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दो साल तक बिना किडनी के जिंदगी की जंग लड़ती रहीं मुजफ्फरपुर की  सुनीता 

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बिहार के मुजफ्फरपुर की सुनीता की यह कहानी शुरू से लेकर आखिर तक सरकारी लापरवाही, उपेक्षा और झूठे वादों से भरी पड़ी है

सुनीता से हमारी पहली मुलाकात जनवरी, 2023 में हुई थी. इससे करीब चार महीने पहले मुजफ्फरपुर के एक झोला छाप डॉक्टर ने पेट दर्द का इलाज करने के नाम पर गांव के तबेले जैसे अस्पताल में उनकी सर्जरी कर दी थी और दोनों किडनियां निकाल ली थीं. तीन सितंबर, 2022 को यह घटना मुजफ्फरपुर के बरियारपुर गांव में हुई थी. वहां अस्पताल चलाने वाले पवन कुमार का इलाज के नाम पर इतना ही तजुर्बा था कि उसने हरियाणा की एक दवा दुकान में तीन-चार साल काम किया था.

सुनीता को अक्सर पेट में दर्द रहता था. उनकी मां उन्हें अपने पड़ोस के इस गांव में इलाज के लिए ले गई थीं. पवन ने बताया कि गर्भाशय निकालना होगा. फिर मुजफ्फरपुर से एक डॉ. आरके सिन्हा को बुलाया गया और आनन-फानन में सुनीता की सर्जरी कर दी गई. सर्जरी के बाद जब उनकी हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें पटना ले जाया गया, वहां पीएमसीएच में पता चला कि उनकी दोनों किडनियां निकाल ली गई हैं.

इसके बाद कुछ दिन सुनीता का इलाज पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में चला. फिर वहां से उन्हें एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर भेज दिया गया. यहां आईसीयू में उन्हें एक स्थाई बेड मिल गया था और नियमित डायलिसिस शुरू हो गया. बिना एक भी किडनी के सुनीता उस बेड पर लगातार दो साल रहीं. इन दो साल के एक-एक दिन उन्होंने अपने लिए एक किडनी का इंतजार किया, जो नहीं मिली और आखिरकार 21 अक्तूबर, 2024 को उन्होंने डायलिसिस के दौरान ही दम तोड़ दिया. वे अपने पीछे एक सवाल छोड़ गईं कि सरकार और समाज की जिम्मेदारियों और वादों का क्या हुआ जिनके बूते वे लंबी जिंदगी की आस लगाए बैठी थीं.

एसकेएमसीएच आईसीयू के बेड नंबर एक पर सुनीता के साथ बैठी उसकी बेटी और पीछे उसके पति अकलू राम

इन दो साल में आधा दर्जन लोगों ने उन्हें किडनी डोनेट करने का वादा किया था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी अप्रैल, 2024 में बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि प्राथमिकता के आधार पर सुनीता का किडनी प्रत्यारोपण कराया जाए. जून, 2024 में मुजफ्फरपुर के लोकचेतना दल ने तो यहां तक कह दिया था कि दल के जिस साथी की किडनी सुनीता के साथ मैच होगी, वह किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. दल दो बार इसके लिए अनशन पर बैठा. सितंबर, 2024 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा खुद सुनीता से मिले और वादा किया था कि उन्हें जल्द किडनी उपलब्ध कराई जाएगी. मगर ये तमाम वादे, आश्वासन झूठे साबित हो गए.

सुनीता को अंदाजा था कि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है

पहली मुलाकात के वक्त सुनीता का कहना था, “मेरी हालत बहुत खराब है. भूख नहीं लगती, उल्टी होती है, खाना महकता है. चार महीने से पिसाब नहीं हुआ, किडनी नहीं है तो पिसाब कैसे होगा. डॉक्टर ने ज्यादा पानी पीने से मना किया है. गला सूखता है. डॉक्टर कहते हैं, हमको किसी और की किडनी लगेगी, तभी हम बच पाएंगे. इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए किडनी की व्यवस्था करवा दे. न हो तो उसी डॉक्टर या उसकी पत्नी की किडनी हमें दिला दे, जिसके कारण मेरी जिंदगी खराब हो गई. मेरे छोटे बच्चे हैं, हमको उनके जीने का आधार चाहिए. हमारे साथ जो अनहोनी हुई उसका मुआवजा चाहिए.”

हालांकि आरोपी पवन कुमार को इस कांड के कुछ ही दिनों बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. जून, 2024 को उसे सात साल की सजा सुनाई गई और उस पर 18 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया. एक अन्य आरोपी डॉ. आरके सिन्हा अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है.

सुनीता के लिए किडनी ट्रांसप्लांटेशन की कोशिश शुरुआत से ही होने लगी. पहले उनके पति अकलू राम और उनकी मां की जांच हुई. जांच में अकलू राम की किडनी मैच नहीं हुई. तब सुनीता ने बताया था, “मेरी मां की किडनी फिट हो सकती थी मगर वे जांच के लिए तैयार नहीं हुईं.” अकलू राम के मुताबिक पहले उनकी सास तैयार थीं, लेकिन बाद में सुनीता के भाइयों ने मना कर दिया. 

बरियारपुर गांव के इसी अस्पताल में हुई थी सुनीता की सर्जरी

आधा दर्जन लोग किडनी देने सामने आए

सुनीता की कहानी इतनी हृदय विदारक थी कि कई लोग उन्हें अपनी एक किडनी देने के लिए तैयार हो जाते थे. नवंबर, 2022 में दो लोगों ने उन्हें अपनी एक किडनी देने की मंशा जताई. पहले 76 साल के श्यामसुंदर थे, दूसरे युवा मुन्ना झा. इसके बाद अप्रैल, 2023 में पंखाटोली के मोहम्मद नसीम ने भी कहा कि वे अपनी एक किडनी सुनीता को देना चाहते हैं. इस बीच उन्हें किडनी दिलाने के लिए मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड में ढाई महीने से धरना चल रहा था. जब नसीम ने किडनी देने की घोषणा की तो धरना देने वाले प्रवीण भी इस बात से खुश हुए. लगा अब सब ठीक हो जाएगा. मगर कुछ हुआ नहीं. नसीम की जांच भी हुई या नहीं, पता नहीं चला.

अप्रैल, 2023 में ही एक और डोनर सुनीता को किडनी देने पहुंच गई. वह 23 साल की युवती थी. उसने शर्त रखी थी कि उसे किडनी के बदले सात लाख रुपए चाहिए. वह कहती थी कि उसे अपनी शादी के लिए पैसे जुटाना है. सुनीता के पति अकलू राम इस बात को लेकर अक्सर मीडिया में कहते कि सरकार उसे सात लाख रुपए दे ताकि वे अपनी पत्नी की किडनी ट्रांसप्लांट करा सकें. मगर यह एक तरह से मानव अंग का कारोबार हो जाता इसलिए शायद इस मसले पर सरकार मौन रही.

ऐसा लगता है कि सुनीता को डोनर मिलना कमोबेश आसाना था लेकिन इसके लिए अस्पतालों को राजी कराना ज्यादा मुश्किल काम था. यह लोकचेतना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीव कुमार झा के अनुभव से पता चलता है. वे बताते हैं, “जून, 2024 में हमने अपनी पार्टी की तरफ से कहा था कि मैं खुद किडनी देने के लिए तैयार हूं और अगर जांच में मेरी किडनी फिट नहीं पाई गई तो पार्टी के दूसरे लोग जिनकी किडनी फिट पाई जाएगी, वे अपनी किडनी सुनीता को देंगे. हमलोगों ने लिखित आवेदन दिया था मगर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. फिर हम लोग दो बार इसके लिए धरने पर बैठे कि हमारी जांच कराई जाए. आखिरकार 24 अगस्त, 2024 को मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन का पत्र मिला कि मैं 31 अगस्त 2024 को आईजीआईएमएस, पटना जाकर किडनी डोनेशन संबंधी जांच के लिए अपना सैंपल दे आऊं. मैं वहां गया भी, मगर वहां मेरा सिर्फ ब्लड ग्रुप का सैंपल लिया गया और कोई दूसरी जांच नहीं की गई. जांच में क्या निकला इसकी सूचना भी मुझे नहीं दी गई.”

सरकारी प्रक्रिया के जाल में उलझ जाते डोनर

संजीव पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं. वे तो किसी तरह अस्पताल पहुंच गए लेकिन बाकी डोनरों का क्या हुआ होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है. सुनीता को किडनी मिल जाए इसके लिए मुजफ्फरपुर में धरना प्रदर्शन भी हुआ और एक्टिविस्टों ने मानवाधिकार आयोग में लड़ाई भी लड़ी. शहर के वकील एसके झा ने चार नवंबर, 2022 को ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इस मामले की शिकायत कर दी थी. मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन से लेकर बिहार के मुख्य सचिव, डीजीपी और स्वास्थ्य सचिव तक को तलब किया था. नौ अप्रैल, 2024 को सुनाए गए अपने फैसले में आयोग ने कहा कि सुनीता का किडनी प्रत्यारोपण प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए और उसे नियमित इलाज की बेहतर व्यवस्था मिलनी चाहिए. 

एसके झा ने सुनीता की मौत के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में बिहार सरकार के खिलाफ अवमानना का मुकदमा भी दायर किया है. उनका कहना है कि राज्य सरकार मानवाधिकार के प्रति सजग नहीं है और सुनीता की मौत बिहार सरकार की लापरवाही का नतीजा है.

एसकेएमसीएच में सुनीता का नियमित डायलिसिस तो चलता रहा, मगर उसके किडनी प्रत्यारोपण के मामले में सरकार का रवैया ढीला-ढाला रहा. इस मामले में पूछे जाने पर एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर की अधीक्षक कुमारी विभा कहती हैं, “हमारे यहां सुनीता का नियमित डायलिसिस होता था. कभी हफ्ते में दो दिन तो कभी तीन दिन भी. उसके किडनी ट्रांसप्लांट के लिए हमने उसे आईजीआईएमएस, पटना भेजा. वहां वह एक महीने रही. मगर इस बीच में उसके लिए किडनी नहीं मिल पाई तो वह वापस आ गई. उस वक्त कहा गया था कि अगर इसके लिए किडनी की व्यवस्था होगी तो हम बुला लेंगे मगर फिर कोई सूचना नहीं मिली. एक व्यक्ति लोकचेतना दल के डोनेशन के लिए आये थे, उन्हें हम एंबुलेंस से वहां भेजे भी. फिर वहां से चिट्ठी नहीं आई कि इनका किडनी ट्रांसप्लांट हो सकता है. कोई खबर नहीं आई.”

इस मामले में आईजीआईएमएस के मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट मनीष मंडल ने इंडिया टुडे को बताया, “हमारी जिम्मेदारी सिर्फ इतनी थी कि अगर कोई उपयुक्त किडनी डोनर हमारे पास भेजा जाता है तो हम उससे किडनी लेकर सुनीता का ट्रांसप्लांट करेंगे. एक व्यक्ति आया था. उसे हमारे चिकित्सक ने पहले ट्रांसप्लांट कोआर्डिनेटर से मिलने, फिर संबंधित जांच कराकर आने कहा, मगर वह दुबारा आया नहीं. ऐसे में हमारे हाथ में कुछ नहीं था.”

फरवरी, 2024 तक बिगड़ने लगी थी सुनीता की हालत, पीछे टंगा रहता था पांच लाख मुआवजे का चेक

आखिर में हिम्मत जवाब देने लगी सुनीता की

सुनीता से हमारी आखिरी मुलाकात 24 फरवरी, 2024 को हुई. तब तक वे काफी कमजोर हो गई थीं. बात करने में उलझन होती थी. बार-बार तकिये में सिर छिपा लेती थीं. तब तक उन्होंने किडनी की मांग करना छोड़ दिया था. एसकेएमसीएच के आईसीयू में एक नंबर बेड उनका था. उनके बेड के पीछे लोहे के पाइप में पांच लाख रुपये के चेक का बड़ा सा कार्ड लगा था, जो खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने  14 सितंबर, 2023 को बतौर मुआवजा या मदद अस्पताल जाकर उन्हें दिया था.

उस दिन दोपहर को अकलू राम सुनीता के लिए भूजा लेकर आए. उन्हें दोपहर में भूजा खाने की तलब होती थी. एक साल के दरम्यान सुनीता को देखकर समझ आ गया था कि अब वह बचेगी नहीं. उसकी मौत की खबर सुनने के बाद हमने अकलू राम को कई बार फोन करने की कोशिश की, मगर उसका फोन स्विच्ड ऑफ बता रहा था.

सुनीता चली गई. अपने पीछे तीन बच्चे छोड़कर. अब सकरा के विधायक अशोक चौधरी ने इन तीन बच्चों की देखभाल और पढ़ाई का खर्चा उठाने का वादा किया है. अजीब विडंबना है कि अशोक चौधरी खुद किडनी के मरीज हैं और उनका रेगुलर डायलिसिस चलता है.

यह तस्वीर उस सुनीता की है, जो पिछले दो साल बीस दिन से बिना एक भी किडनी के जिंदा थी। सितंबर, 2022 में मुजफ्फरपुर के एक झोला छाप डॉक्टर ने  गर्भाशय निकालने के बदले उसकी दोनों किडनियां ही निकाल ली थी। दो साल तक SKMCH मुजफ्फरपुर के आईसीयू के इसी बेड नंबर एक पर किडनी की गुहार लगाते हुए जिंदा रही। हर हफ्ते उसका कभी दो तो कभी तीन डायलिसिस होता रहा। 

इस हादसे ने उसकी दुनिया बदल दी। अपनी मां मुंह फेर कर चली गई, एक बार पति भी झगड़ कर चला गया। इस अवधि में उसका साथ इस अस्पताल ने और शहर के कुछ सहृदय लोगों ने दिया। लोगों ने उसके लिए धरना प्रदर्शन किया, मानवाधिकार आयोग में शिकायतें की, उन्हें कम से कम छह लोगों ने अपना एक किडनी ऑफर किया।

मगर सरकारी सुस्ती और लापरवाही की वजह से उसे किडनी नहीं मिला। जून 2024 में उसे किडनी ऑफर करने वाले जनचेतना दल के संजीव झा कहते हैं, हमें तो अपना टेस्ट कराने के लिए दो बार धरना देना पड़ा, तब जाकर हमें अगस्त महीने में IGIMS भेजा गया। वहां के डॉक्टरों ने भी सिर्फ blood सेंपल लेकर मुझे वापस भेज दिया। मैं आज तक इंतजार करता रहा कि वे बताएंगे कि मेरा किडनी सुनीता के काम आ सकता है या नहीं। चार पांच महीने में इन लोगों ने सिर्फ टालमटोल किया।

हैरत की बात यह है कि इसी साल अप्रैल महीने में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार को साफ निर्देश दिया था कि सुनीता को प्राथमिकता के आधार पर किडनी लगाई जाए। सितंबर, 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने भी सुनीता को भरोसा दिलाया था। मगर…

यह तस्वीर फरवरी, 2024 की है, जब मैं सुनीता से आखरी बार मिला था। तब वह बात करने से भी झुंझला जाती थी। सीधे बैठ नहीं पाती थी। उसके पीछे लोहे की पाइप में फंसा पांच लाख का चेक भी आपको दिखेगा, जो पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद अस्पताल जाकर दिया था। मगर न पैसा, न व्यवस्था, न आमलोगों की सदिच्छाएं कोई उसे बचा नहीं पाया।

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