प्रोफेसर राजकुमार जैन
सारे सर्वेक्षण, चुनावी आंकड़ों के माहिर खिलाड़ियों के चुनाव में कांग्रेस की जीत की मुनादी करने के बावजूद कांग्रेस हार गई। हार के बाद अखबारनवीश, कालम लिखने वाले, बुद्धिजीवी, लेखक, देसी चैनलों, सियासतदानों की कलम चुनाव के परिणाम की चीरफाड़ कर हार का असली कारण तथा कुछ उसका फोरी इलाज भी बयां कर रहे हैं। मजेदार बात यह है कि अगर कांग्रेस चुनाव जीत जाती तो अग्रिम रूप से तैयार अपने अंदाजे, सटीक होने की ताल ठोकते देर न लगती। परंतु हार होते ही पहले की सारी चुनावी विशेषज्ञ होने की महारथ को दरकिनार कर उनकी कलम ने नया रूख पकड़ लिया है। अधिकतर लेखो में कांग्रेस की अंदरूनी उठा पटक, उम्मीदवारों का गलत चयन, क्षेत्रीय दलों से समझौता न करने की ऐंठ, जाट बनाम गैर जाट,तथा कुछ अंदरूनी पैठ का दावा करने वाले विद्वान ईवीएम की गड़बड़ी वगैरह को हार का कारण बता रहे हैं। इसमें कुछ फोरी वजूहात ठीक भी हो सकती है। परंतु इसका असली कारण जो आगामी हर चुनाव में अपना फन फैलाएगा उसको नजअंदाज किया जा रहा है।
कोई माने या ना माने मुल्क के पैमाने पर हिंदुस्तान में राष्ट्रीय स्तर की दो ही पार्टियां वजूद में है। 108 साल पुरानी कांग्रेस तथा 1925 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में बनाई गई अखिल भारतीय जनसंघ, जिसका 1977 में आपातकाल के खात्मे के बाद जनता पार्टी में विलय कर दिया गया, तथा 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के रूप में इसके नये संस्करण की स्थापना हो गई। सवाल है की दोनों पार्टी की जो कार्य प्रणाली है उसमें क्या कांग्रेस भविष्य में भाजपा का मुकाबला कर पाएगी?
आरएसएस बीजेपी की चुनावी मशीनरी 24 घंटे, 365 दिन कुछ बाहरी तौर पर और कुछ अंदरुनी रूप में कार्य में जुटी रहती है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार शब्द ही सूर्य- परिवार के नाम पर बना है जिसका अर्थ है कि जैसे सूर्य परिवार के सारे ग्रह-उपग्रह सूर्य से प्रकाश पाते हैं वैसे ही संघ परिवार की सारी संस्थाएं जो की सैकड़ो की तादाद में है, जैसे भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, बजरंग दल, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सिख संगत, हिंदू राष्ट्र सेना, विद्या भारती, सरस्वती शिशु मंदिर, अखिल भारतीय शिक्षक महासंघ, वनवासी कल्याण आश्रम, लघु उद्योग भारती, अखिल भारतीय वकील परिषद, संस्कार भारती (कला जगत का संगठन) अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, राष्ट्र सेविका समिति, लोक भारती,अखिल भारतीय पूर्व सैनिक परिषद, भारत विकास परिषद, भारतीय रेल संघ, भारतीय रेल श्रमिक संघ, मछुआरे सहकारी समिति, नेशनल मेडिकोज ऑर्गेनाइजेशन, आर्गेनाइजेशन ऑफ़ मेडिकल प्रैक्टिशनर, विवेकानंद चिकित्सा मिशन, विज्ञान भारती, अखिल भारतीय इतिहास संकल्प योजना, अखिल भारतीय इतिहास सुधार परियोजना, हिंदू छात्र परिषद (प्रवासी हिंदू छात्र शाखा)अखिल जम्मू कश्मीर प्रजा परिषद, संस्कृत भारती, कीड़ा भारतीय खेल परिषद, सामाजिक समरसता मंच,, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, दधीचि देहदान समिति, श्री सनातन भवानी सेवा ,माय होम इंडिया पूर्वोत्तर भारत विकास, परिषद, चिन्मया मिशन, सबरीमाला अय्यप्पा सेवा समाज, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, दुर्गा वाहनी, हिंदू सेवा प्रतिष्ठान, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, इंडियन फेडरेशन थिंक टैंक, वगैरा-वगैरा।
इसी के साथ साथ कई रिसर्च सेंटर जैसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च सेंटर, दीनदयाल शोध संस्थान, भी कार्यरत हैं। दुनिया के 80 से अधिक देशों में अलग-अलग नाम से यह सक्रिय है। तकरीबन 200 से अधिक क्षेत्रीय संगठन है।
हिंदू मुसलमान, पाकिस्तान हिंदुस्तान का नारा उछालकर आज इनकी पैठ उन तबको जिनके खिलाफ यह बने हैं उन तक हो गई। दूर दराज के पहाड़ी जनजातियों में इन्होंने अपने आश्रम, स्कूल, विद्यार्थियों को वजीफा, भारत भ्रमण करा कर अपना समर्थन बना लिया। संघ परिवार बहुत ही शातिर तरीके से गरीब बेरोजगार दलित पिछड़े तपके के नौजवानों को जो मालिन, कच्ची, झुग्गी झोपड़ियो,अनधिकृत बस्तियों में गुजर बसर करते हैं उन्हें धार्मिकता के नाम पर कावड़, प्रभात फेरिया जैसे आयोजन कर मजहबी जशन से जोड़ने के लिए बड़ी तैयारी और बड़े पैमाने पर इसके लिए प्रचार, खाने-पीने स्वागत टेंट लगाने खर्च करके इसका इंतजाम करते हैं। बड़ी चालाकी से अपने स्वयंसेवकों के द्वारा उनमें उन्मादी नफरती नारे को बुलंद आवाज में लगवा कर जहनी तौर पर अपना लठैत बना लिया है। ग़ौरतलब बात यह है कि भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बच्चे इसमें शामिल नहीं होते।
जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचारधारा का पावर हाउस बनकर अपने संगठनों को उनके उसूलों पर चलने की याद, हिदायत देते रहता है वैसे ही क्यों नहीं कांग्रेस, सोशलिस्ट कम्युनिस्ट विचारधारा के वैचारिक संगठन बिना सत्ता के गलियारे में जाए अपनी वैचारिक फलक फैलाने के लिए लामबंद होते। ठोस विचारधारा आधारित तीन ही धाराएं हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (भाजपा) सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट, हालांकि कांग्रेस लोकतांत्रिक गैर सांप्रदायिक आजादी के मूल में यकीन रखने का दावा करने वाली जमात है, यह बात दीगर है की अमल में उपरोक्त विचारधाराए अपने किताबी सिद्धांतों को व्यवहार में अपनाती है या नहीं या किस हद तक। कई ऐसी पार्टियों की मौजूदगी भी हिंदुस्तान में है जिनका क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दखल तो वक्त वक्त पर बना रहता है मगर वह बड़े फख्र के साथ ऐलान करती है कि हमारा कोई मेनिफेस्टो नहीं है। केवल चुनाव जीतने के लिए वक्ती तौर पर कौन-कौन से ऐलान फायदेमंद होंगे उसको पेश करते हैं। बेशुमार दौलत संघ ने इकट्ठा कर बड़े-बड़े संस्थान कायम कर लिए। दिल्ली शहर के हर जिले में इन्होंने करोड़ों रुपए से खरीद कर कार्यालय बना लिए। दिल्ली के राऊज एवेन्यू अब दीनदयाल उपाध्याय मार्ग जैसी प्राइम जगह पर 8-10 बड़े-बड़े प्लाट सरकार से आवंटित कर अपने विभिन्न संस्थाओं के दफ्तर कायम कर लिए, वहीं पर 200 सुसज्जित एयर कंडीशन कमरों में रहने खाने पीने की सुविधा देकर पार्टी के हित के लिए रिसर्च स्कॉलर बैठा दिए। भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय कार्यालय तथा झंडेवालान का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय जिसमें सैकड़ो संघसेवक कार्यरत हैं। विशालकाय इमारत की तामीर इन्होंने कर ली है। हिंदुस्तान के तमाम टेलीविजन चैनलों, अखबारों पर इनका कब्जा है। मुख्तलिफ मोर्चा पर उनके पूर्णकालिक कार्यकर्ता सक्रिय है।
एक कड़वी सच्चाई को कबूल करना होगा की अकेली भाजपा ही है जिसमें कभी विद्रोह नहीं हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर कुछ लोगों ने चाहे अलगाव कर लिया हो परंतु संगठन पर कोई असर नहीं पड़ा। चुनाव में जीत के लिए मुख्यमंत्री से लेकर वर्तमान एमएलए, मंत्री का टिकट काटकर किसी नए आदमी के सिर पर ताज पहना देते हैं। अगर हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री रहे होते तो भाजपा चुनाव हार जाती। क्या इतनी हिम्मत कांग्रेस में है? भाजपा अब जाति समीकरण खेल को और दलों के मुकाबले बेहतर ढंग से खेल रही है। उधर दूसरी ओर कांग्रेस का दिल्ली शहर में पिछले 10 -15 साल में पार्टी संगठन का नवीनीकरण ही नहीं हुआ। मेरे कहने का मतलब है कि जब तक कांग्रेस अपना आमूलचूण परिवर्तन नहीं कर लेती तो लड़ाई एक तरफा ही रहेगी। भाजपा का मुकाबला कांग्रेस के साथ तालमेल बैठाकर ही हो सकता है। कांग्रेस को अब एयर कंडीशन कमरों से निकलकर सड़क पर संघर्ष करना होगा। जमीनी कार्यकर्ताओं के स्थान पर नेताओं के दरबारीयों को तरजीह देने की परंपरा को खत्म करना होगा। कांग्रेस की यह ऐंठ कि हम ही हैं, वह भी अब नहीं चलने वाली। सहमना विचारों वाले दलों, लोगों को अपने साथ जोड़ना होगा। जब कांग्रेस का कैडर सड़क पर संघर्ष करते हुए जेल जाने की मानसिकता, लोकतांत्रिक समाजवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से शिक्षित और दीक्षित होकर जनता के बीच सक्रिय होगा तो लाख भाजपा के शक्तिशाली होने पर भी उसको शिकस्त दी जा सकेगी। केवल जोड़ तोड़, फलां नेता, फलां जात, मजहब के समीकरण के खेल में कभी भी भाजपा को पराजित नहीं किया जा सकेगा। जब इतनी बड़ी शक्ति भाजपा के पास है तो वह धन-छल, बल से चुनाव में जीत का रुख अपनी तरफ मोड़ते रहेंगे, धांधली करते रहेंगे।
परंतु अभी भी हिंदुस्तान में बहुमत में सद्भाव, सामंजस्य, सह-अस्तित्व की भावना है। बेकारी, महंगाई , किसानों मजदूरों की बेहाली के कारण आम आदमी आज भी भाजपा के खिलाफ लामबंद हो सकता है।
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