बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का जल्द ही चुनाव होने वाला है। राष्ट्रीय अध्यक्ष की रेस में कई नाम शामिल हैं। जिसमें अनुराग ठाकुर, देवेंद्र फडणवीस और धमेंद्र प्रधान के नाम आगे बताए जा रहे थे लेकिन अब इनको पार्टी के ही एक बड़े नेता ने काफी पीछे छोड़ दिया है। अध्यक्ष पद की रेस में इनका नाम अब सबसे आगे बताया जा रहा है। वर्तमान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो चुका है। उन्हें कुछ महीने सेवा विस्तार दिया गया है। अब उनकी जगह नया अध्यक्ष चुना जाना है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े का नाम पार्टी अध्यक्ष के लिए सबसे आगे चल रहा है। इनका अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है।2024 में निभाई अहम भूमिका
विनोद तावड़े ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाई है। चाहे बिहार में एनडीए गठबंधन को पटरी पर लाना रहा हो या फिर दूसरी पार्टी के अहम नेताओं को बीजेपी में लाने की कवायद रही हो, इन सबमें सबसे अहम रोल विनोद तावड़े का ही रहा है। तावड़े राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। उनको राजनीति का काफी लंबा अनुभव है। वे बीजेपी के पुराने नेताओं में से एक हैं।
विनोद तावड़े एक नजर, छात्र नेता से भाजपा राष्ट्रीय महासचिव तक
विनोद तावड़े का जन्म 20 जुलाई 1963 को मुंबई के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। विनोद तावड़े चार दशकों से महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन कहे जाने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में की। भाजपा में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय होने के बाद वह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, प्रमोद महाजन और नितिन गडकरी के संरक्षण में बड़े हुए। 1980 में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में काम करना शुरू किया। इसके बाद 1988 में वह एबीवीपी के महासचिव बने। इस दौरान उन्होंने कई छात्र विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
-वे 1994 में भारतीय जनता पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और एक वर्ष के भीतर महाराष्ट्र में राज्य महासचिव के रूप में नियुक्त किए गए।
-चार साल बाद ही यानी 1999 में वह मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष बने वह सबसे कम उम्र में मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष पद पर आसीन होने वाले पहले नेता बने थे।
-2008 में पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र के उच्च सदन यानी विधान परिषद में भेजा। उन्होंने विधान परिषद के सदस्य के रूप में अपनी गहरी छाप छोड़ी। 2011 में वह विधान परिषद में विपक्ष के नेता बने।
-2014 में उन्हें बीजेपी ने बोरीवली विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और देखते ही देखते विधानसभा में पहुंच गये।
-उन्हें स्कूली शिक्षा, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया गया, लेकिन एक बार विधायक रहने के बाद भी उन्हें 2019 में टिकट नहीं दिया गया।
एक समय राजनीतिक करियर था दांव पर
एक समय ऐसा भी आया जब विनोद तावड़े का करियर दांव पर था। उन्हें 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया। लेकिन अगले ही साल पार्टी ने उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारी सौंप दी। उन्हें राष्ट्रीय सचिव का पद दिया गया। एक साल के भीतर ही 2021 में उन्हें पार्टी के महासचिव के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्हें हरियाणा के प्रभारी के तौर पर भी जिम्मेदारी दी गई।
-इसके बाद बिहार में जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य की ज़िम्मेदारी तावड़े को सौंपी गई और वे नीतीश कुमार को फिर से साथ लाने में कामयाब हुए।
-इस दौरान विनोद तावड़े ने कुछ समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ का संयोजन भी किया।
-2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में पार्टी का चेहरा बन गए थे। चूंकि विनोद तावड़े पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, इसलिए दोनों के बीच टकराव की चर्चा भी होती रही।
-विनोद तावड़े की राजनीतिक छवि बीजेपी के मराठा और चालाक नेता की रही है, लेकिन वे बीजेपी के पुराने दौर के नेताओं की परंपरा से आए हैं।
देवेन्द्र फडणवीस के प्रतिद्वंद्वी?
विनोद तावड़े की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कभी किसी से छुपी नहीं रहीं। 2014 में विधानसभा चुनाव की प्रचार सभा में उन्होंने सार्वजनिक रूप से गृह मंत्री पद की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन उन्हें स्कूल शिक्षा मंत्री का पद दिया गया।
यह भी चर्चा थी कि वह कुछ समय तक इस मंत्रालय से नाराज थे। इसके बाद उन्हें उच्च और तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, खेल और संस्कृति मंत्री का पद दिया गया, लेकिन 2014 से 2019 तक उन्होंने लगातार उतार चढ़ाव देखे।
दो साल के अंदर 2016 में कैबिनेट विस्तार में उनसे चिकित्सा शिक्षा मंत्री का पद लेकर गिरीश महाजन को दे दिया गया, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी माने जाते थे। विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले आशीष शेलार को स्कूली शिक्षा मंत्री का पद दिया गया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें सीधे तौर पर टिकट देने से इनकार कर दिया।
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