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कैसे हो बुराई का अंत? सवाल… जिसका अंत नहीं दिख रहा

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राज वाल्‍मीकि 

समाज में बुराई कई रूपों में व्‍याप्‍त है। हमारे मन में भी बुराई कई रूपों में बैठी हुई है। कैसे हो बुराई का अंत? यही सवाल है जिसका अंत नहीं दिख रहा।

दशहरा पर हम बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जला कर खुश हो लेते हैं कि बुराई का अंत हो गया। इस बात से भी प्रसन्‍न हो जाते हैं कि मां दुर्गा ने महिषासुर जैसे असुर का वध कर दिया। राम ने रावण का अंत कर दिया यानी बुराई पर अच्‍छाई की जीत हो गई।

इसलिए हम दुर्गापूजा और विजयादशमी का पर्व बड़े हर्षोल्‍लास से मनाते हैं। पर क्‍या हमने कभी सोचा है कि हमारे अंदर और समाज में बुराईयों के कितने भेदभावकारी, अन्‍यायकारी, भ्रष्‍टाचारी और अत्‍याचारी राक्षस भरे पड़े हैं। क्‍या कभी हम उनके अंत के बारे में सोचते हैं?

कुछ बाबाओं के दुष्‍कर्म

हमारे यहां संतो-महंतों बाबाओं को बड़ा महनीय माना जाता है। उन्‍हें बड़ी श्रद्धा और आदर की नजरों से देखा जाता है। उनके नाम के आगे ‘प्रात: स्‍मरणीय’, ‘परम पूज्‍य’, परम आदरणीय’, श्रद्धेय जैसे आदरसूचक शब्‍द लगाए जाते हैं। उनसे लोग सन्‍मार्ग पर चलने और उचित मार्गदर्शन की प्रेरणा लेने की उम्‍मीद करते हैं।

लेकिन उनकी इस प्रवृति को क्‍या कहा जाए कि वे नाबालिग बालिकाओं तक को अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। उनके साथ दुष्‍कर्म करते हैं। क्‍या ये राक्षसी प्रवृति नहीं है? बारह साल की बालिका के साथ दुष्‍कर्म के जुर्म में बापू आसाराम जेल में हैं। बावजूद इसके उनके अंधभक्‍तों में संख्‍या में कमी नहीं आई है।

इसी प्रकार डेरा सच्‍चा सौदा के गुरमीत राम रहीम दुष्‍कर्म और हत्‍या के जुर्म में जेल की सज काट रहे हैं। क्‍या उनके ये कर्म किसी दानवी प्रवृति के प्रमाण नहीं हैं?

कुछ बाबा समाज में नफरती भाषणों का जहर उगलते रहते हैं। उदाहरण के लिए यति नरसिम्हानंद का नाम लिया जा सकता है। एक संप्रदाय के खिलाफ दूसरे संप्रदाय में नफरत भड़काना क्‍या ये आसुरी प्रवृति नहीं है?

महिलाओं व बालिकाओं पर यौन हिंसा

आधी दुनिया कही जाने वाली महिलाओं और बालिकाओं पर यौन हिंसा की वारदातें निरंतर बढ़ रही हैं। कुछ महीने पहले ही पश्चिम बंगाल में कोलकाता के आरजीकर अस्‍पताल में एक मेडिकल डॉक्‍टर महिला के साथ दुष्‍कर्म की घटना निर्भया कांड की तरह काफी चर्चा में रही।

दलित महिलाओं और बालिकाओं पर तो और अधिक यौन हिंसा को अंजाम दिया जाता है। चार-पांच साल की बालिकाओं से लेकर साठ साल की वृद्ध महिलाओं तक से दुष्‍कर्म की वारदातें सामने आती हैं। इस तरह की वारदातों को अंजाम देने वाले क्‍या राक्षसी प्रवृति के लोग नहीं हैं?

जातिगत भेदभाव

जाति के नाम पर हमारे यहां छुआछूत और भेदभाव की अमानवीय दानवी प्रवृति देखने को मिलती है। कथित उच्‍च जाति के लोगों में कथित निम्‍न जाति के प्रति तिरस्‍कार और घृणा भरी होती है। जाति व्‍यवस्‍था जन्‍म के आधार पर थोपी गई है।

कथित उच्‍च जाति में जन्‍म लेने वालों का अपनी उच्‍च जाति पर गर्व होता है। ऊंचा होने का दंभ होता है। वे कथित निम्‍न जाति के लोगों को कीड़े-मकौड़ों की मानिंद समझते हैं। यही वजह है कि कोई निम्‍न जाति का व्‍यक्ति उनके घड़े से पानी ले ले या उनके लोटे से पानी पी ले तो यह उनके लिए ना‍काबिले-बर्दाश्‍त होता है।

कोई दलित युवक डांडिया देखने भी आ जाए तो उसकी पीट-पीट कर हत्‍या कर दी जाती है। यदि कोई दलित युवक रामलीला मंचन को आगे की कुर्सियों की कतार में बैठ कर देखने लगे तो पुलिस न केवल उसकी पिटाई लगाती है, बल्कि उसे इतना जलील करती है कि वह आत्‍मग्लानि के कारण आत्‍महत्‍या कर लेता है। लोगों के मन मस्तिष्‍क में बैठी यह प्रवृति दानवता है।

जातिवादी और रिश्‍वतखोरी की प्रवृति होना

किसी व्‍यक्ति के साथ अन्‍याय और अत्‍याचार होता है तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाता है। पर वहां पर भी उसे शायद ही न्‍याय मिलता है। वहां मिलती है तारीख पर तारीख। अंत में पीड़ित व्‍यक्ति हताश होकर न्‍याय की उम्‍मीद ही खो देता है। यह तो उन मामलों की बात है जो अदालत तक पहुंचते हैं।

वहां भी अदालतें सबूतों के अभाव में अपराधियों को बाइज्‍जत बरी कर देती है। खासकर मामला यदि दलित उत्‍पीड़न का हो और अत्‍याचारी दबंग जाति के रसूख वाले लोग हों तो वे गवाहों को खरीद लेते हैं या उन्‍हें डरा धमका कर चुप करा देते हैं।

परिणामस्वरूप दलित न्‍याय से वंचित रह जाते हैं। बलात्‍कारियों को इससे और बढ़ावा मिलता है कि वे बाइज्‍जत बरी कर दिए जाते हैं। समाज के लोगों की प्रवृति देखिए कि उन्‍हें फूल मालाएं पहना कर मिठाई खिलाकर उनका स्‍वागत किया जाता है। उदाहरण के लिए बिल्‍किस बानों के मामले को देखा जा सकता है।

दलित उत्‍पीड़न का मामला थाने में जाता है। पुलिस वाले दलितों की पहले तो एफआईआर ही नहीं लिखते। दूसरी बात दलितों पर अत्‍याचार करने वाला दंबग व्‍यक्ति पुलिस वालों को रिश्‍वत देकर और अपनी जाति का वास्‍ता देकर पुलिस को अपने पक्ष में कर लेते हैं।

इससे दलितों का केस कमजोर हो जाता है। एफआईआर में सही धाराएं दर्ज नहीं की जातीं। जातिवादी और रिश्‍वतखोर होना मनुष्‍य की दुष्‍प्रवृतियां हैं जिनका अंत होना चाहिए।

अंधविश्‍वास की दुष्‍प्रवृति

हमारे देश में बाबा और तांत्रिक बहुत अंधविश्‍वास फैलाते हैं। यह अपने अंधभक्‍तों को उनकी मनोकामना पूरी करने के लिए इंसानों की बलि के लिए प्रोत्‍साहित करते हैं। अंधभक्‍त ऐसा करते भी हैं।

हाल ही में उत्‍तर प्रदेश के एक स्‍कूल में एक दस-बारह साल के छात्र की बलि दे दी गई। इसके पीछे यह अंधविश्‍वास था कि इससे स्‍कूल की आय में बरकत होगी। यह मात्र अकेली घटना नहीं है। हमारे देश में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं।

हमारे समाज में कुछ ऐसी अंधविश्‍वासी दुष्‍प्रवृतियां व्‍याप्‍त हैं, जो बेगुनाह लोगों की जान ले लेती हैं। डायन प्रथा एक ऐसी ही दुष्‍प्रवृति है जिसके अनुसार महिलाओं को डायन बता कर उनकी हत्‍या कर दी जाती है।

बाबा लोगों को अंधश्विासी बनाने के लिए प्रवचन करते रहते हैं। जिन्‍हें सुनने के लिए उनके लाखों अंधभक्‍त उसमें हिस्‍सा लेते हैं।

कानपुर में एक बाबा के प्रवचन सुनने आए सैकड़ों बच्‍चों महिलाओं और पुरूषों की भगदड़ मचने से मौत हो गई। पर उस कथित बाबा का किसी एफआईआर में नाम तक दर्ज नहीं हुआ। क्‍या इस अंधविश्‍वास की प्रवृति का अंत नहीं होना चाहिए?

मिलावटखोरी

मनुष्‍य अपने स्‍वार्थवश जल्‍दी अमीर बनने की लालच में बेगुनाह लोगों की जान से खिलवाड़ करने लगता है। नकली दवाईयों और किडनी खरीदने-बेचने का कारोबार इसका उदाहरण है। दूध, घी और अन्‍य खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगता है जिससे लोगों की जान पर बन आती है।

हद से ज्‍यादा स्‍वार्थ और लालच की इस दुष्‍प्रवृति का क्‍या अंत नहीं होना चाहिए?

मानवता हो सब पर भारी

हम मनुष्‍य हैं और मनुष्‍यता ही हमारी सर्वोत्‍तम प्रवृति है। हम मानव हैं इसलिए हममें मानवता की भावना सर्वोपरि होनी चाहिए। हम इंसान हैं, इसलिए इंसानियत ही हमारा सबसे बड़ा गुण है।

हमारे मन की सद्प्रवृति हमारी दुष्‍प्रवृति को मार दे। हमारी सद्भावना हमारी दुर्भावना को खत्‍म कर दे। हमारा सदाचार हमारे कदाचार को समाप्‍त कर दे। हमारी मानवीय भावनाएं, परहित की भावनाएं, जनहित की भावनाएं हमारे स्‍वार्थ और लोभ-लालच, हवस पर भारी पड़ने लगें।

तब हमारी बुराईयों का होगा अंत और हमारी अच्‍छाईयों की होगी जीत। पर क्‍या हम अपनी बुराईयों को मिटाने और अच्‍छाईयों को जताने का दृढ़ संकल्‍प लेंगे?

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