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4 कविताएं …..हम पर लगती पाबंदी / लड़कियां कहां सुरक्षित हैं? / उड़ना चाहती हूं / कब तक चुप रहेंगे?

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हम पर लगती पाबंदी

पूजा बिष्ट
कक्षा-8
कपकोट, उत्तराखंड

एक बंधन में बंधे थे हम,
ये भी अक्सर सोचते थे हम,
जो करना चाहते थे हम,
वो ना कर पाते थे हम,
कुछ भी सीखने पर,
लगती है पाबंदी हम पर,
हमारे सपनों को पूरा करने में,
ये पाबंदी अक्सर आड़े आती है,
इसका आना मुझे ना भाता है,
भाता ना था किसी का बोलना मुझको,
कैसे इन्हें मैं चुप करा पाती?
ये न समझ में आता है मुझको,
आज भी मैं वही हूँ खड़ी,
जहां छोड़ा था मुझे कभी॥

लड़कियां कहां सुरक्षित हैं?

दिया डसिला
अनगडी, उत्तराखंड

सब कुछ अच्छा चल रहा था,
जब तक वो हाथ मेरे ऊपर ना आया था,
यूं तो छोटी बच्ची थी मैं तब,
हुआ हादसा था ये जब,
एक अनजान हाथ मेरी तरफ़ आया,
ना जाने क्यों वो स्पर्श मुझे ना भाया,
समझ कर गलती भूल गई मैं,
क्योंकि तब नन्ही सी परी थी मैं,
जब उस गलती को बार बार दोहराया,
तब कुछ समझ में मेरे आया,
लड़ पाती उससे इतनी हिम्मत कहां थी,
कह पाती किसी को, साहस कहां थी,
रोती पूरी रात और ख़ुद को यू समझाती थी,
सारी गलती खुद की मानकर और,
फिर ख़ुद को ही दोषी ठहराती थी,
डर इतना था कि उसके ख़िलाफ़ कुछ न कह पाती थी,
उसकी गंदी नीयत की आग में जलती रहती थी,
यूं तो कहती दुनिया देर रात लड़कियां बाहर न जाना,
छोटे कपड़े पहन कर खुद को ना इतराना,
मगर मैं क्या बताती और क्या समझाती किसी को,
तुम बाहर निकलने से उन्हें रोकते हो मगर,
लड़कियां तो अपने घर में भी सुरक्षित नहीं॥

उड़ना चाहती हूं

रितिका
चौरसों, उत्तराखंड

उड़ना चाहती हूं, पर लोग रोक देते हैं,
आगे बढ़ना चाहती हूं, पर लोग रोक देते हैं,
अपने पर यक़ीन हो तो कई रास्ते निकलते हैं,
हवा की ओट लेकर भी चिराग़ जलते हैं,
उम्मीद हो तो हर मुश्किल में खड़े हो जाएंगे,
पीछे छोड़ लोगों की बातों को,
एक मुकाम पर डट जाएंगे,
रंग छूटा नहीं लोगो की सोच का,
पिंजरा टूटा नहीं लोगो की सोच का,
आज भी वहीं पर अटकी है,
लड़कियां बनी है सिर्फ घर के काम के लिए,
ये सोच अभी भी गड़ी है लोगों के दिमाग में,
मगर मुझे उम्मीद है, मैं पहुंचूंगी किसी मुकाम पर॥

कब तक चुप रहेंगे?

दीपा लिंगाड़िया
गरुड़, उत्तराखंड

आखिर कब तक हम चुप रहेंगे?
आखिर क्यों हम चुप रहेंगे?
तुम जुल्म करते रहोगे तो,
अब शांत हम भी नहीं बैठेंगे,
आजादी तो हमें मिली भी नहीं,
ना हमे कभी दी गई,
हमेशा चुप रहने को कहा गया,
अगर ;बोला होता कि तुम भी लड़ो,
हर चीज का हमे भी अधिकार दिया होता,
तो आज हम भी आज़ाद होतीं,
क्यों चुप रहें हम अब,
जुल्म तो हमारे साथ हो रहा है,
कानून होने के बावजूद भी,
इनको सबक क्यों नहीं मिल रहा है?
आखिर वो माँ कब तक रोएगी,
अब तो वो भी जीना छोड़ देगी॥

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