैसे कट रहे हैं।
जेराशिम ने कहा, “बहुत ही बुरी तरह दिन कट रहे हैं, एगर! गाँव से आने के बाद बेकार ही बैठा हूँ।”
“तुम अपने पुराने मालिक के पास क्यों नहीं गए?”
“ गया तो था।”
“क्या वे तुम्हें फिर नहीं रखना चाहते?”
“मेरी जगह पर एक और आदमी काम कर रहा है।”
“अच्छा, ऐसी बात है! तुम छोकरों के काम करने का ढंग ही ऐसा है तुम लोग अपनी मालिक की सेवा इस ढंग से करते हो कि एक बार काम छोड़कर लौट आने पर वे काम नहीं देते। मालिक की खिदमत इस तरह से करनी चाहिए, जिससे वे तुम पर खुश रहें, और जब तुम लौट कर आओ तब फिर रखने से इनकार न करें, बल्कि तुम्हारी जगह पर जो काम कर रहा हो, उसे छुड़ा कर तुम्हें रखें!”
“कौन ऐसा करता है? आजकल के मालिक इस तरह के नहीं हैं।”
“बहस करने से फ़ायदा क्या? मैं अपने बारे में कह रहा हूँ। सुनो, अगर किसी वजह से मुझे गाँव जाना पड़े और बहुत दिनों के बाद भी लौट कर आऊँ, तो मिस्टर शरोव बहुत खुशी के साथ मुझे रख लेंगे।”
आँखें नीची करके जेराशिम बैठा रहा। उसने देखा, उसका मित्र अपनी बड़ाई कर रहा है। उसे वह खुश करना चाहा। इसलिए उसने कहा, “मैं यह जानता हूँ। मगर तुम्हारी तरह आदमी मिलना मुश्किल है। एगर, अगर तुम लायक न होते, आलसी होते, तो तुम्हारे मालिक तुम्हें बारह साल तक कभी नहीं रखते।”
एगर मुस्कराया। अपनी तारीफ़ सुनकर उसे खुशी हुई। उसने कहा, “हाँ, अगर तुम लोग मेरी तरह जी-जान लगा कर ख़िदमत करो, तो तुम्हें महीने भर बेकार न रहना पड़े।”
जेराशिम ने कोई जवाब नहीं दिया।
इसी समय मालिक ने एगर को बुला भेजा। उसने जेराशिम से कहा, “जरा ठहरो, मैं अभी आ रहा हूँ।”
3.
एगर ने लौटकर बताया कि आधे घंटे के भीतर घोड़े पर साज़ कस कर गाड़ी जोत कर तैयार रखनी होगी। मालिक शहर को जाएँगे। फिर उसने एक चिलम सुलगा कर तम्बाकू पीते-पीते जेराशिम से कहा, “तुम कहो तो मालिक से कहकर यहाँ तुम्हारी नौकरी लगवा दूँ ।”
“क्या उन्हें नौकर की जरूरत है?”
“जरूरत तो नहीं है, मगर जो एक आदमी रहता है, वह ठीक ढंग से काम नहीं कर सकता। वह बूढ़ा हो चला है; उससे काम होना मुश्किल है। इस मुहल्ले में बहुत कम लोग रहते हैं और पुलिस भी तंग करने नहीं आती, वरना वह टिक नहीं सकता था जगह जैसी साफ़ रखनी चाहिए वह नहीं रख पाता।”
“तब मालिक से कहकर मुझे रखवा दो, एगर मैं जिन्दगी भर के लिए अहसानमन्द रहूँगा। बिना काम के अब एक दिन भी गुजर करना मेरे लिए मुश्किल है!”
“अच्छी बात है। मैं उनसे कहूँगा। कल फिर आ जाना और लो, यह दुअन्नी लेते जाओ। इससे अभी काम चलाना।”
“शुक्रिया, एगर ! तब तुम मेरे लिए कोशिश करोगे? मुझ पर यह मेहरबानी करना न भूलना !”
“हाँ, हाँ, मैं कोशिश करूँगा।”
जेराशिम चला गया, और एगर घोड़े पर साज कसने लगा। फिर वह अपनी कोचवान की वर्दी पहन कर गाड़ी जोत कर उसे दरवाज़े के सामने ले गया। मिस्टर शरोब मकान के अन्दर से निकलकर गाड़ी पर बैठ गए और वह गाड़ी हाँकने लगा। वे शहर में अपना काम करके घर लौट आए। एगर ने देखा, उसके मालिक इस वक्त खुश हैं, तो उसने कहा- “मालिक! आपसे मेरी एक विनती है।”
“क्या ?”
“मेरे गाँव से एक नौजवान आया है, वह अच्छा लड़का है। वह बेकार बैठा है।”
“अच्छा!”
“आप उसे रखिएगा?”
“किस काम के लिए रखूँ?”
“बाहर के काम, चौकीदारी, झाडू-बाड़ देने के लिए आप उसे रख सकते हैं।”
“मगर उसके लिए तो पोलिकारपिच है?”
“अब वह किस काम का रहा? अब उस बूढ़े को निकाल देने का वक्त आ गया है।”
“यह ठीक नहीं होगा। बहुत दिनों से वह मेरे यहाँ काम कर रहा है। अकारण मैं कैसे उसे छुड़ा सकता हूँ?”
“हाँ, यह बात तो सही है कि वह आपके पास बहुत दिनों से काम कर रहा है; मगर उसने मुफ्त तो काम नहीं किया। इसके लिए उसे तनख्वाह मिली है। अपने बुढ़ापे के लिए ज़रूर ही उसने सौ-पचास रुपए बचा लिए होंगे।”
“बचा लिए होंगे! कैसे, कहाँ से? वह अकेला तो नहीं है; उसे अपनी औरत को पालना पड़ा है। कैसे बचा सका होगा?”
“उसकी औरत भी तो कमाती है।”
“अरे, वह क्या कमाती होगी, ताड़ी पीने का खर्च चल जाता होगा।”
“आप पोलिकारपिच और उसकी औरत के लिए इतना क्यों सोच रहे हैं? सच बात तो यह है कि वह अब काम नहीं कर सकता। उसे रखने से आपका कोई फ़ायदा नहीं, फ़िज़ूल रुपया बर्बाद होता है। वह वक्त पर बर्फ़ बटोरकर नहीं फेंकता, अहाता भी गन्दा रखता है। कभी ठीक ढंग से काम नहीं करता। और जब उसकी चौकीदारी की बारी होती है, कम-से-कम रात भर में दस बार अपनी कोठरी में जाकर बैठा रहता है। उससे ठंड बर्दाश्त नहीं होती। आप देख लीजिएगा, उसके लिए किसी दिन आपकी फटकार सुननी पड़ेगी। कुछ दिनों में तिमाही जाँच के लिए दारोगा आनेवाला है।”
“फिर भी उसे छुड़ा देना क्या ठीक होगा? पन्द्रह साल से मेरे पास वह नौकरी कर रहा है। उसके साथ बुढ़ापे में अगर ऐसा व्यवहार किया, तो यह एक पाप होगा।”
“पाप ! क्यों? आप उसका क्या नुकसान कीजिएगा? वह भूखा नहीं मरेगा। वह मुहताज खाने में जाएगा। बुढ़ापे में वहाँ पर वह शान्ति से, आराम से रहेगा।”
शरोव ने सोचकर कहा, “अच्छी बात है। तुम अपने दोस्त को मेरे पास लाना ।” “मालिक ! आप उसे रख लीजिए। उसके लिए मुझे बहुत फ़िक्र है। वह बहुत नेक लड़का है और बहुत ‘दिनों से बेकार बैठा है। मुझे अच्छी तरह से मालूम है, वह खरा आदमी है और आपकी खिदमत जी-जान से करेगा। अगर सरकार उसे फ़ौज में भरती करने के लिए गाँव में नहीं बुलाती, तो उसकी नौकरी नहीं छूटती। वह अगर नहीं जाता, तो उसके मालिक उसे नहीं छोड़ते।”
4.
दूसरे दिन शाम को जेराशिम फिर आया और पूछा, “क्या मेरे लिए तुम कुछ कर सके ?”
“हाँ, कुछ किया है। पहले चाय तो पी लो फिर हम लोग मालिक से मिलेंगे।”
जेराशिम को चाय पीने की बिलकुल इच्छा नहीं थी। उसे मालिक का फ़ैसला सुनने की बहुत उत्सुकता थी; मगर कोचवान की खातिर के दबाव से वह दो गिलास चाय पी गया। फिर वे मालिक से मिलने के लिए चले।
शरोव ने जेराशिम से पूछताछ की कि पहले वह कहाँ काम करता था और क्या-क्या कर सकेगा। फिर उसे इस शर्त पर रख लिया कि जब जो काम आ पड़ेगा, उसे करना होगा ।
और जेराशिम को हुक्म मिला, “सुबह से काम पर हाजिर हो जाओ।”
अपने सौभाग्य से जेराशिम चकित हो गया। वह खुशी के मारे उछलता कूदता कोचवान की कोठरी में गया।
तब एगर ने उससे कहा, “देखना भाई, अपना काम ठीक ढंग से करना; तुम्हारे लिए मुझे शर्मिन्दा न होना पड़े। तुम जानते ही हो कि मालिक लोग कैसे होते हैं। अगर ज़रा भी ग़फलत की और पकड़े गए, तो वे हमेशा कुसूर ढूँढ़ते रहेंगे और शान्ति से रहना ही दूभर हो जाएगा।”
“इसके लिए फ़िक्र न करो, एगर!”
“बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!”
जेराशिम विदा लेकर, फाटक के बाहर जाने के लिए आँगन पार कर रहा था। पोलकारपिच की कोठरी आँगन में थी और उसकी खिड़की से रोशनी आकर जेराशिम की राह में पड़ रही थी। अपना भविष्य का कमरा जरा झाँककर देख लेने के लिए उसे बहुत कौतूहल हुआ। वह दो कदम आगे बढ़कर खिड़की के पास आया, मगर खिड़की के काँच पर बर्फ जम जाने के कारण भीतर नहीं देख पाया। फिर भी भीतर के लोग क्या बातें कर रहे हैं, वह यह साफ़ सुन पाया।
कोई औरत कह रही थी, “अब हम लोग क्या करेंगे?”
एक पुरुष ने जवाब दिया, वह पोलिकारपिच था, “मुझे पता नहीं, मुझे पता नहीं भीख माँगनी पड़ेगी और क्या ?”
औरत ने कहा, “हाँ! इसके सिवाय हम लोग और क्या कर सकते हैं? आखिर हम लोगों को भीख माँगनी पड़ेगी! हाय, हम ग़रीबों की जिन्दगी किस क़दर बुरी होती है ! सुबह से रात तक दिन-दिन भर काम करते जाते हैं और जब बूढ़े हो जाते हैं तब- -भागो यहाँ से!”
“हमारी बात कौन सुनता है? मालिक तो हम में से एक नहीं हैं जो हमारा दुख समझे। उनसे सब कहना फ़िज़ूल है। वे सिर्फ़ अपना फ़ायदा देखते हैं।”
“सब मालिक लोग इसी तरह के नीच होते हैं। वे दूसरों के बारे में बिलकुल सोचते ही नहीं, सिर्फ़ फ़ायदे पर निगाह रखते हैं। उन लोगों को यह ख्याल ही नहीं होता कि हम लोग ईमानदारी के साथ एक जमाने से उनकी खिदमत करते रहे हैं। उनकी सेवा में अपनी सारी ताक़त ख़त्म कर चुके हैं। और एक साल भर भी हम लोगों को वे नहीं रखना चाहते हैं। क्या हम लोगों में बिल्कुल ताक़त नहीं रही हम लोगों को रखे रहें, अगर हम न कर सकें, तो अपनी खुशी से चले जाएँगे।”
“मालिक का ज्यादा कुसूर नहीं है; हम लोगों को यह कोचवान यहाँ से भगा रहा है। एगर अपने एक दोस्त को मेरी जगह पर रखवाना चाहता है।”
“हाँ, वह तो साँप है ! वह जुबान चलाना खूब जानता है। बदमाश कहीं का! ठहर बदजुबान जानवर, मैं भी तुझे मजा चखाऊँगी मैं अभी सीधी मालिक के पास जाकर कहूँगी, वह किस तरह से उन्हें उगता है, किस तरह घास और दाने की चोरी करता है। मैं पूरा-पूरा सबूत दिखाऊँगी और तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि वह हम लोगों के बारे में कैसी झूठी चुगली करता है!”
“अरी बुढ़िया ! ऐसा न कर यह पाप है।”
“पाप है! मैंने जो कुछ कहा, क्या वह सच नहीं है? मैं जो कुछ कह रही हूँ, सब सच है, और मालिक से जरूर कहूँगी! वे अपनी आँखों से देख लें। क्यों न कहूँ? हम लोग कहाँ जाएँ! उसने हम लोगों का नाश कर दिया है, एकदम नाश कर दिया है।”
बुढ़िया रो पड़ी।
जेराशिम ने सब सुना। वे बातें उसके दिल में छुरी की तरह चुभ रही थीं। वह साफ़ समझ गया कि इन बूढ़े लोगों को वह कितना दुख देने जा रहा है। उसका हृदय वेदना से भर गया। बहुत देर तक वहाँ खड़ा रहकर बहुत उदास होकर, चिन्ता में डूबा रहा, फिर घूम कर कोचवान की कोठरी की ओर लौट गया ।
“अरे, क्या तुम कुछ भूल कर छोड़ गए ?”
“नहीं, एगर !” जेराशिम हकलाता हुआ कहने लगा, “तुमने … तुमने मेरे … लिए कितनी … तकलीफ़ उठाई; मगर…मगर मैं यह नौकरी नहीं कर सकूँगा। क्षमा करना।”
“क्यों? आखिर बात क्या है?”
“कुछ नहीं! मैं यह नौकरी नहीं करना चाहता। कोई और ढूँढ लूँगा।”
एगर बहुत नाराज हो गया। चिल्लाकर कहने लगा, “तब क्या तुम मुझे उल्लू बनाना चाहते थे? बेवकूफ़ ! पहले आकर पैरों पड़े ‘एक नौकरी लगवा दो, एक नौकरी लगवा दो!’ और अब नौकरी नहीं करना चाहते! बदमाश कहीं के! तुमने मुझे बेइज़्ज़त किया।”
जवाब देने लायक कोई बात जेराशिम को नहीं मिली। उसने सिर नीचा कर लिया। एगर घृणा से मुँह फेरकर खड़ा हो गया। उसने और कुछ नहीं कहा।
तब जेराशिम चुपचाप अपनी टोपी उठाकर कोचवान की कोठरी से निकला। वह जल्दी-जल्दी आँगन पार कर, फाटक से सड़क पर निकल आया, और तेज कदमों से शहर की ओर बढ़ने लगा। अब उसका चित्त हल्का था और उसे एक सुख का अनुभव हो रहा था।