- 2161 करोड़ का है शराब घोटाला। ईडी ने तीसरी बार बेटे के साथ पूछताछ के लिए बुलाया था।कवासी लखमा को 50 लाख रुपये हर महीने कमीशन के रूप में मिलते थे
बहुचर्चित शराब घोटाला मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी मंत्री और कांग्रेस विधायक कवासी लखमा को ईडी ने गिरफ्तार किया है। ईडी ने लंबी पूछताछ के बाद कवासी लखमा को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने सात दिन की रिमांड पर सौंपा गया है। 21 जनवरी को पेश किया जाएगा।धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत शराब घोटाले के सिलसिले में रायपुर, धमतरी और सुकमा जिलों में सात स्थानों पर तलाशी अभियान चलाने के दो दिन बाद लखमा की गिरफ्तारी हुई। 28 दिसंबर को, ईडी ने छह बार के कांग्रेस विधायक कवासी लखमा के आवासीय परिसरों के साथ-साथ उनके बेटे हरीश लखमा और अन्य करीबी सहयोगियों के परिसरों पर छापा मारा।
बुधवार को तीसरी बार पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर बुलाया गया था, इसी दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई। ईडी ने लखमा के खिलाफ भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच शुरू की थी, और अब उनके बैंक खाते, संपत्तियों सहित अन्य वित्तीय जानकारी को खंगाले। जिससे कई अहम सबूत हाथ लगे हैं।
ईडी की जांच के अनुसार, लखमा पर आरोप है कि उन्होंने शराब घोटाले के जरिए अवैध रूप से करोड़ों रुपये कमाए। आरोप यह भी है कि लखमा को शराब घोटाले की अवैध कमाई के रूप में प्रति माह 50 लाख रुपये का कमीशन मिलता था।
इस घोटाले में अन्य प्रमुख आरोपितों में आबकारी विभाग के अधिकारी, व्यवसायी और कई उच्च सरकारी कर्मी शामिल हैं। जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि 2019 से 2022 के बीच सरकारी शराब दुकानों से अवैध शराब की बिक्री की गई थी, जिससे राज्य सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हुआ।
सिंडिकेट चलाकर किया गया घोटाला
- ईडी की जांच के अनुसार तत्कालीन भूपेश सरकार के कार्यकाल में आइएएस अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के एमडी एपी त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर के अवैध सिंडिकेट के जरिए शराब घोटाले को अंजाम दिया गया था।
- इस मामले की जांच एसीबी भी कर रही है। इसकी जांच के अनुसार साल 2019 से 2022 तक सरकारी शराब दुकानों से अवैध शराब डूप्लीकेट होलोग्राम लगाकर बेची गई थी।
- सीए के साथ नहीं पहुंचे थे कवासी
- ईडी के अधिकारियों ने कवासी लखमा ने तीसरी बार पूछताछ के लिए बुलाया था। इस दौरान ईडी ने कवासी से कहा था कि वह अपने सीए को भी साथ में लेकर आएं लेकिन कवासी लखमा अकेले ही ईडी के दफ्तर पहुंचे। कवासी लखमा ने बताया कि उनके किसी किसी काम से बाहर गए हैं जिस कारण से वह नहीं आए हैं।
- कवासी ने कहा फूटी कौड़ी नहीं मिले मेरे पास से,‘मैं अनपढ़ हूं, अधिकारी कराते रहे हस्ताक्षर…’
- गिरफ्तारी के बाद कवासी लखमा ने मीडिया से कहा कि ईडी को जांच के दौरान उनके घर से फूटी कौड़ी नहीं मिली है। जबरन फंसाया गया है। नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए यह कार्रवाई की गई है। इसके पीछे भाजपा का हाथ है।
कवासी लखमा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने कई बड़े घोटालों का उजागर किया था, इसलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। उधर, इस मामले में उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा कि ईडी की जांच साक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ रही है। इसका राजनिति से कोई लेना-देना नहीं।
घर खंगाला गया, लेकिन कुछ नहीं मिला
लखमा ने कहा, “मेरा घर खंगाला गया, लेकिन कुछ भी नहीं मिला। मैं अनपढ़ हूं और एपी त्रिपाठी जैसे अधिकारियों ने मुझे अंधेरे में रखा थे। मैं केवल फाइलों पर हस्ताक्षर करता था। इस घोटाले की मुझे कोई जानकारी नहीं है। ईडी से समय मांगा हूं, पूरी जानकारी दूंगा। ईडी के अधिकारी मेरे और बेटे का मोबाइल साथ ले गए है। उन्होंने मेरे से घोटाले के बारे में भी पूछताछ की है।”
शराब घोटाले में चल रही है जांच
बताते चलें कि ईडी ने 2,200 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में कवासी लखमा, उनके बेटे हरीश कवासी, पूर्व ओएसडी जयंत देवांगन, सुकमा नगर पालिका अध्यक्ष राजू साहू, ठेकेदार रामशरण सिंह भदौरिया, पार्टी नेता सुशील ओझा और करीबी सहयोगी रामभुवन कुशवाहा पर कार्रवाई की। सात लोगों के ठिकानों से दस्तावेज जब्त किए थे।
रायपुर के धरमपुरा में कवासी लखमा के बंगले में ईडी की टीम ने करीब 14 घंटे तक पूछताछ की थी। उनकी कार की भी तलाशी ली गई थी। आरोप है कि मंत्री रहने के दौरान कवासी लखमा को हर महीने 50 लाख रुपये कमीशन के रूप में दिए जाते थे। शनिवार को छापेमारी में ईडी ने सात लोगों के ठिकानों से दस्तावेज जब्त किए गए।
- क्या है यह मामला?
- शराब घोटाले में ईडी की जांच, जो कथित तौर पर 2019 और 2022 के बीच हुआ था, ने खुलासा किया कि विभिन्न अवैध तरीकों से अवैध कमीशन उत्पन्न किया गया था।
- केंद्रीय एजेंसी के अनुसार, शराब की खरीद और बिक्री के लिए जिम्मेदार राज्य निकाय छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड (सीएसएमसीएल) द्वारा खरीदी गई शराब के प्रत्येक “केस” के लिए डिस्टिलर्स से रिश्वत ली गई थी।
- ईडी ने दावा किया कि अवैध लाभ कमाने का एक और तरीका बेहिसाब देशी शराब की बिक्री थी।
- इसमें कहा गया कि आय का कोई भी हिस्सा राज्य के खजाने तक नहीं पहुंचा और इसके बजाय सिंडिकेट द्वारा जेब में डाल लिया गया।
- एएनआई की रिपोर्ट में ईडी के हवाले से कहा गया है कि अवैध शराब विशेष रूप से राज्य द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से बेची जाती थी।
- ईडी ने यह भी कहा कि डिस्टिलर्स को रिश्वत दी गई ताकि वे एक निश्चित बाजार हिस्सेदारी के साथ एक कार्टेल बना सकें और यहां तक कि विदेशी शराब खंड में शामिल लोगों को रिश्वत दी गई।
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