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युधिष्ठिर का अंतिम संस्कार कभी हुआ ही नहीं.

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महाभारत में कई बातें ऐसी हुईं कि वो बिल्कुल अलग थीं. जब युधिष्ठिर ने एक दिन हस्तिनापुर में तय किया कि वह अब राजपाट छोड़कर भाइयों और द्रौपदी के साथ हिमालय की चढ़ाई करते हुए स्वर्गारोहण करेंगे, तो वो सभी निकल पड़े. इस रास्ते में युधिष्ठिर को छोड़कर उनके सभी भाई और द्रौपदी रास्ते में ही गिरकर प्राण छोड़ते रहे. लेकिन ऐसा क्या था कि युधिष्ठिर का अंतिम संस्कार कभी हुआ ही नहीं.

आखिर क्या था इसका राज

दुनियाभर के सभी धर्मों के लोग मृत्यु के बाद अपने परिजनों का अंतिम संस्कार जरूर करते हैं तो युधिष्ठिर कैसे इससे वंचित रह गए. दरअसल इसकी भी एक कहानी है. सभी पांडवों तो रास्ते में जब चढ़ाई शुरू हुई तो पांडवों ने ये सोचा कि वो सभी शरीर के साथ स्वर्ग पहुंचेंगे लेकिन ऐसा हुआ. हर पांडव के हिस्से में कुछ ऐसे पाप थे, जिससे वो रास्ते में गिरकर मरते रहे.

तब युधिष्ठिर स्वर्ग के दरवाजे तक पहुंच गये

केवल युधिष्ठिर और उनके साथ एक कुत्ता (जो धर्मराज का रूप था) अपनी यात्रा अंत तक जारी रखते हैं. ऐसा करते हुए युधिष्ठिर स्वर्ग के द्वार तक पहुंच गए. वहां उन्हें इंद्र मिले, जो अपने रथ पर सवार होकर वहां आए थे. उन्होंने युधिष्ठिर को जीवित ही स्वर्ग उनके साथ चलने का न्योता दिया. बस शर्त थी कि उन्हें कुत्ते का साथ छोड़ना होगा.

फिर कैसे स्वर्ग पहुंचे वो

युधिष्ठिर ने कुत्ते (धर्मराज) के बिना स्वर्ग में जाने से इनकार कर दिया. तब इंद्र को उनकी बात माननी पड़ी. उसी समय उनके साथ चल रहा कुत्ता धर्मराज के असली रुप में आ गया. इसके बाद युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे. हालांकि कहा जाता है कि सशरीर स्वर्ग पहुंचने के बाद भी उनका शरीर दिव्य रुप में बदल गया.

बाकि पांडवों का अंतिम संस्कार कैसे हुआ

चूंकि युधिष्ठिर ने सशरीर स्वर्ग में प्रवेश किया था, उनकीमृत्यु कभी हुई ही नहीं लिहाजा उनका अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ. इस लिहाज से देखें तो वह अकेले ऐसे शख्स थे, जिनकी मृत्यु पृथ्वी पर नहीं हुई. इसी वजह से उनका अंतिम संस्कार भी कभी नहीं हुआ. तो बाकी पांडवों का अंतिम संस्कार कैसे हुआ, किसने किया, ये अब तक एक पहेली ही है.

ये अब तक एक रहस्य ही है

महाभारत में द्रौपदी और पांडवों का अंतिम संस्कार एक रहस्य के समान है. ये बात साफतौर पर कहीं बताई नहीं गई कि युधिष्ठिर को छोड़कर उनके शेष भाइयों और द्रौपदी के मृत शरीरों का क्या हुआ. उनके अंतिम संस्कार किसने किए. स्वर्गारोहण की कथा के अनुसार, उनके शव हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में ही रह गए.

सबसे पहले द्रौपदी गिरों

स्वर्गारोहण यात्रा में सबसे पहले द्रौपदी गिरीं, उसके बाद क्रमशः सहदेव, नकुल, अर्जुन, और भीम. जब सभी पांडव आपस में बात करते हुए हिमालय की चढ़ाई चढ़ रहे थे तभी अचानक द्रौपदी लड़खड़ाई, जमीन पर गिर गईं. सभी चकित रह गए कि ये क्या हो गया. तब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि द्रौपदी ने ऐसा क्या पाप किया, जो वह गिरीं. उनके प्राण निकल गए. तब युधिष्ठिर बोले, वह अर्जुन को लेकर विशेष पक्षपाती थीं, इसलिए उन्हें ये पाप मिला.

फिर सहदेव गिरे

सभी आगे बढ़ गए. कुछ देर बाद सहदेव गिर पड़े. तब भीम ने कहा, माद्रीपुत्र सहदेव के अंदर तो ना किसी तरह का घमंड और ना उसने कभी हम लोगों की सेवा में कोई कोताही की तो फिर वो गिर गया. युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि सहदेव का पाप ये था कि वो सोचते थे कि उनसे अधिक बुद्धिमान और कोई नहीं.

अब बारी नकुल के गिरने की थी

उसके बाद नकुल गिरे. भीम ने फिर सवाल किया कि हमारा ये भाई तो कभी धर्म से अलग नहीं हुआ. हमेशा हमारी आज्ञा का पालन किया, फिर वो क्यों गिरे. अब

युधिष्ठिर ने जवाब दिया, नकुल सोचते थे कि उन जैसा रुपवान कोई नहीं. इसी वजह से नकुल को अपने कर्मों का फल मिला.

फिर अर्जुन ने भी प्राण छोड़ा

सभी बचे पांडव शोकाकुल थे. सभी को लग रहा था कि पता नहीं कब किसका नंबर आ जाए. अब तो केवल युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम ही बचे थे. कुछ देर जाने पर अर्जुन गिरे और प्राण छोड़ दिया.

अब दुखी भीम ने पूछा भाई युधिष्ठिर अब ऐसा क्यों हो गया. अर्जुन ने तो कभी झूठ नहीं बोला, फिर ये दशा क्यों हुई. युधिष्ठिर बोले, अर्जुन हमेशा घमंड किया करते थे कि एक ही दिन में सभी शत्रुओं का नाश कर देंगे, परंतु कभी ऐसा कर नहीं सके. घमंड ही उनका पाप था. इसके साथ साथ वह दूसरे धनुर्धरों का अनादर भी करते थे. ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए.

आखिर में भीम गिरे

अब भीम भी जमीन पर गिर पड़े. गिरते गिरते बड़े भाई से पूछा, महाराज मैं भी गिर पड़ा हूं. मैं हमेशा आपका प्रिय रहा. आखिर मेरी ये हालत क्यों हो गई. युधिष्ठिर बोले, तुम बहुत अधिक भोजन किया करते थे. हमेशा अपनी ताकत पर कुछ ज्यादा ही घमंड करते थे. अब युधिष्ठिर के साथ उनका कुत्ता ही बचा रह गया.

तो किसने किया पांडवों का अंतिम संस्कार

चूंकि युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी पांडव भाइयों और द्रौपदी के शरीर बर्फ से ढके हिमालय पर गिरे, इसलिए यह संकेत मिलता है कि उनके शरीर वहीं प्रकृति के हाथों में रह गए. धार्मिक दृष्टि से यह माना जा सकता है कि हिमालय जैसी पवित्र भूमि में उनकी मृत्यु ही उनके अंतिम संस्कार के बराबर थी. यह भी संभव है कि उनके शरीरों का अंतिम संस्कार किसी स्थानीय ऋषि, तपस्वी, या देवदूतों ने किया हो. हिमालय में अत्यधिक ठंड और कठिन परिस्थितियों के कारण यह संभव है कि उनके शरीर प्राकृतिक रुप से बर्फ में विलीन हो गए हों, जो हिमालय क्षेत्र की पवित्रता के कारण उनका अंतिम संस्कार मानलिया गया।

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