*छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेट और सांप्रदायिक गौ-गुंडे कानून और संविधान से ऊपर ; दलित, आदिवासी और कमजोर तबकों की बढ़ी मुसीबतें : माकपा सम्मेलन*
विश्रामपुर (सूरजपुर)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वामपंथ का संघर्ष देश की दशा दिशा को बदलने और एक शोषणविहीन, वर्गविहीन समाज व्यवस्था, समाजवाद की स्थापना के लिए है। इस ओर आगे बढ़ने के लिए हमें आम जनता के सभी शोषित-उत्पीड़ित तबकों को लामबंद करना होगा और आर्थिक-सामाजिक-जातिगत-लैंगिक शोषण के खिलाफ संघर्ष तेज करना होगा, देश में लोकतंत्र, संविधान और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करना होगा और इस संघर्ष के क्रम में जनविरोधी पूंजीवादी राजनीति के खिलाफ जनपक्षधर वामपंथी राजनीति को स्थापित करना होगा। पूंजीवाद के पास और केंद्र की भाजपा नीत सरकार के पास आम जनता की बुनियादी समस्याओं – बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी – का कोई समाधान नहीं है और इसलिए वे अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति और अवैज्ञानिक, पिछड़ी चेतना को आगे बढ़ा रहे है। इस देश तोड़ने वाली राजनीति के खिलाफ लड़ना, भारतीय समाज में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना और मनुष्य की बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए समाजवाद को स्थापित करना आज वामपंथ के लिए सबसे बड़ा काम है।
उक्त बातें 7 बार सांसद रहे माकपा पोलिट ब्यूरो सदस्य डॉ. रामचंद्र डोम ने विश्रामपुर में पार्टी के 8वें छत्तीसगढ़ राज्य सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कही। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज देश मोदी की अगुवाई में अडानी और अंबानी के चंगुल में कराह रहा है। आदिवासी, दलित, महिलाएं यातनापूर्ण जिन्दगी जी रहे हैं, किसान बेदखली और मजदूर असहनीय शोषण से की गिरफ्त में हैं और संविधान को ताक पर रखकर मनुस्मृति के आधार पर राज चलाया जा रहा है । इसका प्रतिवाद करने के लिए जनता को ही मैदान में उतरना होगा । उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ इस देश से संविधान को हटाकर मनुस्मृति के नाम पर व्यवस्था चलाना चाहती हैं।
बाबा साहब अम्बेडकर को याद करते हुए डॉ. डोम ने कहा कि हुक्मरान आज खुले आम अंबेडकर के नाम से चिढ़ रहे हैं, क्योंकि उनसे उन्हें डर लगता है। बाबा साहब भूमि के राष्ट्रीयकरण और समाजवाद के पक्षधर थे। वे चाहते थे कि इस देश में से पूँजीवाद खत्म हो और सारी सार्वजनिक सेवाओं का राष्ट्रीयकरण किया जाए । उन्होंने खेती-किसानी को लेकर मोदी सरकार की नीतियों और जमीन छीनकर कारपोरेट कंपनियों को दिए जाने की मोदी सरकार की नीतियों को हराने की किसान आन्दोलन की कामयाबी का जिक्र किया और भविष्य में भी इसी तरह की एकता से इन्हें परास्त करने का विश्वास जताया।
माकपा नेता ने कहा कि देश के युवा और मेहनतकश कभी भी अपने सपनों को मरने नहीं देंगे – वे इन्हें यथार्थ में उतारने की लड़ाई लड़ेंगे भी जीतेंगे भी। उन्होंने कहा कि यदि मोदी कारपोरेट की कमाई के लिए आतुर है, तो जनता भी उनकी लूट को असफल बनाने की लड़ाईयां तेज कर रही है।
माकपा के शीर्षस्थ नेता ने विश्वास व्यक्त किया कि छत्तीसगढ़ के इस राज्य सम्मेलन में फूटपरस्ती, विभाजन और साम्प्रदायिकता को पराजित करने के लिए व्यापक पैमाने पर एकता बनाई जायेगी, इसी के साथ वैकल्पिक नीतियों के लिए भी जनता को इकट्ठा किया जाएगा । वामपंथ की एकता को और संगठन को मज़बूत बनाने की योजना भी सम्मेलन में बनेगी।
ऋषि गुप्ता, आर वी भारती और एस सी भट्टाचार्य इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे हैं। सम्मेलन में माकपा के केंद्रीय सचिवमंडल सदस्य तथा छत्तीसगढ़ प्रभारी जोगेंद्र शर्मा भी उपस्थित है। माकपा राज्य सम्मेलन कल रात तक चलेगा। इसमें प्रदेश भर के चुने हुए लगभग 150 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। राज्य सचिव एम के नंदी द्वारा राजनैतिक सांगठनिक रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद प्रतिनिधियों द्वारा इस पर बहस शुरू हो चुकी है।
*छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेट और सांप्रदायिक गौ-गुंडे कानून और संविधान से ऊपर ; दलित, आदिवासी और कमजोर तबकों की बढ़ी मुसीबतें : माकपा सम्मेलन में रिपोर्ट पर चर्चा जारी*
विश्रामपुर (सूरजपुर)। सीताराम येचुरी नगर, विश्रामपुर में हो रहे माकपा के 8वें राज्य सम्मेलन में राज्य सचिव एम के नंदी ने राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट पेश की। प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक स्थिति की विवेचना करती इस रिपोर्ट में कारपोरेटी साम्प्रदायिकता की बढ़त के लिए की जा रही साजिशों, सरकार के संरक्षण में सांप्रदायिक तत्वों और गौ गुंडों द्वारा संविधान और कानून अपने हाथ में लेने और भाजपा की जन विरोधी नीतियों के कारण दलित, आदिवासियों और कमजोर तबकों के जीवन में बढ़ रही मुसीबतों का ब्यौरा रखा गया है। प्रतिनिधियों द्वारा इस पर चर्चा जारी है।
इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से परम्परागत रूप से सौहार्द्र की पहचान रखने वाले छत्तीसगढ़ में बढ़ती साम्प्रदायिक प्रवृत्ति की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई है और ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार सत्ता पार्टी भाजपा, उसके नियंत्रणकारी संगठन आर एस एस तथा उसके आनुषांगिक संगठनों और राज्य सरकार के इशारे पर असंवैधानिक काम करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के हिस्से की इनमें लिप्तता को रेखांकित किया गया है।
रिपोर्ट में दर्ज किया गया है कि लोकसभा चुनावों में देश में भाजपा को लगे धक्के और राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद से प्रदेश में साम्प्रदायिकीकरण की मुहिम बहुत तेज हो गई है और पर्वों, त्यौहारों, उत्सवों को भी इसका जरिया बनाया जा रहा है तथा मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर पाबन्दियां लगाई जा रही हैं। आदिवासी इलाकों सहित जहां भी थोड़ी बहुत संख्या में ईसाई है, वहाँ उन पर हमले और किसी न किसी बहाने उन्हें परेशान करने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। यह सब ध्यान बंटाने के लिए इसलिए किया जा रहा है, ताकि अडानी-अम्बानी जैसे कार्पोरेट्स के मुनाफों की लूट और बेरोजगारी सहित आम जन की बदहाली से ध्यान बंटाया जा सके ।
सम्मेलन ने साम्प्रदायिक ताकतों की कारपोरेट पूँजी के साथ घनिष्ठ रिश्ते का पर्दाफ़ाश करते हुए, इससे बढती जनता की मुश्किलों के खिलाफ आन्दोलन विकसित करते हुए धर्म को राजनीति से अलग रखने, धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र की हिफाजत करने की मुहिम तेज करने का आव्हान किया है ।
माकपा राज्य सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधि प्रदेश में सामाजिक रूप से वंचित समुदाय विशेषकर महिलाओं, दलित तथा आदिवासियों की स्थिति के लगातार बदतर होते जाने पर क्षोभ और आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में आजादी के बाद से, राजनीति पर अपना वर्चस्व जमाये सामंती संबंधों और सोच पर निर्णायक प्रहार हुआ ही नहीं। अधिकाँश मामलों में भूमि सुधार, छुआछूत निर्मूलन और सबके लिए शिक्षा तथा समानता सुनिश्चित करने के वे कदम भी नहीं उठाये गए, जिनका भारत के संविधान ने साफ साफ़ समय निर्धारित करके स्पष्ट प्रावधान किया था। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ बलात्कार प्रदेश बन गया है। महिला सशक्तीकरण के जितने गाल बजाये गए, उतनी ही तेजी के साथ स्त्रियों, नाबालिग़ बच्चियों और वृद्धाओं की यातनाएं बढ़ीं। आदिवासियों को प्रताड़ित करने वाली घटनाओं में भी छत्तीसगढ़ का शर्मनाक रिकॉर्ड है। इसी प्रकार, पिछड़ी जातियों के कुछ समूहों को दलित आदिवासियों के उत्पीडन की लाठी के रूप में इस्तेमाल करने की ‘चतुराई’ के बावजूद सामन्तवादी ताकतें इन ओबीसी समुदायों को भी अपना निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहीं हैं।
अपनी रिपोर्ट में माकपा ने सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष को तेज करने का संकल्प लिया है। इसके लिए भूमि, रोजगार, शिक्षा तथा आर्थिक रूप से विशेष अवसरों के लिए लड़ाई लड़ते हुए जनता के बीच लिंग और जाति की सही समझ विकसित करने के लिए सतत अभियान चलाने, आदिवासियों की संस्कृति और मान्यताओं को खास तरीके से ढालने की योजनाबद्ध साजिशों के खिलाफ जागरण करने, दलितों के शोषण के विरूद्ध व्यापक लामबंदी करने, महिलाओं को संगठित करने के विशेष प्रयत्नों को प्राथमिकता पर लेने के साथ इस तरह के शोषण की हर घटना में हस्तक्षेपकारी सक्रियता का आव्हान किया है ।
सम्मेलन में खेती किसानी की लागत में बेतहाशा वृद्धि, सिंचाई की स्थिति भी ठीक न होने, स्मार्ट मीटर के जरिए बिजली का निजीकरण करने, समय पर खाद, बीज और कीटनाशक के न मिलने, प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकार का पूरी निर्दयता के साथ उदासीन रहने, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का महाघोटाले में बदल कर रह जाने, मंडी खरीदी का लगभग खत्म या औपचारिक बनकर रह जाने, पहले से ही कम निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य के भी न मिल पाने आदि-इत्यादि मुद्दों के बारे में चर्चा हो रही हैं।
माकपा का कहना है कि इस सबके चलते खेती छोड़ने वाले किसानो की संख्या बढ़ी है, ग्रामीण बाजार सिकुड़ा है, पलायन बढ़ा है, रोजगारहीनता बढ़ी है, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से गरीब जनता की दूरी बढ़ी है। माकपा ने किसानों की दुर्दशा और खेती की बर्बादी रोकने के लिए आन्दोलन छेड़ने और मिलकर लड़ने का आव्हान किया है।
सम्मेलन में अभी तक सांप्रदायिकता के खिलाफ, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के तानाशाही अभियान के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए हैं। सम्मेलन में गीतों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी की जा रही हैं।
*संजय पराते, धर्मराज महापात्र, ललन सोनी*
Add comment