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मनुस्मृति से मुक्ति दिलाने के लिए ही भिमा कोरेगांव की लड़ाई !

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देश के स्वतंत्रता आंदोलन में शुरू से ही पहले सामाजिक सुधार या राजनीतिक सुधार ? यह बहस महात्मा ज्योतिबा फुले के समय से ही चली आ रही है ! जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के समय तक दिखाई देती है ! और भिमाकोरेगांव की लड़ाई उसका क्लासिकल उदाहरण है ! ज्योतिबा फुले तथा डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का मुख्य लक्ष्य दलित महिला तथा पिछड़ी जातियों को हजारों वर्ष से मनुस्मृति के अनुसार गुलाम बनाकर रखा था उससे मुक्ति दिलाने के लिए ही भिमाकोरेगांव की लड़ाई में महार रेजिमेंट के सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ाई लड़ी थी और इस लड़ाई के जित के दिवस डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 1927 के एक जनवरी से उत्सव मनाने की शुरुआत की है !

डॉ. सुरेश खैरनार

भीमा कोरेगाव की अंन्ग्रेज और पुनाके पेशवाओ की लडाई 1818 के 1जनवरी को खत्म हुई, जिसमे अंन्ग्रेज जीते और उनका भारत पर एक छत्र राज कायम होनेमे एक और जित दर्ज हुई ! इस लडाई में महार रेजीमेंट ने बहुत कम संख्या में बल रहते हुये अंन्ग्रेज सेनाके लिए जीत का मार्ग प्रशस्त किया है !
हममे से बहुत लोगो को इस तरह अंग्रेजो को साथ देने वाले महार रेजीमेंट को लेकर आपत्ति हो सकती है ! लेकिन उसके पीछे के कारणों को जानने के बाद शायद हमारी आपत्ति कम हो सकती हैं ! मैं खुद एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का बेटा होने के कारण मुझे भी काफी दिनों तक भीमा कोरेगाव के विजय स्तंभ देखकर अखरता था ! राष्ट्र सेवा दल में शामिल होने के बाद दलित विमर्श पर आधारित चर्चाओं तथा बाबा साहब अंबेडकर,महत्मा ज्योतिबा फुले के साहित्य से साक्षात्कार होनेके बाद मेरी आपत्ति खत्म हुई !


इसलिए भीमा कोरेगाव के छ साल पहले के ( 1जनवरी 2018 ) विजय दिवस के अवसर पर जो नियोजित तरीके से हिँसा का तांडव हुआ था जिसकी फॅक्ट फैंडींग राष्ट्र सेवा दल द्वारा हमने की थी ! और वह रिपोर्ट जस्टिस जे. एन. पटेल इन्क्वायरी कमिशन को सौपा है,मेनस्ट्रीम जैसे बहुत महत्वपूर्ण अंन्ग्रेजी पत्रिका में वह पूरा रिपोर्ट 23 जनवरी 2018 के अन्कं में छपा है ! उस कारण उस रिपोर्ट को पुणेकी अदालत से लेकर मुम्बई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उस रिपोर्ट को अपने अलग निर्णय मे ( Desent Jujment ) पूरा का पूरा लिया है !
मुख्य बात महार रेजीमेंट का अंग्रेजोको साथ देने के कारण ! मनुस्मृति के अनुसार क्षत्रिय छोडकर अन्य किसी भी पिछडी जतियोको शस्र धारण की मनाही थी ! इसलिऐ हजारों साल पहले से भारत के दलितोको, पिछडी जतियोको लड़ाईयां लड़ने के अधिकारोसे वंचित रखा था ! जो अंन्ग्रेजोने महार रेजीमेंट बनाकर बहाल किया ! और इसिलिए इतनी विषम संख्याके बावजूद महार रेजिमेंट भिमा-कोरेगांव की लड़ाई में जानकी बाजी लगा कर लड़ी और जीति !
मेरा मानना है की हजारों सालों से भारत पर विभिन्न आक्रमक शक,हूणों, कुषणोसे लेकर ग्रीक,रोमन,मंगोल,मुघल,पर्शियन,अफगानी,पोर्तुगीज,डच,फ्रेंच,अंन्ग्रेज लगातार आतेही रहे ! और हर एक ने कुछ समय तक राज भी किया है ! जो सिलसिला 1947 तक जारी रहा ! इसकी एक वजह हमारी तिन चौथाई से भी ज्यादा जनसंख्या शूद्रों की शस्र धारण की मनाही, शिक्षण की मनाही और बाकी छूआछूत का तो पुछोही मत इस तरह इतनी बड़ी आबादीको आपने खुद धर्म के नाम पर अछूत बनाकर रख दिया था ! तो वे वर्तमान राजा कोई भी क्यो ना हो उसके प्रति सतत उदासीन रहे होंगे ! और हर नये आनेवाला हमलावरों को लेकर जो विरोध करने का जज्बा होता है ! वह नहीं के बराबर रहा होगा ! और शायद यही आशा मनमे रही होगी की शायद नया जो भी कोई आ रहा है, शायद वह इससे बेहतर होगा ! और इसिलिए हजारों सालों से भारत पर आक्रमण होते रहे ! और आक्रमक कोई थोडे दिन कोई शेकडौ साल राज करकेहि गये हैं ! इसका सबसे बड़ा कारण मेरे हिसाब से समाजिक विषमता !


2500 साल पहले महावीर और ऊसीके आसपास गौतम बुद्ध ने पहली बगावत इस विषमताओं के खिलाफ की है ! और इस कारण लगभग पुरे भारत में बौद्ध साम्राज्य स्थापित हो सका (गुप्तकाल) ! लेकिन हमारी जातीव्यवस्था ने दुबारा षड्यंत्र करके भारत से बौद्ध धर्म का पराजय किया ! फिर मध्ययुगीन बर्बरता शुरू हुई ! 1700 वीं सदी के शुरुमे अंन्ग्रेज व्यापार का बहना बनाकर आये ! लेकिन बहुत जल्द आधुनिक विज्ञान तथा तंत्रग्यान के द्वारा लगभग तीन चौथाई दूनियाँ पर राज करने में कामयाब हुए ! और उन्होंने ही यहाकी जातिगत और धार्मिक भेदभाव से फायदा उठा कर 200 साल राज किया ! लेकिन सिर्फ राज नही किया अपने राजकीय स्वार्थ के लिए ही सही लेकिन शिक्षण,रेल,यातायात,और अपनी सेनाको मजबूत करने के लिए हर तरह के लोगों को अपनी सेना में भर्ती किया ! उसी कडिमे महार रेजीमेंट की शुरुआत की थी ! और महार रेजीमेंट 200 साल पहले भीमा कोरेगाव की लडाईमे अंग्रेजोके लिये लड़ी और जिति भी ! जिसका डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने विजय दिवस मनाने की शुरुआत की थी ! और उसकी परंपरा में 1जनवरी 2018 को विजय दिवस के अवसर पर देश भर से लाखो दलितोने हिस्सा लिया था ! और उन्हिके ऊपर हिंदुत्ववादी मनोहर कुलकर्णी उर्फ संभाजी भिड़े और मिलिद एकबोटे के भड़काने से हजारों-हजार गाडिय़ों की तोड़फोड़ कर कुछ को जला दिया गया और उसमे कुछ लोग मारे गये हैं ! जिसको आज छ साल पूरे हो रहे है !


हमारी राजनीति में हिंन्दु जनता के खिलाफ हिंन्दुत्व यही सबसे महत्वपूर्ण बात है ! गाँधीजी हिंन्दु जनता के तरफसे थे ! और गोलवलकर हिंन्दुत्व के ! देखियेगा ? डॉ. बाबा साहब आंम्बेडकरजिने महाडके तालाब को दलितोको लीये खुला करनेका आंन्दोलन किया लेकिन हिन्दुत्ववादियों ने उनको मदद करने की जगह लाठिया,पथ्थर मारे ! यह बाबा साहब अंबेडकर बुध्दधर्म स्वीकार करने के 20 साल पहले की बात है ! कोई एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे कि दलितोको अपने हकोके लडाई के दौरान हिन्दुत्ववादियों ने उन्हें साथ दिया हो ?


महात्मा ज्योतिबा फुले सावित्री बाई की दलित,पिछड़े और महिलाओं के लिए किये गये किसी भी प्रकार की कोशिश में हिंन्दुत्ववादियों ने साथ दिया हो? फुले तो गैरब्राह्मण थे ! पर जो ब्राह्मण सुधारक अगरकर,चिपलूणकर,गोखले,कर्वे इन्होंने क्यो साथ नहीं दिया था ? इसका मुख्य कारण यह सभी समाज-सुधारक ब्राम्हण थे और उन्होंने सिर्फ ब्राम्हणों के भितर समाज-सुधारक का काम किया है ! भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतने बड़े नेता लोकमान्य तिलक ने कहा था कि “कुणबी,माली, तेली, तंबोली, तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लोग क्या हल चलाना छोड़कर राज चलाएंगे ? फिर छत्रपति शिवाजी महाराज कौन थे ?
हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में शुरू से ही पहले सामाजिक सुधार या राजनीतिक सुधार ? यह बहस महात्मा ज्योतिबा फुले के समय से ही चली आ रही है ! जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के समय तक दिखाई देती है ! और भिमाकोरेगांव की लड़ाई उसका क्लासिकल उदाहरण है ! ज्योतिबा फुले तथा डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का मुख्य लक्ष्य दलित महिला तथा पिछड़ी जातियों को हजारों वर्ष से मनुस्मृति के अनुसार गुलाम बनाकर रखा था उससे मुक्ति दिलाने के लिए ही भिमाकोरेगांव की लड़ाई में महार रेजिमेंट के सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ाई लड़ी थी और इस लड़ाई के जित के दिवस डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 1927 के एक जनवरी से उत्सव मनाने की शुरुआत की है !

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