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पांच बांधों वाले नौगढ़ के खेत के साथ किसानों के अरमान भी परती रह गए

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वन कुमार मौर्य

Dधान की बंपर पैदावार के लिए उत्तर प्रदेश के साथ भारत के मानचित्र पर पहचाना जाना वाला चंदौली जनपद, किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बासमती, जीरा बत्ती, आदमीचिनी सरीखे औषधीय गुणों से भरे धान यहां की माटी में उपजते हैं। जिनकी खुशबू सात समंदर पार भी गमकती है।

वहीं, मंसूरी, टिंकू जिया समेत अन्य अधिक पैदावार देने वाले धान किसानों के खलिहान-ओसारे को अनाज से भर देते हैं। लेकिन, इस सौभाग्य से नौगढ़ तहसील क्षेत्र के हजारों किसान कई दशकों से वंचित हैं। सिंचाई की कमी से खेत के साथ किसानों के अरमान भी परती रह गए हैं।

पानी और सिंचाई के साधन की कमी से खरीफ सीजन 2024 में धान की कम उपज से किसानों के माथे पर बल पड़ गए हैं। जबकि, पहाड़ी और जंगलों से घिरे नौगढ़-चकिया क्षेत्र में मूसाखाड़, चंद्रप्रभा, नौगढ़, भैसौड़ा, मुजफ्फरपुर और लतीफशाह बीयर बांध है। इसने नहरें निकाली गई है, जो मैदानी इलाकों में सिंचाई के लिए जाती है।

लेकिन, पांच बांधों वाले नौगढ़ क्षेत्र के कई गांवों के सैकड़ों एकड़ खेतों में, गेहूं की बुआई इसलिए नहीं हो सकी है कि, यहां सिंचाई के लिए पानी व साधन की व्यवस्था ही नहीं है। यहां दीये तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। पेश है पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट। 

नौगढ़ क्षेत्र के धनकुआरी कला, बैरगढ, गंगापुर, धोबही गांव, बोझ, जमसोती, लौवारी, नोनवट, पंडी, औरवाटाड़, केल्हड़िया, सपहर, नोनवट, करमठचुआं और देवरी समेत कई पहाड़ी गांवों के खेत पानी के लिए तरस रहे हैं। रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बुआई न के बराबर होने से अधिकांश खेतों में धूल उड़ रही है।

केल्हड़िया गांव में तकरीबन सात पीढ़ियों से रहते आ रहे साठ वर्षीय भोला कोल दोपहर में भोजन करते मिले। चार बीघे खेत वाले भोला अबकी खरीफ में धान की उपज से संतुष्ट नहीं है। रबी सीजन में गेहूं नहीं बोये जाने से इनकी चिंता और परेशानियां बढ़ गई है।

भोला “जनचौक” को बताते हैं कि “यहां पानी पीने और सिंचाई की दिक्कत देश के आजादी से पहले की है और अब भी समस्या जस की तस है। हमलोग मानसून के अंतिम दौर और छूट-छटके बारिश के इंतजार में थे, लेकिन वह भी बारिश हुई ही नहीं। गांव में सिंचाई का साधन नहीं होने से किसानी बहुत मुश्किल में हैं।”

“बारिश के न होने से समय से पहले खेतों से नमी की विदाई हो गई। यह शुरू और मध्य दिसम्बर में खेतों से धूल उड़ने लगी है। एक हैंडपंप के बोर में समरसेबल भी लगा है तो वह कई महीनों से ख़राब है। मसलन, नमी पानी के अभाव में गेहूं की बुआई कैसे होगी ?”

खेत में परिवार के साथ धान की कटाई में जुटी अट्ठावन वर्षीय महिला किसान राजवंती के पर 16 विस्वा खेत है। वह पानी के अभाव में अपने खेत में केराय-मसूर की बुआई करेंगी। 

महिला किसान राजवंती कहती हैं “सिंचाई के साधन के लिए कई बार गांव के लोग सम्बंधित अधिकारियों के यहां प्रार्थना पत्र और जनप्रतिधियों से गुहार लगाया गया, लेकिन किसी ने भी निराकरण का ठोस प्रयास नहीं किया। गेहूं की पैदावार पूरे गांव में नहीं होती है। गेहूं नहीं होने से अधिकांश किसान परिवारों को सिर्फ चावल ही भोजन में प्रमुखतया से खाना पड़ता है।

थोड़ा-बहुत गेहूं सरकारी राशन की दुकान से मिलता है, लेकिन परिवार भर के लिए नाकाफी होता है। इससे मेहमान के आने पर और त्योहार पर रोटी, पूड़ी-पकवान बनाता है। हमलोगों को रोज भोजन की थाली में रोटी कहां नसीब है।”

नौगढ़ क्षेत्र के प्रमुख बांध -मूसाखाड़ बांध, चंद्रप्रभा बांध, नौगढ़ बांध, भैसौड़ा बांध, मुजफ्फरपुर बांध, लतीफशाह बीयर।

नौगढ़ क्षेत्र में ग्रामसभा देवरीकला के अंर्तगत पहाड़ी पर बसा पंडी गांव धान की कटाई-मड़ाई में जुटा हुआ है। खेतों में बच्चे-बुजुर्ग मवेशी चारा रहे हैं। 

आदिवासी समाज के लालधारी खरवार की बहु सुगवंती अपने पति के साथ खलिहान में धान की मड़ाई में जुटी हुई थी। वह बताती हैं “पंडी में 130-140 की आबादी में खेती का रकबा तकरीबन 30-35 एकड़ है। इस वर्ष भी पानी की कमी की वजह से गेहूं की बुआई नहीं हुई है।

गिनती के लोग थोड़ी मात्रा में आलू, मसूर, चना और सरसों आदि की बुआई करते हैं। इसको भी सिंचाई के अभाव में बचाना आसान नहीं होता, और काटकर मवेशियों को खिला देना पड़ता है। शादी के बाद मैं जब से यहां आई हूं, तब से यह सब देख रही हूं।

गेहूं नहीं पैदा होने की वजह से हमलोगों को दोनों वक्त चावल ही खाकर गुजरा करना पड़ता है। मेरे दो बच्चे हैं। एक 14 वर्षीय लड़का दिलीप नौगढ़ कस्बे में स्थित आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) के आवासीय हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करता है।”

कुएं से जगी उम्मीद 

धान की फसल कटने के बाद पंडी गांव का पूरा सिवान खाली पड़ा है। जबकि अन्य स्थानों पर खेत से धान की फसल हटाने पर किसान शीघ्रता से गेहूं की बुआई में जुट जाते हैं। यहां के किसानों के अनुसार पिछले वर्ष 2023-2024 से सिंचाई के लिए कुएं बनाए जा रहे हैं। जिससे पंडी गांव के किसानों में पानी की उपलब्धता से रबी सीजन में गेहूं फसल की बुआई के लिए उम्मीद की किरण जगी है।  

अधेड़ मुनिया खरवार के पास दस बीघे खेत है। वह आज प्रसन्न हैं। इनके खुशहाली की वजह बहुत ही ख़ास है। वह “जनचौक” को बताती हैं कि “ 25-30 सालों के बाद इस साल मेरे खेत में गेहूं की बुआई के लिए बेटे गेहूं के बीज लेने बाजार गए हैं।

पिछले साल से से मेरे खेत में कुएं की खुदाई चल रही थी, जो पूरी हो चुकी है। कुएं में पानी है। उम्मीद है की इस बार गेहूं की रोटियां पूरे परिवार को खाने को मिलेगी।”

लगभग दो दशक से अधिक समय से विशेष कर नौगढ़ और चकिया क्षेत्र के किसान, मजदूर, आदिवासी व दलितों के अधिकार-हक़ के लिए संघर्ष करने वाले मजदूर किसान मंच के राजकार्य समिति के सदस्य अजय राय इन किसानों की समस्याओं को उठाते हैं और निराकरण का उपाय भी प्रस्तुत करते हैं। 

अजय “जनचौक” से कहते हैं “नौगढ़ बांध-बंधियों का क्षेत्र हैं, इसके बावजूद लंबे समय से सिंचाई प्रबंध के अभाव में रबी के साथ खरीफ सीजन में भी किसानों को पानी की दिक्कत बनी हुई है। रजवाहा की साफ़-सफाई नहीं हो पाती और जनप्रतिनिधि दशकों से उदासीन बने हुए हैं।”

“नौगढ़ क्षेत्र के कई गांवों में लघु डाल नहर और सिंचाई विभाग की ओर से किसानों के खेत में कुएं खोदे जा रहे/गए हैं। जिनमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। मानक के विपरीत खुदाई की गई है और टैंकर से कुएं में पानी डालकर लेवल लिया गया है।”

अपने खेत में कुआं खुदवाने वाले किसान लालबरत, अजय राय के आरोपों का समर्थन कहते हुए कहते हैं कि “कुएं की गहराई नियम के अनुसार 40 फीट होनी चाहिए थी, लेकिन मेरे कुआं महज 15-17 फीट ही खोदा गया है। इतने पानी से कितनी रकबे में फसल सिंचाई होगी ?”

बहुत पिछड़ रहा इलाका 

केल्हड़िया, सपहर, नोनवट, पंडी, करमठचुआं और औरवाटांड गांव देवरी ग्राम सभा के अंर्तगत आते हैं। ग्राम प्रधान लाल साहब खरवार ने बताया कि ” जब मैं प्रधान नहीं था तब भी और आज भी पेयजल संसाधन व सिंचाई साधन के लिए तहसील, जिला मुख्यालय, विधायक और कई अधिकारियों से गुहार लगा-लगाकर थक गया हूं।

सिंचाई के पानी के लिए केल्हड़िया, पंडी और औरवाटाड़ के ग्रामीणों को कई मुसीबत उठानी पड़ रही है। कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। नई पीढ़ी भी यह समस्या देख और दो-चार हो रही है। इससे शर्मनाक बात हमलोगों और समाज के लिए क्या हो सकती है ? एक ओर जहां दुनिया चांद पर कदम रख रही हैं, वहीं यहां के बच्चे चुआड़ का पानी पी रहे हैं और खेत पानी को तरस रहे हैं।”  

गोविंद खरवार ग्रेजुएट हैं और उनके खेत में भी गेहूं नहीं बोया जा रहा है। वह कहते हैं “सिंचाई के अभाव में नौगढ़ क्षेत्र के किसानों का जीवन बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है, जबकि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रही है। यहां आय दोगुनी छोड़िये, किसानों व उनके परिवार को मुश्किल से दोनों वक्त का भोजन मिल पा रहा है। इसमें सरकारी राशन से मिलने वाला अनाज सहायक बना हुआ है, अन्यथा हालत बहुत चिंताजनक होते।”

“यदि सच में सरकार नौगढ़ के किसानों के लिए कुछ करना चाहती है तो सरकारी दर पर बारहमासी कुएं खुदवाए, सिंचाई पंप लगवाए और ट्यूबबेल की व्यवस्था की जाए। इससे कई फसलों के लिए समय-समय पर सिंचाई की पूर्ति की जा सके। सिंचाई के अभाव में गांव के खेत खाली हैं। इनमें अभी से धूल उड़ने लगी है और मवेशी चरते हैं। रबी सीजन में किसानों के पास कोई काम नहीं रहता है।” 

2.14 फ़ीसदी है जनजाति आबादी 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी। इसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं। 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी। चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है।

आदिवासियों की आठ जातियां

चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं। इनमें मुख्यरूप से कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं। साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना।

इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया।

बारहवीं दर्जे तक पढ़ी-लिखी प्रतीक्षा अपने खलिहान में काम में जुटी हुई थीं। वह चिंता व्यक्त करते हुए बताती हैं “देश-दुनिया इतनी तेजी से बदल रही हैं, लेकिन हमलोगों के हालात जस के तस हैं। यहां के सैकड़ों नागरिक लगभग आदिम व्यवस्था-अव्यवस्था में ही जी रहे हैं।

जब चुनाव आता है, जनप्रतिनिधि और उनके समर्थक खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रिक ट्यूबबेल लगवाने, हैंडपंप लगवाने, पक्का रास्ता बनवाने, आवास और न जाने क्या क्या ? विकास कार्य करवाने का आश्वासन और वादा करते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव गुजर जाता है। हमलोग किस हाल में जी रहे हैं, कोई जानने नहीं आता। सिंचाई और पेयजल की समस्या को लेकर शासन-प्रशासन की बेरुखी से किसानों का जीवन बेनूर होता जा रहा है।”

चार बीघे की खेती करने वाले किसान लालबरत का कहना है कि “यदि सरकारी कोटे से राशन नहीं मिलता तो खाने को दो वक्त का भोजन नसीब नहीं होता है। पहाड़ पर बसे मेरे गांव की खेती-किसानी पर भरोसे नहीं किया जा सकता”।

“हमलोग नेताओं और अधिकारियों के अधूरे वादों के शिकार हैं। फसलों की सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था का घोर अभाव है। सभी खेत परती रह गए हैं। इस साल कुएं से थोड़ी उम्मीद जगी हैं देखते हैं आगे क्या होता है ?

पहाड़ी गांवों में पानी को तरस रहे खेत

जिला मुख्यालय पर किसानों के मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन करने जा रहे अखिल भारतीय किसान महासभा चंदौली जनपद इकाई के जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा सोमवार को “जनचौक” से बताते हैं “नौगढ़ क्षेत्र के धनकुआरी कला, बैरगढ, गंगापुर, धोबही गांव, बोझ, जमसोती, लौवारी, नोनवट, पंडी, और वाटाड़, केल्हड़िया, सपहर, नोनवट, करमठचुआं, गांव देवरी समेत कई पहाड़ी गांवों के खेतों की प्यास नहीं बुझ पाती है।”

“मानसूनी बारिश से हुई खेतों की नमी और आसपास जमा थोड़ा-बहुत पानी ही आदिवासी समेत सभी ग्रामीणों के खेती की सिंचाई का साधन है। सिंचाई विभाग, जनप्रतिनधि और प्रशासन से लम्बे समय से किसान सिंचाई के साधनों की मांग कर रहे हैं, जिसका नतीजा हकीकत में बेअसर है। लिहाजा, इन किसानों की खेती जुआ है। हो गई तो ठीक, नहीं तो घाटे की बोझ से कमर टूटनी तय है।”

सिंचाई के उपाय के सवाल पर जिलाध्यक्ष कुशवाहा कहते हैं “बांध का पानी सरंक्षित किया जाए, गहरे बोर किये जाए, किसानों के खेतों के आस-पास छोटे-छोटे सिंचाई तालाब खुदवाए जाए और बंधियों के मछली ठेकेदारों पर प्रशासन नजर रखे, ताकि बे-समय पानी न बहाया जा सके। इन उपायों से नौगढ़ और चकिया क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था कर किसानों को समृद्ध के रास्ते पर लाया जा सकता है।”     

नौगढ़ उपजिलाधिकारी कुंदन राज कपूर ने पहाड़ी गांवों में पीने योग्य साफ़ पेयजल और खेती की सिंचाई की दिक्कत को स्वीकारते हुए कहा कि “मामला संज्ञान में हैं। फसलों के सिंचाई के लिए पानी की दिक्कत झेल रहे गांवों के लिए बेहतर विकल्प पर काम किया जा रहा है। इससे जिला प्रशासन और शासन को अवगत करा दिया गया है। प्रशासन किसान और नागरिकों के बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।”(

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