अमिताभ स. :
कुछ साल पहले बेटी के जन्मदिन पर उसके सहेली-दोस्तों को रिटर्न गिफ्ट के लिए कुछ चीजें देखने-खरीदने उत्तरी दिल्ली की एक नामी मार्केट के बड़े स्टोर में गया। वहां क्रॉकरी, उपकरण, शोपीस जैसे घरेलू सामान मिलते हैं। मुझे बोन चाइना के कॉफी मगों के दो-दो सेट पसंद आए। 500 रुपये का एक सेट था। मैंने उसे 6 सेटों के रुपये दिए और 6 डिब्बे ले कर घर आ गया। घर आ कर जेब के बाकी बचे रुपयों का हिसाब लगाया, तो सिर चकरा गया! मैं उसे 3 हजार रुपये की बजाय भूलवश दुगुने यानी 6 हजार रुपये दे आया था। मैंने पत्नी को बताया, तो कहने लगीं, ‘फिक्र क्यों करते हो? वह अच्छा और बड़ा दुकानदार है। कल जा कर उसे बताना, वह बगैर आना-कानी के फौरन रुपये लौटा देगा। भूल-चूक लेनी-देनी, बिजनेस का कायदा होता ही है।’
मैं अगले रोज उस दुकान में गया। कैश काउंटर पर कल वाला बंदा ही बैठा था। मैंने उसे अपनी व्यथा सुनाई, ‘कल मैं कॉफी मगों के 6 डिब्बे ले गया था, 500 रुपये के हिसाब से। मुझे देने थे 3 हजार, लेकिन मैं आप को 6 हजार दे गया।’ सुनते ही वह आगबबूला हो गया। ऊंची आवाज में कहने लगा, ‘बीस सालों से दुकान चला रहा हूं। ऐसी बेईमानी नहीं करता।’ मैं अपनी और वह अपनी बात पर अड़ा रहा। हारकर मैं बोला, ‘ऐसा है, तो सीसीटीवी की फुटेज दिखा दो।’ वह फुटेज दिखाने से ना-नुकर करने लगा। मैं पीछे ही पड़ गया, उसने दो टूक कहा, ‘सीसीटीवी खराब है।’ कोई चारा न देख मैं वापस आ गया। मन ही मन इस दुकान पर दोबारा कभी न जाने कसम खा ली।
बीते साल दीवाली से हफ्ता भर पहले मेरी पत्नी घर का छोटा-मोटा सामान लेने उसी बाजार में ले गईं। उन्होंने उसी स्टोर में जाने का आग्रह किया। मैंने टाला, ‘तुम्हें पता तो है कि मैंने उस दुकान पर न जाने की कसम खाई है।’ वह बोलीं, ‘कुछ नहीं होता। अब भूल भी जाओ।’ फिर कहने लगीं, ‘क्या करूं? पूरी मार्केट में उस जैसी वैरायटी कहीं और मिलती भी नहीं है न।’ मेरा अड़ियल रुख देख कर बोली, ‘कोई नहीं। मैं अकेली दुकान में चली जाती हूं। तुम बाहर कार में बैठे रहना।’ मैंने कार घुमाकर स्टोर के सामने लगा ली। वह उतरीं, दुकान में चली गई।
मैं बाहर कार में ही बैठा था। पंद्रह-बीस मिनट बीते होंगे कि कार की खिड़की के शीशे पर ठक-ठक हुई। मैंने देखा-दुकान के अंदर से आए लड़के ने डिक्की खोलने का इशारा किया। मैंने डिक्की खोली और उसने कांच के गिलासों के बड़े-बड़े 6 डिब्बे ला कर रख दिए। चार-छह मिनट बाद दो बाल्टियां, मग, झाड़ू, पायदान वगैरह हाथ में थामे मेरी पत्नी आ गईं। मैंने कार स्टार्ट की, और कुछ देर में घर पहुंच गए। पत्नी सामान लेकर घर में चली गईं। मैं पीछे-पीछे डिब्बे उठाकर अंदर ले आया। मेज पर रखने लगा, तो वह बोलीं, ‘यह क्या? तुम तो कहते थे, मैं उस स्टोर में घुसूंगा नहीं। फिर यह क्या खरीद लाए?’ मैंने बताया कि दुकान से एक लड़का आ कर रख गया था। मुझे लगा कि तुमने भिजवाया होगा। पत्नी वापस देने जाने के लिए कहने लगीं। मैंने पत्नी के शब्द दोहरा दिए, ‘कुछ नहीं होता। अब भूल भी जाओ।’ उस दुकानदार ने हमें दिवाली का गिफ्ट एक साल बाद दिया।