सुसंस्कृति परिहार
एक बार फिर कोरोना की दस्तक से माहौल में लाकडाऊन की आशंकाएं बढ़ चली हैं। दिक्कत तो ये है कि पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। हालांकि तीन राज्यों में चुनाव समाप्त हो जाऐंगे ।असम में भी चुनाव कुछ विलंब से सम्पन्न हो जाएगा लेकिन बंगाल के आठ चरणों में अभी चौथा ही चल रहा है और बताया ये जा रहा है कि अप्रेल माह में कोरोना सबसे विकट रूप से हमला करेगा ।जो महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में हमलावर हो चुका है दिल्ली की हालत भी खराब है और मध्यप्रदेश में हालत भी बड़े शहरों में बिगड़ चुकी है।
ऐसे हालात में हो रहे चुनावों में नेताओं के साथ भीड़ उमड़ना स्वाभाविक है। बंगाल और असम की रिपोर्ट तो ये सत्य भी उजागर कर रहीं हैं कि नेताओं ने रेल और बसों के ज़रिए भीड़ बढ़ाने के लिए दूसरे राज्यों के लोगों को भी बुलाया।यह गैर जिम्मेदाराना काम है ऐसे वक्त में जब कोरोना की दूसरी लहर वेग से चल रही हो।किसी ने सच ही कहा है कि रोटी की भूख लोगों से सब कुछ करा लेती है ।यह निर्मम और अमानवीय हरकत है।क्या चुनाव आयोग लोगों की सुरक्षा हेतु प्रचार प्रसार हेतु सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की ही अनुमति नहीं दे सकता था।इसके साथ ही कोविड के बचाव का टीका अप्रैल माह में 45वर्ष से ऊपर के लोगों को लगवाने का जबरदस्त प्रचार चल रहा है पहले टीके के बाद भी लोगों में आई कमज़ोरी के कारण उन्हें क्वारंटीन कम से कम चौदह दिनों होना होता है। चुनाव के दौरान क्या यह संभव हो सकता है। फिर कोरोना से बचाव असंभव और मुश्किल है ।
इसीलिए लोगों में कोरोना के प्रति लापरवाही बढ़ती जा रही जब हमारे नेता बिना मास्क और दो गज की दूरी का पालन नहीं कर रहे तब ये कैसे मुनासिब है लोग सावधान रहें।अब तो लोग हंस हंस कर ये कहते मिल जाते हैं कि चुनाव तक हमारे मोदी जी ने कोरोना को पकड़ के रखा है।कुछ तो ये भी गुजारिश करने से नहीं चूक रहे कि नगर निगमों नगरपालिकाओं,परिषदों और जिला पंचायतों के चुनाव भी करवाए जाएं ताकि कोरोना आने ना पाए।कहने का आशय यह कि चुनाव के बीच कोरोना अच्छा ख़ासा मज़ाक बन गया है।लोग उसे सीरियसली नहीं ले रहे। मतदान भी इससे प्रभावित हो सकता है । मतदान केंद्र पर समुचित व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी भी चुनाव आयोग के मत्थे होगी ।समय रहते जनहित में तमाम व्यवस्थाएं ज़रूरी हैं।
उधर किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत भी यह कह रहे हैं कि किसी भी हालत में वे आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे।शायद सरकार भी इसी अवसर की प्रतीक्षा में होगी जब आदेश की अवज्ञा पर सख़्त कार्रवाई की जा सके।देखना यह है कि इस आंदोलन को किस तरह लिया जाता है । संकटकालीन समय में सरकार सहृदय हो जाए ये मुमकिन नहीं लगता पर अपेक्षा तो की जा सकती है। किसान कहते हैं 300से अधिक साथी खोने से ज्यादा कोरोना और कितनी परीक्षा लेगा।वे भी चुनाव में नेताओं की तरह ही आंदोलन के लिए प्रतिबद्ध है।कुल मिलाकर कोरोना , चुनाव और किसान आंदोलन साथ साथ चलने वाला