अनिल जैन
लगभग पांच दशकों तक देश के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहते हुए असाधारण भूमिका निभाने वाले प्रतिबद्ध समाजवादी, उत्कृष्ट सांसद, मौलिक चिंतक शरद यादव का आज दूसरा स्मृति दिवस है।
शरद यादव कुल सात बार लोकसभा और चार बार राज्यसभा के लिए चुने गए। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के साथ शरद यादव देश के ऐसे पांचवें राजनेता रहे जो अलग-अलग समय में देश के तीन राज्यों से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।
उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर, उत्तर प्रदेश के बदायूं और बिहार के मधेपुरा संसदीय क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। राज्यसभा में भी उन्होंने देश के दोनों बड़े सूबों उत्तर प्रदेश और बिहार की नुमाइंदगी की।
संसद के दोनों ही सदनों में उन्होंने संसदीय शिष्टाचार और मर्यादा का पालन करते हुए देश के वंचित और शोषित तबकों की आवाज को बेबाकी और तार्किकता से बुलंद करते हुए संसदीय बहसों को समृद्ध करने में अपना सार्थक योगदान दिया। संसद में शरद जी जब बोलने के लिए खड़े होते थे तो पूरा सदन उन्हें गंभीरता से सुनता था।
नैतिकता के नाते संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने के संदर्भ में जब भी चर्चा होती है तो जातिवादी मानसिकता मानसिकता से ग्रस्त मीडिया और राजनीतिक टिप्पणीकार आमतौर पर लालकृष्ण आडवाणी का ही जिक्र करते हैं, जिन्होंने हवाला मामले में अपना नाम आने पर लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। शरद यादव का कोई जिक्र नहीं करता, जबकि आडवाणी से पहले शरद यादव ने इस्तीफा दिया था।
सिर्फ हवाला मामले में ही नहीं, आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल एक साल बढ़ाए जाने के विरोध में भी जेल में बंद शरद यादव ने अपने नेता मधु लिमये का अनुसरण करते हुए लोकसभा से इस्तीफा दिया था। उस अटल बिहारी वाजपेयी सहित जनसंघ के किसी भी सांसद ने इस्तीफा नहीं दिया था।
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