हरियाणा चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने शानदार हैट्रिक लगाई उसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। हाल में संपन्न हुए चुनाव के दौरान बीजेपी के प्रदर्शन पर सवाल उठाए जा रहे थे। यही नहीं सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार का दावा किया जा रहा था। हालांकि, पार्टी नेतृत्व ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद ग्राउंड इंटेलिजेंस के सहारे हारी बाजी को जीत में बदल दिया। हरियाणा चुनाव को लेकर पार्टी ने उत्तर प्रदेश के बीजेपी सांसदों को मैदान में उतारा। उन्हें पूरे राज्य में तैनात किया था। इस दौरान एक सांसद ने करनाल में बाइक से यात्रा की और सड़क किनारे की दुकानों पर चाय पी और स्थानीय चर्चा सुनी।
इस यात्रा के दौरान सांसद ने देखा कि मुख्यमंत्री नायब सैनी उनसे पहले के सीएम मनोहर लाल खट्टर से ज्यादा लोकप्रिय थे। उन्होंने तुरंत ही चुनाव से जुड़ी टीम को इस संबंध में सूचित किया। इसके बाद सीएम सैनी को सार्वजनिक बैठकों में कुछ ही समय रहने और अपनी बात रखने के लिए कहा गया। उन्हें बाकी समय लोगों से मिलने, उनके साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उनके सुरक्षा कर्मियों को सख्त निर्देश दिया गया कि वे किसी को भी सीएम के पास जाने से नहीं रोकें। नायब सिंह सैनी स्वेच्छा से उन लोगों के पास जाते और सेल्फी लेते थे। इस कदम का हरियाणा में खासा असर नजर आया।
सत्ता विरोधी लहर में भी खिला कमल
यह सिर्फ एक उदाहरण है कि विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी कैसे काम करती है। पिछले एक दशक में, बीजेपी ने गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मणिपुर समेत 10 ऐसे राज्यों में सत्ता बरकरार रखी है, जहां ये माना जा रहा था कि लोगों में पार्टी के खिलाफ नाराजगी है। बीजेपी इन रा्ज्यों में शिकस्त का सामना कर सकती है। इसके विपरीत, 2004 से 14 तक यूपीए के 10 साल के शासन के दौरान, कांग्रेस ने 6 राज्यों में सत्ता बरकरार रखी। जिसमें से आखिरी 2011 में पार्टी असम में सत्ता पर काबिज हुई थी। वहीं बीजेपी का प्रदर्शन कांग्रेस कहीं ज्यादा बेहतर नजर आया। आखिर वो कौन से फैक्टर रहे जिससे बीजेपी हारी हुई बाजी अपने नाम करने में सफल रही।
कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव
बीजेपी पूरे साल कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहती है। पार्टी पूरे साल कार्यक्रमों की मेजबानी करके जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के अपने विशाल नेटवर्क को चुनाव के लिए तैयार रखती है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने ईटी से कहा, ‘हमारे पास वैचारिक रूप से प्रेरित पार्टी कार्यकर्ताओं का एक व्यापक नेटवर्क है। हम न केवल चुनावों के दौरान, बल्कि पूरे साल उनके साथ जुड़े रहते हैं।’
जल्दी शुरुआत और स्पेशल टीम
बीजेपी हमेशा 24/7 काम करती है, इसलिए चुनाव की तैयारी का कोई तय समय नहीं है। हालांकि, चुनाव से सात से आठ महीने पहले ये और तेजी से आगे बढ़ने लगती है। शुरुआती इनपुट पार्टी को जनता के असंतोष को दूर करने में मदद करते हैं। पार्टी नेताओं ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने लाडली बहना योजना को लागू किया, जिसका वादा कांग्रेस ने चुनाव से पहले किया था। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह की घोषणा की गई। कर्नाटक चुनाव से पहले, बीजेपी सरकार ने अनुसूचित जाति के आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 3 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया।
एक्सपर्ट को बड़ी जिम्मेदारी
बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में कई चुनाव एक्सपर्ट को तैयार किया है। इनमें केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव, मनसुख मंडाविया और जी किशन रेड्डी के साथ-साथ नए चेहरे शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा भी शामिल हैं। इन नेताओं को शुरू में ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाती है। जिससे उन्हें जमीनी हालात का आकलन करने और राज्य के लिए पार्टी की रणनीति बनाने का मौका मिलता है। अक्टूबर 2022 में, बीजेपी ने मई 2023 के चुनाव के लिए कर्नाटक के प्रभारियों के नाम का खुलासा कर दिया। जुलाई 2023 में, पार्टी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के लिए प्रभारियों के नाम का ऐलान किया। वहां नवंबर में चुनाव हुए। हाल ही में हुए हरियाणा चुनाव के लिए 17 जून को प्रभारी नियुक्त किए गए।
चेहरों में भी बदलाव
पिछले 5 सालों में, बीजेपी ने चुनाव से पहले पांच राज्यों गुजरात, उत्तराखंड, त्रिपुरा, कर्नाटक और हरियाणा में मुख्यमंत्रियों को बदल दिया। कर्नाटक को छोड़कर सभी राज्यों में पार्टी का ये दांव काम कर गया। बीजेपी नेताओं ने ईटी को बताया कि नया चेहरा चुनना कठिन है। अगस्त 2016 में, गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने आनंदीबेन पटेल की जगह ली, जिनकी जाति के साथी आरक्षण के लिए अभियान चला रहे थे। जब 2021 में पटेलों ने बीजेपी का समर्थन किया, तो पार्टी ने रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया।
ग्राउंड रिपोर्ट पर खास फोकस
2023 में, पार्टी ने ओबीसी वोटों को एकजुट करने के लिए हरियाणा में नायब सिंह सैनी को राज्य यूनिट का अध्यक्ष बनाया। सैनी को जनवरी में मनोहर लाल खट्टर की जगह सीएम बनाया। फीडबैक से लेकर एक्शन तक बीजेपी का चुनाव संगठन जमीनी खुफिया जानकारी और योजना पर निर्भर करता है। बीजेपी और बीजू जनता दल ने ओडिशा विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन पर चर्चा की। हालांकि, ओडिशाभर में पार्टी सेंटर्स ने इस समझौते को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और नागरिकों के विरोध को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्य प्रभारी सुनील बंसल और दूसरे नेताओं ने दिल्ली में एक जरूरी बैठक में हिस्सा लिया। कॉल सेंटर कर्मियों के पास बहु-स्तरीय रिएक्शन एकत्र करने और एक रिपोर्ट पेश करने के लिए 24 घंटे का समय दिया। रिपोर्ट ने बीजेपी को बीजेडी के साथ गठबंधन की अपनी योजना को छोड़ने के लिए प्रेरित किया। इसका सीधा असर ओडिशा के नतीजों में दिखा। बीजेपी ने अकेले दम पर वहां सरकार बनाई।