सनत जैन
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, जल जीवन मिशन के तहत गांव-गांव के लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो। इसके लिए नल-जल योजना शुरू की गईं थी। यह योजना शुरू हो पाती, इससे पहले ही इस योजना ने दम तोड़ दिया है। दरअसल नल-जल योजना को ठेके पर चलाने की बात सामने आने लगी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने नल-जल योजना का काम ग्रामीण क्षेत्रों में, ग्राम पंचायत को तथा नगरीय क्षेत्रों में नगर पालिका और नगर निगम को सौंप रखा है। नगरीय क्षेत्र में पहले भी नगरीय संस्थाओं द्वारा पेयजल की सप्लाई की जा रही थी। इस योजना को बढ़ाकर गांव-गांव तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के अंतर्गत, प्रत्येक गांव को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी। इस योजना के लिए विश्व बैंक से अरबों रुपए का कर्ज लिया गया। वैश्विक सहायता भी मिल रही है।
जिस तरह का दावा किया गया था। उसका 50 फ़ीसदी भी काम पूरा नहीं हो पाया। हाल ही में मध्य प्रदेश में जल जीवन योजना के तहत ग्राम पंचायत, नल-जल योजना की समीक्षा की गई। पंचायतों को संचालन और मेंटेनेंस करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। योजना का जो उद्देश्य था, वह पूरा नहीं हो पा रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने के लिए पंचायत को निरंतर आर्थिक सहायता देने की जरूरत है। आर्थिक सहायता देने के नाम पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया है।
ग्राम पंचायत अपने सीमित आर्थिक संसाधन में इतनी महंगी योजना का संचालन करने में असमर्थ है। 4 साल के अंदर ही मध्य प्रदेश के गांवों में नल-जल योजना के तहत पेयजल उपलब्ध कराने में तरह-तरह की कठिनाइयां देखने को मिल रही हैं। प्रमुख रूप से आर्थिक कठिनाई के साथ-साथ मेंटेनेंस को लेकर कई समस्याओं का सामना ग्राम पंचायतों को करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के पीएचई विभाग द्वारा अब नल-जल योजना को निजी ऑपरेटर के द्वारा संचालित करने के लिए एक योजना तैयार की जा रही है। मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव ने पीएचई विभाग से ठोस प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है।
मध्य प्रदेश के 27150 ग्राम नल-जल योजना से जोड़े गए हैं। पिछले 4 वर्षों में इसमें से केवल 12500 गांव तक ही यह योजना पहुंच सकी है। केंद्र एवं राज्य सरकारें यह दावा करती हैं, कि यह योजना हर घर तक पहुंच गई है। लेकिन अभी भी मध्य प्रदेश के ही 15000 से ज्यादा गांव के लोगों के घरों में पेयजल कनेक्शन नहीं हो पाए हैं। जिन 12500 गांव में योजना शुरू हो गई है, उनमें भी नियमित रूप से पेयजल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। बिजली, प्रशिक्षित कर्मचारी और अन्य कारणों से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना अभी भी दूर की कौड़ी है। यह सपना केवल कागजों पर ही संभव हो पा रहा है। मध्य प्रदेश में पंचायत ने जल कर के रूप में मात्र 4.68 करोड रुपए जनता से वसूल किये हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने अभी तक 52.50 लाख परिवारों को नल कनेक्शन देने का दावा किया है। 60 रुपये प्रतिमाह की दर से 378 करोड रुपए प्रतिवर्ष पंचायतों को जलकर के रूप में वसूल करना थे। उसकी दो फ़ीसदी राशि भी पंचायत वसूल नहीं कर पा रहीं हैं। इस कारण आर्थिक कारणों से, अब नल-जल योजना को निजी क्षेत्र को देने की तैयारी शुरू हो गई है।
केंद्र सरकार के जो प्रोजेक्ट बड़े ताम-झाम से शुरू किए जाते हैं, बहुत प्रचार-प्रसार किया जाता है। ऐसे सुंदर सपने दिखा दिए जाते हैं कि लोगों को लगता है उनके अच्छे दिन आ गए हैं। इस तरह की योजनाएं अपना स्वरूप ले पायें, उसके पहले ही उनका अस्तित्व दांव पर लग जाता है। केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी को लेकर भी कुछ इसी तरह के दावे किए थे। देशभर की सभी स्मार्ट सिटी के लिए जो योजना बनाई गई थी, वह सपना भी सरकार से पूरा नहीं हुआ। हजारों करोड़ रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। सरकारी जमीनों की स्मार्ट सिटी के नाम पर खरीद बिक्री हो गई। वह नहीं हुआ, जो स्मार्ट सिटी को लेकर दावे किए गए थे। आज देश की लगभग सभी स्मार्ट सिटी बंद होने की कगार पर हैं। इन्हें कहीं से भी वित्त उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
केंद्र और राज्य सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। कुछ इसी तरह की स्थिति गांव-गांव में नल-जल योजना में देखने को मिल रही है। हजारों करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए। भारी भ्रष्टाचार हुआ। योजना का जो हश्र होना था, वह सबके सामने है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नगरीय निकायों की तरह पंचायत को भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाए बिना, जब इस तरह की योजनाओं को संचालित करती हैं, तो उसके परिणाम इसी तरह से सामने आते हैं। नगरीय संस्थाएं और ग्राम पंचायतें बिजली का बिल भी नहीं भर पाते हैं। कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पाती हैं। उनके ऊपर इस तरह से अतिरिक्त भार डालकर जो सुविधाएं मिल रही होती हैं वह भी खत्म हो जाती हैं। गांव के विकास को लेकर अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार निर्णय लेती हैं। केंद्र और राज्य स्तर के ठेकेदार योजनाओं के पैसे से योजना की शुरुआत करते हैं। पैसा खत्म और योजना हजम जैसी स्थिति पिछले 10 सालों से देखने को मिल रही है। यहां बात केवल मध्य प्रदेश की नहीं हो रही है।
देश के सभी राज्यों में जल जीवन मिशन की यही हालत है। सरकार में बैठे मंत्रियों, अधिकारियों और ठेकेदारों ने पिछले वर्षों में जमकर जल जीवन मिशन में कमाई की है। अब ग्राम पंचायतों के ऊपर योजना के संचालन की जिम्मेदारी डाल दी गई है। जब नगरीय संस्थाओं और पंचायतों के पास आर्थिक दांत नहीं हैं, तब उन्हें चने चबाने के लिए कहा जा रहा है। ग्राम पंचायत जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक होगी, वही नल-जल योजना को संचालित कर पाएगी। जो ग्राम पंचायत आर्थिक रूप से सक्षम होगी। उन्हीं को शुद्ध पेयजल मिल पाएगा। अभी तो हालात यह हो गए हैं। जल जीवन मिशन की योजना को संचालित करने के लिए पंचायत में जो साफ सफाई हो रही थी जो थोड़े-मोड़े गांव में विकास के काम हो पा रहे थे, वह भी बंद हो गए हैं। अब जल जीवन मिशन का पानी भी नहीं मिल पा रहा है। सरकारी योजनाओं का यही हश्र और नागरिकों का यही भाग्य है। यही कहकर संतोष किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं है।
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