अराधना पांडेय
जिसे कभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का केंद्र माना जाता था, आज उस सपने के धुंधलाने का प्रतीक बनता जा रहा है। यहां देशभर से हज़ारों छात्र आते हैं, खासकर मध्यमवर्गीय और किसान परिवारों से, जो सीमित साधनों के बावजूद बड़े सपनों के साथ इस शहर की ओर रुख करते हैं। बेहतर शिक्षा और सुनहरे भविष्य की चाह में ये छात्र शहर के लॉजों और किराए के मकानों में दिन-रात मेहनत करते हैं। लेकिन अब महंगाई की बढ़ती मार और जीवन यापन की बढ़ती चुनौतियों ने उनके हौसलों को कमज़ोर कर दिया है।
बीते छह महीनों में 16 छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं इस गंभीर स्थिति की ओर संकेत करती हैं। एक समय प्रतियोगी परीक्षाओं का मक्का कहलाने वाला प्रयागराज, अब बेरोजगारी, महंगाई, और मानसिक दबाव के कारण छात्रों की टूटती उम्मीदों का शहर बनता जा रहा है। किराए, खाने-पीने की वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, और रोजगार के घटते अवसरों ने इन युवाओं के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। उनके सिर पर न सिर्फ परीक्षा में सफल होने का दबाव है, बल्कि घर की आर्थिक तंगी और असफलता का डर भी हर दिन उन्हें मानसिक रूप से तोड़ रहा है।
प्रयागराज एक समय से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के केंद्र के रूप में जाना जाता है, जहां दूर-दराज के गांवों से छात्र अपने भविष्य के सपने लेकर आते हैं। यहां आने वाले अधिकांश छात्र मध्यमवर्गीय या किसान परिवारों से होते हैं, जो अपने सीमित संसाधनों के बावजूद बेहतर शिक्षा और एक सफल करियर की उम्मीद में यहां का रुख करते हैं। लेकिन हालिया समय में बढ़ती महंगाई और आवश्यक वस्तुओं के आसमान छूते दामों ने इन छात्रों के सपनों पर गहरी चोट की है। अब सवाल ये है कि क्या इस शहर में रहने वाले सपनों के ताजमहल की बुनियादें इतनी मजबूत हैं कि वे इन छात्रों के भविष्य को सहारा दे सकें, या फिर ये सिर्फ एक और दर्दभरी कहानी बनकर रह जाएंगे?
महंगाई ने बढ़ाई मुश्किलें
गाजीपुर के हरिमोल यादव, जो यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं, का कहना है कि अब स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुएं भी खरीद पाना मुश्किल हो गया है। पहले जितना पैसा पूरे महीने के खर्च के लिए काफी होता था, अब वह 15 दिन भी मुश्किल से चलता है। सब्जियों के दामों में भारी वृद्धि ने स्थिति को और बदतर बना दिया है। टमाटर 80 रुपये प्रति किलो, प्याज 70 रुपये किलो और आलू 40 रुपये किलो तक पहुंच गए हैं। यहाँ तक कि धनिया भी अब मुफ्त नहीं मिलती, दुकानदार 10 रुपये से कम में देने को तैयार नहीं होते।
हरिमोल कहते हैं, “पूर्वांचल के तमाम गांवों से प्रयागराज आने वाले छात्रों को सबसे पहले रहने और खाने की समस्या से जूझना पड़ता है। किराए के छोटे-छोटे कमरे, जो पहले थोड़े किफायती होते थे, अब बेहद महंगे हो गए हैं। 8 बाय 8 के कमरे के लिए भी छात्रों को 3,000 से 4,000 रुपये तक देने पड़ते हैं। ऐसे में मकान मालिकों द्वारा छात्रों की मजबूरी का फायदा उठाना आम बात हो गई है। प्रशासनिक निगरानी की कमी के चलते मकान मालिकों ने मनमानी किराए वसूलने शुरू कर दिए हैं।”
भीटी अंबेडकर नगर की साक्षी सिंह जो ममफोर्डगंज में एक पीजी में रहकर एसएससी सीजीएल की तैयारी करती हैं। इनके एक भाई भी हैं जो यहां यूपीएससी की तैयारी करते हैं। इनके पिताजी बीएसएफ में हैं। वह बताती हैं कि पहले दोनों भाई-बहन को हर महीने जितना पैसा घर से आता था उतने में पूरा महीना आराम से चल जाता था लेकिन अब हर महीने घर से दोबारा पैसा लेना पड़ता है।
साक्षी बताती हैं कि वह ऐसे कमरे में रहती हैं जहां खाना तो रूम में ही बनाना है और बर्तन धोने की कोई व्यवस्था नहीं है। बाथरूम में बर्तन धोना पड़ता है। इतनी समस्याएं झेलनी पड़ती है फिर भी महंगाई की वजह से कितने पैसे खर्च हो जाते हैं पता ही नहीं चलता हमेशा घर से दोबारा मांगना पड़ता है।
जौनपुर जिले के डिहियां गांव के श्याम नारायण सिंह और उनके भाई उदित नारायण सिंह भी पिछले कई सालों से प्रयागराज में पीसीएस और आईएएस की तैयारी कर रहे हैं। ये बताते हैं कि घर से उन्हें हर महीने 10,000 रुपये मिलते हैं, लेकिन वर्तमान में महंगाई इतनी अधिक हो गई है कि इतने पैसों में दोनों भाइयों के लिए खर्च निकालना बहुत मुश्किल हो गया है। श्याम नारायण कहते हैं, “पहले ये राशि काफी होती थी, लेकिन अब इतने पैसों में न तो कमरे का किराया सही से दिया जा सकता है और न ही खाने-पीने की चीजें खरीदी जा सकती हैं।”
खाना और पानी का संकट
खाना, जो एक बुनियादी आवश्यकता है, अब छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। सब्जियों की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि कई छात्र एक वक्त का खाना ही खा पा रहे हैं। कुछ छात्रों को पानी भी खरीदना पड़ता है, जिसकी कीमत 25 से 30 रुपये प्रति बोतल होती है। कई छात्र पैसे बचाने के लिए खुद अपने सिर पर बोतलें उठाकर पानी लाने को मजबूर हैं।
इन समस्याओं के चलते छात्रों की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा है। महंगाई की मार ने मानसिक तनाव को बढ़ा दिया है। तैयारी करने वाले छात्रों के लिए नौकरी हासिल करना वैसे भी एक कठिन और लंबी प्रक्रिया होती है, ऐसे में महंगाई का दबाव उनके आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन को प्रभावित कर रहा है। हरीमोल यादव बताते हैं कि जब उम्मीद होती है कि इस बार नौकरी मिल जाएगी, तो कभी पेपर लीक हो जाता है और कभी परीक्षा टल जाती है।
एक प्रतियोगी छात्र रमेश कुमार त्रिपाठी का कहना है कि इस स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन को किराए की सीमा तय करने और महंगाई पर नियंत्रण के प्रयास करने चाहिए। अगर किराए और आवश्यक वस्तुओं के दाम नियंत्रित किए जाएं, तो उनकी स्थिति कुछ बेहतर हो सकती है। प्रशासनिक सहयोग के बिना यह मुश्किलें दिन-प्रतिदिन और बढ़ती जा रही हैं, और छात्रों के सपने बिखरते जा रहे हैं।
अटरामपुर प्रयागराज के अभय प्रताप सिंह बताते हैं कि कई सालों से यह यूपीएससी व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। नौकरी के बारे में पूछने पर यह भावुक होकर बताते हैं कि कहीं नौकरी न मिलने की वजह से यह लाइब्रेरी चलाना शुरू कर दिए साथ में पढ़ाई भी करते हैं लेकिन महंगाई की वजह से ऐसी स्थिति आई कि इनको लाइब्रेरी बेचना पड़ा।
अभय कहते हैं कि “प्रयागराज, एक समय पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रसिद्ध केंद्र, अब प्रतियोगी छात्रों की आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या के कारण चर्चा में है। बीते छह महीनों में शहर में 16 छात्रों ने आत्महत्या कर ली, जो एक चिंताजनक स्थिति है। ये छात्र, जो हजारों की संख्या में शहर के लॉजों और किराए के मकानों में रहकर अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार अवसरों के चलते मानसिक दबाव का शिकार हो रहे हैं।”
घटनाएं जो झकझोर देती हैं
सितंबर 24 को सिद्धार्थ नगर के रितुराज वरुण, जो एनी बेसेंट स्कूल के पास स्थित लॉज में रह रहे थे, ने फांसी लगाकर जान दे दी। उनके दोस्तों का कहना था कि रितुराज पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन हाल ही में नौकरी न मिल पाने के कारण वह बहुत उदास रहने लगा था।
इसी तरह, गोंडा के अनुराग कुमार ने मालवीय नगर स्थित लॉज में खुदकुशी कर ली, और पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ा जिसमें उन्होंने लिखा था, “मैं खुद ही मौत का जिम्मेदार हूँ।” वहीं, एमपी के पन्ना के अभिषेक, जो एमएससी और बीएड करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, ने भी किराए के कमरे में फांसी लगाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। ये घटनाएं केवल बर्फ़ की एक छोटी सी नोक हैं, जो इस गंभीर समस्या की गहराई को उजागर करती हैं।
छात्रों का दर्द: बढ़ती महंगाई और घटते अवसर
शहर के कर्नलगंज में रह रहे संजय कुमार, जो सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे हैं, बताते हैं, “मेरे परिवार ने मेरे ऊपर बहुत पैसा खर्च किया है। अब मुझसे उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं, लेकिन परीक्षा में बार-बार असफल होना और महंगाई की वजह से खर्चे संभालना मुश्किल हो रहा है। कभी-कभी लगता है कि अब और नहीं सहा जा सकता।”
निराशा से घिरे नीरज वर्मा, एक अन्य प्रतियोगी छात्र, कहते हैं, “हम यहां पढ़ाई के साथ-साथ रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। महंगाई बढ़ती जा रही है, और हमें अपने किराए, खाने-पीने की चीजों का खर्च उठाना पड़ता है। अगर नौकरी नहीं मिली, तो पता नहीं क्या होगा।”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संदीप आनंद ने कहा, “आज के प्रतियोगी छात्रों पर अत्यधिक मानसिक दबाव है। कई बार वे अपनी निराशा और अवसाद को छिपाने में इतने कुशल हो जाते हैं कि उनके दोस्त और परिवार भी इस संकट को पहचान नहीं पाते। अवसाद के प्रारंभिक लक्षण जैसे भूख न लगना, कम हंसना, और अकेले रहना-इन संकेतों को समझना बेहद जरूरी है।”
महंगाई के इस दौर में प्रतियोगी छात्रों के लिए न सिर्फ परीक्षा की तैयारी एक चुनौती बन गई है, बल्कि बढ़ते खर्च और रोजगार की कमी ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। प्रयागराज जैसे शहरों में, जहां प्रतियोगिता का स्तर बहुत ऊँचा है, छात्रों पर जल्द से जल्द नौकरी पाने का दबाव होता है। घर से दूर रह रहे ये छात्र अपने परिवारों की अपेक्षाओं का बोझ उठाए हुए होते हैं। जब नौकरी पाने में देरी होती है या बार-बार असफलता मिलती है, तो उनके मन में निराशा घर कर जाती है।
क्या है समाधान?
मनोविज्ञानियों का कहना है कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। परिवार वालों को चाहिए कि वे नियमित रूप से अपने बच्चों से बात करें और उनके मनोभावों पर ध्यान दें। प्रतियोगी छात्रों के लिए करियर काउंसलिंग, मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और परामर्श सेवाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती हैं। छात्रों को भी यह समझने की जरूरत है कि जीवन केवल एक परीक्षा या नौकरी तक सीमित नहीं है। उन्हें अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए और अपने मन की बात खुलकर दोस्तों या परिवार वालों से साझा करनी चाहिए।
प्रयागराज में बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाएं केवल छात्रों की निराशा और मानसिक दबाव की ओर इशारा नहीं करतीं, बल्कि यह समाज के सामने एक गंभीर प्रश्न खड़ा करती हैं: क्या हमारे प्रतियोगी शिक्षा तंत्र में ऐसे सुधारों की आवश्यकता है, जो छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे? यह जरूरी है कि सरकार, समाज, और शैक्षणिक संस्थाएं इस ओर ध्यान दें ताकि युवा वर्ग निराशा के गर्त में न डूबे।
अधिवक्ता अवधेश मिश्रा ने कहा कि “प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है। बढ़ती महंगाई और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने उनकी राह में कई बाधाएं खड़ी कर दी हैं। जरूरत है कि स्थानीय प्रशासन और समाज दोनों मिलकर इन छात्रों की समस्याओं को समझें और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि उनके सपने साकार हो सकें और देश को योग्य और प्रतिभाशाली युवा मिल सकें।”