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देश की तरक्की के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता जरुरी

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डॉ. शशांक द्विवेदी

स्वतंत्र लेखक

लगभग दो साल से यूक्रेन-रूस युद्ध जारी है। इजरायल-हमास (फलस्तीन)-ईरान-हिज्बुल्ला के बीच भी संघर्ष चल रहा है। पूरे पश्चिम एशिया में अशांति का दौर जारी है। इन बुद्ध और संघषों के कारण से अभी भी यूरोप बिजली, प्राकृतिक गैस और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया महंगाई और ऊर्जा संकट का सामना कर रही है। भारत तो अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से भी अधिक कच्चा तेल अन्य देशों से आयात करता है। यानी हम अपनी ईंधन और ऊर्जा जरूरतों के लिए अभी भी दूसरे देशों पर निर्भर हैं।

अपनी ऊर्जा जरूरतों को समझते हुए भारत काफी सालों से अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करता जा रहा है। पिछले दिनों एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 10 अक्टूबर, 2024 तक 200 गीगावाट (गौगावाट) के आंकड़े को पार कर गई है। यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 452.69 गीगावाट है, जिसमें लगभग आधी हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा स्रोतों की हो गई है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार अक्षय ऊर्जा के मामले में सौर ऊर्जा देश में पहले स्थान पर है। सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में आज भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर है। सौर ऊर्जा के बाद नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सर्वाधिक विकास पवन ऊर्जा का हुआ है। देश में इसकी स्थापित क्षमता 47.36 गीगावाट है। आज पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता के मामले में भारत चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।

उल्लेखनीय है कि किसी भी देश के आधारभूत्त विकास के लिए ऊर्जा का सतत और निर्वाध प्रवाह बहुत जरूरी है। देश में प्रति व्यक्ति औसत ऊर्जा खपत चहां के जीवन स्तर का सूचक होती है। बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए हमारी ऊर्जा की जा रूप है।

अपनी ऊर्जा जरुरतों को भारत काफी सालों से अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार कर रहा है। पिछले दिनों एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 200 गीगावाट के आंकड़े को पार कर गई है।

मांग भी बढ़ रही है। द्रुतगति से देश के विकास के लिए औद्योगीकरण, परिवहन और कृषि के विकास पर ध्यान देना होगा। इसके लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता है। हमारे देश में बिजली की मांग भी वर्तमान उपलब्धता से कहीं अधिक है। आवश्यकता के अनुरूप बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है। देश में बिजली की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं हो पा रही रही है। कोविड महामारी का दुष्प्रभाव लगभग खत्म होने के बाद से भारत की अध्यवस्था में तेजी आई है जिस कारण से बिजली की मांग भी बढ़ी है। आने वाले समय में भारत में बड़ा बिजली संकट पैदा हो सकता है। यही कारण है कि भारत सहित दुनियाभर में अब ऊर्जा के गैर-अक्षय संसाधनों के मुकाबले अक्षय ऊर्जा संसाधनों की मांग निरंतर तेजी से बढ़ रही है। इसीलिए भारत में भी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है और सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी-बड़ी रियोजनाएंस्थापित की जा रही हैं।

ऊर्जा उत्पादन के साथ साथ ऊर्जा संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा। अपना भविष्य उज्वल बनाए रखने के लिए वर्तमान परिस्थितियों में सभी तरह की ऊर्जा तथा ईंधन की बचत अत्यंत आवश्यक है। आज हम बचत करेंगे तो ही भविष्य सुविधाजनक रह पाएगा। दैनिक जीवनमें उपयोग के लिए जीवाश्म ईंधन, कच्चे तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस इत्यादि ऊर्जा स्रोतों द्वारा पर्याप्त ऊर्जा उत्फा की जा रही है, लेकिन ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए भविष्य में इन ऊर्जा संसाधनों की अत्यधिक कमी होने या इनके समाप्त होने का भय पैदा हो गया है। वस्तुतः ऊर्जा हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ मनोरंजन, संचार, सुख संसाधन, पर्यटन जैसी आवश्यकताओं में भी ऊर्जा के विभित्र रूपों ने हमारी जीवन शैली में अनिवार्य स्थान बना लिया है। इन सबमें भी बिजली ऊर्जा वह प्रकार है जो सबसे सुगमता से हर कहीं सदैव हमारी सुविधा हेतु सुलभ है। यही कारण है कि अन्य ऊर्जा विकल्पों को बिजली में बदलकर ही उपभोग किया जाता है। वास्तव में यदि ऊर्जा का उपयोग सोच समझ कर नहीं किया गया तो इसका भंडार जल्द ही समाप्त हो सकता है। प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है, उतना ही हमारी भावी पीढीयों का भी है।

आज भारत ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ का सफल नेतृत्व कर रहा है। परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और भविष्य में इसके समाप्त होने के भय का समाधान अक्षय ऊर्जा में ही निहित है। हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा में सकारात्मक प्रगति के बावजूद भारत की जीवाश्म इंधनों पर निर्भरता ‘नेट जीरो’ के लक्ष्य में बाधक बन सकती है। अतः विभित्र क्षेत्रों को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाना आवश्यक है।

‘पंचामृत’ पहल के तहत केंद्र सरकार सीओपी 26 सम्मेलन में घोषित कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करने 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक ले जाने, अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने, अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करने तथा 2070 तक ‘नेट जीरो’ कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रतिबद्धता से जुटी है। कोरोना महामारी के बाद वैश्विक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की ओर हम अग्रसर हो चुके हैं। फिलहाल भारत को ऊर्जा उत्त्पादन के साथ साथ ऊर्जा संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा।

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