हरीश खन्ना
यह घटना 1978 की है।शिमला रिज मैदान पर युवा जनता की ओर से एक जनसभा थी । राज नारायण जी जो उस समय मोरारजी सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे, उन को उस जनसभा को संबोधित करना था। उस सभा की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी।उस समय हिमाचल के मुख्यमंत्री शांता कुमार थे जो जनता पार्टी के जनसंघ घटक के थे। केंद्र में जनता पार्टी का आंतरिक कलह शुरु हो चुका था जिसमे राज नारायण जी की विशेष भूमिका थी । राज नारायण जी किसी की कहां सुनने वाले थे। अटल बिहारी वाजपयी जो उस समय केंद्र में विदेश मंत्री थे उनकी जनसभा रिज मैदान में थोडे दिन पहले हो चुकी थी। राज नारायण जी इस अन्याय और भेदभाव को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे । एक मंत्री की सभा को अनुमति और दूसरी राज नारायण जी की सभा को अनुमति नहीं। यह तय हुआ कि सभा तो होकर रहेगी। नेता जी के स्वभाव को सब जानते थे । भड़क गए बोले हम सभा में आएंगे और बोलेंगे। तय समय के अनुसार राज नारायण जी आए । मंच का संचालन राजकुमार जैन कर रहे थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण को कौन रोक सकता था , ऊपर से राज कुमार जैन । सोने पर सुहागा। राजकुमार जैन ओजस्वी भाषा में माइक पर बोले
–आज परीक्षा है एक तरफ मंत्री राज नारायण में और दूसरी ओर समाजवादी साथी राज नारायण में । कौन असली है, आज यह तय होना है।
बस यह सुनते ही राज नारायण जी जोश में भर गए।
क्या कहा राजकुमार ? मंत्री राज नारायण ? अब हम मंत्री हो गए। हमें जानते नहीं हो जी?
कड़क भाषा में बोले – हे शांताकुमार सुनो ।
उनका भाषण शुरू हो गया। इतने में लिस आ गई सब तरफ अफरा तफरी मच गई।मीटिंग को चलने नहीं दिया गया। राज नारायण जी को सम्मान सहित पुलिस अलग से ले गई ,क्योंकि वह केंद्रीय मंत्री थे।उन्हे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। युवा जनता के लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया । राजकुमार जैन , मार्कंडेय सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार मिश्र, श्याम गंभीर ,सुधीर गोयल सहित हम कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। शिमला जैसी छोटी सी जगह पर सैंकड़ों युवकों की गिरफ्तारी हुई ।वहां की जेल छोटी पड़ गई। शिमला में इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में लोग कभी गिरफ्तार नहीं हुए थे। कई लोगों को दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। हम लोगों को शिमला जेल में डाल दिया गया।
अगले दिन अदालत में पेश किया गया। हमारे नेता प्रोफ़ेसर विनय कुमार मिश्रा थे। पुराने समाजवादी थे।अलग तरह के स्वभाव के थे।दिल्ली विश्वविद्यालय के श्याम लाल कॉलेज में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर थे। उनके नेतृत्व में युवा जनता का यह आयोजन हुआ था। उनकी विशेषता थी बड़े स्मार्ट, क्लीन शेव, साफ सुथरे, कलफ लगा हुआ और प्रेस किया हुआ सफेद खादी का कुर्ता पायजामा पहनते थे । बड़ा आकर्षक व्यक्तित्व था। हमसे काफ़ी सीनियर थे। सभी लोग उनका आदर करते थे। अदालत में जब पेश किया गया तो उन्होंने जज के सामने अपना पक्ष रखा। हालांकि कई वकील भी हमारे समर्थन में वहां उपस्थित थे। अदालत हमें रिहा करना चाहती थी पर प्रोफ़ेसर विनय कुमार मिश्रा ने कहा कि चूंकि सभी गिरफ्तार लोग शिमला में बाहर से आए हैं लिहाज़ा सरकार का दायित्व बनता है कि उनको घर जाने तक का किराया राज्य सरकार दे। इसके लिए अदालत के सामने इस सम्बन्ध में कई धाराओं को प्रस्तुत किया गया। अदालत दुविधा में पड़ गई और सरकारी वकील इस का विरोध कर रहा था। लिहाज़ा जहां तक मुझे याद है हमें वापिस जेल भेज दिया गया और अगले दिन हमें अदालत में फिर पेश किया गया। अदालत ने हमें रिहा तो कर दिया पर वापिस जाने के लिए किराया दिया जाए या नहीं– इस का निर्णय बाद में होगा ।,यह कह कर इसके लिए कई दिन बाद की तारीख़ डाल दी गई। इस बहाने थोड़े दिन शिमला में ठहरे भी।
सवाल सिद्धांत का और लोकतंत्र का था ।एक मंत्री को रिज मैदान में मीटिंग करने की अनुमति और राज नारायण जी को नहीं।यह कैसे हो सकता है ? राज नारायण जी जैसा बब्बर शेर जिस को कोई मंत्री पद या पिंजरा बांध नहीं सकता था , जिन के पीछे प्रोफ़ेसर विनय कुमार मिश्रा, मार्कंडेय सिंह , राजकुमार जैन जैसे युवा लोग लोकतंत्र के सवाल पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा लेकर खड़े रहते थे । राज नारायण जी की इस बगावत का असर यह हुआ कि मोरार जी देसाई जो कि उस समय प्रधान मंत्री थे, उन्होंने नेता जी की इस घटना को बड़ी गंभीरता से लिया। कई अन्य कारणों सहित इस घटना के पश्चात कुछ ही दिनों बाद जनवरी 1979 में राज नारायण जी को मंत्री पद से हटा दिया गया। उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ा।अपनी ज़िद और धुन के पक्के राज नारायण जी ने पार्टी के भीतर लोकतंत्र, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर अपना संघर्ष जारी रखा और यह लड़ाई तब तक चलती रही जब तक मोरारजी भाई की सरकार गिर नहीं गई । उन की स्मृति को शत शत नमन और श्रद्धांजलि।
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