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दरिया से सागर तक फ़िलिस्तीन आजाद होगा ,होकर रहेगा: अरुंधती रॉय

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झे पेन पिंटर पुरस्कार से नवाजने के लिए मैं इंग्लिश पेन के सदस्यों और जूरी सदस्यों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं। मैं शुरुआत इस साल के साहसी लेखक के नाम की घोषणा के साथ करना चाहूंगी जिन्हें मेरे साथ पुरस्कार साझा करने के लिए चुना गया है।

अला अब्द एल फतह, साहसी लेखक और मेरे साथी पुरस्कार प्राप्तकर्ता, आपको मेरा अभिवादन। हमने उम्मीद की थी और दुआ भी कि आप सितंबर में रिहा किए जाएं लेकिन मिस्र सरकार ने फैसला किया कि आपके जैसे बेहतरीन लेखक और खतरनाक विचारक को अभी आजाद किया जाना ठीक नहीं होगा।

लेकिन आप हमारे साथ इस कमरे में मौजूद हैं। आप यहां सबसे महत्वपूर्ण शख्स हैं। आपने जेल में लिखा है : (मेरे) शब्दों ने ताकत खो दी लेकिन मेरे अंदर से निकलते रहे। मेरी आवाज बची हुई थी, भले सुनने वाले मुट्ठी भर हों।” हम सुन रहे हैं अला, ध्यान से सुन रहे हैं। 

आपको और मेरी प्यारी नाओमी क्लीन को जो अला और मेरी दोनों की दोस्त है, अभिवादन। आज यहां होने के लिए शुक्रिया। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है। 

यहां सभी उपस्थितजनों को अभिवादन, उन्हें भी जो इन दर्शकों को नहीं दिख रहे हैं, लेकिन मुझे और इस कमरे में मौजूद किसी भी शख्स के लिए दर्शनीय हैं। मैं भारत में जेल में बंद अपने दोस्तों और साथियों, वकीलों, शिक्षाविदों, छात्रों, पत्रकारों, उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी, शरजील इमाम, रोमा विल्सन, सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राऊत की बात कर रही हूं। 

मैं आपसे भी बात कर रही हूं, मेरे दोस्त खुर्रम परवेज़, जिन बेहतरीन लोगों को मैं जानती हूं उनमें से एक, आप तीन साल से जेल में हैं और इरफान महाराज आपसे भी और उन हजारों लोगों से कश्मीर और देश के विभिन्न हिस्सों में जेल में हैं, जिनकी ज़िंदगियां तबाह हो चुकी हैं। 

जब रुथ बोर्थविक, इंग्लिश पेन और पिंटर पुरस्कार के प्रमुख ने पहली बार मुझे इस पुरस्कार की सूचना देते लिखा था, उन्होंने कहा कि पिंटर पुरस्कार उस लेखक को दिया जाता है, जो अपनी बेहिचक, लाजवाब और प्रखर बौद्धिक दृढ़ता से ‘हमारी जिंदगियों और समाजों के वास्तविक सच’ को परिभाषित करना चाहता है। यह हैरोल्ड पिंटर के नोबल पुरस्कार स्वीकृति भाषण से उद्धरण है। 

शब्द ‘बेहिचक’ ने मुझे एक पल के लिए रुकने पर मजबूर किया, क्योंकि मैं अपने बारे में सोचती हूं, तो पाती हूं कि मैं लगभग हमेशा हिचकिचाती रहती हूं।  

मैं इस ‘हिचक’ और ‘बेहिचक’ के विषय पर कुछ बोलना चाहूंगी। जो शायद हारोल्ड पिंटर की कही बात के जरिए रेखांकित किया जा सकता है:

“मैं 80 के दशक के अंतिम वर्षों में लंदन में अमरीकी दूतावास में एक बैठक में मौजूद था। 

“अमरीकी संसद यह निर्णय करने वाली थी कि क्या निकारगुआ के खिलाफ अभियान में बाग़ियों को और पैसा दिया जाना चाहिये। मैं निकारगुआ की तरफ से बोलने वाले प्रतिनिधिमण्डल का सदस्य था पर इस प्रतिनिधि मण्डल के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य फादर जॉन मेटकैफ थे।

अमरीकी इकाई के नेता रेमंड सेट्ज़ थे (उस समय महवाणिज्य दूत के बाद दूसरे क्रमांक पर थे, बाद में वह खुद महवाणिज्यदूत बने) फादर मेटकैफ ने कहा, “सर, मैं उत्तरी निकारगुआ में पेरिस का प्रभारी हूं। मेरे लोगों ने एक स्कूल, एक स्वास्थ्य केंद्र, एक सांस्कृतिक केंद्र बनाया।

उन्होंने स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सांस्कृतिक केंद्र, सब तबाह कर दिया। नर्सों, शिक्षिकाओं के साथ बलात्कार किया, डॉक्टरों की नृशंस तरीके से हत्याएं कीं। उन्होंने हैवानों की तरह व्यवहार किया। कृपया अमरीकी सरकार से इस आतंकी गतिविधि से समर्थन वापस लेने की मांग करें। 

“रेमंड सेट्ज़ की छवि एक तर्कशील, जिम्मेदार और विवेकी शख्स की थी। कूटनीतिक हल्कों में उनका बहुत सम्मान था। उन्होंने सुना, रुके और गंभीरता से बोलना शुरू किया, “फादर, मैं आपको एक बात बता दूं, युद्ध में निर्दोष लोग हमेशा यातनाएं झेलते हैं।” एक भयावह सन्नाटा छा गया। हमने उन्हें घूरकर देखा। उन्होंने पलक तक नहीं झपकाई।” 

याद रखें राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने बाग़ियों को “हमारे संस्थापकों के समान नैतिक” करार दिया था। यह उक्ति उन्हें बेहद पसंद थी। उन्होंने सीआइए समर्थित अफ़गान मुजाहिदीन के लिए भी इस्तेमाल की, जो बाद में तालिबान बने। और आज अमरीकी घुसपैठ और कब्जे के खिलाफ 20 वर्ष लंबे युद्ध के बाद तालिबान अफगानिस्तान पर शासन कर रहे हैं।

बागी और मुजाहिदीन से भी पहले वियतनाम में युद्ध हुआ था और बेहिचक अमरीकी सैन्य सिद्धांत ने अपने सैनिकों को “जो हिलती हुई चीज दिखे, उसे मार डालो’ के आदेश दिए थे। यदि आप वियतनाम के खिलाफ अमरीकी लड़ाई पर पेन्टागन पेपर और अन्य दस्तावेज़ पढ़ेंगे तो आपको नरसंहार कैसे किया जाए, इस पर कुछ रोचक बेहिचक चर्चाएं पढ़ने को मिलेंगी।

क्या लोगों को सीधे मार देना ठीक होगा या उन्हें धीरे-धीरे भुखमरी से मारा जाए? कौन सा तरीका बेहतर रहेगा? पेंटागन में करुण अधिकारियों की समस्या अलग ही थी।

वह मानते थे कि अमरीकी “ज़िंदगी, खुशियां, समृद्धि और ताकत चाहते हैं लेकिन इसके विपरीत एशियाई निर्लिप्त भाव से समृद्धि और ज़िंदगियों का नुकसान स्वीकार करते हैं और अमेरिका को मजबूर करते हैं अपने रणनीतिक तर्क को परिणिती तक पहुंचने के लिए अर्थात नरसंहार के लिए। यह एक ऐसा बोझ है जो उन्हें बेहिचक उठाना पड़ता है। 

और आज, इतने साल बाद, एक साल से चल रहे नरसंहार के बीच हैं। एक नस्लभेदी राज्य के और औपनिवेशिक कब्जे के बचाव में अमेरिका और इजराइल के गज़ा और अब लेबनॉन में जारी बेहिचक और टीवी पर प्रसारित हो रहे नरसंहार के बीच।

मृतक संख्या, आधिकारिक रूप से अब तक 42,000 हैं, जिनमें से अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। इनमें वह लोग शामिल नहीं है जो इमारतों, कॉलोनियों, समूचे शहरों के मलबे में दबकर मरे हैं, और जिनके शव अब तक निकाले नहीं जा सके हैं।

ऑक्सफाम के एक हालिया अध्ययन के अनुसार इजराइल द्वारा गज़ा में जितने बच्चे मारे गए हैं, पिछले 20 वर्षों में किसी भी अन्य युद्ध में समान अवधि में मारे गए बच्चों से अधिक हैं। 

एक नरसंहार, लाखों यूरोपीय यहूदियों की नाजी तबाही के प्रति शुरुआती वर्षों में उदासीनता के अपने सामूहिक अपराध बोध को सहलाते हुए अमेरिका और यूरोप ने एक और नरसंहार का मैदान तैयार किया है। 

इतिहास में जातीय सफाये और नरसंहार करने वाले किसी भी और राज्य की तरह, इजराइल के जायनवादी, जो खुद को ‘चुने हुए लोग’ मानते हैं, ने फिलिस्तीनियों को उनकी जमीन से खदेड़ने और फिर हत्या करने की शुरुआत उनके अमानवीकरण से की। 

प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगिन ने फिलिस्तीनियों को “दो पैरों वाले जानवर” कहा, यित्ज़ाक राबिन ने उन्हें ‘टिड्डी’ कहा ‘जो कुचले-मसले जा सकते हैं’ और गोल्डा मीर ने कहा, “फिलिस्तीनियों जैसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है।”

फासीवाद के खिलाफ लोकप्रिय योद्धा विंस्टन चर्चिल ने कहा था, “मैं नहीं मानता कि चरनी में कुत्ते को अंतिम अधिकार है, भले वह वहां काफी समय से पड़ा हुआ हो और फिर उन्होंने घोषणा की कि एक “ऊंची नस्ल” को चरनी पर अंतिम अधिकार है।

एक बार यह दो पैरों वाले जानवर, टिड्डी, कुत्ते और आस्तित्वविहीन लोग मार दिए गए, गेटो में डाल दिए गए, एक नए देश का जन्म हुआ। “लोगों से मुक्त जमीन, जमीनविहीन लोगों के लिए’ के रूप में इसका जश्न मनाया गया।

न्यूक्लियर से सुसज्जित इजराइल अमेरिका और यूरोप के लिए मध्य पूर्व की प्राकृतिक संपदा और संसाधनों की दिशा में मुख्यद्वार और सैन्य चौकी का कार्य करने वाला था। उद्देश्यों और इरादों का एक प्यारा इत्तेफाक। 

नए देश को बेझिझक और बेहिचक समर्थन दिया गया और हथियार, पैसे मुहैया कराए गए, उसे गले लगाया गया, उसके लिए तालियां पीटी गईं, भले ही उसने कितने भी अपराध किए हों। वह एक समृद्ध परिवार में संरक्षित बच्चे की तरह पला-बढ़ा जिसके अभिभावक उसकी हर हरकत पर गर्व से मुस्कुराते हैं।

आश्चर्य नहीं कि आज वह नरसंहार करने को लेकर भी खुलकर शेखी बघार सकता है। (कम से कम पेन्टागन पेपर्स गोपनीय थे। वह दस्तावेज़ चुराने पड़े थे और लीक करने पड़े थे।) आश्चर्य नहीं कि इजराइली सैनिकों ने सभ्यता को पूरी तरह से भुला दिया है।

आश्चर्य नहीं कि वह सोशल मीडिया पर अपने ऐसे वीडियो डालते हैं जिनमें वह मारी गई या विस्थापित महिलाओं के अंतर्वस्त्र पहने रहते हैं, वह मरते फिलिस्तीनियों, घायल बच्चों और प्रताड़ित कैदियों की नकल करते वीडियो पोस्ट करते हैं, सिगरेट फूंकते हुए या अपने हेडफोन पर संगीत पर झूमते हुए इमारतें उड़ाने की छवियां पोस्ट करते हैं। कौन हैं यह लोग?

जो इजराइल कर रहा है, उसे क्या किसी भी तरीके से जायज करार दिया जा सकता है। 

इजराइल और उसके सहयोगियों, और पश्चिमी मीडिया का जवाब है, हमास का इजराइल पर पिछले साल 7 अक्तूबर को किया गया हमला। इजराइल नागरिकों की हत्या और इसराइलियों को बंधक बनाया जाना। उनके अनुसार इतिहास एक साल पहले ही शुरू हुआ था। 

तो, मेरे भाषण का यह वह हिस्सा है, जहां मुझे खुद को, मेरी ‘तटस्थता’ को, मेरे बौद्धिक रुख को बचाने के लिए संतुलन बनाने की अपेक्षा है। यह वह हिस्सा है जहां मुझे संतुलन बनाना है और हमास की निंदा करनी है, गज़ा में अन्य उग्रवादी समूहों की, उनके सहयोगी लेबनॉन के हिजबुल्लाह की नागरिकों को मारने और लोगों को बंधक बनाने के लिए निंदा करनी है।

और उन गज़ावासियों की भी निंदा करनी है, जिन्होंने हमास हमले पर खुशी जताई। ऐसा करने पर सब आसान हो जाएगा। नहीं? क्या करें, सभी बुरे हैं? चलो, इस पचड़े में पड़ने के बजाय थोड़ी शॉपिंग कर लेते हैं।  

मैं यह निंदा का खेल खेलने से इनकार करती हूं। मैं खुद को स्पष्ट कर दूं। मैं उत्पीड़ित लोगों को यह ज्ञान नहीं देती कि उत्पीड़न का प्रतिरोध कैसे करें या उनके साथी कौन होने चाहिए। 

जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाईडेन 23 अक्तूबर को अपनी इजराइल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और इजराइल की वॉर कैबिनेट से मिले तो उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि आपको एक जायनवादी होने के लिए यहूदी होना जरूरी है, मैं जायनवादी हूं।”

बाईडेन के विपरीत, जो खुद को गैर-यहूदी जायनवादी कहते हैं और बेहिचक इजराइल को पैसा व हथियार मुहैया कराते हैं जबकि वह युद्ध अपराध कर रहा है, मैं खुद को अपने लेखन से कम किसी भी रूप से परिभाषित नहीं करूंगी। मैं जो लिखती हूं, वह मैं हूं। 

मुझे अच्छी तरह पता है कि मैं कैसी लेखक हूं, गैर मुस्लिम हूं, महिला हूं, मेरे लिए हमास, हिजबुल्लाह या ईरानी शासन में बचे रहना बेहद मुश्किल या शायद असंभव होगा। लेकिन यहां उसकी बात नहीं हो रही है। बात खुद को इतिहास और उन हालात के बारे में खुद को शिक्षित करने की है जिनमें वह अस्तित्व में आए।

बात यह है कि इस समय वह एक नरसंहार के खिलाफ लड़ रहे हैं। बात हमें खुद से पूछने की है कि क्या एक उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष ताकत किसी नरसंहार करने वाली युद्ध मशीन के खिलाफ टिक सकती है। क्योंकि जब दुनिया की सभी ताकतें उनके खिलाफ हों तो वह भगवान या खुदा के अलावा किसका मुंह देखेंगे।

मुझे पता है कि हिजबुल्लाह और ईरानी शासन के उनके अपने देशों में मुखर विरोधी हैं, उनमें से कुछ जेलों में भी हैं या बुरे नतीजे भुगत रहे हैं। मुझे पता है कि उनके कुछ कृत्य 7 अक्तूबर को नागरिकों को मारना या बंधक बनाना युद्ध अपराध हैं।

लेकिन, इसमें और इजराइल व अमरीका जो गज़ा, वेस्ट बैंक और अब लेबनॉन में कर रहे हैं के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती। 7 अक्तूबर की हिंसा समेत तमाम हिंसा की जड़ इजराइल का फ़िलिस्तीनी जमीन पर कब्जा है और फ़िलिस्तीनी लोगों को अधीन बनाना है। इतिहास 7 अक्तूबर 2023 को शुरू नहीं हुआ था। 

मैं आपसे पूछती हूं, इस हॉल में बैठे हम लोगों में से कौन उस गरिमाहीनता को स्वीकार करेगा जो गज़ा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी दशकों से झेल रहे हैं? कौन से शांतिपूर्ण रास्ते हैं, जो फिलिस्तीनी लोगों ने नहीं अपनाए? कौन से समझौते उन्होंने स्वीकार नहीं किए, इसे छोड़कर कि वह घुटनों के बल रेंगें और मिट्टी खाएं। 

इजराइल आत्मरक्षा की लड़ाई नहीं लड़ रहा। वह आक्रमण की लड़ाई लड़ रहा है। लड़ाई अधिक जमीन पर कब्जा करने के लिए, अपने नस्लभेदी शिकंजे को मजबूत करने के लिए और फिलिस्तीनी लोगों व क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए। 

7 अक्तूबर 2023 के हमले से अब तक हजारों लोगों को मारने के अलावा, इजराइल ने गज़ा की आबादी के अधिकांश हिस्से को कई बार विस्थापित किया है। अस्पताल पर बमबारी की है। जान बूझकर डॉक्टरों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को निशाना बनाया है और मारा है।

समूची आबादी को भुखमरी में झोंक दिया है, उनके इतिहास को मिटाने की कोशिश की जा रही है। इस सब को दुनिया की अमीरतम, ताकतवर सरकारें नैतिक व भौतिक समर्थन दे रही हैं। और उनका मीडिया भी। (यहां मैं अपने देश, भारत, को भी शामिल कर रही हूं जो इजराइल को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है और हजारों श्रमिकों को भेज रहा है)।

इन देशों और इजराइल के बीच कोई फर्क नहीं है। पिछले केवल एक साल में अमरीका ने इस्राइल को सैन्य सहायता में 17.9 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं।

तो, इसलिए अब अमरीका के मध्यस्थ होने, युद्ध को रोकने/सीमित करने वाले प्रभाव होने या फिर अमरीकी राजनीति की मुख्यधारा के बरक्स वाम विचार के माने जाने वाले अलेक्ज़ेंड्रिया ओकासिओ कोरटेज के शब्दों में “सीजफायर की दिशा में बिना थके काम करने’ के झूठ को समझ जाना चाहिए। नरसंहार में पक्ष बनने वाला मध्यस्थ नहीं हो सकता। 

दुनिया की सारी ताकत और पैसा, सारे हथियार और दुष्प्रचार फ़िलिस्तीन के जख्म को छिपा नहीं सकते। ज़ख्म़ जिससे इजराइल समेत पूरी दुनिया लहूलुहान दिख रही है।

सर्वे दर्शाते हैं कि जिन देशों की सरकारें इजराइल के नरसंहार का समर्थन कर रही हैं, के नागरिक स्पष्ट कर चुके हैं कि वह इससे सहमत नहीं हैं। हमने हजारों लोगों के सैकड़ों प्रदर्शन देखे हैं, जिनमें यहूदियों की युवा पीढ़ी शामिल है, जो इस्तेमाल किए जाने से थक चुके हैं, जो झूठ से थक चुके हैं।

किसने कल्पना की होगी कि जर्मन पुलिस यहूदियों को इजराइल और जायनवाद के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर गिरफ्तार करेगी और उन पर यहूदी-विरोधी होने का आरोप लगाएगी।

किसने सोचा होगा कि अमरीकी सरकार, इजराइल सरकार की सेवा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने आधारभूत सिद्धांत से समझौता करेगी और फ़िलिस्तीन समर्थक नारों पर प्रतिबंध लगाएगी? पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का तथाकथित नैतिक ढांचा, चंद अपवादों को छोड़कर मज़ाक का विषय बन चुका है। 

जब बेंजामिन नेतन्याहू मध्य पूर्व का नक्शा, जिसमें फ़िलिस्तीन मिटाया जा चुका है और इजराइल दरिया से समुद्र तक फैला दिखाई दे रहा है, दिखाते हैं तो उन्हें दूरदर्शी कहा जाता है जो यहूदी गृहदेश के सपने को पूरा करने की दिशा में काम कर रहा है। 

लेकिन जब फ़िलिस्तीनी और उनके समर्थक “दरिया से समुद्र तक, फ़िलिस्तीन आजाद होगा” नारा लगाते हैं तो उन पर यहूदियों के नरसंहार के इरादे के आरोप लगाए जाते हैं। 

क्या सचमुच? या यह अपने अंधेरे को दूसरों पर थोपने की बीमार सोच है? सोच जो विविधता का समर्थन नहीं कर सकती, एक देश में दूसरे लोगों के साथ समान रूप से समान अधिकारों के साथ मिलकर रहने के विचार का समर्थन नहीं कर सकती। जैसा कि दूसरा हर कोई दुनिया में करता है।

सोच जो यह स्वीकार करना बर्दाश्त नहीं कर सकती कि फ़िलिस्तीनी आजाद होना चाहते हैं, जैसे दक्षिण अफ्रीका है, जैसे भारत है, जैसे और सभी देश हैं जिन्होंने औपनिवेशवाद के चोले को उतार फेंका है। देश जो विविध हैं, उनमें कमियां हैं लेकिन फिर भी आजाद हैं।

जब दक्षिण अफ्रीकी लोकप्रिय नारा “अमांडला! पावर टू द  पीपल” लगा रहे थे, क्या वह श्वेत लोगों के नरसंहार की मांग कर रहे थे? नहीं। वह नस्लभेदी शासन को ध्वस्त करना चाहते थे। जैसा कि फ़िलिस्तीनी चाहते हैं। 

जो युद्ध अब शुरू हुआ है, भीषण होगा। लेकिन अंत में यह इजराइली नस्लभेद को ध्वस्त कर देगा। समूची दुनिया हर किसी के लिए, यहूदी लोगों समेत और सुरक्षित होगी और न्यायपूर्ण होगी। यह हमारे जख्मी सीने में पैवस्त तीर निकालने जैसा होगा। 

यदि अमरीकी सरकार इजराइल से समर्थन वापस ले ले तो युद्ध आज समाप्त हो जाएगा। युद्ध की गतिविधियां इसी पल समाप्त हो सकती हैं। इजराइली बंधक रिहा किए जा सकते हैं। फिलिस्तीनी कैदी रिहा किए जा सकते हैं।

हमास और अन्य फ़िलिस्तीनी हिस्सादहरकों से वार्ता जो युद्ध के बाद होने वाली है, अब हो सकती है और लाखों लोगों की यातनाओं को अभी रोक जा सकता है। यह कितना दुखद है कि अधिकांश लोग इसे नादानीपूर्ण या हंसने लायक बात समझेंगे। 

समापन से पहले मैं अला अब्द एल-फतह, मैं आपके जेल में लिखे “यू हैव नॉट बीन डिफीटिड” से आपके शब्दों पर लौटना चाहूंगी। मैंने जीत और हार के अर्थ तथा निराशा की आंख में आंख मिलाकर देखने की राजनीतिक ईमानदारी के बारे में शायद ही ऐसे खूबसूरत शब्द पढ़े हों।

मैंने शायद ही पहले ऐसा लेखन देखा होगा जिसमें एक नागरिक खुद को राज्यसत्ता, हुक्मरानों और के नारों से भी खुद को इतनी स्पष्टता से अलग करता हो। 

“केंद्र राज-द्रोही है क्योंकि इसमें केवल जनरल के लिए जगह है। केंद्र राज-द्रोही है और मैंने कभी किसी गद्दार को नहीं देखा। उन्हें लगता है कि उन्होंने हमें हाशिये पर डाल दिया है। उन्हें नहीं पता कि हमने इसे कभी नहीं छोड़ा, हम बस थोड़ी देर के लिए गुम हो गए”।

“न तो मतपेटियां, न महल, न मंत्रालय अथवा न जेलें और न ही कब्रें इतनी बड़ी हैं कि हमारे सपने उनमें समा जाएं। हमने कभी केंद्र नहीं चाहा क्योंकि इसमें सिर्फ उन्हीं के लिए जगह है जिन्होंने सपने त्याग दिए हैं। चौकोर भी हमारे लिए काफी नहीं था, इसलिए हमारी क्रांति की अधिकांश लड़ाईयां इसके बाहर ही हुई और हमारे अधिकांश नायक इस चौखट से बाहर ही रहे।” 

गज़ा और लेबनॉन में जो भयावह हालात हम देख रहे हैं, तेजी से क्षेत्रीय युद्ध में बदल रहे हैं, इसके वास्तविक नायक इसके चौखट से बाहर हैं। लेकिन वह लड़ रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि एक दिन-

दरिया से सागर तक 

फ़िलिस्तीन आजाद होगा

होकर रहेगा 

अपनी नजर कैलंडर पर रखिए। घड़ी पर नहीं 

क्योंकि लोग – हुक्मरान नहीं – जो अपनी मुक्ति के लिए लड़ते हैं, समय की गणना इसी तरह करते हैं 

(अरुंधती रॉय ने यह वक्तव्य पेन पिंटर पुरस्कार ग्रहण 2024 करते हुए 10 अक्तूबर को ब्रिटिश लाइब्रेरी में दिया था। अनुवाद- महेश राजपूत)

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