डॉ श्रीगोपाल नारसन
दिवाली हमेशा से अमावस्या के दिन ही मनाई जाती है। 31 अक्टूबर यानी गुरूवार को अमावस्था तिथि दिन में 2 बजकर 40 मिनट से लग रही है। इस कारण दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी।दिवाली के त्योहार पर रात्रि में अमावस्या तिथि होनी चाहिए जो कि 1 नवंबर 2024 को शाम के समय नहीं है। ऐसे में दिवाली का त्योहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है।इस बार लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर 2024 को शाम 5 बजे से लेकर रात के 10 बजकर 30 मिनट तक है।दिवाली पर लक्ष्मी पूजन हमेशा अमावस्या तिथि के रहने पर और प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद से लेकर देर रात तक करने का विधान होता है यानी अमावस्या तिथि, प्रदोष काल और निशिताकाल के मुहूर्त में दिवाली मनाना शुभ माना गया है। जिस दिन कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि रहें तो प्रदोष काल से लेकर आधी रात को लक्ष्मी पूजन करना और दिवाली मनाना ज्यादा शुभ व शास्त्र सम्मत रहता है। मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में ही हुआ था, जिसके चलते निशीथ काल में मां लक्ष्मी की पूजा और उनसे जुड़े सभी तरह की साधनाएं आदि करना विशेष महत्व का होता है। स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी का पूजन करने से महालक्ष्मी स्थिर रहती हैं। ऐसे में दिवाली पर प्रदोष काल में पड़ने वाले वृषभ लग्न में ही महालक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करना अति उत्तम रहेगा। पंचांग के अनुसार 31 अक्तूबर को वृषभ लग्न शाम को 6:25 से लेकर रात्रि 8:20 तक रहेगा। साथ ही इस समय प्रदोष काल भी मिल जाएगा। प्रदोषकाल, वृषभ लग्न और चौघड़ियां का ध्यान रखते हुए लक्ष्मी पूजन के लिए 31 अक्तूबर की शाम को 06:25 से लेकर 7:13 के बीच का समय सर्वोत्तम रहेगा। कुल मिलाकर 48 मिनट का यह मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
दिवाली की तैयारियां कई दिनों पहले से की जा रही है। दिवाली पर पूरे घर की साफ सफाई के साथ ही घर को दीयों और रंगबिरंगी लाइटों से सजाया जाता है। हर वर्ष दीपोत्सव का पर्व 5 दिनों तक धनतरेस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी यानि छोटी दिवाली , बड़ी दिवाली, गोवर्धन पूजा और अंत मे भाई दूज पर्व के रूप में मनाया जाता है। जबभगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे,तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दिवाली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीप जलाए। वही इसी दिन भगवान विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।जैन मत के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही पड़ता है। सिक्खों के लिए भी दिवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में सन 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। इसके अलावा सन1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
नेपाल में यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। स्वामी रामतीर्थ ने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ओम कहते हुए समाधि ले ली थी। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अपने प्राण त्याग दिये थे। हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी,विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं और गंदे स्थानों की तरफ देखती भी नहीं।
इसलिए इस दिन घर-बाहर को ख़ूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। कहा जाता है कि दिवाली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सदगृहस्थों के घर निवास करती हैं।त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है,वह दिवाली के दिन यह पर्व श्रखंला पूरे चरम पर होती है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है। यानी यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। इसी दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दिवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं,एक दूसरे से मिलते हैं।
घर-घर में सुन्दर रंगोली बनाई जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक,सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है।
दीपों के पर्व की हमारे जीवन में बहुत महत्ता है। मनुष्य के जीवन में आज अज्ञानता का अंधकार तेजी से फैलता जा रहा है। यदि हमें इससे दूर करने का प्रयास नहीं करेंगे तो जीवन में कभी भी रोशनी का प्रकाश नहीं फैल पाएगा। हम केवल रस्मों के रूप में ही दिवाली मना लेते है, लेकिन उसके आध्यात्मिक रहस्यों से विमुख हो रहे हैं। यदि हमें हर घर को रोशन करना है तो जीवन में ज्ञान का दीपक जलाना होगा। हमारा पर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता को किसी ना किसी रूप में आध्यात्मिक सत्ता से जोड़ता है।व्यर्थ के चिंतन से जब तनाव पैदा होता है तो हमारे सोचने का तरीका का तरीका बदल जाता है । हमें महसूस होता है कि जैसे किसी ने हमारे मन में जहर घोल दिया हो। इसलिए हमेशा अपने मन को अच्छे विचारों के साथ भरना चाहिए ताकि मन मे खुशियो का प्रकाश जगमगाता रहे। जितनी भी समस्याएं पैदा होती है वह कमजोर मन की उपज है। मन का भोजन अच्छा होगा तो अच्छे विचार जन्म लेंगे जो हमें गलत फहमियों से हमेशा दूर रखने में मदद करते है। इंसान जैसा सोचता है वैसा ही बनता है। हमेशा सकारात्मक सोचो, नकारात्मक विचारों की मन में कभी भी जगह न बनने दो। आत्मा की बैटरी को हमेशा चार्ज रखने के लिए सुबह शाम 20 मिनट तक मेडीटेशन जरूर करनी चाहिए। हर इंसान में कुछ न कुछ अच्छे गुण होते है, इसलिए अच्छे गुणों को धारण करने में कभी भी पीछे नही रहना चाहिए।तभी मन की सच्ची दिवाली सुख और सम्रद्धि को जन्म दे सकती हैऔर हम दिवाली का सच्चा रसानन्द प्राप्त कर सकते है।वास्तविक प्रकाश हमे अपने मन के अंदर करना है,जहां बुराई रूपी तमस दूर हो सके और अच्छाई रूपी प्रकाश प्रज्ज्वलित हो सके।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक एवं वरिष्ठ साहित्यकार है)
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