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गठबंधन की लम्बी उम्र के लिए कोई व्रत करने वाला नजर नहीं आ रहा

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राकेश अचल

करवा प्रधान महिलाओं के देश में गठबंधन की लम्बी उम्र के लिए कोई व्रत करने वाला नजर नहीं आ रहा है। केंद्र की सत्ता से भाजपा को हटाने के लिए एकजुट हुए तमाम राजनीतिक दल एक बार फिर अपनी-अपनी ढपली बजाते नजर आ रहे है। महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के साथ ही तमाम विधानसभाओं और लोकसभा के उपचुनावों को लेकर गठबंधन की गांठें शिथिल होती दिखाई दे रहीं हैं।
झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए गठबंधन ने अपनी तमाम सीटों का न सिर्फ बँटवारा कर लिया है बल्कि उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है ,जबकि आईएनडीआईए गठबंधन अभी बैठकों से ही फारिग नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र में भी कमोवेश यही हालात हैं। सीटों के बंटवारे और प्रत्याशियों कोई घोषणा में हो रही देर इंडिया गठबंधन को भारी पड़ सकती है ,ये जानते हुए भी हर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से सौदेबाजी करने में लगा है। हकीकत ये है कि देश में आज ऐसा कोई क्षेत्रीय दल नहीं है जो कांग्रेस को साथ लिए बिना भाजपा को चुनौती दे सके। सौदेबाजी में कांग्रेस का कम लेकिन क्षेत्रीय दलों का ज्यादा नुक्सान होने वाला है।
देश की राजनीति में अब भाजपा कोई किंवदंती नहीं बल्कि एक हकीकत है । भाजपा का एजेंडा भले ही आपको या मुझे रास न आये किन्तु ये सच है कि उसने बीते एक दशक में सत्ता में टिके रहना सीख लिया है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है और सत्ता के दरबार में भाजपा ने जिस तरह से अपने आपको अंगद के पैर की तरह स्थापित किया है ,उसे कोई चुनौती नहीं दे पा रहा है। अलबत्ता आम चुनावों में सबने मिलकर भाजपा की सत्ता को हिलाने की अभिनव कोशिश की थी। गनीमत है कि बिहार विधानसभा की 4 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव में आईएनडीआईए गठबंधन के बीच सीटों का बँटवारा सौहार्दपूर्ण तरीके से हो गया । यहां 3 सीटें राजद और एक सीट माकपा [ माले ] को मिली है। कांग्रेस के लिए मप्र में कोई समस्या पहले से ही नहीं थी ,लेकिन महाराष्ट्र में सीटों का बंटवारा अभी तक अधर में है।
महाराष्ट्र में महाराष्ट्र विकास अगाडी की गाडी सीटों के बंटवारे को लेकर आगे ही नहीं बढ़ रही है । शिवसेना [ ठाकरे ] गुट और कांग्रेस में बात बन नहीं रही है और ऐसा लगता है कि ये गठबंधन बिखर जाएगा,लेकिन यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस को तो कोई नुक्सान नहीं होने वाला लेकिन उद्धव ठाकरे की फजीहत हो जाएगी। शरद पंवार साहब की एनसीपी भी अकेले दम पर भाजपा को रोकने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में इन तीनों प्रमुख घटकों को हिकमत अमली से फैसला करना पडेगा। अब ये महाराष्ट्र विकास अगाडी को तय करना है की वे अपने और महाराष्ट्र के हित में झुकते हैं या नहीं ?
महाराष्ट्र जैसी ही दशा उत्तर प्रदेश विधानसभा की 10 सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों को लेकर है । यहां कांग्रेस कम से कम 5 सीटें चाहती है और समाजवादी पार्टी शायद इसके लिए राजी नहीं है /आपको याद है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन के चलते ही आम चुनावों के दौरान भाजपा के अश्व्मेद्घ को उत्तर प्रदेश में रोका जा सका था ,अन्यथा न सिर्फ खुद के लिए 370 सीटें हासिल करती अपितु 400 पार भी कर लेती तो कोई हैरानी न होती।
इन तमाम अटकलों के बीच इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर सरगरमी बढ़ी है. कांग्रेस के आला नेता राहुल गांधी, राजद के तेजस्वी यादव सहित राजद की पूरी टीम रांंची में थी. सीट बंटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन में दिनभर मंथन हुआ. फिलहाल सहमति बनी है कि झामुमो के खाते में 41 से 42 सीटें जा सकती है. वहीं, कांग्रेस 28-29 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. वहीं वाम दलों को चार सीटें मिल सकती है. माले को बगोदर, निरसा और राजधनवार या सिंदरी मिल सकता है. वहीं सीपीआइ को भी एक सीट देने की चर्चा है. गठबंधन में राजद को पांच से छह सीट देने की तैयारी है।
झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि इंडिया गठबंधन 81 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेगा। हम 81 सीट पर जेएमएम, कांग्रेस और राजद मिलकर चुनाव लड़े थे। इस गठबंधन में नये सहयोगी भी शामिल हुए. हैं। अब लेफ्ट पार्टी की भी भूमिका होगी. इस चुनाव में पहले चरण की बातें हुई हैं. 70 सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम लड़ेंगे. बचे हुए सीट पर सहयोगी लड़ेंगे. कौन कहां से लड़ेगा, उसका फैसला बाद में होगा।
महाराष्ट्र में सपा हो या उद्धव ठाकरे की शिवसेना या एनसीपी यदि जरा भी हठधर्मी दिखाते हैं तो यहां भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। इंडिया गठबंधन हरियाणा विधानसभा चुनाव में गर्म दूध से जल चुका है ,इसलिए उसे अब महाराष्ट्र और झारखण्ड में छाछ भी फूंक-फूंककर पीना चाहिए। जल्दबाजी में जबान जलने का खतरा बना ही रहेगा। आज की स्थिति में विपक्ष के पाँव अपनी ताकत बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ,क्योंकि अब मोदी हटाओ का नारा तो 2029 में ही लगाया जा सकेगा। विपक्ष यदि अगले आम चुनाव तक एक न रहा तो भाजपा के लिए तमाम क्षेत्रीय दलों को समाप्त करना आसान हो जाएगा। २०२९ अभी बहुत दूर है। इसलिए सभी को आज की बात करना चाहिए, सुनना चाहि।

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