मुंबई,। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मतदान में कुछ दिन बाकी हैं इससे ठीक पहले चुनावी माहौल पूरी तरह गर्मा चुका है। इस बीच एनसीपी नेता शरद पवार ने बड़ा बयान दिया है जो राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से जुड़ा है। अजीत पवार जो कई बार राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे हैं और वर्तमान में भी हैं। सार्वजनिक तौर पर कई बार यह कह चुके हैं कि वे महाराष्ट्र का सीएम बनना चाहते हैं। राज्य की राजनीति में उनकी लंबी सक्रियता और एनसीपी में विभाजन से पहले उन्हें शरद पवार का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था।
2004 का साल अजीत पवार के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस दौरान महाराष्ट्र में राजनीतिक बदलाव आए। जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार केंद्र से बाहर हो गई, महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। एनसीपी ने 124 सीटों में से 71 सीटें जीतीं और राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। दूसरी ओर, कांग्रेस को 69 सीटें मिलीं, और शिवसेना 62 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर थी। तब एनसीपी के पास मौका था कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग करे, क्योंकि वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
अजीत पवार उस समय युवा और उभरते नेता थे, और उनकी सीएम बनने की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। लेकिन शरद पवार ने इस मौके को खारिज कर दिया और कांग्रेस के विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बना दिया था। शरद पवार ने इस फैसले पर अब खुलासा किया है। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया कि उनकी सोच यह थी कि पार्टी को नया नेतृत्व देना चाहिए और युवा नेताओं को आगे लाना चाहिए। इस कारण ही अजीत पवार, आरआर पाटिल और जयंत पाटिल जैसे नेता उभर कर सामने आए थे।
शरद पवार ने यह भी कहा कि हालांकि विलासराव देशमुख कांग्रेस के थे, लेकिन उनकी विचारधारा गांधी-नेहरू के सिद्धांतों के अनुरूप थी इसलिए उन्हें सीएम बनाना उपयुक्त था। उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी समुदाय को सत्ता में भागीदारी मिली, जिससे छगन भुजबल जैसे नेताओं को भी ताकत मिली। अजीत पवार कभी भी सीएम बनने से पीछे नहीं हटे। शरद पवार के इस फैसले पर दबी जुबान से सवाल उठाए जाते रहे हैं, और अजीत पवार की सीएम बनने की इच्छा अब भी कायम है।
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