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महाराष्ट्र के सियासी घमासान में चर्चा सिर्फ चेहरों की

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नामांकन प्रक्रिया में न रैलियों का जोर दिखा और न ही नारों का शोर। बड़े-बड़े होर्डिंग भी कुछ खासे नजर नहीं आए। चुनावी चर्चा के केंद्र में यहां प्रधानमंत्री मोदी, शरद पवार एवं उद्धव ठाकरे हैं। यहां चर्चा कांग्रेस की भी है, अजीत पवार की भी है और छोटे दलों की भी। यहां मुद्दे भी बहुत हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या मतदाता मुद्दों पर वोट देंगे या चेहरों पर ही अपनी मुहर लगाएंगे।

 अनंत मिश्रा

देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य महाराष्ट्र 6 महीने में दूसरी बार सियासी घमासान के लिए तैयार है। यहां 288 सदस्यीय विधानसभा में विधायकों के चुनाव के लिए 20 नवंबर को मतदान किया जाएगा। मतदान में अभी दो सप्ताह से ज्यादा का समय शेष है लेकिन चुनावी चौसर पर शह – मात का खेल शुरू हो चुका है। सोमवार को नामांकन वापस लेने का अंतिम दिन है और शाम तक तस्वीर साफ हो जाएगी कि 288 सीटों के लिए कितने प्रत्याशी चुनावी समर में शेष हैं। यह भी साफ हो जाएगा कि सत्ता की सीधी लड़ाई के लिए तैयार दो प्रमुख गठबंधनों के बीच सीटों का तालमेल जमीनी स्तर पर कितना सफल रहा।

पांच महीने पहले लोकसभा चुनावों के लिए हुए सभी अनुमानों को गलत साबित करते हुए महाविकास अघाड़ी ने राजनीति के अखाड़े में महायुति को पटखनी दी थी लेकिन इस वक्त राज्य में किसकी हवा है कोई नहीं बता सकता। पांच दिन मुंबई से लेकर थाणे, रायगढ़, रत्नागिरी, सतारा और पुणे का चक्कर लगाया एवं जानने की कोशिश की कि क्या महायुति फिर सरकार बनाने जा रही है या विपक्षी महाविकास अघाड़ी सता छीन रही है। पांच दिन के इस सफर में पाया कि यहां मुद्दों की कमी नहीं है लेकिन बात जब वोट की आती है तो चर्चा सिर्फ चेहरे तक सिमट कर रह जाती है। लोगों ने तय कर रखा है कि किस तरफ जाना है लेकिन बोलने से वे बच रहे हैं।

23 नवंबर को किसकी सरकार बन रही है, पूछने पर मुंबई के रहने वाले निलेश निकम का जवाब सबसे सटीक लगा। कहने लगे, चार दशक में ये पहला मौका है जब राज्य की सत्ता के लिए बने नए गठजोड़ों ने अच्छे – अच्छे राजनीतिक पंडितों को भी असमंजस में डाल दिया है। सीआइएसएफ से सेवानिवृत्त निकम ने आगे कहा कि पिछले पांच सालों में महाराष्ट्र की राजनीति ने जो उतार – चढ़ाव देखे हैं, उसके बाद पूर्वानुमानों की यहां कोई जगह बची ही नही हैं। मुंबई से ही कुछ दूर आगे बढ़कर जब उद्धव ठाकरे के गढ़ थाणे में महाविकास अघाड़ी में चल रही खींचतान के बारे में ट्रैवल एजेंसी के मालिक सत्यम जाधव से पूछा तो दो टूक जवाब मिला कि लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव के अंतर को कांग्रेस समझ ही नहीं पा रही है। हरियाणा में धोखा खाने के बाद भी वह नहीं संभली। उद्धव ठाकरे समर्थक ने यहां उलटे मुझसे ही सवाल पूछ डाला कि उद्धव की टक्कर का नेता क्या पूरे महाराष्ट्र में दूसरा मिलेगा? मैंने फिर सवाल दागा कि क्या उद्धव, मोदी से ज्यादा लोकप्रिय हैं तो जवाब मिला लोकसभा में भाजपा 28 सीट लड़कर मात्र 9 सीट जीती जबकि उद्धव की शिवसेना ने 21 सीटों पर लड़कर 9 सीट जीत ली। अब बताओ ज्यादा लोकप्रिय कौन हैं?

मुंबई और इसके आस-पास के इलाके में शरद पवार की पार्टी का प्रभाव बेशक कम हो लेकिन यहां से आगे निकलकर पुणे में शरद पवार का प्रभाव अच्छा-खासा है। भतीजे अजीत पवार ने शरद का साथ छोड़ भाजपा से मिलकर उपमुख्यमंत्री का पद तो पा लिया लेकिन लोकसभा में उन्हें मात्र 1 सीट मिली। ऐसे में जब पुणे में सावित्री भोंसले से शरद पवार की चर्चा छेड़ी तो उन्होंने समझाया, साहेब (शरद पवार) 84 साल के हो गए हैं। संभवत: यह उनका आखिरी विधानसभा चुनाव है। यह चुनाव उनके राजनीतिक कौशल एवं अनुभव की परीक्षा हैं। पवार साहेब ने अनेक चुनौतियों पर विजय पाई हैं।अगले दिन पुणे से छह घंटे से अधिक की दूरी तय करके रत्नागिरी पहुंचा ही था कि वहां निजी विद्यालय के शिक्षक अतुल खेड़ेकर से चर्चा का दौर शुरू हो गया।

खेड़ेकर ने कहा कि वर्षों तक साथ रहकर लडऩे वाले आज अलग – अलग पालों में खड़े हैं। शिवसेना बिखर चुकी है। एनसीपी पार्टी भी दो धड़ों में बंट चुकी है। अब लड़ाई विचारधारा की नहीं बल्कि सत्ता हथियाने भर की रह गई है। खेड़ेकर ने कहा कि, कांग्रेस के हौसले तो बुलंद हैं लेकिन सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर उलझे पेंच को सुलझाने के फेर में पार्टी खुद ही उलझकर रह गई है। मतदान की तिथि अब बेहद करीब है लेकिन प्रदेश में चुनावी रंगत अभी जमी नहीं है। यहां चर्चा कांग्रेस की भी है, अजीत पवार की भी है और छोटे – छोटे दलों की भी। यहां हर बार की तरह मुद्दे भी बहुत हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या मतदाता मुद्दों पर वोट देंगे या चेहरों पर ही अपनी मुहर लगाएंगे।

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