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किसान कुप्रबंधन से बर्बाद हो जाएंगे?

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सोसाइटियों में खाद उपलब्ध नहीं है, जबकि बाजार में अधिक दामों पर ब्लैक में और नकली खाद मिल रहा है। किसान आखिर करे तो क्‍या करें? आखिर क्‍यों बीजेपी नेताओं को सलाह मिली है कि दिल्ली में डेरा डालो नहीं तो किसान कुप्रबंधन से बर्बाद हो जाएंगे?

सोसाइटियों में खाद उपलब्ध नहीं है, जबकि बाजार में अधिक दामों पर ब्लैक में खाद मिल रहा है। किसान आखिर करे तो क्‍या करें?  बुवाई के समय, डीएपी की जरूरत सबसे अधिक होती है, और इसके बाद सिंचाई के बाद यूरिया की जरूरत बढ़ जाती है। खाद नहीं मिली तो पूरी फसल चौपट होने का खतरा है। 

संकट के इस समय में कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने खुलासा किया है कि रबी सीजन में 42 लाख मीट्रिक टन खाद की आवश्‍यकता है जबकि अब तक कुल 25 लाख टन खाद ही उपलब्ध करवा पाए हैं। सरकार के आंकड़ें चीख-चीख कर बता रहे हैं कि प्रदेश मे उर्वरक नहीं है, बुआई का समय आ गया है फिर भी सरकार की तरफ से हिंदू मुस्लिम के मुद्दे पर चर्चा हो रही है। नकली खाद की पकड़े जाने पर दिग्विजय सिंह ने कहा है कि देवास जिले के जामगोद में सदाशिव फर्टिलाइजर के गोदाम में बनाया जा रहा नकली खाद पकड़ा गया है। 

खाद संकट का कारण बताते हुए पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि साल दर साल खाद आवंटन में कटौती और हेरा फेरी बढ़ रही है क्योंकि सरकार ने सोसायटी से खाद बेचना बंद कर दिया है। सरकार ने खाद की ज़रूरत के हिसाब से अपने गोदाम में पूर्व भंडारण भी नहीं किया है। सरकार ने 50 फ़ीसदी खाद निजी व्यापारियों को आवंटित कर दिया है। ऐसा इसलिए किया गया क्‍योंकि डबल इंजन की सरकार किसानों की नहीं कारोबारियों के हित सोचती है।

मुख्‍यमंत्री मोहन यादव को संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा है कि एसएसपी उर्वरक पूरा सबस्‍टैंडर्ड है। अगर आप हकीकत देखना चाहते है तो अपनी पार्टी के नेताओं से एक-एक बोरी सभी ब्रांड की बुलवा लीजिए और मुख्यमंत्री हाउस मे ही टेस्ट करवा लीजिए। आपको समझ आ जाएगा कितनी गड़बड़ी है। बीजेपी नेताओं को दिग्विजय सिंह ने सुझाया है कि दिल्ली में डेरा डालो अन्यथा प्रदेश का किसान आपके कुप्रबंधन से बर्बाद हो जाएगा।

कालाबाजारी, नकली खाद ही नहीं, एमपी के हिस्से की खाद महाराष्ट्र भेजने का भी आरोप है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने आरोप लगाया है कि एमपी के हिस्से की खाद महाराष्ट्र भेजा जा रहा है क्योंकि वहां चुनाव चल रहा है। जवाब में कृषिमंत्री एंदल सिंह कंसाना कह रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध के कारण खाद संकट खड़ा हुआ है। पहले राज्‍यों में चुनाव के मद्देनजर सोयाबीन के समर्थन मूल्‍य बढ़ाना और अब चुनाव को देखते हुए मध्‍यप्रदेश के हिस्‍से की खाद महाराष्‍ट्र भेज देने के आरोपों से घिरी सरकार के पास खाद संकट के समाधान का कोई जवाब नहीं है।  

शस्त्र के बाद अब गाय की सरकारी पूजा

किसान भले ही खाद के संकट से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार नए-नए राजनीतिक गिमिक रच रही है। मोहन सरकार का नया फरमान है कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के मौको पर प्रदेश के सभी मंत्री और अन्‍य नेता गोशालाओं में जा कर गौ पूजा करें। इसके पहले दशहरे पर शस्त्र पूजा की जा चुकी है।

सरकार के इस निर्णय पर पक्ष और विपक्ष में राय देने के पहले कुछ तथ्‍य जान लेने जरूरी है। अगस्‍त माह में एक समाचार आया था कि सतना जिले में कुछ लोगों ने करीब 50 गायों को उफनती नदी में फेंक दिया। इससे 15 से 20 गायों की मौत हो गई थी। लोगों ने गायों को नदी में फेंका क्‍योंकि वे आवारा मवेशियों से परेशान थे। इससे पहले भी रीवा में दर्जनों गायों को पहाड़ी पर ले जाकर उन्हें वहां से नीचे धकेल दिया गया था। तब भी कई गायों की मौत हो गई थी और कई गायों के पैर टूट गए थे। इस तरह की हैवानियत बढ़ रही है क्‍योंकि गायों की उपयोगिता खत्‍म हो चुकी है और लोग मवेशियों को सड़क पर छोड़ देते हैं। यही आवारा मवेशी सड़क दुर्घटनाओं का कारण भी बन रहे हैं। 

एक अनुमान है कि मध्‍य प्रदेश की सड़कों पर छह लाख से ज्यादा आवारा मवेशी हैं। प्रदेश में अभी 1900 गौशालाएं हैं जबकि 600 गौशालाएं निर्माणाधीन हैं। इनके पूरा होने पर एक लाख से अधिक निराश्रित गोवंश को आश्रयम मिल जाएगा फिर भी 5 लाख से ज्‍यादा मवेशी सड़क पर ही रहेंगे। अधूरी 600 गौशालां तब ही कारगर होंगी जब सरकार को इन गौशालाओं को प्रति वर्ष 140 करोड़ रुपए प्रदान करेगी। 

अब सरकार से मिलने वाले अनुदान की हकीकत जान लें। सरकार की ओर से गौ शालाओं को प्रति गाय मिलने वाली 20 रुपए कि राशि बढ़ाकर 40 रुपए कर दी गई है। सरकार ने घोषणा तो जरूर की मगर पैसा पहुंचा नहीं। तीन-चार माह का पैसा एक साथ भेजने से भी गौशालाओं में व्‍यवस्‍थागत दिक्‍कतें आ रही है। 

गोवर्धन पूजा के साथ गायों की पूजा करना एक कर्मकांड हो सकता है लेकिन गायों का कल्‍याण तो तब होगा जब सरकार सड़क तथा अव्‍यवस्‍था के कारण गौशालाओं में मर रही गायों के लिए बेहतर प्रबंधन व धनराशि जारी करे। 

कांग्रेस में रह गई बीजेपी का प्रचार करने वाली विधायक निर्मला सप्रे 

एमपी के बीना से विधायक निर्मला सप्रे अधर में फंस गई हैं। बीजेपी ने उन्‍हें अपना दुपट्टा तो पहना दिया लेकिन बीना को जिला बनाने सहित पार्टी में शामिल होने की उनकी शर्तों पर चुप्‍पी साध ली। इससे संदेश साफ गया कि  के पार्टी के दरवाजे उनके लिए खुले तो हैं लेकिन शर्तें मानी जाएंगी इतना राजनीतिक महत्‍व नहीं दिया जाएगा। बीजेपी के इस निर्णय से पहली बार विधायक बनी निर्मला सप्रे अब उलझ गई हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रचार किया था और अब मजबूरी में ही सही लेकिन वे कह रही हैं कि मैंने दल नहीं बदला है।

लोकसभा चुनाव के दौरान आई तस्‍वीरें बता रही थीं कि सागर जिले में बीना से कांग्रेस की एकमात्र विधायक निर्मला सप्रे 5 मई 2024 को राहतगढ़ में हुई चुनावी सभा में सीएम मोहन यादव के समक्ष बीजेपी में शामिल हुई थी। निर्मला सप्रे ने तब न केवल बीजेपी के प्रत्‍याशी का प्रचार किया बल्कि बीजेपी के कार्यक्रमों में लगातार शामिल भी हुई। समझदारी दिखाते हुए या कहिए राजनीतिक रूप से मोलभाव करते हुए निर्मला सप्रे ने कांग्रेस विधायक पद से इस्‍तीफा नहीं दिया है। उन्होंने बताया कि वे बीना का विकास चाहती हैं और बीना को जिला बनाने की शर्त रखी है। शर्त पूरी होगी तब ही बीजेपी में जाएंगी। बीजेपी ने उनसे प्रचार तो करवा लिया लेकिन शर्तों पर कोई ध्‍यान नहीं दिया। जबकि उनके साथ ही कांग्रेस से बीजेपी में आए रामनिवास रावत को न केवल कैबिनेट मंत्री बनाया बल्कि बीजेपी के टिकट पर मैदान में भी उतार दिया है। 

विधायक निर्मला सप्रे की गतिविधियों को पार्टी विरोधी मानते हुए कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्यता खत्म करने शिकायत दर्ज करवाई थी। विधानसभा सचिवालय ने भी बार-बार नोटिस भेज कर निर्मला सप्रे से अपनी स्थिति साफ करने को कहा था। यदि वे जवाब नहीं देती तो उनकी विधायकी खतरे में पड़ जाती। उन्होंने विधानसभा को भेजे जवाब में कहा है कि उन्होंने दल नहीं बदला है। 

विधायक निर्मला सप्रे ही नहीं कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में गए छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह भी मंत्री नहीं बन पाए हैं। इस राजनीतिक निर्णय का संदेश साफ है कि बीजेपी में शामिल हुए हर कांग्रेसी को मलाई नहीं मिलेगी। बीजेपी अपनी सुविधा और समीकरणों से तय करेगी कि किसके हिस्‍से में कितना लाभ जाएगा या कौन केवल प्रचारक बन कर रह जाएगा। 

कांग्रेस का ऐतिहासिक दांव, क्‍या संकट बनेंगे आदिवासी

विजयपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव का संघर्ष शुरू हो चुका है। बीजेपी ने यहां से पूर्व कांग्रेस विधायक और वर्तमान में वनमंत्री रामनिवास रावत को मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक दांव चला है। कांग्रेस ने इस सामान्‍य सीट से आदिवासी युवा मुकेश मल्‍होत्रा को टिकट दे कर वनमंत्री रामनिवास रावत ही नहीं बीजेपी के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। 

विजयपुर का मुकाबला इसलिए भी दिलचस्‍प हो गया है कि कांग्रेस छोड़ कर गए रामनिवास रावत बीजेपी से मैदान में हैं तो कभी बीजेपी में रहे मुकेश मल्‍होत्रा अब कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं। बीजेपी सरकार में मुकेश सहरिया विकास प्राधिकरण से अध्यक्ष भी रहे हैं। मुकेश मल्‍होत्रा ने कांग्रेस की सदस्यता तब ली थी जब रामनिवास रावत बीजेपी में शामिल हो गए थे। वे बीजेपी से नाराज थे इसलिए टिकट न मिलने पर 2023 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। आदिवासी होने के कारण उन्‍हें अपने समाज का खूब साथ मिला और चुनाव में 45 हजार वोट मिले थे। मुकेश मल्‍होत्रा के मैदान में होने के कारण ही बीजेपी के वोट कटे और कांग्रेस प्रत्‍याशी रामनिवास रावत जीत गए। 

जातीय समीकरण समझें तो पांएगे कि विजयपुर विधानसभा सीट पर 2 लाख 54 हजार मतदाता हैं। इनमें से लगभग 60 हजार आदिवासी मतदाता हैं। साफ है कि आदिवासी मतदाताओं का रूझान हार-जीत तय करता है। मुकेश मल्‍होत्रा अब कांग्रेस में हैं तो आदिवासी मतदाताओं के साथ कांग्रेस के मूल वोटर उनकी ताकत है जबकि रामनिवास रावत को बीजेपी की अंदरूनी राजनीतिक समीकरणों से हानि की आशंका है। इस नाराजगी को देखते हुए बीजेपी ने टिकट के अन्‍य दावेदार पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी को सहरिया विकास प्राधिकरण का अध्‍यक्ष बना कर मंत्री दर्जा दे दिया है। क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए सरकारी खजाना खोल दिया गया है। अपनों का समर्थन पाना और नाराज कार्यकर्ताओं को मना लेना ही विजयपुर में जीत का सूत्र होगा। 

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