डॉ. विकास मानव
“प्रारंभ में अंधकार था. जल की प्रधानता थी. संसार की उत्पत्ति जल से हुई। जल का एक पर्याय ‘नार’ है। नारी सर्जक है, सृष्टि निर्मात्री है. नारी विश्वमोहिनी है और कालरात्रि भी.”
~ ऋग्वेद (8/10/129).
सृजन के समय विष्णु जल की शैया पर विराजमान होते हैं और नारायण कहलाते हैं. उस समय उनकी नाभि से प्रस्फुटित कमल की कर्णिका पर स्थित ब्रह्मा संसार का सृजन करते हैं.
नारी का नाभि से ही सृजन प्रारंभ होता है. उसका प्रस्फुटन नाभि के नीचे के भाग में स्थित ‘सृजन पद्म’ अर्थात योनिमंदिर में होता है।
सृजन की प्रक्रिया में नारायण एवं नारी दोनों समानधर्मी हैं. अष्टकमलयुक्त तथा पूर्ण हैं. मात्र पुरुष सप्त कमलमय है, जो अपूर्ण है। इसीलिए तंत्र शास्त्र के अनुसार रक्तवर्णी अष्ट कमल विद्यमान होता है. यह नारी की अथवा शक्ति की सृजनता का प्रतीक है।
षोडशदलीय कमल सृष्टि की आद्याशक्ति ‘चन्द्रा’ के सृष्टि रूप में प्रस्फुटन का प्रतीक है। चंद्रमा 16 कलाओं में पूर्णता को प्राप्त करता है।
इसी के अनुरूप षोडशी देवी का मंत्र 16 अक्षरों का है तथा श्रीयंत्र में 16 कमल दल होते हैं। तदनुरूप नारी 27 दिन के चक्र के पश्चात 28वें दिन पुन: नवसृजन के लिए पुन: कुमारी रूपा हो जाती है।
यह संपूर्ण संसार द्वंद्वात्मक है, मिथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं।
इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है. इसे आदि शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में इस प्रकार व्यक्त किया है :
शिव:शक्तया युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं।
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।
यह आकर्षण ही कामशक्ति है. इसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है।
षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में भी स्त्री की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।
भैरवी साधना में तो नारी ही सर्वशक्तिमान है.
यह कुंवारी कन्या होती है. आज ऐसी कन्या दुर्लभ है, इसलिए एक पुरुष तक सीमित रहने वाली एक्सेप्ट की जाती है.
मैं उस नारी को भी एक्सेप्ट करता हूँ जिसे धोखे से, छल से, ठगी से, डराकर, प्रलोभन द्वारा पटाकर या बलात्कार कर भोगा गया हो. या जिसे संरक्षण, सुरक्षा, सुविधा देने के बदले घर के लोग भोगते हों. मेरे लिए ऐसी नारी कुंवारी ही होती है क्योंकि ऐसे सेक्स में उसका दोष नहीं.
निश्चित तौर पर भैरवी मेँ अपार ईश्वरीय शक्तियाँ समाहित हो जाती हैं. अक्सर तंत्रसाधक/तंत्रसिद्ध लोग भैरवी को भोगते हैं और अपना नाश कर बैठते हैं. खुद भैरवी माँग करे तो ईश्वरीय आदेश समझकर उसको चरमतृप्ति का शिखर देना धर्म है. बस खतरा यह है कि, वह अगर संतुष्ट नहीं हुई तो लिंग काटकर फेक सकती है.